दुआ की जरूरत
दुआ की जरूरत
पच्चीस साल में आज पहली बार मंदिर की सीढ़ियां चढ़ी थी मैंने, बस इस आस में कि बिस्तर पर पड़ी माँ की तकलीफ़ें आंख से देखी नही जा रही थी। डॉक्टर्स ने जवाब दे दिए थे!
मंदिर की सीढ़ियों पर पड़े, असहाय, निरीह, लाचार सी आँखें और दयनीय हाथों ने मेरे कदमों को वापस मोड़ने की कोशिश की। पर माँ के ठीक होने की दुआ करने की लालच ने मेरे पैरों को मुड़ने नही दिया।
और घर पहुँचने पर पता चला कि जिसके लिए मैंने दुआ की, अब उसे किसी भगवान के दुआ की जरूरत नही थी!