Noorussaba Shayan

Inspirational

4.8  

Noorussaba Shayan

Inspirational

जीवन

जीवन

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सुषमा के जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था, दो बच्चे, पति एक छोटा सुखी परिवार जो की किसी भी मध्यम वर्ग की स्त्री की इच्छा होती है। नियति को कभी कभी इतना सुख देखा नहीं जाता, उसके पति का एक सामान्य सिर दर्द ने कब ब्रेन ट्यूमर का रूप ले लिया यह पता ही नहीं चला। पति की बीमारी ने सब उथल पुथल कर दिया, अलग अलग चिकित्सकों से परामर्श लेना शुरू किया। दुनिया भर के सारे परिक्षण कर लिए परन्तु सभी ने यही बताया की ठीक होने की उम्मीद नहीं के बराबर है। एक ऑपरेशन भी करा लिया परंतु स्वास्थ्य में कुछ सुधार नहीं हुआ, पैसा पानी की तरह बह रहा था, परंतु उम्मीद की कोई किरण नहीं दिख रही है। तभी उसको पता चला कि उसके पति के बचपन का एक सहपाठी एक प्रसिद्घ न्यूरोलॉजिस्ट है यह सुन कर उसको उम्मीद बंधी, पूरे उत्साह के साथ वो अपने पति के साथ उससे मिलने दिल्ली गयी।

उसने भी अपने पुराने मित्र को पहचान लिया, काफ़ी बातें होने लगी वो पुराने बचपन के क़िस्से हँस हँस कर याद करने लगा। सुषमा उन सब बातों से चिढ़ रही थी, वो जानना चाहती थी कि उसके पति कब तक अच्छे हो जाएंगे, वो इस बात में इच्छुक थी कि इस चिक्त्सिक प्रक्रिया शीघ्र प्रारम्भ की जाए। उसने तिलमिला कर बीमारी का उल्लेख किया, डॉक्टर समझ गया कि वो सुषमा का ध्यान केवल अपने पति की बीमारी में है। उसने सुषमा से पूछा "भाभी, आपकी माँ कभी आपसे मिलने आपके घर आती हैं?" "जी हाँ बिलकुल" सुषमा ने उत्तर दिया। कितने दिनों के लिए डॉक्टर ने पूछा, यही कुछ १०-१५ दिनों के लिए, सुषमा ने बताया। तो आप क्या करती हैं सुषमा ने सोचा ये क्या विचित्र प्रश्न है, फिर भी उसने बोला मैं उनके साथ अच्छा समय व्यतीत करती हूँ, ढ़ेर सारी बातें करती हूँ, उनके पसंद का खाना बनाती हूँ, उनके साथ घूमने जाती हूँ। बस आप ऐसा ही समझ लीजिये, आपके पति कुछ दिनों में आप लोगों से दूर जाने वाला है, सब कुछ भुला कर उसके साथ रहिये। सुषमा का गुस्सा सातवें आसमान में पहुंच गया वो तिलमिलाकर उठी और चिल्लाते हुए कि यही सुनने इतने दूर नहीं आयी थी अपने पति को वहाँ से घर ले आई।

वो इस बात को मानने को तैयार नहीं थी कि उसका पति उसको छोड़ कर जाने वाला है। रात के खाने के बाद जब सुषमा उसके लिए दवाई ले कर आयी तब उसने सुषमा को पास बिठाया और हाथ पकड़ कर बोला जो आया है उसे जाना ही है, मुझे भी जाना ही होगा। तुम या मैं कोई उसे रोक नहीं सकते, मैं जब तक हूँ तब तक मैं तुम सभी के साथ शान्ति से रहना चाहता हूँ। अस्पताल की जगह मैं तुम लोगों के साथ अच्छा समय बिता कर अच्छी यादें देना चाहता हूँ मेरी इस इच्छा को पूरी करने में मेरी मदद करो। यह सुन कर वो रो पड़ी और अपने पति के बाँहों में सो गयी। जब सवेरे उठी तो जीवन की सच्चाई को मान चुकी थी, अब वो एक नयी सुषमा थी जो वर्त्तमान में रहते हुए भूतकाल को पीठ दिखाते हुए भविष्य की तैयारी में लगी हुई थी। सुषमा अब अपने पति की छोटी छोटी इच्छायें पूरी करने में लग गयी थी, घर में हंसी ठिठोली का वातावरण बना दिया था उसने. समय कहाँ किसी के लिए रुकता है वो समय आ ही गया जब वो अकेली अपने बच्चों के साथ रह गयी। परन्तु अब वो बेबस और असहारा नहीं थी वो एक मजबूत माँ थी जिसे अपने बच्चों के लिए सिर उठा कर खड़े होना था। ये हिम्मत उसके पति ने उसको जाते हुए दी थी, अपनी जमा पूँजी, सारे निवेश के बारे में बता कर गया था, जिससे उसके बच्चों को किसी की सहायता की आवश्यकता न हो। उसके पति ने उसको इतना सशक्त कर दिया था कि वो कठिन परिस्थियों का डट कर सामना कर सके। वो सारी चिंताओं से मुक्त हो कर इस दुनिया से चला गया था, सुषमा यही सोचती रहती कि पिछला एक महीने जैसा बीता है वैसा ही पूरी जीवन निकल जाए तो कितना अच्छा होता।


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