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V. Aaradhyaa

Inspirational

3  

V. Aaradhyaa

Inspirational

उम्मीद डॉक्टर से

उम्मीद डॉक्टर से

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"मैं आज रात हॉस्पिटल में रुक जाऊँगी माँ! मेरी कलीग श्रुति की माँ बीमार है और उसकी जगह नाइट शिफ्ट मैंने करने का वादा किया है वरना उसको छुट्टी नहीं मिलती!"

"बेटा, थोड़ा सा और कुछ खा ले। ना हो तो यह जूस ही पी ले!"

अनिताजी ने फिर से आग्रह किया तो अंशिका ने अबके माँ को समझाते हुए कहा,


"आपको पता है ना मम्मी कि जाते ही मुझे कोरोना मरीज़ों के वार्ड में पी. पी. ई. किट पहनकर जाना पड़ेगा। और उस किट को पहनकर ना तो कुछ खा सकते हैं और ना ही पी सकते हैं। इसलिए मैं आजकल हॉस्पिटल में ज़्यादा पानी भी नहीं पीती वरना कैसे मैंनेज़ होगा!"

अंशिका ने अस्पताल जाने से पहले माँ से कहा तो माँ ने सहमति में सर हिलाते हुए कहा,

"बेटा, बस समय से खाना खा लेना और तू अपनी तरफ से अपने पापा को फ़ोन ज़रूर कर देना कि आज तू श्रुति के काम से रुक रही है। नहीं तो खामखा तेरे पापा परेशान रहेंगे और मुझे भी चार बातें सुनाएँगे!"

अनिताजी ने अंशिका को विदा करते हुए कहा।


अंशिका के जाते ही वह थोड़ा सुस्ताने सोफे पर बैठ गई।

"उफ्फ्फ....यह लड़की भी ना जाने से पहले पूरा घर अस्त व्यस्त कर देती है "

अपने आप से बोलते हुए उठी और अंशिका का बिखरा सामान उसके कमरे में ले चली। उसके कमरे को व्यवस्थित करते करते उनका ध्यान दीवार पर लगे अंशिका के बचपन के फोटो पर गया। तस्वीर में मुस्कुराती उस नटखट सी मासूम आँखों वाली बच्ची जो ज़रा सी उँगली कट जाने पर पूरा घर सर पर उठा लेती थी आज एक कुशल डॉक्टर थी। कौन कह सकता था कि यह अंशु बचपन में एक कॉकरोच से डर जाती थी।


अंशिका के बचपन के फोटो ने अनिताजी को भी यादों के पुराने गालियारे में विचरण करने को विवश कर दिया।

शादी के सात साल तक जब उनकी गोद नहीं भरी तब वह और उनके पति आशीषजी अपनी ज़िन्दगी में थोड़ा खालीपन सा महसूस करने लगे थे। उन दोनों के टेस्ट कराने पर पता चला आशीष के वीर्य में शुक्राणु की सघनता बहुत कम थी। इलाज से भी चांस तीस प्रतिशत से ज़्यादा नहीं था। बहरहाल दोनों कोई बच्चा गोद लेने की सोचने लगे।


उन्हीं दिनों आशीष अपना चेकअप अपने दोस्त और कॉलेज के सहपाठी डॉक्टर प्रशांत से करवाने अस्पताल गए थे। डॉक्टर प्रशांत की पत्नी सुरभि भी उसी अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञा थी। उस दिन दोनों एक मरीज़ नीलिमा बच्चे को जन्म देते हुए मर गई। उसके पति का रोड एक्सीडेंट में तुरंत मृत्यु हो गई और नीलिमा दो दिन तक जीवन के लिए संघर्ष करती रही थी, अंततः मृत्यु से हार गई। बाद में उसे और बच्ची को अपनाने को घरवाले तक राज़ी नहीं हुए क्योंकि उसने एक मुस्लिम लड़के से भागकर शादी की थी। तो आगे चलकर कानूनी कारवाई करके डॉक्टर आशीष और अनिता ने उस बच्ची को गोद ले लिया था। आज वही अंशिका डॉक्टर बनकर सबकी सेवा कर रही थी। अनिताजी सोच रही होती कि आज अगर उसकी माँ ज़िन्दा होती तो उसे अपनी बेटी को एक सफल डॉक्टर के रूप में देखकर कितनी ख़ुशी होती।


डॉक्टर हमारे जीवन की रक्षा करते हैं जो अपनी जान की परवाह किये बगैर। सच में डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होते हैं। हमारे रियल लाइफ हीरो होते हैं।


कोटिशः नमन सभी डॉक्टर्स को



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