इश्क़ कहूँ या आदत…. गलती किसकी
इश्क़ कहूँ या आदत…. गलती किसकी
अब तो नींद भी पूरी नही आती थी बस हर रात को सुबह होने का इंतज़ार रहता था। सुबह की चिड़ियों की आवाज़ से पहले ही उठ जाती थी गुंजन। बस इंतज़ार रहता प्रणव के दीदार का । जल्दी जल्दी घर का सारा काम समेट लेती थी। खाना , झाड़ू , साफ़ सफ़ाई, और साथ में पति-बच्चों का टिफ़िन।
जब सारा काम हो जाता और पति ऑफ़िस , बच्चे स्कूल चले जाते तो गुंजन खुदको संवारने में लग जाती।
उन दिनो पूरी कॉलोनी में कम्प्यूटर सिर्फ़ गुंजन के घर ही था, पति बैंक में मैनेजर जो थे। कम्प्यूटर पर पढ़ाई के बहाने प्रणव का गुंजन के घर आना जाना चालू हो गया था।
बस तभी से प्रणव के लिए गुंजन आंटी कब उसके लिए गुंजन भाभी और भाभी से सिर्फ़ गुंजन और गूंज बन गयी।
दोनो की उम्र में 10,15 का अंतर था लेकिन इश्क़ कहाँ उम्र देखता है। बस हो जाता है । गुंजन को भी नही पता चला कब उसका सजना सवारना सिर्फ़ प्रणव के लिए होने लगा।
धीरे धीरे प्यार का सिलसिला दोनो के बीच बढ़ता गया। अब प्रणव गुंजन की बातें कॉलोनी में भी होने लगी। तब गुंजन कुछ संभली…मगर दिल के आगे मजबूर उसे प्रणव के अलावा कुछ दिखाई ही नही देता था । गुंजन के बच्चे भी प्रणव के काफ़ी मिलने से उनके क़रीब आ चुके थे तभी पति का तबादला दूसरे शहर हो गया था। ये तो सोने पे सुहागा वाली बात हो गयी। अब तो गुंजन ,प्रणव और बच्चे अक्सर बाहर घूमने और खाने जाने लगे। वक़्त कब निकलता गया पता ही नही चला। 1,2 साल यूँही चलता रहा। प्रणव की पढ़ाई भी पूरी हो गयी थी।तभी प्रणव की नौकरी की कम्पनी में दूसरे शहर में लग गयी । प्रणव को अपने शहर से दूर जाना पडा। लेकिन फ़ोन के माध्यम से दोनो लगातार जुड़े रहते थे। दिन भर की हर छोटी छोटी बातें हुआ करती थी।
उम्र को देखते हुए प्रणव के घर वालों ने प्रणव के लिए लड़की देखना शुरू कर दिया था। प्रणव शादी के लिए बिल्कुल तैयार नही था। शादी की बात सुन सुन कर वो परेशान होने लगा । उसने गुंजन का पहला अक्षर अपने नाम के साथ अपने हाथों पर गुदवा लिया था। अब गुंजन आदत बन गयी थी उसकी और गुंजन भी बिना प्रणव से बात किए बग़ैर नही रह पाती थी। प्रणव तो गुंजन के सिवा किसी और के बारे में सोच भी नही पा रहा था । अब गुंजन ही उसकी ज़िंदगी और गुंजन के बच्चों को अपना बच्चे मानने लगा था ।
उन्ही दिनो प्रणव के पिताजी की तबियत दिन बे दिन ख़राब हो रही थी। पिताजी ने प्रणव से साफ़ कह दिया था की अगर शादी नही करेगा तो मेरा मुँह भी देखने मत आना। किसी तरह प्रणव लड़की देखने को राज़ी हुआ| उस लड़की के लिए प्रणव ही उसका पहला प्यार था। जैसे तैसे शादी हो गयी लेकिन प्रणव और गुंजन का प्यार क़म ना हुआ। भले ही प्रणव ने शादी की हों लेकिन क़भी उस लड़की को अपने दिल में वो स्थान ना दे पाया जो उसकी बीवी को मिलना चाहिए था। धीरे धीरे प्रणव की बीवी को भी सबसे प्रणव गूंजन का पता चल गया लेकिन अब वो कर भी क्या सकती है। ना उसका प्यार पूरा हो पाया और ना ही प्रणव का। समझ नही आता प्रणव की नादानी कहूँ, आदत कहूँ या सबका अधूरा प्यार।