तुम्हें माँ क्यों बनना है ?
तुम्हें माँ क्यों बनना है ?
घर की गरीबी और 'बड़ी बेटी' होने के कारण छोटे बहन भाइयों की जिम्मेदारियाँ को निभाते हुए रिश्तों के लिए उसकी उम्र हो चली गयी है
इसका अंदाजा उसको तब हुआ जब माँ ने किसी बाल बच्चेदार विधुर का रिश्ता लेकर आनेवाली आँटी को हामी भर दी।
माँ के घिसेपिटे पुराने डायलॉग 'मेरे जाने के बाद तुम्हारा कौन ख्याल रखेगा?'ने रही सही कसर भी खत्म कर दी।
शादी के बाद पति के घर उसकी हर बात को तराजू पर तौलकर देखा जाने लगा।
पति का अपनी पूर्व पत्नी का साथ और बच्चों को अपनी माँ का ख्याल जब कभी भी आता तो वह जैसे कट कर रह जाती थी।उसको अपनी जिंदगी दोधारी तलवार सी लगने लगी।
कुछ दिनों के बाद धीरे धीरे adjust होने के बाद जिंदगी भी पटरी पर लौट आने लगी।कुछ कुछ ठीक हुआ तो एक रात उसने पति से बच्चे की बात की।उन्होंने छूटते ही कहा,"और कितने बच्चे चाहिए तुम्हे?एक लड़का और एक लड़की है तो हमारे पास।अब ये दोनों बच्चें भी तुमसे हिलमिल गए है।अब यह क्या कहती जा रही हो तुम?"
उसने धीरे से पति की पीठ को सहलाते हुए कहा,"मैं 'अपने बच्चे' की बात कर रही हूँ।"
उसके हाथ को झटकते हुए वह कहने लगे, "नहीं,नहीं।यह नहीं होगा।इन दोनों बच्चों पर बहुत बुरा असर होगा।बड़ी मुश्किल से मैंने इनको संभाला और तुमसे शादी का जोखिम ले लिया है।अब तुम ऐसा वैसा कुछ भी मत सोचो।"और वह पीठ फेरकर सो गए।
वह बूत बनकर वैसी ही बैठी रही जैसे उसे काठ मार गया हो।
जिंदगी में माँ बनने की इच्छा रखना भी क्या कोई गुनाह है? क्या माँ बनना मेरा कोई हक़ नहीं हो सकता?इस सवाल के साथ और भी कई सवाल उस रात में उसके आँखों के सामने एक के बाद नाचने लगे।उस अँधेरे कमरे में उनके सायों के कई सवाल थे।
कौन हूँ मैं ?
इस घर मे क्या वजूद है मेरा?
मेरा कोई वजूद है भी इस घर में?
वह कातर निगाहों से उस सुनी छत की ओर तांकने लगी और उन सवालों के जवाब ढूँढने लगी।
क्या यहाँ मैं सिर्फ एक पत्नी हुँ?
इन बच्चों की माँ हुँ?
या इन बच्चों की सिर्फ full time कोई आया हुँ?
उस मकान की सुनी छत और बेजान दीवारों के पास इन सवालों के जवाब तो थे लेकिन शायद वह उन्हें सुनना नही चाहती थी या उसे इस बात का खौफ हो रहा था कि कही वे सच ना उड़ेल दे ...