तूफ़ान मेल

तूफ़ान मेल

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हमारी बिल्डिंग में एक तूफ़ान मेल है, जो आंधी की तरह आती है, झटपट सारे काम निपटा कर चली जाती है। किसी के घर खाने बनाती है और कहीं झाड़ू-पोंछा करती है। पहली बार जब मैं उससे मिली तो उसने मुझे ये बताकर आश्चर्यचकित कर दिया था कि उसकी चार वर्ष की एक बेटी है।

उसकी बेटी अपने दादा-दादी के साथ बांग्लादेश में रहती है और ये अपने पति के साथ मुंबई में काम करने आयी है। मुझे जब ये पता चला कि उसका पति उसे पैसों के लिए प्रताड़ित करता है और वो अपनी बेटी को छिपकर पैसे भेजती है।

इतनी चतुर और तीव्र स्त्री जो एक साथ 4-5 व्यक्तियों को झाड़ दे वो अपने पति से परेशान है जानकर दुःख हुआ। कुछ दिन पहले आयी और बोली- "दीदी तीन साल बाद अपने देश जा रही हूँ, तीन-चार महीने बाद आऊँगी। अपनी बेटी के लिए कुछ कान की बालियाँ बनवाने दी है, कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं, आप मेरी सहायता कर दीजिये।

आप काम की चिंता न करें, मेरे स्थान पर ये लड़की काम करेगी। बेटी का नाम सुनकर मैंने छुट्टी और पैसे दोनों दे दिए। दो-तीन दिन बाद वो काम पर आई तो मैंने पूछा तुम अपने देश नहीं गयी, तब दुखी मन से बोली कि उसका टिकट नहीं हुआ। दलाल ने कुछ गलत कर दिया, उसके पति का टिकट हो गया और वो चला गया। कान की बालियाँ उसका पति ले गया, मेरे पूछने पर उसने बताया।

यह सब बोलते हुए उसका गला भर आया। मैंने ढांढस बांधते हुए कहा कि अगले महीने चले जाना. वो दुःखी हो कर बोली, दीदी जितना बचाया था सब चला गया अब तो अगले साल ही जा पाऊँगी, आँखों से आँसू पोंछते हुई बोली दीदी आप चिंता मत करो मैं आपके पैसे लौटा दूँगी।

उसकी पीड़ा के सामने मेरे पैसे कुछ भी नहीं थे और मैं उसके लिए कुछ कर भी नहीं सकती थी, केवल इतना कह पायी- " जब हो तब दे देना।" तभी उसका मोबाइल बजने लगा, चार नंबर वाली ऑन्टी उसको जल्दी आने को कह रही थी, अपनी सारी पीड़ा भूल कर जल्दी जल्दी काम खत्म करने में जुट गयी। जीवन के प्रति उसके दृष्टिकोण ने मुझे अत्यंत प्रभवित कर दिया। प्रत्येक परिस्थिति में अपने मनोबल को ऊँचा रखना, कभी भी हार नहीं मानने की कला उसने सीख ली थी।।


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