तुम्हारा पत्र
तुम्हारा पत्र
तुम्हारा पत्र
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जीवन से जुड़ी कई बातों से मुख़ातिब,
अनवरत और अंतहीन बातों को तुम्हे बताने का,
सिलसिला अब पत्र के मध्यम से थम गया है,
पर अब भी सहेज रखा है मैने,
मेरे कई पन्नों के पत्रों के जबाब में,
आया तुम्हरा कुछ पंक्तियों में,
सिमित औपचारिक सा पत्र,
बार-बार पढ़ता हूँ, इसे अब भी,
ढूंढता हूँ उस शब्द को,
जो मेरे दिल को तसल्ली दिला सके,
की कभी हम दोनों,
एक-दूसरे के बेहद करीब थे,
जीवन का ये कैसा भ्रम है की,
हम जिस उम्र में होते है,
हमें लगता है की, हम समझदार है,
पर सच ऐसा नहीं होता,
कितनी बेवकूफियां, नादानियाँ,
लिपटी होती थी मेरे उन पत्रों के पुलिंदे में,
जिसे तुम तक पहुंचने के लिये,
उन कड़की के दिनों में,
मेरे जेब में शेष बचे बीस रुपयों में से,
पांच रुपया का डाक टिकट खरीद लेता था,
बिना इसकी परवाह किये की,
कल से कैसे रहूँगा, इस प्रदेश में,
और मुझे इस बात का भी कहाँ इल्म था,
की मेरे पत्रों का कैसा असर होता है तुम पर।