सीख मिली
सीख मिली
एनी कॅरोना काल के ऊबन से उभर नही पा रही थी। उसकी जिंदगी जैसे थम सी गई थी। कॉलेज के आखिरी साल में वह अपनी जिंदगी को अपने तरीके से और मौजमस्ती करते हुए गुजारना चाहती थी। उसे पता था यह साल भिलाई की दृष्टि से आखिरी ही था क्योंकिं कॉलेज से निकलते ही उसे नीट का एंट्रेंस एग्जाम देना है और भिलाई से बाहर रहकर पढ़ाई करनी है। पर दोस्तों के साथ मौज-मस्ती का सपना, घूमने फिरने का सपना, कोविद-19 के कारण सब धरा का धरा रह गया।
लेकिन उसने और उसके दोस्तों ने ठान ली थी कि चाहे जो भी हो वें अपने सपनो को पूरा करने के लिए थोड़ा सा तो रिस्क लेंगें ही। वैसे भी कॅरोना भिलाई में उतनी तेजी से नही फैला रहा था और उतना घातक भी नही था जितना का अन्य प्रान्तों और अन्य देशों में था।
ऋतु, चंद्र, शालिनी, अभिषेक, अंगद और उसने मिलकर प्लान बनाया की सब एक दिन नीट के प्रॉस्पेक्टस लेने और उससे जुड़ी जानकारियों का हवाला देकर घर से घूमने निकल जायेंगें।
मंडे की सुबह सब घर से निकले ऋतु अपने पापा की गाड़ी लेकर आई थी। अभिषेक और अंगद अपनी बाइक से थे। सबको कॅरोना की गंभीरता और खतरों के बारे में जानकारी थी लेकिन नादान बच्चे उतनी गंभीरता से नही ले रहे थे।
अभी गाड़ी सिविक सेंटर की तरफ मुड़ी ही थी कि सामने पुलिश वालों की पेट्रोलिंग गाड़ी दिखी। सब डर गए। डर के मारे ऋतु ने गाड़ी एक घर के नीचे पार्क कर दी। सब अपना सिर झुका के बैठ गए ताकि पुलिस उन्हें न देखें। लेकिन पीछे आ रहे अभिषेक और अंगद की बाइक सीधे पुलिस वालों के सामने ही जाकर रुकी। पुलिस ने उन्हें रोका तो उन्होंने झूठ बोल दिया कि अंगद के पिताजी सेक्टर-9 में एडमिट है वें लोग उन्हें ही देखने जा रहें हैं। पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया।
दोनों को अपने आईडिया पर गर्व हुआ। वें आगे बढ़ गए और सेक्टर-8 की चौक पर जाकर उन्होंने नंदा को फोन किया और उन्हें वहाँ आने के लिए बोला।
सेक्टर-8 चौक पर पहुंचकर सबने तय किया कि वें लोग आगे कुछ खाने पीने का समान लेंगे और फिर आगे का प्लान बनायेंगें।
ज्यादेतर दुकान बंद होने के कारण उन्हें कुछ भी खाने पीने का सामान न मिला। तभी एनी को हॉस्पिटल का कैंटीन याद आया। उन्होंने वहाँ से कुछ स्नैक्स लेने का तय किया।
अभिषेक और अंगद हॉस्पिटल पहुंचे लेकिन वहाँ भी कॅरोना के कारण कैंटीन बंद थी।
सब मन मारकर वापस घर लौट आये।
करीब चार दिन बाद अभिषेक को हल्का बुखार आया। उसने बुखार की दवा ली। उसके दो दिन बाद ही उसे तेज बुखार के साथ साथ खांसी आने लगी। धीरे धीरे यह खांसी तेज होती गई और बुखार भी बढ़ता गया। उसे हॉस्पिटल ले गया गया वहाँ उसे पता चला की उसे कॅरोना हो गया है।
यह खबर जैसे ही एनी, चंद्रा और उनके दोस्तों को पता चली तो सबके पैरों तले जमीन खिसक गई।
सबको अभिषेक के साथ साथ अपने कॅरोना पॉजिटिव होने की शंका और डर सताने लगी। उधर अभिषेक के कांटेक्ट में आने वाले लोगों के बारे में पूछा गया तो सबका नाम सामने आया। सबको कॅरोना टेस्ट किया गया सभी कॅरोना पॉजिटिव निकले। सबके घर वालों की नींद उड़ गई। सबको क्वारन्टीन कर दिया गया। अभिषेक की हालत दिन पर दिन खराब होती गई। जबकि उसके अन्य दोस्तों में कोई गंभीर लक्षण नही उभरे थे।
छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सज़ा मिलेंगी किसी ने नही सोच था। पर भूतकाल में जाकर अपनी गलती सुधारना उनके वश में नही था। सब अपने आप को अभिषेक की इस हालत के लिए जिम्मेदार मनाने लगे। लेकिन जिम्मेदारों ले लेने से अभिषेक की हालत सुधर नही सकती थी।
एक-एक कर अभिषेक के सारे दोस्तों का टेस्ट निगेटिव आने लगा लेकिन वह अब भी हॉस्पिटल में गंभीर अवस्था में था।
इधर उसके दोस्तों की चिंताएं और बढ़ने लगी। सबको अपनी गलती का अहसास हो चुका था। सबने भगवान से प्रार्थना की कि बस किसी तरह अभिषेक को ठीक कर दो दुबारा वें लोग ऐसी गलती कभी है करेंगें। भले ही वें जीवन भर घर में बैठ जायेंगें लेकिन घर की चारदीवारी से बाहर तब तक नहीं निकलेंगें जबतक की यह महामारी ठीक नहीं हो जाती है।
शायद भगवान भी उनकी चिंताओं को और उनकी प्रार्थना के समक्ष झुक गए। अगले दिन से अभिषेक के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। कुछ दिनों के उपरांत वह ठीक होकर घर आ गया।
और जैसा कि सबने वादा किया था उसे देखने और उससे मिलने उसके घर कोई नही गया क्योंकिं वें अब सामाजिक दूरी का मतलब और महत्त्व समझ गए थे। सबने वीडियों कॉन्फ्रेंस करके उसकी हालचाल ली। सबने अपनी गलतियों के लिए पछतावा भी व्यक्त किया और तय किया कि केवल वे ही नही बल्कि हर अपने जैसों को वे सामाजिक दूरी, मास्क और कॅरोना की गंभीरता को समझायेंगें!