तुम्हारा होना
तुम्हारा होना


रात बहुत हो चुकी थी। मैं पढ़ रहा था, किताबें इधर उधर बिखरी पड़ी थी। मैं उन्हें सहेज कर रख दिया अपने उसी अलमारी में जहाँ मेरे जीवन के सबसे अहम अंश "किताबें" रखी रहती है।
मैं अब सोने के लिए अपने चारपाई पर हूँ। मैं सोने की कई कोशिशें कर चुका हूँ, पर नींद मेरी आँखों के आस पास भी नहीं भटकती है। कुछ ऐसा है जिसे मैं भूल रहा हूँ। तभी मुझे दिखता है वह डायरी जिसमें मैं स्वयं को सिर्फ तुम्हारे लिए सीमित रखा हूँ। उस डायरी में तुम ठीक उसी भाँति मौजूद हो जैसे मेरी हृदय में साँसे। मैं उठा, उठ कर उन पृष्ठों को खोला जिन पृष्ठों में तुम्हारे होने का एहसास सबसे तीव्र , जिसमें मैं भी हूँ पर तुम कुछ अधिक हो ,उन्हें मैं पढ़ने लगता हूँ_
मैं धड़कन हूँ
किसी के सीने की
उनके बिना अब
ख़्वाहिश नहीं है मुझे जीने की।
इसे पढ़ कर ही मैं यादों की अतल गहराइयों में उतरता जाता हूँ , जिसमें मैं और तुम साथ हैं, एक वृक्ष के नीचे बैठ हम और तुम अपने सपनों की दुनिया में खोये है। तभी तुम उठ जाती हो यह कह कर कि अब यह रिश्ता नहीं चल सकता। अब हमें अपने इन बचपने को यहीं विराम दे देना चाहिए। हम अपने परिजनों के साथ अन्याय कर रहे चोरी-छिपे मिलकर। वें हम पर विश्वास करते हैं और हम उन्हें अँधेरे में रखें हुए हैं।
तुम चलने लगती हो , बस एक बार मुड़ कर देखी थी। फिर तुम नहीं मुड़ी थी। मैं नि:शब्द ,बस तुम्हें देख रहा हूँ। मुझे भी तुम्हारे उस दायित्व का बोध था जिसमें तुम्हारे अपने तुम्हारे लिए सपने सजाए होंगे। और तुम अपने परिजनों के विश्वास पर खरी उतरना चाहती हो।
आज तुम्हारे गए पाँच वर्ष हुए। पर जब भी मुझे किसी प्रकार की पीड़ा का बोध होता है तब मैं इन्हीं डायरी के पृष्ठों को खोलकर पढ़ लेता हूँ और कुछ एहसास को शब्दबद्ध भी कर देता हूँ जो आने वाले दिनों में तुम्हारे होने का बोध कराएंगे।इन्हीं पृष्ठों को पढ़ते-पढ़ते तुम मेरे ख़्वावों में समा गई और मैं तुम्हारे साथ उन्हीं वादियों में विचरण के लिए चल दिया जहाँ हम प्राय: जाया करते थे।