Prem Kumar Shaw

Romance Tragedy

4.4  

Prem Kumar Shaw

Romance Tragedy

तुम्हारा रमन...

तुम्हारा रमन...

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मैं दौड़कर उसके करीब गया और बोला.." तुम अब आई , मैं कब से तुम्हारे आने के इंतजार में तनहा बैठा हुआ हूँ..."

उसने कहा.."साॅरी माई लव , बहुत इंतज़ार करवा दी...( कहकर वह हँस दी)

मैं उसके हँसी देख अपनी सभी शिकायत भूल गया और उसके आँचल के छांव तले आराम से लेट कर उसके कोमल रेशमी बालों से खेलने लगा।

अचानक वह बोली..." चलो न इस मनोरम शाम में इस पार्क का थोड़ा भ्रमण कर लें....!"

मैंने कहा..." क्यों नहीं 'जान', श्योर चलो... वैसे भी सामने जो तलाब है न उसके पास कई सुंदर-सुंदर गुलाब के फूल खिले हैं और वहीं तलाब में झरना सा पानी झर रहा है...!"

वह बोली .." ओह माई लव.." चलो न मुझे झरनों को देखना बहुत अच्छा लगता है। मैं पिछले बार जब मामा के घर जम्मू गई थी तो मैंने वहाँ पर झरने देखी थी, अब यहाँ तो उन पहाड़ों-सा तो दिखेगा नहीं पर इसे ही देख मैं उनको महसूस कर लूँगी..''( कहकर वह हँस दी)

मैं उसके निश्छल हँसी के सागर में उतराता उसे उस छोटे झरने के साथ ही पूरे पार्क के मनोरम वातावरण का सैर करवाया।

उसने कहा.." थैंक्स लव मैं इन दिनों बहुत ही अपसेट थी और न जाने क्यों..! मेरे शरीर में एक थकान सी महसूस हो रही थी ... तुमने मुझे बुलाया और घूमाया.."

मैंने कहा.." नहीं जान कोई बात नहीं, मैं तुमसे प्यार करता हूँ

और तुम्हारे हृदय तक को सुन सकता हू..( बोल कर मैं भी उसके जैसा थोड़ा हंस दिया..।

उसने अभी तक अपने अंदर आए बदलाव के बारे में नहीं बताया था। वह इन दिनों किसी और लड़के को पसंद करने लगी थी या शायद हो सकता है वह लड़का जिसका नाम रमन था जो उसके यूनिवर्सिटी में पढ़ता था, वह उससे पहले से ही प्यार करती हो...

गाॅड नोज"

मैं भी क्या-क्या सोचने लगता हूँ। रोमिला मुझे माई लव कहती हैं और मेरे साथ कितनी प्यार से बातें करती है । वह भला दूसरे से कैसे प्यार कर सकती है ।

ंं इसी उधेड़बुन में मेरे दों रात कटे, उससे काॅल्स और मैसेजेस में बात हुई पर मैं उससे इन सब के बारे में नहीं पूछा।

तीसरे सुबह रोमिला का फोन आया..." मैं तुमसे प्यार नहीं करती, मैं किसी और से प्यार करती हूँ। मैंने सोचा तुम्हें बता देना चाहिए! उस दिन तुम्हारे अति उल्लासित होने के बाद मुझे समझ आ गया था कि शायद तुम मुझसे प्यार करते हो इसीलिए मैंने सोचा कि सब कुछ क्लियर कर दिया जाए...!"

उसके इन सब बातों से मैं काठ हो गया न हिलता न डूलता

अचानक उसके कहने पर "अनुभव"..."अनुभव "

कहाँ खो गए उसके दो तीन बार कहने पर मैं होश में आया और बोला ""तब तुम जो माई लव, जान कहती थी वह क्या था?

उसने कहा.." मुझे भी नहीं समझ आ रहा अनुभव,

शायद जब भी तुम्हारे साथ होती हूँ मैं तुममे रमन को महसूस करती हूँ।"

मैंने कहा.." तुमने कभी नहीं कहा कि तुम किसी और से प्यार करती हूँ..?"

उसने कहा.." मैंने कहा तो की बार था तुमने उन बातों पर विश्वास ही नहीं किया था..।"( कहकर उसने यह कहते हुए फोन कट कर दी की ममी बुला रही)

फिर एक दिन बाजार में रोमिला से मुलाकात हुई पर इस मुलाकात में पहले से मधुरिम एहसास न जाने क्यों नहीं था?

मैंने कहा..."अच्छा मैं तो दूसरे यूनिवर्सिटी का छात्र था। तुम्हारे रमन से मिला भी नहीं कभी वह अब क्या करता है?"

उसने कहा.." एक वर्ष पहले ही उसने बी.एस.एफ ( बोर्डर सिक्युरिटी फोर्श ) ज्वइन किया है..."

मैं उसके इस कथन से ही भाव-विभोर हो गया और उसके सामने ही खड़े होकर' जय हिन्द' बोलने लगा ।

उसने कहा .." ये क्या कर रहे हो? सब देख रहे अचानक जय हिन्द क्यों बोलने लगे?"

मैंने कहा.." मैं जब भी अपने देश के सेवा करने वालों के बारे पढ़ता हूँ या सुनता हूँ तो मेरा सीना चौड़ा हो जाता है। इसी जोश में मैं कहीं भी किसी आर्मी के वर्दी पहने देखता हूँ उन्हें सलाम कर देता हूँ..."

वह सुनकर मुस्कुराते हुए यह बोलकर चली गई कि" मैं अपने रमन जी से बेइंतहा प्यार करती हूँ.....

तुमने अपना जो समय मुझे दिया उसके लिए धन्यवाद।"


कुछ दिन बाद जब मैं सुबह उठा और सामने मंगलू के दुकान पर बैठे चाय पी रहा था तो अखबार में लिखा पाया.." बी.एस.एफ जवान रमन शर्मा आतंकियों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए"

...

मेरे सामने अंधेरा छा गया और रोमिला का वह रूप याद आने लगा जो रमन को याद करते हुए उसने मुस्कुराई थी।


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