जाने वो कौन सा हिन्दुस्तान है
जाने वो कौन सा हिन्दुस्तान है
रमजान के 20 दिन और मेरा काम पूरा होने का नाम नही ले रहा था। शाम को 6 बजे मेरी बॉस ने बोला घर चली जाओ अफ्तारि का टाईम हो रहा है। पर अपना काम अधूरा छोड़ कर जाना मेरी फितरत में शामिल न था इसलिये में अपने काम में लगी रही। जल्दी जल्दी काम निबटा कर ऑफ़िस से निकली तो मेरी सहयोगी ने कुछ मेवे देते हुए कहा "रास्ते में रोज़ा खोल लेना "।ऑफ़िस के बाहर भीड़ औटो ढूँढ रही थी।
में भी उसमें शामिल हो गयी। जैसे ही एक औटो आया सब टूट पड़े। एक आदमी जो मुझे जानता था रास्ता छोड़ते हए बोला "आप पहले जाईये अफ्तारि का समय हो रहा है "।में शुक्रिया कहते हुए बैठ गयी। लोकल ट्रेन में बैठते ही अफ्तारि का वक़्त हो गया।
बैग टटोलकर देखा तो कुछ मेवो के सिवा कुछ न था।
उन्हीं से रोज़ा तोड़ा और पानी की बोतल ढूंढने लगी। उफ्फ़ क़्यामत का दिन था बोतल ऑफ़िस में ही भूल गयी थी। मेवे गले में फंसने लगे तो एक आंटी ने अपनी पानी की बोतल दे दी। 2 घूँट अन्दर गये तो जान में जान आयी। माथे पर बिंदी बालों में गजरा सजाये उन्होनें पूछा रोज़े से थी मैने हाँ में सर हिला दिया। अफ्तारि के लिये कुछ नही है उन्होने प्यार से पूछा। "आज ही देर हुई इसलिये कुछ नही ले पाई " मैने कहा। उन्होने अपनी चक्ली का पकेट मुझे दे दिया। ये देखते ही किसिने बिस्किट किसी ने लड्डू किसी ने फल दिये। जब घर पहुँची तो माँ ने पूछा "अफ्तारि की?" मैने हाँ में सर हिला दिया और सोचने लगी वो कौन सा हिन्दुस्तान है जहाँ लोग एक दूसरे से उनके मज़हब की वजह से उनसे नफरत करते हैं। मुझे तो एक दूसरे से प्यार करने वाले लोग ही दिखे हैं। अखबारों की सुर्खियोँ में जो वारदातें आती हैं वो सच है या जो प्यार मैने देखा वो सच है।