उजडा़ हुआ दयार............कहानी श्रृंखला(7)
उजडा़ हुआ दयार............कहानी श्रृंखला(7)
उस समय रेडियो पर संतोष आनन्द का लिखा और लता मंगेशकर और मुकेश का गाया फिल्म " शोर " का यह मधुर गीत बज रहा था,
"एक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है
ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है....
कुछ पाकर खोना है, कुछ खोकर पाना है
जीवन का मतलब तो, आना और जाना है
दो पल के जीवन से, इक उम्र चुरानी है,
ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है ..."
समीर मन ही मन बुदबुदा उठा... "मौजों की रवानी.. हुंह... .. "...और उसने बेरहमी से रेडियो का गला ऐंठ दिया।रेडियो बंद हो गया।
समीर इधर अपनी विदेश यात्रा की तैयारियां करने लगा और उधर मीरा अपने कैरियर के लिए इधर- उधर हाथ पांव मार रही थी लेकिन उसे अभी तक कोई सफलता नहीं मिल सकी थी.। उसे किसी ने सलाह दी कि बी.एड.कर लो... बम्पर वेकेंसी आने वाली है... स्कूल और टीचिंग ऐसा क्षेत्र है जो कभी भी बंद नहीं होता बल्कि उसकी आवश्यकता बढ़ती ही रहती है।
सो, मीरा को अब बी.एड.करना ही है । उसे बेहतर लगा कि वह अपने मायके की यूनिवर्सिटी में बी.एड.एडमिशन का फार्म भर दे।वहां .और भी ढेर सारी सहूलियतें मिल जाएंगी......मायका का सुख तो मिलेगा ही ! मीरा ने अपनी कार्य योजना समीर को बता दी। समीर क्या कहता, क्या करता ? उसे मीरा के निर्णय को स्वीकारने के अलावा रास्ता ही क्या है ?
मीरा और समीर के बीच की अन्य दिक़्क़तों में एक यह बड़ी दिक्कत थी कि बिना विमर्श दोनों एक दूसरे पर अपना निर्णय थोप देते थे। लगभग हतप्रभ , अगले पक्ष के पास दो विकल्प होते.. या तो वह विरोध करे या सिर झुका कर स्वीकार कर ले।
मीरा अपने मायके चली गई.. हाँ, हाँ ..समर के विदेश जाने की तैयारियों के बीच ही......थोड़े गुस्से, थोड़े ताव में।
समीर की शादी के लगभग एक वर्ष हो चले थे और इस वैवाहिक जीवन से न तो समीर संतुष्ट था और न मीरा। दोनों की अपनी अपनी व्यथाएं......समीर गर्म मिज़ाज और..... और हर मायने में मीरा ठंढी.... सेक्स में भी।
समीर ने कहीं पढ़ रखा था कि फ्रांस की एक राजकुमारी ने आर्गेज्म को लेकर कई प्रयोग किए । उसका मानना था कि शारीरिक कमी के कारण महिलाएं चरमसुख हासिल नहीं कर पाती हैं। वह नेपोलियन बोनापार्ट के खानदान से आती थीं। फ्रांस के प्रिंस रोलैंड नेपोलियन बोनापार्ट की वह इकलौती संतान थी । पिता की ओर से उन्हें रुतबा मिला, जबकि मां की तरफ से मिला पैसा। उनके नाना मोंटे कार्लो के मुख्य रियल एस्टेट डिवेलपर थे। उनकी शादी हुई थी ग्रीस और डेनमार्क के राजकुमार प्रिंस जॉर्ज से। देखने में बेहद खूबसूरत, साथ ही ज़हीन भी। उनकी गिनती अपने दौर की बुद्धिमान महिलाओं में होती थी और उनके दोस्तों में महान मनोविश्लेषक सिग्मंड फ्रायड थे। इसके बावजूद वह खुश नहीं थीं और वजह थी सेक्स से मिला असंतोष। मैरी बोनापार्ट एक ऐसी राजकुमारी थीं, जिन्होंने सेक्स और महिला आर्गेज्म के राज़ खोजने के लिए अपने ही शरीर को प्रयोगशाला बना दिया।
क्या आप भी नहीं जानना चाहेंगे इस रोचक दास्ताँ को ?......... हाँ तो बोनापार्ट का जन्म हुआ था 1882 में। कहते हैं कि उनमें गजब की चाहत थी सेक्स की। जब वह 10 साल से कम उम्र की थीं, तभी उनकी एक आया ने उन्हें मैस्टर्बैशन करते हुए पकड़ लिया। यूरोप में भी उस समय किसी महिला के लिए सेक्स के बारे में बाते करना और अपनी इच्छाएं जाहिर करना वर्जित था। आया ने मैरी को समझाया कि यह पाप है। इसका बुरा असर पड़ेगा। मैरी इससे थोड़ा डरी ज़रूर, लेकिन सेक्स को लेकर उनके सवाल पहले से ज़्यादा मुखर हो गएमैरी की सबसे बड़ी परेशानी यही थी कि उन्हें सेक्स के दौरान कभी आर्गेज्म नहीं मिला जो परम सुख वह मैस्टर्बैशन से पा सकती थीं। उनकी अधूरी ख्वाहिश की एक वजह कुछ हद तक उनके पति भी थे, प्रिंस जॉर्ज। साल 1907 में एथेंस में बहुत ही धूम-धड़ाके से दोनों की शादी हुई। प्रिंस जॉर्ज उम्र में मैरी से 13 साल बड़े थे, पर यह एक सामान्य बात थी। ख़ासकर उनके ओहदे को देखते हुए। हालांकि पहली ही रात मैरी को पता चल गया कि शादी के बाद सेक्स के जिस आनंद को वह पाना चाहती थीं, वह शायद पति से न मिले। दोनों के दो बेटे हुए और लगभग पांच दशक दोनों ने विवाहित के तौर पर बिताए, लेकिन इस रिश्ते में वह चीज़ नहीं थी, जिसकी तलाश थी मैरी को। प्रिंस जॉर्ज होमोसेक्सुअल थे। पत्नी से ज़्यादा दूसरे पुरुषों में दिलचस्पी थी उन्हें और यह बात उन्होंने पहली रात ही जाहिर कर दी थी।
प्यार की तलाश मैरी को कई दूसरे पुरुषों तक ले गई। इनमें फ्रांस के प्रधानमंत्री भी शामिल थे, लेकिन किसी के भी साथ कभी भी मैरी आर्गेज्म तक नहीं पहुंचीं। उस समय तक माना जाता था कि महिलाओं के लिए सेक्स का कुल मामला वजाइना तक सीमित है। ऊपर से फ्रायड यह थिअरी ले आए कि मैस्टर्बैशन और क्लाइटोरिस की बातें बेकार हैं। अगर कोई महिला सेक्स में इन सब चीज़ों के बारे में सोचती है, तो उसे मानसिक मदद की ज़रूरत है।
एक तरफ दुनिया ये कह रही थी और दूसरी ओर मैरी के अपने अनुभव। वह ये बात मानने को तैयार ही नहीं थीं कि महिलाओं को सेक्स के दौरान आर्गेज्म नहीं हो सकता। उन्होंने अपने शरीर को निहारा और निष्कर्ष निकाला कि चरमसुख न मिल पाने की वजह है शारीरिक समस्या। अपने केस में उन्होंने यह समस्या पाई वजाइना और क्लाइटोरिस के बीच की दूरी। मैरी ने दूरी नापी, करीब तीन सेंटीमीटर। उन्हें लगने लगा कि बस इसी वजह से वह चरमसुख से दूर हैं। इस थिअरी को साबित करने के लिए चाहिए थे प्रमाण, तो मैरी ने दूसरी महिलाओं के वजाइना और क्लाइटोरिस पर स्टडी शुरू कर दी। पेरिस में कुल 243 महिलाओं पर अध्ययन किया उन्होंने। साल 1924 में उनकी स्टडी एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई। मैरी ने ख़ुद का नाम न देकर एक झूठे नाम का सहारा लिया, एई नरजानी। हालांकि समझने वाले समझ गए कि यह किसी मेडिकल रिसर्चर का काम नहीं है।
मैरी बोनापार्ट ने अपने जानने वाले कुछ डॉक्टरों के साथ मिलकर यह काम किया था। इस रिसर्च में वे महिलाएं शामिल थीं, जो इन डॉक्टरों की मरीज थीं। मैरी ने सभी से तफ़सील से उनकी सेक्स लाइफ के बारे में जाना। फिर वजाइना और क्लाइटोरिस की दूरी के आधार पर महिलाओं के तीन वर्ग बनाए। पहली कैटिगरी में उन्हें रखा, जिनमें यह दूरी ढाई सेंटीमीटर से ज़्यादा थी। मैरी ख़ुद भी इसी श्रेणी में आती थीं और अपनी जैसी दूसरी महिलाओं से बात करने के बाद उन्हें पक्का यकीन हो गया कि वे कभी सेक्स में चरमसुख नहीं हासिल कर पाएंगी। जिन महिलाओं में यह दूरी एक सेंटीमीटर से कम थी, उन्हें मैरी ने सबसे ज़्यादा लकी माना। इसके अलावा एक छोटा हिस्सा ऐसी महिलाओं का था, जिनके बारे में मैरी का मानना था कि उनका आर्गेज्म उनके मूड और उनके पति पर निर्भर करता है।
इस रिसर्च के पब्लिश होने तक मैरी की सिग्मंड फ्रायड से काफी गहरी पटने लगी थी। सेक्स पर फ्रायड की थिअरी को लेकर उनकी बातचीत शुरू हुई। पहले लेटर और फिर मुलाकातें। मैरी पहली बार मरीज बनकर गई थीं फ्रायड से मिलने। लेकिन दोनों को दूसरे की शख़्सियत दिलचस्प लगी। मनोविश्लेषण में मैरी की रुचि बढ़ती गई और उन्होंने इस दिशा में काफी काम किया। फ्रायड के प्रति मैरी के दिल में कितना सम्मान था, इसे इस बात से समझ सकते हैं कि जब ऑस्ट्रिया पर जर्मन नाजियों ने हमला किया, तो फ्रायड की जान मैरी ने ही बचाई। हालांकि यह एक दूसरी ही कहानी है।
मैरी की अपनी कहानी यह है कि ढेर सारी पढ़ाई के बाद जब प्रयोग की बारी आई, तो भी उन्होंने अपने ही शरीर को चुना। उन्होंने और ऑस्ट्रिया के स्त्री रोग विशेषज्ञ जोसफ हलबन ने एक सर्जरी खोजी। इसे नाम दिया हलबन-नरजानी प्रोसिजर। इसके ज़रिए क्लाइटोरिस को वजाइना के पास लाना था। इससे पहले तक केवल महिलाओं की लाशों पर ऐसा प्रयोग किया गया था। लेकिन मैरी को अपनी थिअरी पर पूरा यकीन था और दूसरों पर इसे साबित करने के लिए उन्होंने सर्जरी करा ली। आज हम जानते हैं कि क्लाइटोरिस के आसपास कई संवेदनशील नसें होती हैं, जिनके ज़रिए महिलाएं छोटी से छोटी अनुभूति महसूस कर पाती हैं। सर्जरी ने मैरी की उन नसों को नुकसान पहुंचा दिया। उनकी संवेदनशीलता कम हो गई।कुछ अरसे बाद हलबन ने एक और सर्जरी करने का सुझाव दिया और इस बार भी मैरी मान गईं और इस बार भी नाकामी मिली। इस बीच कुछ गाइनकालजिस्ट ने ऐसे केस ढूंढ निकाले, जहां वजाइना और क्लाइटोरिस की दूरी ढाई सेंटीमीटर से अधिक होने के बावजूद महिलाओं को सेक्स में आर्गेज्म हुआ। इसके बाद मैरी को अपनी स्टडी झूठी लगने लगी। काफी बाद में उन्होंने एक क़िताब लिखी और इसमें भी अपने सिद्धांतों को ग़लत बताया। मैरी की तलाश आखिर तक पूरी नहीं हुई। इसके चक्कर में उनका पारिवारिक जीवन भी उलझकर रह गया। लेकिन उनके हिस्से का श्रेय उन्हें तब मिलने लगा, जब दुनिया ने जाना कि उनके सवाल कितने अहम थे।
मैरी की इस दास्ताँ को समीर अच्छी तरह जानता था और वह अपने निजी क्षणों में मीरा का वजाइना क्लाइटोरिस के पास है या नहीं इसी उधेड़बुन में लगा रहता।मीरा सचमुछ या तो किसी बचपन की घटना से या अत्यधिक उपेक्षा के कारण समीर का सहयोग नहीं दे पाती थी ... कभी कभी तो चाह कर भी ! सेक्स विहीन जीवन इस युगल के लिए काल बनता जा रहा था।
लेकिन क्या समीर और मीरा सेक्स की इन्हीं भूल भुलैय्या में भटकते रहेंगे ?..क्या उन दोनों के बीच कोई " तीसरा " भी अपनी जगह बनाने के लिए बेताब था ?और...और आखिर वह क्या वज़ह हो सकती है कि वही स्त्री और वही पुरुष जब दूसरे के साथ रतिक्रिया कर रहे होते हैं तो उन्हें उनका वांछित " चरम सुख " मिल जाया करती है ?.....कैसे ?
(क्रमशः)

