त्यौहार
त्यौहार
मिस्कु ने जब आँखें खोलीं तब से सिर्फ अपने पापा, मम्मी ,मामा और नानी को ही देखा था । उसे नहीं जानता था की इसके अलावा भी कोई और रिश्ता होता होगा। जब भी घर में कोई उत्सव होता बस यहीं चार लोग और अड़ोसी-पड़ोसी साथ होते थे । वक़्त के साथ मिस्कु बड़ा होता गया। स्कूल भी जाने लगा। थोड़े दोनों रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था। स्कूल में सब बच्चे आपस में बात करते थे की हम इस त्यौहार पर बुआ के घर जाएँगे। मिस्कु ने यह शब्द कभी नहीं सुना था। उसने घर आकर अपनी मम्मी से पूछा की मम्मी बुआ कौन होती हैं।
तब कविता (मिस्कु) की मम्मी ने बताया बेटा पापा की बहन को बुआ कहते हैं। मिस्कु बड़ी उत्सुकता से पुछ पड़ा “मम्मी हम भी रक्षा बंधन पर बुआ के घर जाएँगे ना।" कविता ने साफ़ मना कर दिया। ”कोई बुआ नहीं हैं तुम्हारी” ग़ुस्से में मिस्कु को जवाब दिया।
तभी विवांक घर में घुसा ही था और कविता की बातें सुनी उसे बहुत दुःख हुआ ये सुनकर की मेरी बहने होते हुए भी मिस्कु को बुआ के बारे में नहीं पता। और कविता पर ग़ुस्सा भी आया की अपनी माँ और बहनों को घर में छोड़कर सिर्फ कविता के कहने पर घर से अलग रहने आया था। उसके पिताजी किसी बीमारी की वजह से कुछ साल पहले गुजर गये थे। आज इस बात को 3, 4 साल हो गए। उस वक़्त कविता का कहना था की विवांक के घरवाले उसे परेशान करते हैं, लेकिन आज तो वो लोग साथ नहीं हैं तो कविता को अभी भी उनसे परेशानी हैं और साथ ही मिस्कु को झूठ क्यूँ बोल रही हैं। अब उसे कविता की चालाकी समझ आ गयी थी और अपने किए पर पछतावा हों रहा था।
अब विवांक ने तय कर लिया था की उसे वापस अपने घर जाना चाहिए अपनी माँ और बहनों के पास चाहिए। माँ तो माँ होती हैं माफ़ कर ही देंगी। पैसों की तंगी बोलकर कविता को घर जाने के लिए राज़ी कर लिया। अब विवांक कविता और मिस्कु को लेकर अपने घर को लौट पड़ा। मिस्कु अपनी दादी, बुआ से मिल के बहुत खुश हो रहा था। और बुआ से पुछ रहा था की बुआ आप राखी हमें भी बँधोगे ना, बुआ ने प्यार से हाँ में सिर हिला दिया।
माँ इतने सालों बाद बेटे को घर में वापस देखकर ख़ुशी के मारे रो पड़ी। और वही अब मिस्कु हर त्यौहार अपने पूरे परिवार के साथ ख़ुशी से मनाने लगा। उसे अब लगने लगा था की त्यौहार तो परिवार के साथ ही अच्छे लगते हैं। परिवार से ही त्यौहारों में रौनक रहती हैं और त्यौहार का असली मतलब समझ में आता हैं।