गाजर-हलवा मेरी भी कमज़ोरी है
गाजर-हलवा मेरी भी कमज़ोरी है
सर्दियाँ शुरू हो गई थी। इतवार का दिन था। सुबह के नौ बजे से ही अनन्या अंदर-बाहर के चार चक्कर लगा चुकी थी। यह देखकर मयंक ने पूछा-
"क्या बात है ? सुबह से किसका बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है? क्या कोई आने वाला है? इतना बेसब्री से तो आपने हमारा भी इंतज़ार नहीं किया। मम्मी-पापा तो कल आने वाले हैं"।
"अरे ! सब्जीवाले का इंतज़ार कर रही हूँ। रोज़ तो इस समय आ जाता है। आज अभी तक नहीं आया"। अनन्या ने कहा।
"ओह। हमसे ज्यादा ज़रूरी सब्जीवाला हो गया"। मयंक ने चुहलबाज़ी करते हुए कहा।
"आप भी। मज़ाक करने का कोई मौका नहीं छोड़ते"।
"इसके बिना जिंदगी बहुत नीरस हो जाएगी। अच्छा छोड़ो भी। यह तो बताओ, लेना क्या है! घर में आलू, प्याज, टमाटर सब कुछ तो है। कल ही तो तुमने लिया था"।
"एक ज़रूरी चीज़ मैं कल लेना भूल गई थी। वही लेनी है"।
"कल ले लेना। आज कुछ और बना लेना"।
"नहीं मुझे आज ही चाहिए। कुछ देर देखती हूँ। नहीं तो बाज़ार से ले आऊंगी"। अनन्या ने बाहर देखते हुए कहा।
"ऐसा भी क्या चाहिए, जिसके बिना काम नहीं चल सकता"। मयंक ने पूछा।
"गाजर"।
"गाजर"? मयंक ने हैरानी से पूछा।
"हां गाजर। गाजर का हलवा बनाना है। कल मम्मी- पापा और रुचि काशी से वापस आ रहें हैं। पापा को गाजर का हलवा बहुत पसंद है।इसलिए सोच रही हूँ, उन्हें सरप्राइस देने के लिए गाजर का हलवा बनाऊं"।
"पर आजकल तो बाजार में भी गाजर का हलवा मिल जाता है। इतनी मेहनत करोगी। वैसे भी आजकल मम्मी और रुचि के बिना तुम्हें अकेले ही काम करना पड़ता है। कहो तो बाज़ार से ले आऊं। या मम्मी-पापा के आने पर बना लेना"।
"नहीं। पापा जी को घर का बना ही पसंद है। फिर बाजार का भारी भी होता है और इससे पता नहीं कितने पैसों की चपत लग जायेगी। मैं बना लूंगी"। आप बस कुछ मदद कर देना"।
"ठीक है। हमें भी मिलेगा क्या! या पापा जी के लिए ही बनेगा"।
मिलेगा। पर आपको गाजर कद्दूकस करने में भी मदद करनी पड़ेगी"।
"बंदा हाज़िर है। गाजर के हलवे के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा। वैसे भी गाजर का हलवा मेरी भी कमज़ोरी है। यही खिलाकर तो तुमने मुझे अपना बना लिया था"।
"आप भी"। अनन्या ने शरमाते हुए कहा।