तुम मुझमें रहते हो

तुम मुझमें रहते हो

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जानते हो मेरे घर की परिस्थितियां ? जिसने मुझे मान सम्मान दिया, पाला पोसा मैं उन्हें निराश नहीं कर सकती, वह सिसक रही थी।

’’चाहे मैं कुछ भी क्यो न कर लूँ ! मुझे पता नही था पूजा कि तुम मुझसे प्यार नहीं करती वर्ना कभी ऐसे सपने न देखता, मेरी जिदंगी में तुम्हारे सिवा कुछ भी नहीं है, न आगे न पीछे । यदि तुम आज शाम 7 बजे सोहनी महिवाल पार्क में नहीं मिली तो समझो मेरा मरा मुंह देखोगी उधर से फोन काट दिया गया।

वह फोन हाथ में लिये लिये रो रही थी।

’’और तू , यदि ऐसी न होती तो मैं इतनी मजबूर न होती, किसी का इतना एहसान न होता इस जिंदगी पर जिसे चुकाये बिना मैं मोैत को भी गले नहीं लगा सकती। तू ऐसी है छोटा भाई ना समझ है, आठ नौ साल का प्यारा सा बच्चा, पापा इतने सीधे साधे कि बस कुछ कहा नही जाता। जिस औरत के चेहरे पर उन्होेने कभी मुस्कान नहीं देखी, उसके साथ जीवन गुजार रहे है, चौबीस वर्ष से। चाची जब अकेली हो गई थी चाचा की अचानक मृत्यु से तब दोनो परिवारो ने एक दूसरे को बिना किसी लिखित अनुबंध के स्वीकार कर लिया था।

नैना मांजना धोना, घर की साधारण साफ सफाई में पहले भी मदद करती थी, पूजा जेैसे -जैसे बड़ी होती गई कल्याणी घर की जिम्मेदारियो से मुक्त होती गई ।

वह न रहे तो क्या चाची घर बाहर करती हुई सम्भाल लेगी उसके मां बाप और भाई को ? क्यो और कितने दिन सम्हालेगी भाई ? जब वही उनके मान सम्मन को धूल में मिला देगी। अभी तो एक-एक पैसा जोड़ रही हैं ! कहती है मेरी पूजा ने बड़े दुःख उठाये है मायके में, इसकी ससुराल अच्छी ढूंंढूंगी।

उस तपस्विनी को क्या वह खून के आँसू रुलायेगी ?

’’मैं नहीं आउंंगी ! नहीं आउंगी नहीं आउंगी, कभी नहीं आउंगी।’’ वह तकिये पर सिर पटक पटक कर रो रही थी।

वह आम की फाँको जैसी आँखें फाड़े देख रही थी सकपकाई हुई। दिमाग में छायी धूल भरे बादल कुछ घने और आद्र हो गये, ’’क्या ? क्या? क्यो ? उसने पूजा का कंधा धीरे से पकड़ लिया।

उसने अपने आंसू पोंछे

’’कुछ नही, कुछ नही, वह सामान्य होने की कोशिश करने लगी।

वह अपनी पतली - पतली गोरी - गोरी अंगुलियो से उसके आंसू पोंछने लगी।

’’रहने दे ! - मुझे कुछ नहीं हुआ, और जो हुआ सब तेरी वजह से हुआ। जब तू ऐसी थी तब बच्चे पैदा क्यो किये ? उसने चिढ़कर अश्लील प्रश्न किया, वह जानती थी उसे सुख -दुःख उस तरह नही व्यापता जिस तरह अन्य लोगो को।

’’जायेगी जा ! मैं रहती हूँ घर में ।’’ नैना ने आज बड़ी समझदारी की बात की थी।

’’नहीं जाना मुझे कहीं !’’ वह चीख पड़ी। मैं अपने परिवार से प्रेम करती हूँ । वह सोच रही थी उसके सिवा उसके आसपास कोई नहीं है। नैना की भला क्या गिनती थी उसकी नजर में।

धूल के बादल और घने हुए बेचैनी सी लगने लगी, किसी प्रश्न का उत्तर देना तो आवश्यक नहीं था उसके लिय आज क्या कभी भी। हां आज का प्रश्न उसकी बेटी की ओर से था।

पता नहीं कहां से ठंडी -ठंडी हवा चलने लगी मनोमस्तिष्क में, धूल के बादल उडने लगे । कुछ उजाला सा होने लगा।

गोरे रंग की एक चंचल सी लड़की, पीठ पर बालो की दो चोटियां, दोनो हाथों में दबी सीने से लगी काॅपी पुस्तके, पलकें झुकी रहतीं रास्ते भर। काॅलेज के रास्ते की ओर घूमने वाले लड़के हार गये थे इस लड़की से। देखती ही नहीं किसी की ओर तो क्या दिखाया जाय। सहेलियो के साथ खिल -खिल, बाकी समय मुंह बंद ।बी.ए. फाइनल की परीक्षा के फार्म भरे जा रहे थे, कलर्क की टेबल के चारो ओर लड़कियों की भीड़ जमा थी। उसके दाएं कंघे से सटी खड़ी रही थी वह। बहुत देर बाद उसने ध्यान से देखा था उसे कनपटियो को छूती भौहों को ऊपर उठाकर उसने सारे कागजात आगे सरका दिये थे। सब कुछ ओके था, फार्म जमा हो गया था। वर्ष भर में ढेरों मौके आये पास आने के। वह गज भर की चौड़ी छाती वाला, सुहानी नाक, और साँवले रंग का छःफुटा जवान था, क्लीन शेव्ड चेहरे पर हमेशा गंभीरता ओढ़े रहता, लड़कियों के कॅालेेज मे ही...ही... ही.... हा -हा ...हा कैसे चलता ? झुकी निगाहो से देखा करता उसे, कहीं हलचल मचने लगी थी उसके दिल में । समझ न पाई कि पहलू में अनजानी जलन क्यांे हो रही है ? बहुत कुछ ऐसा ही। हंसना कम हो गया था, काम काज में मन नही लगता, पढ़ाई पूरी हुई, मार्कशीट बांट रहा था जय। बहुत देर से खड़ी थी वह। सभी लड़कियां चली गईं शाम का धुंधलका उतरने लगा कॅालेज के प्रांगण में।

’’मैं कल ले लूं क्या सर ?’’ उसने ऊब कर पूछा था।

’’अरे नहीं ! ये लीजिए आप का मार्कशीट, बी. ए. प्रथम श्रेणी में लाने के लिये बधाई नैना, मेरी ओर से तुच्छ भेट !’’ - उसने जल्दी से अपनी जेब से एक खिला हुआ लाल गुलाब निकाल कर मार्कशीट के साथ ही उसे दे दिया।

’’थंैक्यू सर! उसकी निगाहे झुकी हुई थीं।

’’मैं तुम्हे बहुत पसंद करता हूॅ नैना ! उसने उसे एक बार नजर भर के देखा फिर निगाहे झुका ली। उसके होठो की थरथराहट महसूस की थी नैना ने।

शादी पक्की हो गई थी उसकी, जय हर बार अपनी यादें ताजी करने आ जाता, केटरिंग बालो का मुखिया जय, फोटो ग्राफर जय, बारात की आगवानी में सबसे आग जय, फोटो खीचते समय कहा था एक बार,

’’मेरी जिदंगी की अंतिम खुशाी है नैना तुम्हारी शादी, मैं तुम्हारे बिना जी नही सकूंगा, यदि मुझे जिंदा देखना चाहती हो तो चलो मेरे साथ, मैं तुम्हे अपनी जान से ज्यादा चाहता हूॅ।’’

’’देखिये यह सब कुछ आपको शोभा नहीं देता। मैं बड़े परिवार की लड़की हूॅ, मेरा केाई भी गलत कदम मेरे पीछे के दर्जनो लोगांे का जीवन चैपट कर देगा। मुझे क्षमा कीजिए, यदि आप खुश न रहेगे तो मैं भी अपनी जिदंगी की खुशियों का स्वागत कैसे कर सकुंगी ?’’ उसने पूरी तरह संयम रखा हुआ था।

फूलो से सजी कार पर वह बैठी थी, उसने घंूघट की ओट से किसी की तलाश की थी, नीम के तने का सहारा लिए वह कार की ओर ही देख रहा था।

पूरे मन से उसने शादी को स्वीकारा था, किन्तु दिल के अधिकांश हिस्से में अंधेरा छाया था।

जब चार दिन बाद पगफेरे के लिये मायके गई तब समाचार मिला - उसी के कालेज मे पढ़ने वाली छोटी बहन से।

’’दीदी ! दीदी ! वो जो सर थे न जय सर।

’’हाॅ ! हांॅ ! क्या हुआ उन्हें ? उसका दिल धड़क उठा था।

’’तेरी शादी के दूसरे दिन उन्होने फांसी लगा ली थी, कहते हैं किसी से चक्कर था ? धता बता कर वह किसी दूसरी ओर चली गई थी। ’’

जेैसे कोई भारी चीज सिर गिर पड़ी हो । धूल भरा बवंडर हलचल मचाने लगा तभी से उसके दिमाग में । आँखो का सूनापन, लगता है जैसे केाई भाव ही नहीं है जीवन में। धूंध और धनी हुइर्, फिर कुछ पिघलने लगा, आँखों से बहने लगा, गले से सिसकियां फूट पड़ीं।

’’तू मत रो ? जा कर मिल ले ! मैं सम्हाल लूंगी सब कुछ ।’’ उसने पूजा को अंक में भर लिया। संभवतः यह पहला आलिंगन था जिसमें ममत्व की उष्मा थी ।...

’’ऐंऽ...ऽ...!. मां रो रही है ! अरे मां रो रही है ! कोई देखो ! मां रो रही है। पूजा के आँसू मुस्कुरा पड़े।

’’तू जा नऽ मंै हूँ नऽ ।’’ नैना ने फिर कहा ,

’’कहां मां ?’’

’’वहीं जहाँ वह बुला रहा है। सचमुच उसने कुछ कर लिया तो ?’’

’’कोैन मां ?’’

’’वही जिसका फोन सुनकर कई घंटे से रो रही है।’’ उसकी आवाज जैसे गहरे कुएं से आ रही थी।

’’मुझे उस पागल की बात की कोई परवाह नहीं, आज तो मैं खुशी से खुद पागल हो जाउंगी ऐसा लग रहा है। इतने दिनो बाद मेरी मां की आँखो में आंसू आये हैं। पत्थर की मूरत जी उठी है, हनुमान् जी को प्रसाद चढ़ाउंगी। आज तो जमीन पर लोटते हुुये मंदिर तक जाउंगी, वह नेैना को बेतहाशा चूम रही थी।

’’तू जाती क्यांे नहीं कहीं देर हो गई तो ?’’

’’मांॅ मैं सिर्फ और सिर्फ अपने पापा मम्मी भाई और चाची से प्यार करती हूॅ उनके मान-सम्मान को ठेस पहुँचाने के लिए मैंने जन्म नहीं लिया। बाकी किसी के कुछ भी कहने से मुझे क्या लेना देना।’’ वह अपने स्वर की उदासी छिपाने का भरपूर प्रयास कर रही थी।

’’यदि ऐसा है तो उसकी बातंे सुनकर इतना रो क्यो रही थी ? मेरी कसम खाकर बोल !’’

’’क्योकि मैं भी उससे ...?’’

पूजा की नजरे जमीन देखने लगीं।

डोरबेल बजी थी उसी समय कल्याणी आ गई थी काॅलेज से।

’’चाची ! चाची ! मां अपने आप अच्छी हो गई, अच्छी बातें कर रही है।’’ वह कल्यारणी से लिपट गई थी।

’’कल्याणी ! कल्याणी ! तुमने इस बच्ची को मां बन कर पाला है, उसे इसकी खुशी से मिला दो , एक और नैना के जन्म को रोक लो कल्याणी । नैना उसके पैरों से लिपटी, अँासू भरी निगाहांे से उसे देखती पूजा की खुशियांे की भीख मांग रही थी।

’’अरे बाबा ! इतने सारे आश्चय ! मुझे कुछ समझने दोगी तुम दोनो , क्या चमत्कार हो गया घर में ? दोनो रो रही हैं न जाने क्यो ? कल्याणी ने अपनी कनपटियाँ अपने दोनेा हाथांे से दबा ली।

’’चाची ये लो पानी ! बैठो पहले यहां ?’’

पूजा ने ठंडे पानी का गिलास कल्याणी के हाथ में दिया, और पकड़ कर सोफे पर बैठा दिया।

’’बताओ अब !’’

’’चाची अचानक मां रोने लगी, फिर मुझे गले कर बोली, कल्याणी से तेरे लिये प्रार्थना करुंगी। एकदम समझदारी की बाते चाची! पूजा की आवाज आवेश में तेज हो रही थी।

’’आइये डाॅक्टर मनोज ! मेरी बधाई स्वीकार कीजिए। कल्याणी ने आवाज देकर जिस युवक को बुलाया उसे देखते ही पूजा की हड्डियो में ठंडी सिहरन दौड़़ गई।

’’अरे बाप रे ! यहां कैसे आ गया यह ?’’

’’सुनो यदि कुछ भी उटपुटांग कहा न तो तुमसे पहले मैं छत से नीचे कूद जाउंगी। मैं नही जानती चाची इसे। इसकी बातो का विश्वास न करना।’’ पूजा ने अपने स्वर में सच्चाई भरने का प्रयास किया किन्तु सफल नहीं हो सकी।

’’पूजा ! मैं तुम्हारी माँ का डाॅक्टर हूँ इन्हें देख कर तुम मुझे माफ कर दोगी ऐसी उम्मीद हैं मुझे। एक हूबहू परिस्थिति निर्मित करने के लिए मैंने तुम्हारा इस्तमाल किया। डाॅक्टर मनोज हाथ जोड़ कर खड़े थे।

’’ तो क्या सारा कुछ नाटक था ? आप को तो एक्टर होना चाहिए डाॅक्टर !’’ पूजा के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।

’’ मैने पहली बार बिना दवा के एक मरीज को ठीक किया है पूजा तुम्हारा सहयोग याद रखूंगा।’’

’’ डाॅक्टर साहब मेरी बेटी के दिल से खिलवाड़ करके आप ने अच्छा नहीं किया। ’’ नैना के चेहरे से बेटी का ग़म झालक रहा था।

कल्याणी अन्दर से एक लिफाफा ले आई,

’’डाॅक्टर साहब आप की फीस, उसने लिफाफा डाॅक्टर के हाथ में थमा दिया।

’’ डाॅक्टर साहब हम आप के सदा ़़ऋणि रहेंगे आप ने मेरे घर की खुशियाँ वापस लौटाई है। ’’ वह विन्रमता से हाथ जोड़े खड़ी थी।

’’जाओ पूजा डाॅक्टर साहब करे दरवाजे तक छोड़ आओ। ’’ कल्याणी ने जानबूझ कर पूजा को भेजा।

’’ सर ! आप कहते हैं इस केस में मेरा सहयोग महत्त्व पूर्ण है, किन्तु पूरी फीस लेकर चलते बन रहे हैं क्या यह उचित है ?’’ पूजा ने बंकिम मुस्कान च.ेहरे पर ला कर कहा।

’’ तो क्या चाहिए तुम्हें बोलो !’’

’’ एक वादा !’’

’’ कैसा वादा ?’’

’’आप अपनी शादी में मुझे अवश्य बुलायेंगे, मैं आप की दुल्हन को अपने हाथ से सजा का आप के कमरे में भेजना चाहती हूँ।’’ उसकेे स्वर में संसार भर की पीड़ा रची-बसी थी।


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