तुम जो न मिलते !
तुम जो न मिलते !


'सर किसी लड़की का नंबर है तो दिजीये टाइम पास करने के लिए' राज ने विजय से कहा।
'अबे ! काहे इन लफड़ों में पड़ते हो बे ! आराम से पढ़ो लिखो !' विजय ने राज से कहा।
' क्या सर, आप तो हरियाणवी मैम के साथ बिजी हो जाते हो और हम जूनियरों को ज्ञान देते रहते हो। अब सेमिस्टर भी खत्म हो गया है। खाली बैठे टाइम पास नहीं होता और लैपटॉप पर कोई कितना पिक्चर देखे'
'देखो बेटा ! लैपटॉप पर पिक्चर देखना अच्छा है। जाओ संकल्प के यहां से सीडी लाकर पिक्चर देख लो।'
'संकल्प के यहाँ अब कोई पिक्चर बची ही नहीं जिसे नहीं देखा हो। आपके पास तो नंबरों का खजाना है किसी टुटपुंजिया का नंबर दे दीजिये, जब तक सेमिस्टर स्टार्ट नहीं हो जाता, टाइम पास कर लेंगें।' राज ने विजय को जवाब देते हुए कहा।
'अबे, फ़ोन पर बात करने से अच्छा है तू संजना से बात कर ले, तेरी और उसकी जोड़ी जमती है' विजय ने राज की चुटकी लेतें हुए कहा।
'किसका नाम ले लिए सर ! मैं उससे बात तो कर लेता पर डरता हूँ कहीं गले न पड़ जाए, और आप तो अपने तरफ का माहौल जानतें ही है, कहीं शादी करना पड़ गया तो बाप लात मार के घर से भगा देंगें'
'बेटा मलाई भी खाना चाहते हो और हाथ मे भी न लगे, वाह गुरु !'
'एक नंबर है, लेकिन उसे तुम नहीं लपेट पाओगे ?' विजय ने थोड़ा मुस्कुरातें हुए कहा।
'ऐसा क्या है सर, जो हम उन्हें लपेट न पाएँ ? आखिर चेले तो आपके ही हैं !'
'इसलिए तो कह रहा हूँ बेटा की न लपेट पाओगे, जब गुरु न लपेट पाए तो चेले की क्या औकात' विजय ने खुद को संबोधित करते हुए राज से कहा।
' हो सकता है किंतु कभी कभी चेला चीनी बन जाता है और गुरु गुड़ ही रह जातें हैं सरजी' राज ने हँसतें हुए कहा।
' बेटा ! गाली खानी हो तो नंबर ले लो। पर यह न बताना की तुम कानपुर से बोल रहे हो वर्ना फिर कभी वह तुम्हारा नंबर रिसीव नहीं करेगी' विजय ने राज को आगाह करते हुए कहा।
' कानपुर के नाम से बिदकने की वजह क्या है सर ?' राज ने जानना चाहा।
'अबे ! नंबर चाहिए तो जितना कह रहा हूँ उतना सुनो' विजय ने उसे थोड़ा डाँटते हुए कहा।
'पर यह तो बता दीजिए लड़की कहाँ की है ?' राज ने पूछा।
'अबे ! मुझे भी नहीं मालूम, पर बात तुम्हारी हो जाएगी बस यह मत बताना की तुम कानपुर से हो' विजय ने कहा।
'फिर मैं क्या बताऊंगा कि मैं कहाँ से बोल रहा हूँ ?'
'जो बोलना हो बोल देना पर कानपुर का नाम मत लेना, नहीं तो फिर कभी वह तुमसे बात नहीं करेगी !'
'लखनऊ बोल दूँगा ?'
'अबे जब कानपुर नहीं बोलना है तो लखनऊ क्यों बोलोगे ? किसी और जगह का नाम बोल देना !'
'अलाहाबाद, बनारस चलेगा क्या सर ?'
' अबे लपेटना तुझे है, टाइम पास तुझे करना है, और शहर का नाम मैं बताऊँ ?तू रहने दे भाई तेरे से नहीं होगा !' विजय ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा।
'ठीक है ठीक है सर ! मैं देख लूंगा' राज को लगा कि विजय नाराज हो रहा है तो उसने जल्दी से कहा।
विजय, राज का सीनियर है। इनके साथ आशीष और पटेल भी रहतें हैं। विजय, आशीष और पटेल तीनो राज के सीनियर है और राज इनका जूनियर, पर इन तीनों से राज की जमती है, इसलिए जब वार्डन ने इन तीनों को होस्टल से निकाला तो इन्होंने राज को भी अपने साथ रहने के राजी कर लिया। अब ये चारों प्राइवेट रुम लेकर स्वरूपनगर में रहतें हैं जो 'हरकोर्ट बटलर प्रौधोगिकी संस्थान, के बगल में है।
'हैलो' राज ने कॉल रिसीव होने पर बोला। लेकिन बहुत देर इंतजार करने के बाद भी प्रतिउत्तर में कोई आवाज दूसरी तरफ से नहीं आयी। कॉल अभी भी चल रहा था। राज को लगा कि अनजान नंबर से कॉल आने पर अमूमन लड़कियाँ ऐसा ही करती हैं। शायद आवाज पहचानने के लिए की शायद कोई परिचित हो।
राज ने दूसरी बार फिर बोला - 'हैलो'
राज को उम्मीद थी कि इस बार जरूर कोई आवाज आएगी पर इस बार भी वही खामोशी। राज भी चुप हो गया और इंतजार करने लगा कि उधर से कोई आवाज आये। यह पहली दफा था जब राज ने इस तरह की उटपटांग हरकत की थी। हाँ, उसने अपने दोस्तों को ऐसा करतें हुए बहुत बार देखा था। रह रह कर एक खीझक उसके मन मे उभर रही थी। एक बार तो उसने सोचा कि इस तरह की बचकानी हरकत करने से अच्छा है क्यों न वह गुरुदेव टाकीज में जाकर कोई मूवी देख आये। पर तभी कॉल रिसीव करने वाले की तरफ से किसी पक्षी के चहचहाने की आवाज आई। जिस तरह से उधर खामोशी थी उसमें उस पक्षी का चहचहाना उसे अच्छा लगा। वह उस आवाज को सुनने लगा।' वाह ! कितनी प्यारी आवाज है !' राज के मुंह से निकल गया।
इतना सुनना था कि कॉल रिसीव करने वाले ने कॉल कट कर दिया। अचानक इस तरह फ़ोन कट जाने से राज को थोड़ा अजीब लगा और हैरानी हुई कि इतनी देर तक बिना बोले लाइन चालू रखा और चिड़ियां के चहचहाने की तारीफ करते ही कॉल क्यों कट गई !
अब उसके मन मे एक तरह की दिलचस्पी उत्पन्न हो गई, उस आवाज को सुनने की जो कॉल रिसीव कर रहा था। उसने दुबारा कॉल लगाया पर पूरी रिंग जाने के बाद भी किसी ने कॉल रिसीव नहीं किया। पर राज हार मानने वालों में से नहीं था, उसने तीसरी, चौथी, पांचवीं... नहीं पचासवीं बार तक कॉल किया। पर कॉल रिसीव करने वाला भी दिलचस्प था उसने ठान लिया था कि कॉल रिसीव नहीं करेगा तो उसने नहींं ही किया ! राज समझ गया की कॉल रिसीव होने वाला नहीं है तो उसने फ़ोन करना बंद कर दिया। पर अब उसके मन में एक अलग तरह की खलबली मच गई थी।
अगले दिन सुबह सुबह राज की नींद खुल गई। उसने मोबाइल देखा, सुबह के छह बज रहे थे। राज को कल वाली बात याद आई। उसने अपने कॉल रजिस्टर से उस लड़की का नंबर निकाल और बिस्तर पर पड़े पड़े ही डायल करने लगा। तभी उसे ध्यान आय की इतनी सुबह किसी को कॉल करना सही नहीं होगा। क्योंकि वह नहीं जानता कि जिसका नंबर विजयंत सर ने दिया है वह किसका है, लड़की का है या किसी लड़के का या किसी शादी-सुदा लड़की का। या क्या पता कहीं विजय सर ने उसका मजा लेने के लिए अपने किसी दोस्त का नंबर दे दिया हो ! तभी इसके मन मे आया कि चलो उस नंबर वाले को परेशान करे क्योंकि कल पचास बार कॉल करने के बाद भी उसने कॉल रिसीव नहीं किया था।
राज ने नंबर डायल कर दिया। रिंग होती रही पर किसी ने कॉल रिसीव नहीं किया। रिंगिंग टोन खत्म होने ही वाला था कि कॉल रिसीव हो गई।
'इतनी सुबह कौन ह.....मी है ?' एकदम से ऐसी गाली सुनकर राज की तो सिटी-पिट्टी गुम हो गई ! उसकी आँखें चौड़ी और दिल की धड़कन तेज हो गई। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या बोले तो उसने झट से कॉल कट कर दिया।
फ़ोन रखने के बाद भी उसकी सांसे ऊपर नीचे होती रहीं। देर तक वह अवाक बैठा रहा। थोड़ा नॉर्मल हुआ तो बाथरूम चला गया।
'हैलो !' फ़ोन उठाते ही आवाज आई। यह आवाज किसी लड़की की थी। आवाज कुछ पहचानी सी लगी लेकिन किसकी ? राज को समझ नहीं आया।
'हैलो ! जी बोलिये कौन बोल रहा है ?' राज ने उत्तर देते हुए पूछा। उसने जानबूझकर पुलिंग का संबोधन किया जैसे फोन पर कोई लड़का उससे बात कर रहा हो। उसकी वजह यह थी कि वह घर आया हुआ था और पास में ही उसकी मम्मी और छोटी बहन बैठीं थी।
'पहले यह बताओ तुम हो कौन और मुझे इतना कॉल क्यों करते हो' लड़की ने सीधे राज से कड़कते हुए पूछा।
राज को तुरंत समझ मे आ गया कि विजय ने उसे जो नंबर दिया था, यह वही लड़की है।
'अभी मैं थोड़ा बिजी हूँ ! थोड़ी देर में मैं कॉल करता हूँ ?' राज ने अपनी सिस्टर की तरफ देखते हुए फ़ोन करने वाली लड़की से बोला। उसके ऐसा बोलते ही उसकी सिस्टर उसके तरफ देखने लगी। उसे समझ नहीं आया कि राज ने ऐसा क्यों बोला जबकि वह बिल्कुल खाली बैठा है।
उसकी सिस्टर को कुछ शक हुआ। उसने राज की तरफ देखते हुए पूछा-' किसका फोन था जो बहाने बना रहा है भैया ? कोई लड़की थी क्या ?'
'हाँ तेरी होने वाली भाभी थी' राज ने बात छुपाने के लिए मजाक में उससे कहा। ताकि वह शक न करे।
' बात तो करा मेरी भाभी से' राज की सिस्टर ने हँसते हुए कहा। राज ने हँसकर उसका साथ दिया। और बोला-
'चुपकर ! बहुत आई भाभी से बात करने वाली। पढ़ाई पर दिमाग लगा पढ़ाई पर'
' हाँ ! और तू होने वाली भाभी पर दिमाग लगा !' उन दोनों की बातें सुनकर उनकी माँ मुस्कुराने लगी।
राज कानपुर से घर आ गया था। कॉलेज के सेमिस्टर एग्जाम हो गए थे इसलिए बाहर से कानपुर पढ़ने आये लड़के कुछ दिन के लिए छुट्टी मनाने घर चले गए थे। पढ़ने वाले बच्चों की संख्या कम होने की वजह से प्रिंसिपल ने कुछ दिन के लिए सारे क्लास बंद कर दिए थे कि जब सारे बच्चे वापस आ जायेंगें तब नए सेमिस्टर का सेशन स्टार्ट करेंगें।
राज ने देखा कि कॉलेज ज्यादा दिन तक बंद रहने वाला है तो वह भी घर चला गया था। आज मम्मी और सिस्टर के बीच बैठा बातचीत कर ही रहा था कि उस लड़की ने कॉल कर दिया। मम्मी और सिस्टर दोनों पास बैठी थीं इसलिए उसने कॉल बैक करने के लिए लड़की से बोल दिया। उसे डर था कहीं मम्मी को पता न चल जाए कि उनका लड़का क्या गुल खिला रहा है।
करीब आधे घंटे के बाद राज घर से बाहर निकला और अपने खेत वाले बगीचे में चला गया, उसे डर था कहीं लड़की ने दुबारा कॉल कर दिया तो उसके पकड़े जाने का डर है।
'हैल्लो !' उसने बोला। थोड़ी देर प्रतीक्षा किया कि उधर से रिप्लाई आये लेकिन कॉल रिसीव होने के बाद भी कॉल रिसीव करने वाले ने पहले की तरह कोई उत्तर नहीं दिया। राज भी कुछ देर तक चुप रहा।
करीब कॉल रिसीव होने के दो मिनीट बाद तक किसी की आवाज नहीं सुनाई दी तो राज ने एक बार और बोला-
'हैल्लो !' पर इस बार भी वही चुपी ! राज को हैरानी हुई की कॉल रिसीव करने वाला यह कौन सा खेल, खेल रहा है !
राज को इस खामोशी के पीछे से उभरती हुई चिड़ियों के चहचहाने की आवाज फिर से सुनाई दी। उसे यह आवाज बहुत आकर्षक और मधुर लगती थी। वह भी मोबाइल पकड़े देर तक खामोशी से उस पक्षी की आवाज सुनता रहा।
करीब करीब ऐसे बिना बोले दोनों को दस मिनीट हो गए। राज इर्रिटेट होने लगा। उसने फ़ोन कट कर दिया। वह आराम से खेत के मेड़ पर बैठ गया। आकाश में गहरे बादल होने की वजह से ठंड ज्यादा लग रही थी, उसपर से हल्की हल्की चलती हवा ने मौसम को और सर्दिला बना दिया था।
राज बेचैन था। उसके मन मे एक ही ख्याल था कि कॉल रिसीव करने वाला कोई जवाब क्यों नहीं दे रहा है।
काफी देर खेत मे टहलने के बाद उसे घर जाने का मन करने लगा। पर डर यह था कि घर मे जाते ही उस लड़की का कॉल न आ जाये ! फिर उसे लगा कि अगर बात करनी होती तो कॉल रिसीव करने के बाद यह बोलती क्यों नहींं ? और अब तो उसने कॉल रिसीव करना भी बंद कर दिया, तो संभव है अब वह दुबारा कॉल न करे ! अभी वह यह सोच ही रहा था कि उसके मोबाइल की घंटी बज उठी। उसके चेहरे पर अचानक आश्चर्य मिश्रित खुशी उभर गई। उसने जल्दी से फ़ोन निकाला, वह उसी लड़की का कॉल था !
'हैल्लो !' राज ने बोला।
उधर से फिर कोई आवाज नहीं आई।
'जब बात नहीं करनी तो फ़ोन करने और रिसीव करने की जरूरत क्या है ?' राज ने प्रश्न किया।
' और तुम्हें इस तरह किसी अनजान को फ़ोन करके परेशान करने की जरूरत क्या है ?' इस बार उधर से लड़की की आवाज आई। आवाज एकदम शांत और मीठी थी। लग रहा था जैसे कोई प्यार भरा गुस्सा दिखा रहा हो। अचानक हुए इस सवाल का जवाब राज के पास नहीं था। उसे तो यह भी उम्मीद नहीं थी कि इस बार भी उधर से कोई बोलेगा।अचानक इस हमले के लिए वह तैयार नहीं था। वह समझ न सका की क्या जवाब दे। वह खाओमश रहा तभी लड़की ने दुबारा बोला-
' सबसे पहले तुम यह बताओ कि तुम हो कौन और तुम्हें मेरा नंबर किसने दिया ?' लड़की आराम से बोल रही थी। उसके बात करने के तरीके से लग रहा था कि वह गुस्से में नहीं है।
'माफ करना अभी मैं यह तुम्हें नहीं बता सकता !' राज ने कहा। उसे विजय की कही बात याद आ थी।
'नहीं बता सकते तो मुझे कॉल भी मत करना !' लड़की ने कहा।
'बता दूँगा की मैं कौन हूँ और कहाँ से बोल रहा हूँ लेकिन अभी नहीं !' उसे लगा जैसे लड़की फ़ोन कट करने वाली है तो उसने जल्दी से बोला।
'फिर एक अनजान से मैं बात क्यों करूँ ?'
'इसलिए कि मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ'
'लेकिन मैं तुमसे बात नहीं करना चाहती'
'पर क्यों ?'
'क्योंकि तुम्हारे बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं, न नाम, न पहचान ! और फ़ोन पर इस तरह की ओछी हरकत करने के लिए मेरे पास टाइम नहीं है'
'पर मेरे पास बहुत टाइम है'राज ने कहा।
'क्यों पढ़ते लिखते नहीं हो क्या ? या पढ़ने की उम्र खत्म हो गई है ?' ऐसा बोलकर लड़की खिलखिलाकर हँस पड़ी।
राज को उसकी खिलखिलाहट बहुत प्यार लगी। वह उसकी खिलखिलाहट की कल्पना में डूबने लगा।
'क्या हुआ कौन सी दुनियाँ में खो गए ? क्या सचमुच तुम्हारे पढ़ने की उम्र खत्म हो गई है ?' यह कहकर लड़की दुबारा से हँसने लगी।
'ऐसा नहीं है मैडम ! मैं पढ़ता भी हूँ और लिखता भी हूँ' राज ने उत्तर दिया।
'फिर बोल क्यों नहीं रहे थे ?' लड़की ने कहा।
'आपकी हंसी बहुत प्यारी है, मैं उसी में खो गया था !'
लड़की फिर खिलखिलाने लगी और हँसतें हुए बोली-
'अरे ! प्यारे मजनूं ! कुछ और बोलो, मुझे भी पता है मेरी आवाज और मेरी हंसी सबसे अलग और उम्दा है ! अच्छा छोड़ों अपने बारे में कुछ बताओं ? क्या नाम है ? क्या पढ़ रहे हो ? क्या लिख रहे हो ?'
लिख रहे हो ! शब्द बोलकर वह फिर से हँसने लगी। उसने आगे कहा- 'इतना तो बता ही सकते हो न ?
' मैं इंजीनियरिंग कर रहा हूँ, और मेरा नाम राज है !' राज ने कहा।
' अच्छा ! अच्छा ! तो राज तुम्हारा नीक नेम होगा न ? जो तुम सब लड़कियों से ऐसे ही फ़ोन पर बताते होगे ?' लड़की मुस्कुरा रह थी।
'नहीं ! यह मेरा रियल नेम है !'
'अच्छा' लड़की बोली।
'तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि यह मेरा नीक नेम है ?' राज ने पूछा।
'क्योंकि आमतौर पर सारे मजनू शाहरुख खान की औलाद होते हैं इसलिए अंदाजा लगाया।'
'क्या तुम्हें अभी भी लग रहा है कि मैं उन्हीं मजनुओं में से एक हूँ ?' राज ने लड़की से पूछा।
'क्यों नहीं लगेगा ? तुमने काम भी तो उन्ही की तरह किया है?' लड़की ने कहा।
' भले ही मैंने काम उन जैसा किया हो पर मैं उनकी तरह नहीं हूँ !' राज ने जोर देते हूए कहा।
'कोई नहीं मिस्टर मजनू या मिस्टर राज जो भी हो आप , मैं अब आपसे बात नहीं कर सकती और आप भी मुझे दुबारा मुझे कॉल मत करना ! ठीक है ?' लड़की ने कहा और बिना राज के उत्तर की प्रतीक्षा किये कॉल कट कर दिया।
रात को बारह बज गए थे। राज को नींद नहीं आ रही थी। छत पर सोये हुए ऊपर आकाश में टिमटिमाने वाले तारों की तरफ वह देख रहा था। तारों को देखने मे वह इतना मसूगुल हो गया कि वह भूल गया कि वह जमीन पर है और तारे आकाश में ! वह उन्हें निहारे ही जा रहा था ! अचानक उसे उत्तर दिशा में कोई बेहद चमकीला तारा दिखाई दिया ! वह समझ गया कि वह भोर का तारा है। भोर के तारे ने उसे आज सुबह की घटना याद दिला दी। वह उस अनजानी लड़की के बारे में सोचने लगा। कितनी प्यार आवाज है उसकी ! लगता है जैसे रेडियो के किसी जॉकी की आवाज हो। एकदम स्पष्ट और साफ ! जो शब्द बोले जा रहे हो, केवल वही सुनाई देते है ! न कोई भरभराहत और न ही कोई सरसराहट ! एकदम डिस्टॉर्शनलेस ! बात करने की शैली भी एकदम उम्दा ! जैसे कोई शहर की लड़की बात करती है, लेकिन आवाज की नर्माहट बिल्कुल गांव वाला देसीपन लिए हुए ! लेकिन उस दिन उसने गाली क्यों दिया ? और विजय सर के पास इसका नंबर कैसे आया ? और उन्होंने क्यों ऐसा कहा कि उसे मत बताना की तुम कानपुर से बोल रहे हो, वर्ना वह बात नहीं करेगी ? हो सकता है उन लोगों ने फ़ोन करके उसे बहुत परेशान किया हो ! इसलिए वह इतनी चिढ़चिढ़ी हो गई हो ? और इसलिए सर ने ऐसा बोला हो ! पर क्या पता वह ऐसी ही लड़की हो ? गाली देने वाली ! लेकिन उसके बात करने के तरीके से लगता तो नहीं है कि वह कोई ऐसी वैसी लड़की होगी ! पर फ़ोन पे बात करके कोई कैसे तय कर सकता है कौन कैसा है ? तभी राज को ध्यान आया कि वह उसके बारे में इतना क्यों सोच रहा है ? गलती तो खुद की ही है ! चले थे टाइम पास करने ! क्या लड़कियों को ऐसे परेशान करके ही टाइम पास किया जा सकता है ? क्या लड़को के पास और कोई तरीका होता ही नहीं है टाइम पास करने का ? क्या आज तक किसी लड़की ने टाइम पास करने के लिए, लड़को वाला यह तरीका अपनाया होगा ? नहीं ! बिल्कुल नहीं ! फिर लड़के ऐसा क्यों करते हैं ? आज तक उसने पहले ऐसा कोई तरीका नहीं अपनाया था टाइम पास करने का पर लगता है अमित का असर उसपर कुछ ज्यादा ही होने लगा है ! उसने तय किया कि आज के बाद वह यह गलती दुबारा नहीं करेगा !
राज को अपनी करनी पर कुछ ग्लानि हुई। यह सही है कि इससे पहले टाइम पास करने के लिए यह तरीका उसने कभी नहीं अपनाया था ! पहले भी उसके सेमिस्टर खत्म होते थे लेकिन इस लास्ट सेमिस्टर में आख़िर वह गलती हो ही गई जो नहीं होनी चाहिए थी।
आज सुबह ही वह खेत की तरफ निकल गया। आठ बजे रहे थे। मेड़ पर और खेत की फसलों पर सुबह की शीत अलसाई लग रही थी। वह शीत से बचने के लिए , मेड़ तक आ गए सरसों की डाली को सावधानी से हटाकर आगे बढ़ रहा था। सरसों के पीले फूल पर पड़ी ओस की बूंदें इस कोशिश में फूलों से नीचे टपक जा रहे थे। अपने खेत तक पहुँचतें पहुँचतें उसका आधा लोअर शीत की बूंदों से भींग गया ।
वह मोबाइल हाथ मे लेकर काफी देर तक देखता रहा। मन उसका किसी कश्मकश में उलझा हुआ था। वह मोबाइल के स्क्रीन लॉक को बारबार खोलता और बंद कर रहा था। कुछ देर बाद उसने मोबाइल के कॉल रजिस्टर को ओपन किया और उस लड़की को कॉल कर दिया। मुश्किल से एक दो रिंग हुई होगी कि उसने कॉल कट कर दिया।
वह मोबाइल के तरफ ही देख रहा था कि उस लड़की का बैक कॉल आ गया। इसने धड़कते मन से कॉल रिसीव किया। डर था कि सुबह सुबह ही कुछ अच्छा सा सुनने को न मिल जाये।
'हाँ ! बोलो क्या हो गया ? आज फिर सुबह सुबह ही ?' लड़की ने कहा।
'बस ! याद आ गई तुम्हारी !' राज ने कहा।
' मैंने जो समझाया था वह भूल गए ?'
'याद है !'
'क्या याद है ?' लड़की ने कहा।
'यही की दुबारा कॉल मत करना !' राज ने उत्तर दिया।
'तो फिर कैसे कॉल कर दिये ?'
'तुम्हारी आवाज सुनने के लिए !'
' तो अब फ़ोन रखो ! आवाज तो सुन लिए न ?'
'हाँ, पर थोड़ी देर बात हो पाएगी क्या ?' राज ने एक स्टुपिड सा सवाल किया। यह जानते हुए की वह उससे बात करना नहीं चाहती है।
'मिस्टर राज ! मैं दस बजे तक सोती हूँ !'
' अरे ! इतनी देर तक कौन सोता है ? यह तो गंदी आदत है ?'
' क्या करूँ इस गंदी आदत की शिकार मैं बचपन मे हो गई थी !' बोलकर लड़की मुस्कुराई।
' अच्छा ! फिर यह गंदी आदत कब सुधरेगी ?' राज ने बोला।
'पता नहीं ! अच्छा अब फ़ोन रखो। बात करनी हो तो दोपहर में फ़ोन करना ! बाई !' लड़की ने फ़ोन कट कर दिया।
राज को फ़ोन रखने का मन नहीं था। पर फ़ोन उधर से कट गया था। उसका मन किया कि दुबारा कॉल करे पर उसने दोपहर में फ़ोन करने के लिए बोला था तो उसने इंतजार करना सही समझा।
राज को समय धीरे धीरे चलता महसूस हो रहा था। आठ बजे से बारह बजे के बीच मे उसने कितनी बार अपने मोबाइल में समय देखा होगा, उसे खुद ही पता नहीं। इन्तजार करना ऐसा ही होता है। समय अपनी गति से ही चलता है किंतु इन्तजार करने वाले को इतनी जल्दी होती है कि उसे समय धीमा चलता हुआ प्रतीत होने लगता है।
बारह बजने में कुछ ही सेकंड थे। राज फिर से अपने बगीचे में आ गया था। ठीक बारह बजे उसने उस लड़की को कॉल किया।
'हैल्लो !' लड़की ने फ़ोन रिसीव करते हुए बोला।
'हैल्लो ! क्या बात है फ़ोन हाथ मे ही रखा था क्या, एक रिंग होते ही उठा लिया ?' राज ने लड़की से पूछा।
लड़की उसकी बात सुनकर मुस्कुराई और बोली-
'हाँ ! हाँ ! मैं तो तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी ! बोलो क्या बात है ? क्यों फ़ोन किया ?'
'बस ऐसे ही, बात करने के लिए !'
'क्या तुम पागल हो ? मना करने के बाद भी तुम कॉल किये जा रहे हो !' लड़की ने सपाट आवाज में कहा। राज को समझ नहीं आया कि लड़की नाराज होकर बोल रही है या उसके कॉल करने से खुश है।
'समझ मे तो आया पर तुम्हारी आवाज ऐसी है कि मन करता है कि दिन भर सुनता रहूँ !' राज ने कहा।
'समझ गई, तुम पागल हो। अरे न मिले न जुले और आवाज पर फ़िदा ! क्या पता मैं काली हूँ !विकलांग हूँ ! या शादी-शुदा हूँ तो ?' लड़की ने राज पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए पुछा।
राज को कोई जवाब नहीं सूझा। वह चुप ही रहा।
'बोलो ! जवाब दो ? चुप क्यों हो गए ?' लड़की ने उसे न बोलता देख पूछी।
राज ने एक लंबी सांस खिंचीं और बोला- 'क्या वाकई में तुम इनमें से किसी जैसी हो ?'
लड़की उसके स्टुपिड तरीके पर मुस्कुरा उठी और बोली-
'ओह्ह ! गॉड ! क्या कोई इतना बेवकूफ हो सकता है ?'
' क्या हुआ ? मुझे बेवकूफ क्यों कहा ?' राज ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा।
' इसलिए कि तुम कहने का मतलब नहीं समझते ! तुम्हारा दिमाग बहुत धीमा काम करता है ! तुम सामने वाले कि मंशा नहीं भाप पाते हो ! या तो सीधे हो या तो पूरे बेवकूफ ! अब समझ में आया ?' लड़की ने उसका मजाक बनाते हुए कहा।
'अब जैसा भी हूँ, तुम्हारे सामने ही हूँ !' राज ने कहा।
'मेरे सामने नहीं, फ़ोन पर हो ! और मैं तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं जानती ?'
'किसी दिन बता दूँगा, इतनी जल्दी भी क्या है !'
'नहीं पहले अपने बारे में बताओ ? तुम कौन हो ? कहाँ से हो?'
' ऐसा कुछ बताने लायक नहीं है मुझे में, बस इतना समझ लो कि एक लड़का हूँ और इसी दुनियाँ से हूँ !'
'...और लड़कियों को फ़ोन करके परेशान करता हूँ ? है न ?' लड़की ने उसके वाक्य में थोड़ा और जोड़ते हुए उसपर कटाक्ष की।
' नहीं ऐसा नहीं है ! आज से पहले मैंने किसी को परेशान नहीं किया !' राज ने सफाई दी।
'असम्भव है मानना ! फिर भी अब क्या आफत आ गई जो इस तरह लड़कियों को फ़ोन करने लगे ?' उसने जानना चाहा।
' इसका जवाब तो नहीं है मेरे पास ! पर जब से तुमसे बात हुई है, तुमसे बार बार बात करने को मन करता है।'
'पहले किसी लड़की से बात नहीं की है क्या ?'
' सही कहा ! तुम पहली लड़की हो जिससे इस तरह बात हो रही है। कॉलेज में फ्रेंड्स है लेकिन उनसे भी दो चार बातें ही हो पाती है।'
'तो क्या उनमें से किसी को पसंद नहीं करते तुम ?'
'नहीं !'
'क्यों ?'
अब क्या बताऊँ, सुनोगी तो हँसोगी।'
'नहीं हसूंगी बताओ तो ?'
राज कुछ देर हिचकिचाया और फिर बोला-
'कुछ तो अच्छी नहींं हैं ! और कुछ अच्छी हैं तो.... !' राज ने बात अधूरी छोड़ी दी।
'हाँ ! हाँ ! बोलो ' लड़की ने उसे पूरी बात बोलने के लिये प्रोत्साहित किया।
'.... और जो एक दो अच्छी है, वें मुझे भैया बोलती हैं !'
'ओह्ह ! तो इतनी सी बात है। तो उनसे बोल देते की वे तुम्हें भैया न कहे ?'
'अब एक बार भैया कह दी तो सारी कहानी ही खत्म !'राज बोला।
' अच्छा अगर मैं भी तुम्हें भैया कह दूं तो फोन करना बंद कर दोगें न ?' यह कहकर लड़की ठहाके मारकर हँसने लगी जैसे काफी देर से उसने अपनी हंसी दबा के रखी हो।
'अरे !अरे ! .....।' वह कुछ बोलना चाहता था पर उसकी हँसी सुनकर वह रुक गया।
थोड़ी देर बाद जब उसकी हंसी रुकी तो राज ने कहा-
'आखिर तुमने भी मेरा मजाक उड़ा ही दिया ?'
'मजाक तो तुम अपना खुद बना रहे हो मिस्टर राज ! माना कि हमलोगों की उम्र में ऐसी बाहियत चीजें होती हैं लेकिन जो करना बहुत जरूरी है उसे हमलोग क्यों नजरअंदाज कर देतें हैं ? अच्छा बताओ तो क्या पढ़ाई कर रहे हो अभी ?'
'इंजीनियरिंग' राज ने एक शब्द में कहा।
'तो क्या लगता है तुम्हें इंजीनियरिंग इतनी आसान है कि एक तरफ यह भी कर लो और दूसरी तरफ वह भी कर लो ?' लड़की संजीदा होने लगी।
'आसान तो नहीं है पर सब तो ऐसा ही कर रहें हैं ?' राज ने उनकी तरफ इशारा किया जो लोग प्रेम और पढ़ाई एक साथ करते हुए चल रहे हैं।
'और लोगों से क्या तुलना करना राज ! बहुत ऐसे है जो पूरे साल किताब की तरफ नहीं देखते लेकिन एग्जाम में साल्व्ड पेपर पढ़कर पास हो जाते हैं ! कुछ तो ऐसे भी है जो डिग्री खरीदकर पास हो जाते है ! तुम्हारे साथ भी कई ऐसे होंगें जिन्होंने एंट्रेंस एग्जाम के लिए बैक-डोर का इस्तेमाल किया होगा ! लेकिन इससे क्या होगा ? वे कितनी दूर तक जायेंगें ! बताओं ?' लड़की ने माहौल को गंभीर बना दिया।
राज कुछ नहीं बोल रहा। बस समझ रहा था। लड़की ने सही कहा था उसके साथ पढ़ने वाले कई ऐसे स्टूडेंट है जो बैक-डोर से आये है। और कइयों ने सॉल्वर बैठाकर एंट्रेंस एग्जाम निकलवाया है।
लड़की ने आगे कहा-
'हमारी जिम्मेदारियां इतनी कम नहीं होती हैं राज, की जो करना है वह भूलकर हम यह सब करने लगे ! इंजीनियरिंग कर रहे हो तो निश्चित ही घर से दूर रहते होंगे लेकिन इससे तुम्हें यह छूट नहीं मिल जाता कि तुम खुद को और अपने घर वालों को धोखे में रखो ! एक बार अपने घर वालों की ख़्वाहिशों को महसूस करके देखना ! तब तुम्हें अहसास होगा कि तुम्हारे पास इन बेकार की बातों में उलझने का रत्ती भर समय नहीं है !' लड़की थोड़ी रुकी यह जानने के लिए की राज उसकी बातों को गंभीरता से सुन रहा है या नहीं। जब राज ने उसकी बात में कोई विघ्न नहीं डाला तो वह समझ गई कि वह उसकी बातों को गंभीरता से सुन रहा है।उसने आगे बोला।
'तुम एक बात बताओगे सही सही ?'
'हाँ ! पूछो !' राज ने कहा।
'मान लो, मैं तुमसे बात करने लगती हूं और मुझे तुम से गहरा प्रेम हो जाता है, तो क्या तुम मुझसे शादी कर लोगे जबकि तुम्हारे घर वाले तुम्हें ऐसा करने से मना करें ?' लड़की ने राज से प्यार को लेकर उसकी राय जाननी चाही।
'इस बारे में मैंने कभी सोचा नहीं !'
'अच्छा ! लेकिन क्यों नहीं सोचा ?'
राज के पास कोई जवाब नहीं था। वह चुप हो गया।
'मुझे पता है कि तुमने इस बारे में क्यों नहीं सोचा ! क्योंकि तुम प्यार की गहराई नहीं समझते हो, इसकी शक्ति नहीं समझते ! तुम यह नहीं जानते कि प्यार कइयों को बना देता है, वहीं कइयों को कहीं का नहीं छोड़ता है ! भले ही तुम प्यार को टाइम पास करने का साधन समझो पर प्यार का मिजाज इससे बिल्कुल अलग होता है। इसका मजाक न बनाओ प्लीज !' लड़की की आवाज कातर और संवेदना से भरती जा रही थी। इतना बोलकर वह चुप हो गई।
दोनों तरफ से काफी देर तक चुपी छाई रही। राज समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या बोले। राज पूरी तरह से उसकी बातों के प्रभाव में आ गया था और उसे लगने लगा कि वह गलत कर रहा है। उसने चुपी को तोड़ा और कहा।
'तो अब क्या करना चाहिए ?' राज ने सकुचाते हुए पूछा।
इतना समझाने के बाद भी लगता है तुम कुछ नहीं समझे ?'
'समझ गया !'
'क्या समझ गया ?'
'यही की अब तुमसे बात नहीं हो पाएगी !'
'अरे ! नहीं ! मेरे कहने का मतलब था कि अभी हमें इन सब चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए ! अभी तो हमे पूरी शक्ति लगाकर एक दिशा में प्रयत्न करना चाहिए और सोसायटी में वह मुकाम बनानी चाहिए, जिससे हमारी पहचान हो ! जिससे हमारी प्रतिष्ठा बन सके ! क्या अब मेरी बात तुम्हें समझ में आई ? या अभी भी नहीं ?'
'अच्छा ! तुम्हारे कहने का मतलब यह था ? मुझे लगा कि तुम मुझसे बात नहीं करना चाहती हो !'
' हा हा हा ! ओह्ह ! मेरे भगवान कोई इस लड़के को समझाओं। इसे तो केवल बात करनी है। अरे ! क्या करोगे इतना बात करके ? बेवकूफ हम एक दूसरे के आसपास होते तो बात करने का कोई मतलब भी निकलता ! लेकिन इस तरह फ़ोन पर ? चलो दिन रात बात कर भी लिए तो क्या हासिल होगा तुम्हें ? क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हो ?'
' क्या पता किसी किसी की जिंदगी बर्बाद करने के लिए ही होती हो !'
'फिल्मी डायलॉग न मारो देवदास ! किसी की भी जिंदगी बर्बाद करने के लिए नहीं बनी होती है। अगर बर्बाद करनी ही होती तो भगवान जिंदगी देता ही क्यों ! हाँ अगर खुद से कोई बर्बाद करना चाहे तो भगवान कर भी क्या सकता है !' लड़की ने कहा।
राज को उम्मीद नहीं थी कि की लड़की इतनी गहरी बात भी कर सकती है। उसे उसकी बातें बेहद पसंद आ रहीं थी। लड़की की बात खत्म हुई तो राज ने उससे कहा-
'तुम बातें बहुत अच्छी करती हो। मैं तुम्हारी बातों से प्रभावित होने लगा हूँ !'
'अच्छा ! तो मेरी बात क्यों नहीं मान लेते हो ? और वह क्यों नहीं करते जो तुम्हें करना चाहिए ?'
'ऐसे तुम कुछ देर और बोलती रही तो वाकई में मैं तुम्हारी हर बात मानने लगूँगा ! जाने क्या जादू है तुम्हारी बातों में ! क्या हमेशा तुम ऐसे ही बात करती हो ?'
' आमतौर पर नहीं ! मैं और भी कई तरीके से बात करतीं हूँ उसका नमूना तुम देख चुके हो ?' लड़की ने उस दिन की याद दिलानी चाही जिस दिन राज ने उसे सुबह सुबह कॉल किया था।
जैसे ही राज को उस दिन की याद आई । वह थोड़ा सकपकाया। पर चूँकि उससे बात करते हुए काफी देर हो गया था और अभी वह आराम से बात कर रही थी तो उसे डरने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।
' अच्छा बताओ उस दिन तुमने गाली क्यों दिया था ?' राज ने पूछा।
'मैं रात भर जगी थी और जैसे ही मेरी नींद लगी तुम्हारा फ़ोन आ गया, मेरी नींद डिस्टर्ब हो गई थी। इसलिए झल्लाहट में मेरे मुंह से गाली निकल गई।'
'और मान लो अगर तुम्हारे घर वाले या तुम्हारा कोई दोस्त होता तो ?'
'यह नंबर सिर्फ मेरे घर वालों के पास है, और उन्हें पता है कि मैं चार से दस बजे तक सोती हूँ। कोई मर भी जाएगा तो वे लोग मुझे इस समय कॉल नहीं करने वाले है। मैंने दोस्त बहुत कम बनाये है और उनलोगों के पास मेरा दूसरा नंबर है और उन्हें भी पता है कि मेरे सोने और जगने का समय क्या है। इसलिए मैंने बेहिचक गाली दे दी। खैर तुम कोई पहले लड़के नहीं हो जो मुझसे गाली खा रहे हो ! हाँ, ऐसे पहले लड़के जरूर हो जिससे मैं इतनी बात कर रहीं हूँ ! देखो हमने लगातार एक घंटे बात कर ली है !' उसने राज को सारी बातें साफ साफ बता दी।
'लेकिन तुम्हारी गाली सुनकर मैं बिल्कुल डर गया था, और मैंने सोचा भाड़ में जाये ऐसी लड़की से टाइम पास करना, इसलिए मैंने दुबारा कभी तुम्हें कॉल नहीं किया। कल तुमने मुझे फोन किया तो मैं अपनी मम्मी और सिस्टर के साथ बैठा था, इसलिए बोला कि तुम्हें बाद में कॉल करूँगा। अभी मैं अपने गांव आया हूँ। और अपने बागीचे में आकर तुमसे बात कर रहा हूँ ! लेकिन कल भी जब मैंने तुम्हें कॉल किया तो डर ही लग रहा था कि कहीं तुम फिर से कुछ दोहे-चौपाई न सुना दो !' उसकी बात सुनकर लड़की हँसनेलगी। राज ने भी उसका साथ दिया।
'राज अब तुम ही बताओ जिस काम को तुम अपनी मम्मी और सिस्टर के सामने नहीं कर सकते क्या वह काम सही हो सकता है ?' लड़की ने राज से कहा।
'तुम सही कह रही हो, लेकिन इससे तुम यह मत सोच लेना कि मुझसे पिंड छूट जाएगा तुम्हारा !' राज ने मजाक करते हुए कहा।
'पिंड तो तुम खुद ही छोड़ दोगे मिस्टर राज ! एक बार मुझसे मिल तो लो ?'
' ऐसी क्या बात है तुममे जो मैं तुम्हारा पिंड छोड़ दूँगा ? क्या तुम वाकई में विकलांग हो या काली हो या शादी-शुदा हो ?' राज ने उससे जानना चाहा !
'तुम बताओ ! क्या इनमें से कोई एक हूँगी तो क्या वाकई में तुम अपने कदम पीछे खींच लोगे ?'
' हाँ क्यों नहीं ! अगर तुम शादीशुदा होगी तो मजबूरी है पीछे हटने की'
' और यदि मैं विकलांग या काली होउंगी तो ?'
राज ने कुछ देर विचार किया और बोला।
'मेरा मानना है कि सुंदरता कुछ ही दिनों के लिए होती है। मैंने कइयों को देखा है, अपने दोस्तों को भी, बड़ी सुंदर सुंदर लड़कियों के साथ घुमतें हैं लेकिन किसी एक के होकर नहीं रह पाते है। अगर सुंदरता संबंध निभाने की गारंटी होती तो सबसे मजबूत संबंध उनके ही होते जो सबसे सुंदर है। और मैंने बहुत को देखा है जिनके संबंध बड़े अच्छे रहे है जबकि उनमें से कुछ विकलांग तो कुछ की रंगत एकदूसरे से बिल्कुल विपरीत होती है।' राज ने अपने विचारों को पूरा व्याख्यान पेश कर दिया।
'विचार तो अच्छे हैं तुम्हारे ! लेकिन तुमने मेरी बात का सीधा जवाब नहीं दिया ?'
'मेरे लिए ये चीजें मायने नहीं रखतीं हैं कि कौन गोरा है कौन काला है और कौन शारीरिक असक्षम, बल्कि उसके विचार मुझसे मिलते जुलते होने चाहिए।'
'यानी की अगर मैं इनमें से कोई एक होती तो तुम मुझे अपना लेते ?' लड़की ने फिर सवाल किया।
'तुम्हारी जैसी विचारधारा जिसकी होगी मैं उससे जरूर शादी कर लूंगा !' राज ने बिल्कुल स्पष्ट तौर पर कहा।
' अच्छा यह बताओ तुम कौन से कॉलेज में पढ़ते हो ?'
राज थोड़ा हिचकिचाया की उसे यह जानकारी सही दे या गलत ! लेकिन अब बेमतलब का झूठ बोलना उसे उचित नहीं लगा।
'मैं एच बी टी आई कानपुर से, मैकेनिकल ब्रांच में इंजीनियरिंग कर रहा हूँ, यह मेरा फाइनल सेमिस्टर है।'
'अच्छा ! और तुम रहने वाले कहाँ के हो ?'
'बलिया का रहने वाला हूँ !'
'अच्छा ! चंद्रशेखर जी वाला बलिया ?' लड़की ने पूछा।
'हाँ वही।'
'घर से कब वापस आ रहे हो ?'
' दो दिन बाद कानपुर जाने की प्लानिंग है' राज ने कहा।
'मुझसे मिलना चाहोगे ?' लड़की ने राज से पूछा।
राज के सारे जोश अचानक से ठंडे पड़ गए। वह बात तो कर रहा था लेकिन इस तरह वो उसे मिलने के लिए बुलाएगी नहीं सोचा था। क्या बोले उसे समझ नहीं आया।
'तुम कहाँ रहती हो ?'
' मैं सोनभद्र की रहने वाली हूँ लेकिन अभी लखनऊ में हूँ।' उसने बताया।
'ठीक है मैं परसो आऊंगा लखनऊ लेकिन तुम्हें स्टेशन पर आना पड़ेगा मुझसे मिलने ?' राज ने कहा।
' क्यों मेरे घर नहीं आ सकते ?'
' आ सकता हूँ पर.... पर इस बार स्टेशन पर ही मिलतें हैं !'
'स्टेशन पर मेरा आना मुश्किल होगा ! तुम घर ही आ जाते ? डरो नहीं ! मैं यहां अकेले ही रहती हूं।'
राज को डर लग रहा था। अभी तो ठीक से दो दिन भी इससे बात नहीं हुई और वो सीधे घर पर मिलने के लिए बुलाने लगी, कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है ! कहीं प्यार से कत्ल करने का इरादा तो नहीं है इसका ! ऐसी घटनाएं बहुत देखने को मिलतीं है, पहले प्यार से घर बुलाओ और फिर घर वालों से कहकर मजनूं की पिटाई करा दो। लेकिन इसकी बातों में कोई लाग-लपेट तो दिखाई नहीं दे रही है ! और किसी अनजान से बात करने का सलीका वह भी तब, जबकि उसे पता हो कि सामने वाला केवल टाइम पास करने के लिए फ़ोन कर रहा है, सामान्यतः ऐसा किसी का नहीं होता है। जिस तरह की वह समझाइस दे रही है वैसा तो कोई शुभचिंतक ही दे सकता है या तो खुद के घरवाले ! फिर राज को थोड़ी हिम्मत आई, उसने डिसाइड किया कि चाहे जो भी हो वह उससे मिलने जरूर जाएगा !
कृषक एक्सप्रेस ने उसे सुबह-सुबह लखनऊ रेलवे स्टेशन पर पहुंचा दिया। ट्रेन जैसे ही रुकी उतरने वाले लोगों का तांता लग गया। राज को भीड़ से बड़ी कोफ्त होती है। वह अपनी सीट पर बैठा सबके उतर जाने का इंतजार करने लगा। जब लगभग पूरी बोगी खाली हो गई वह ट्रेन से उतरा।
स्टेशन से बाहर निकलने समय शिशेनुमा एक दीवाल पर उसकी छवि दिखाई दी। कुछ सेकंड के लिये वह वहाँ रुक गया और अपना हुलिया उसने शीशे में देखा। वाइट शर्ट और ब्लू जीन्स उसपर फब रही थीं। पैर में ब्राउन कलर के ऊंचे कॉलर वाले जूते उसके ब्राउन लैदर की जैकेट से मैच कर रहे थे। ठंड बहुत नहीं थी लेकिन हवा के झोंके जब आते थे तो उसकी आंख से हल्के आंसू निकल जा रहे थे। इसलिए उसने रेबीन का काला चश्मा अपनी आंख में लगा लिया था। उसपर से छः फ़ीट की उसकी हाइट उसके सारे पहनावे के साथ न्याय कर रही थी। चेहरे पर हल्की दाढ़ी उसके बचपने को मैचोरिटी की तरफ ले जा रही थी।
बाहर आकर उसने सोचा कि एक कप चाय पी लिया जाय फिर उसके घर चला जायेगा। एड्रेस उसने मैसेज कर दिया था, यही सिविल लाइन्स में कहीं घर था उसका।
उसने चाय की एक चुस्की ली तभी उसका मोबाइल बज उठा। उसने मोबाइल देखा उसी लड़की का कॉल था।
'हैल्लो ! आज बड़ी जल्दी जग गई ?' राज ने कॉल रिसीव करते ही पूछा।
'तुम्हारी वजह से, तुम स्टेशन पहुंच गए हो न ?' लड़की ने कहा।
'हाँ !'
'एक नंबर प्लेटफार्म से निकलो !'
' हाँ मैं उधर ही निकला हूँ और चाय पी रहा हूँ'
'चाय छोड़ो ! सामने ही एक मंदिर है उसके पास चले जाओ !'
' क्यों ? क्या मंदिर में प्रसाद चढ़ाना है ?' राज ने मज़ाक में कहा।
'अरे पागल मैंने तुम्हें रिसीव करने के लिए किसी को भेजा है!' लड़की ने कहा।
' क्या वह तुम्हारा भाई है ?' राज ने पूछा
'नहीं मेरा कोई भाई-वाई नहीं है। तुम वहाँ पहुंचो पहले ! तुम्हारे नंबर पर एक कॉल आएगी। वह तुम्हें रिसीव करके घर ले आएगा' इतना कहकर लड़की ने फ़ोन रख दिया।
राज के मन में अब संसय और बढ़ गया। संसय तो उसी दिन से था जिसदिन से उसने मिलने के लिए बुलाया था। पर आज स्टेशन पर कोई उसे रिसीव करने आया है यह सुनकर उसके मन की हलचल और बढ़ गई। कहा वह सोच रहा था कि स्टेशन पर वह मिलने आएगी और कहा उसने ड्राइवर भेज दिया। कही रिसीव करने वाले ने उसके साथ कुछ उलटा सीधा कर दिया तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। मम्मी तो यही जान रही है कि मैं कानपुर जा रहा हूँ। उसके मन मे आया कि किसी को इसके बारे में बता देनी चाहिये, अगर कुछ अनहोनी हुई तो पता तो चल जाएगा कि मैं कहाँ था !'
वह मंदिर के पास पहुंच गया। उसने सोचा विजय सर को बता देता हूं। विजय को फ़ोन करने वाला ही था कि उसके नंबर पर एक अजनबी नंबर से कॉल आया।
'हैल्लो सर ! क्या आप राज बोल रहें हैं ?'
' जी' राज ने कहा।
'सर आप मंदिर के पास आ गयें हैं क्या ?' उधर से फ़ोन करने वाले ने पूछा।
'हाँ ! मैं आ गया हूँ !' राज ने उत्तर दिया।
'सर क्या अपने ब्लू जीन्स और ब्रॉउन जैकेट पहन रखा है ?' फ़ोन करने वाले ने पूछा।
' हाँ जी !' राज ने बोला। राज ने जैसे ही उत्तर दिया एक बड़ी सी कार उसके पास आकर रुकी। राज अचानक इस कार के आने से हड़बड़ा गया और कार से थोड़ा दूर हट गया। तभी कार के ड्राइवर ने कार का विंडों खोला और बोला-
'क्या आपका नाम राज है ?' उसने राज से पूछा।
राज उसके मुंह से अपना नाम सुनकर विस्मित हुआ। तभी उसे ध्यान आया कि लड़की ने किसी को उसे रिसीव करने के लिए भेजा है। वह आश्चर्य में था 'तो क्या लड़की इतनी अमीर है कि उसके पास फॉच्युनर कार है'। आश्चर्य के साथ अब उसका विश्वास भी डोलने लगा। उसके अंदर हीनता के भाव उत्पन्न होने लगे। अभी वह अपने विचारों में खोया ही था कि ड्राइवर कार से उतरा और उसने पीछे का दरवाजा खोलते हुए बोला-
'आइए सर ! मुझे स्नेहा मैडम ने भेजा है।
वह कार में बैठ गया। पहली बार वह फार्च्यूनर कार में बैठ रहा था ! इन्फेक्ट किसी इतनी बड़ी कार में ! उसे कार की लक्सरी का अहसास हुआ ! कार में बैठकर उसे गर्व जैसा महसूस हुआ लेकिन साथ ही एक डर बैठने लगा, जाने क्या हो उसके साथ ! अभी इनसब चीजों से वह उबर भी नहीं पाया था कि ड्राइवर के सामने वाले शीशे पर रेड पेंट से कुछ लिखा हुआ दिखाई दिया। हिंदी में लिखा हुआ था। उसे वह लिखावट उल्टी दिख रही थी। फिर भी उसने पढ़ लिया और पढ़ते ही उसके माथे पर पसीना निकल आया। उसपर लिखा था 'सब-डिविजनल मैजिस्ट्रेट' !
राज ने जब से उन दो शब्दों को पढ़ा था तब से वह किसी भी करवट बैठ नहीं सका। आरामदायक सीट में अचानक कांटें निकल आये थे। अब उसके साथ जो होने वाला था, उसकी कल्पना करके वह डर गया। किसी फ़िल्म के दृष्य जैसा जिसमें लड़कियों को परेशान करने वालों के साथ होता है ! अब उसे समझ मे आने लगा कि लड़की ने उसे फ़ोन क्यों किया था ! शायद उसने पुलिस के साथ मिलकर यह सब किया है। लेकिन मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया जो बात पुलिस तक जाए ! लेकिन विजय लोग? हो सकता उन लोगों की करनी मेरे माथे फुटने वाली हो। उनलोगों ने इस लड़की को फ़ोन करके बहुत परेशान किया है, और यह लड़की मुझे भी उन्हीं के ग्रुप का समझकर, सबक सिखाने की ठानी होगी! उसे मम्मी की याद आई। अगर मम्मी तक बात गई या गांव तक तो क्या होगा ? वह इन्हीं सवालों में उलझा था कि कार एक बंगले के सामने रुकी। ड्राइवर ने हॉर्न बजाया। हॉर्न सुनकर लोहे का गेट खुला और गाड़ी बँगले के अंदर चली गई।
गाड़ी बँगले में जैसे ही रुकी ड्राइवर तेजी से कार से उतरा और कार के गेट की तरफ लपका ! राज को लगा ड्राइवर गेट खोलेगा और उसे घसीटते हुए कार से निकालेगा, बंगले से कुछ लोग दौड़ते हुए आयेंगें और दे ठुकाई !
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ड्राइवर ने दरवाजा खोला और उसके उतरने का इन्तेजार करने लगा। उसने अपना बैग पकड़ा और डरते हुए कार से निकला। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। उसने नजरे घुमाकर चारों तरफ देखा, बँगला बहुत बड़ा था। गेट से लगे दीवाल के साथ फूलों की चौड़ी चौड़ी क्यारी थी, वह गेंदें के फूल और डहेलिया के बड़े बड़े फूलों से भरी हुई थी। एक कोने में बहुत सारे गमले सुंदर फूलों से और विदेशी नागफनी के छोटे छोटे पौधों से भरे हुए थे। उसने बँगले की तरफ अपनी नजरें घुमाई। उसे टेरिस पर एक लड़की दिखी। लड़की उसे देखते हुए मुस्कुराई और हाथ हिलाया ! प्रति उत्तर में राज ने भी हाथ हिलाया। लड़की ने ड्राइवर को कुछ इशारा किया।
' सर अंदर चलिए' ड्राइवर ने उससे कहा।
वह ड्राइवर के पीछे पीछे चल दिया। ड्राइवर ने उसे ड्राइंगरूम में लगे सोफे पर बैठने का इशारा किया और चला गया। सोफे ड्रॉइंग रूम के बीचों बीच लगे थे। बीच मे लकड़ी का एक टेबल था सिंपल लेकिन कीमती लकड़ी का। उसके नीचे कई खाने थे। खानों में मोटी मोटी किताबें भरी हुई थी। टेबल पर कुछ मैगजीन थी।
राज एक सिंगल सीटर सोफे पर बैठ गया। तभी उसे सामने सीढ़ियों से उतरती हुई वह लड़की दिखाई दी। वह अभी भी मुस्कुरा रही थी। वह आई और उसके सामने सोफे पर बैठ गई।
राज ने गहराई से उसका निरीक्षण किया। वह करीब करीब उसी के उम्र की थी। हाइट साढ़े पांच फीट से कम नहीं होगी। वह सुंदर थी। गोरा रंग था बिल्कुल दूधिया। आंखे कुछ अलसाई लग रही थी पर आकर्षित करने वाली थी। होंठ हल्के लाल थे और पतले थे। गाल न फुले हुए थे न पिचके हुए। चेहरे का नक्शा ठोस बनावट का था और भरपूर मासूमियत लिए। माथे पर चिंता की कोई लकीर नहीं थी, चेहरा एकदम चमकदार था। शरीर न मांसल था,न हड्डियों का ढाँचा मात्र। उसके किसी भी अंग पर चर्बी का नामों निशान नहीं था, इसलिए रूई की तरह हल्की लग रही थी।
उसकी मुस्कुराहट देखकर राज का डर कहीं निकल गया। वह जैसा सोच रहा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ। फिर भी राज उसके रुतवे को देखकर उसके सामने, अपने आपको कहीं भी ठहरा नहीं पा रहा था और खुद ही अपनी नजरों में बहुत छोटा होता जा रहा था।
उसके दिमाग मे अभी भी गाड़ी पर लिखा एस. डी. एम. का टैग झूल रहा था। वह सोच रहा था अगर यह यहाँ अकेले रहती है तो एस. डी. एम. की जो गाड़ी मुझे रिसीव करने गई थी वह किसकी थी ? कही इसके पिता जी सब-डिविजनल मैजिस्ट्रेट तो नहीं है ?
'अहा ! तो आप हैं मिस्टर राज !' लड़की ने उससे बात करना शुरू किया।
'जी बिल्कुल हम ही है' राज ने कहा।
'कोई परेशानी तो नहीं हुई यहां आने में तुम्हें ?' लड़की ने कहा।
'जी कोई परेशानी नहीं हुई ! मैंने तो सोचा था आप स्टेशन आएंगीं मिलने पर आपने तो इतनी बड़ी गाड़ी भेज दी !'
'मैं तुरंत सोकर उठी थी इसलिए गाड़ी भेज दिया। और यह भी सोचा कि स्टेशन पर कहाँ बैठकर बातें करेंगें, इसलिए घर बुला लिया।'
' बहुत अच्छा घर है आपका और गाड़ी भी !' राज ने तारीफ की।
'सब सरकार की देन है !' लड़की ने उत्तर दिया।
'तो आपके पिता जी सब-डिविजनल मैजिस्ट्रेट है ?' राज की जिज्ञासा उसके मुंह से बाहर निकल आयी।
राज की बात सुनकर लड़की मुस्कुराई और थोड़ा सोचते हुए बोली
'जी सही पहचाना है'
राज चुप हो गया। उसकी जिज्ञासा शांत हो गई। लेकिन उसकी सकुचाहट यह सोचकर बढ़ गई कि वह एक मैजिस्ट्रेट की बेटी के सामने बैठा है। और बिना सोचे समझे जिसे वह परेशान करता रहा, उसके सामने उसकी हैसियत चींटी की तरह भी नहीं है।
' क्या हुआ ? क्या सोचने लगे ?' लड़की ने पूछा।
'कुछ नहीं !' राज ने संक्षिप्त सा उतर दिया।
'अच्छा क्या पिओगे ? चाय या कॉफी ?' लड़की ने पूछा।
'कॉफी !'
'रमाजी दो कॉफी बना दीजिये' उसने वही बैठे किसी को आवाज लगाई।
राज अभी भी सकुचा रहा था। वह लड़की के सामने खुद को कंफर्ट नहीं कर पा रहा था। उसने चश्मा जानबूझकर नहीं उतारा। क्योंकि उसकी आंखें सबकुछ ब्यान कर देती हैं , की वह किस स्तिथि में है।
'इतनी धूप तो नहीं है फिर ये चश्मा पहनकर क्या छुपाना चाहते हो मिस्टर राज !' लड़की ने मज़ाक में कहा।
'मेरी आँखें खूबसूरत नहींं है इसलिए यह चश्मा लगा के रखता हूँ' राज ने भी मज़ाक किया। और चश्मा उतार दिया।
' नहीं तुम्हारी आंखें खूबसूरत दिख रहीं हैं !'
लड़की ने उसकी आँखों को देखते हुए कहा। उसकी बात सुनकर राज मुस्कुरा दिया।
'लेकिन खुबसुरत आँख होने से अच्छा है, वें वास्तविक खूबसूरती भी देखें !' लड़की ने दुबारा कहा।
'सही कहा ! जैसे मैं देख रहा हूँ, है न ?।'
राज की बात सुनकर वह झेंप गई। राज ने मौका मिलते ही उसकी खूबसूरती की तारीफ कर दी।
'बहुत हाजिर जवाब हो तुम ! अच्छा छोड़ो यह सब। अपने बारे में कुछ बताओं।' लड़की ने उसकी तरफ देखते हुए कहा।
'मैंने तो पहले ही बता दिया था कि ऐसा कुछ नहीं है मुझमें बताने लायक। लेकिन तुम्हारे बारे में मैं कुछ नहीं जानता। तुम ही बताओ ?'
'क्या जानना चाहते हो ?'
'जो तुम्हें बताना अच्छा लगे !'
'मुझमें में भी ऐसा कुछ नहीं है बताने लायक' लड़की ने उसी का डॉयलॉग उसपर चिपका दिया और हँसने लगी।
'फिर भी कुछ तो होगा ही' राज ने कहा।
'ऐसा कुछ भी नहीं जो तुम्हारे मतलब का हो ! मैंने तो तुम्हे इसलिए मिलने के लिए बुलाया की एक अच्छी प्रतिभा जाया न हो जाये इस फोन के चक्कर में !'
'लेकिन मैं यह सोचकर आया था कि अपनी कहानी कुछ आगे बढ़ेगी !'
'वही भ्रम तो दूर करना है मुझे।'
'तुम्हें क्यों लगता है कि यह सब भ्रम है ?'
इसलिए क्योंकि यह भ्रम ही है और जबतक यह भ्रम दूर नहीं होगा तुम्हें और कुछ दिखाई नहीं देने वाला है ! मुझे याद है जब तुमने मुझे पहली बार कॉल किया था, तब तुमने बिना थके मुझे लगातार पचास कॉल किये। दाद देनी पड़ेगी तुम्हारी! पर इसमें मुझे किसी चीज के प्रति तुम्हारी जीवटता दिखी थी ! किसी चीज के प्रति तुम्हारा डेडिकेशन दिखा था ! हालांकि तुम्हारी दिशा गलत थी ! फिर मैंने जब तुम्हें गाली दी तो तुमने मुझे एक बार भी कॉल नहीं किया, इसमें मुझे तुम्हारा सीधापन दिखा था ! पर मुझे यह भी पता था कि दुबारा तुम मुझे कॉल भले ही न करो लेकिन किसी और को जरूर करोगे ! इसलिए मैंने ठाना कि तुमने जो गलत ट्रैक पकड़ा है उसे सीधा करना पड़ेगा और इसलिए मैंने तुम्हें मिलने के लिए यहाँ बुलाया !'
राज को आश्चर्य हुआ कि क्या कोई इतनी बारीकी से किसी का निरीक्षण कर सकता है ! बात पूरी हुई तो उसने राज की तरफ देखा। राज भी उसकी तरफ देख रहा था। दोनों की नजरे मिलीं तो राज ने नजरे झुका ली और टेबल के नीचे पड़ी किताबों को देखने लगा। उसे लगा कि वह न तो उस लड़की जैसी समझ रखता है और न ही किसी तरह से उसके लायक है। वह टकटकी लगाकर किताबों की तरफ ही देखता रहा।
'क्या हुआ राज तुम कुछ बोल नहीं रहे हो ? यह तो बताओ क्या मैंने तुम्हें सही समझा है ?
'तुम्हारी समझ बहुत गहरी है। अपने बारे में इतनी गहराई से मैंने कभी नहीं सोचा !'
'यह तो गलत है ! अगर तुम्हारे जीवन का कुछ उद्देश्य है तो अपने बारे में तो सोचना ही पड़ता है ?'
'सही कहा, लेकिन इस तरह से मुझे किसी ने समझाया ही नहीं। समझाना तो दूर की बात है तुम्हारी तरह समझ रखने वाला भी मेरी सर्कल में कोई नहीं है। क्या तुम किसी विषय पर रिसर्च कर रही हो ?' राज को लगा कि इतनी समझ तो एक रिसर्च करने वाले की ही हो सकती है।
उसकी बात सुनकर लड़की हँस पड़ी और बोली-
' ऐसी बात नहीं है ! जब तुम अपने आप को महत्त्व देने लगते हो तब तुम प्रत्येक चीज को खुद से जोड़कर देखते हो और उसपर हर दृष्टि से विचार करते हो। और समझ तो तभी गहरी होती है जब आप गहराई से किसी चीज पर विचार करें ! मुझे लगता है अभी तुम्हारी ऊर्जाएं चारों ओर बिखरी हुईं हैं इसलिए तुम उसपर फोकस नहीं कर पा रहे हो जो तुम्हारे जीवन के लिए और बहुत सारे उन लोगों के लिए, जो तुमसे जुड़े है और कुछ जुड़ने वाले हैं, के लिए जरूरी है!'
राज को लगा लड़की उसके बारे में सबकुछ बिल्कुल सटीक कह रही है, क्योंकि जब भी वह कोई काम करता है तो दूसरों से प्रेरित होकर ही करता है। उसके मन मे तो यही चिंता रहती है कि दूसरों पर कैसे अपना प्रभाव डाले ! दूसरे उसके बारे में क्या सोचते हैं वह यही समझने का प्रयत्न करता रहता है। अपनी इच्छाओं को उसने न कभी समझा और न ही तरजीह दी। जिसने भी जिधर धक्का दिया उधर ही गिरकर बहने लगा। इंजीनियरिंग भी तो उसने अपने दोस्तों के देखा देखी ही की, जबकि उसकी रुझान साहित्य में है।
लड़की ने दुबारा कहा- ' इन किताबों को देख रहे हो ! न पढ़ो तो इनके आस्तित्व का पता ही नहीं चलता ! इनमें कितनी सदियों का ज्ञान भरा है, किताब खोलने पर ही पता चलेगा। अगर किताब को अलमारी में सजाकर रख दें तो हमें ज्ञान कहाँ मिलेगा ? ठीक इसी तरह हमारा मन है, हम मन के उस परत को कभी खोलते ही नहीं, जिसमे हमारे जीवन का वास्तविक उद्देश्य छुपा होता है। जो हमे सही राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। जो उद्देश्यपरक किताबें होती हैं, उन मन की किताबों को हम कठिन समझकर किसी आलमारी में रख देतें हैं और सतही और आसान किताबों से खुद को घेर लेतें हैं। फिर न वह आलमारी कभी नहीं खुलती और न वह ज्ञान मिल पाता है जो हमारे जीवन के उद्देश्य के साथ जुड़ा होता है। तुमने बहुत से ऐसे लोगों को कहते सुना होगा कि उनके पास थोड़ा और समय होता तो वें दुनियाँ को दिखा देते की वें क्या चीज हैं। जानते हो वे कौन लोग हैं ? वे वही अहंकारी लोग हैं जिन्होंने समय रहते अपने मन को सही दिशा मे दौड़ाया नहीं, भटकते रहे। जब समय निकल गया और समय ने जो थोड़ा ज्ञान दिया, तब उन्हें ध्यान आया कि उनसे कितनी बड़ी गलती हो गई ! चूँकि उन्होंने उन किताबों का अध्ययन नहीं किया इसलिए उनका अहंकार भी नहीं गया।' लड़की ने राज को समझाते हुई कहा।
राज को उसकी बातें बहुत रोचक लग रही थी। उसे लग रहा था कोई कृष्ण बनकर जीवन की सच्चाई को बता रहा है। और वह अर्जुन बन उसकी बातों में डूब जा रहा है।
' राज क्या मेरी बातें तुम्हें बोर कर रहीं हैं ?'
' नहीं ! तुम्हारी बातें वाकई में मुझे बहुत अच्छी लग रहीं हैं। तुम बोलती रहो मुझे और सुनना है।' राज ने कहा।
' अच्छी बात है लेकिन सुनने के साथ मेरी बातों का तात्पर्य भी समझो तब मुझे भी अच्छा लगेगा। तुम मुझे एक अच्छे लड़के लगे, इसलिए नहीं की तुम दिखने में खूबसूरत हो, बल्कि इसलिए कि तुम्हें जो समझाओ उसे समझते हो। यहां से जाना तो इस दुनियाँ पर गौर करना ! तुम ध्यान दोगें तो पता चलेगा यह दुनियाँ कितनी अधूरी सी रची गई है। एक तरफ तो ये चमकते घर और दूसरी तरफ वे गंदी झोपड़ीयाँ। एक तरफ ऊँचे चमचमाते होटल्स तो दूसरे तरफ भूख मिटाने के लिए दर-दर भटकते लोग। चंद होशियार लोगों ने पूरी दुनियाँ के सीधेसाधे लोग को अपनी मुट्ठी में जकड़ रखा है। कभी उन चमचमाते शहरों की तरफ जाना तो चमचमातीं इमारतों से दूर, उसी शहर की झोपड़ीयों से निकलने वाले बदबू को महसूस करना ! अपनी सरकारी स्कूलों को देखना और फिर प्राइवेट कांवेंट्स स्कूलों को ! अभी भी गांव में बेसिक सुविधाएं नहीं है, और छोटे छोटे शहरों के लिए नई नई योजनाएं हैं ! गांव के लोगों को इतनी कम चीजें क्यों दी जाती है ? यह सब समझ से परे है ! राजनीति की संड़ाध हर नागरिक के नाक में जाती है लेकिन जब चुनाव करने की बारी आती है तो फिर से उसी गंदगी को शिरोधार्य कर लेतें हैं ! लेकिन इसे सुधारा जा सकता है, पर जिसके कंघे पर आने वाले कल को सुधारने का भार है, आज वह युवा टेक्नोलॉजी का बेजा इस्तेमाल करने में जुटा हुआ है। कुछ युवाओं को छोड़ दो फिर भी गलत लोगों का अनुपात ज्यादा है। जबकि होना इसके विपरीत चाहिए था ! अब जो युवा गलत दिशा में गया है अगर वह गलत दिशा में ही रहे तो क्या होगा ? गलत लोगों की जमात बढ़ जाएगी और गलत लोग सही लोगों पर हुकूमत करने लगेंगें और फिर सबकुछ असन्तुलित हो जाएगा! लेकिन उनकी दिशा सही करके संतुलन को बरकरार रखा जा सकता है। राज ! तुम यह मत समझना कि मैं केवल तुम्हें साधकर यह कटाक्ष कर रहीं हूँ, मैं तो तुम्हारे जैसे और अपने जैसे उन हर सख्स के लिए यह कह रही हूँ, जो रोज अपनी राह से सौ कदम दूर और भटकते जा रहें हैं ! शुरू में मैं भी तुम्हारे जैसी थी लेकिन कुछ चीजें घटी जिसने जीवन का रुख ही बदल दिया। तुम्हें पता है जिस गाड़ी में तुम बैठकर यहाँ आये हो, वह मेरे पिता के लिए सरकार ने नहीं दी है बल्कि वह मेरे लिए है और तुम एक एस. डी. एम. के सामने घंटों से बैठे हो ! मैं चाहती तो तुम्हें फ़ोन पर ही हड़का सकती थी, लेकिन उससे क्या परिवर्तन होता ? पर अब मुझे उम्मीद है कि यहाँ से निकलकर जब तुम जाओगे, एक भटका हुआ युवा सही राह पर आ गया होगा' उसने अपनी बात पूरी की और बड़े विश्वास के साथ राज की तरफ देखा।
राज आश्चर्यचकित हो गया। उसने सोचा, तो क्या इतनी कम उम्र में भी कोई मैजिस्ट्रेट बन सकता है। और आवाज आई दृढ़ निश्चय सबकुछ सफल बना देता है !
राज को वहाँ से निकले तीन साल हो गए। इन तीन सालों में बहुत कुछ बदला लेकिन उस दिन उसका जो मन बदला, उसका पूरा जीवन ही बदल गया। वहाँ से निकलते समय उसने उस लड़की के बारे में और कुछ नहीं पूछा। लेकिन अब उसके बारे में वह सब जानता है। आज वह लड़की मंत्रालय में जॉइंट सेक्रेटरी है और राज जिलाधिकारी है। और दोनों पति-पत्नी हैं।
कभी फुर्सत मिलती है तो दोनों यही सोचते है कि इस टेक्नोलॉजी ने इंसान को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया है। और राज यह सोचता है कि उसने एक गलती की और वह मिल गई, और उसने एक सही दिशा दिखाकर मेरा सबकुछ बदल दिया ! काश! कि दुनिया में भटके सारे लोगों को एक सही दिशा दिखाने वाला मिल जाता जैसे उसे मिल गया!