चाय और तुम (एक एहसास)
चाय और तुम (एक एहसास)


किसी की याद में मैं खोया उस चायवाले चाचा की दुकान में चाय की चुस्की ले रहा था। वह 'याद' जिसके आते ही मैं कहीं गुम हो जाता हूँ कहीं, वह याद जिसके आने से मैं स्वयं से बातें करने लगता हूँ, उस पल उन्हीं की याद आयी।
याद कुछ यूँ आयी कि हम दोनों ठीक इसी प्रकार जब निकले थे सैर पर, उनका हाथ मेरी हाथों में था, उनके कंधे पर मेरा सर रहता था और उन पहाड़ी वादियों में सिर्फ हम दो थे, आस पास सिर्फ हरियाली और पहाड़ों की सौंधी सुगंध जो हमें अपने तरफ यूँ खींच रहा था मानो किसी प्रेमी को गुलाब खींचता है अपनी तरफ ।
उन्हीं वादियों में हमें ठीक इसी प्रकार एक चाय का दुकान मिला था। चाय जो बस चाय नहीं एक एहसास है, जिसे होठों तक स्पर्श करते ही ऐसा लगा जैसे उन वादियों की सभी सुगंध को एक साथ घोल कर डाल दिया गया हो। उन्होंने तो उस चाय को यूँ पीया जैसे पी रही हो कोई अमृतरस।
आज मैं उन्हीं वादियों में हूँ। चाय भी है। और चाय का स्वाद भी वही। पर उनका साथ नहीं जिनके होने मात्र से चाय का मीठापन कई गुना बढ़ जाता है। बस वह एहसास है जब हम साथ थे ।