संयुक्त परिवार की जीत
संयुक्त परिवार की जीत
घरौदें की पहचान उसकी मजबूती से नहीं होती है, सही मायने में घर भावात्मक लगाव से जुड़ा होता है। कभी कभी यह भी होता है कि समय के बहाव में कुछ रिश्ते कमजोर से लगने लगते है लेकिन जब रिश्तों की कसौटी उसे कसती है तब समझ में आता है कि रिश्ते जो कमजोर से लग रहे थे, उन्हीं ने सारे घर को बांध के रखा हुआ था। रामस्वरूप जी और अर्चना ताई ‘ओल्ड ऐज होम’ में आकर खुश नहीं रह सकते थे, यह वास्तविकता थी। लेकिन अपने तीनों सुपुत्रों के बीच हो रही रोज की किचकिच वह भी उन्हीं दोनों को लेकर, यह समझने के लिए काफी था कि इस संयुक्त परिवार से रिटायर्ड होने का वक्त आ गया है। रामस्वरूप जी के सामने उनके तीनों बेटे और उनकी पत्नियां कुछ नहीं कहती थीं लेकिन अर्चना ताई के कानों में उनकी फुसफुसाहट गले हुए लौह की तरह पड़ती थी जो उनके आत्मा को दुःख के गर्त में धकेल देती थी। अर्चना ताई नहीं चाहतीं थीं कि रामस्वरूप जी को पता चले की घर का माहौल कैसा है लेकिन जब शरीर में कांटे चुभतें हैं तो दर्द, आत्मा तक तो स्वतः ही पहुंच जाती है। रोहन और रौशनी उन दोनों बुजुर्ग दंपत्तियों के जीने के सहारे थे, जो अब उनसे कई किलोमीटर की दूरी पर थे।
वृद्धा आश्रम के एक एक सदस्य को पता था कि आज रोशन और रौशनी के स्कूल में कंपटीशन होने वाला है। पहले की बात होती तो रामस्वरूप जी और अर्चना ताई स्कूल खुलने से पहले ही उन दोनो को लेकर स्कूल में पहुंच गए होते, लेकिन इस दूरी ने उनके इस सुख से उन्हें वंचित कर दिया था। कंपटीशन के एक महीना पहले से ही रामस्वरूप जी रोहन और रौशनी को लेकर प्रतियोगिता की तैयारी में लग जाते थे। उन्हें वें सारे गुण और तकनीक की बारीकी की शिक्षा देते जो प्रतियोगिता जीतने के लिए आवश्यक होती हैं, लेकिन आज मिठाई से मिठास गायब थी।
इधर बच्चों के हालात भी उन्हीं के समान थे जबसे दोनों बुजुर्गों ने बिना बताए उस वृद्धा आश्रम की सीढ़ी चढ़ी थी, तब से ही उन दोनों बच्चो की आत्माएं उनसे निकलकर उन्हें निष्प्राण कर चुकी थी। रोशन और रौशनी अपने माता पिता, चाचा चाची से रोज रामस्वरूप के बारे पूछते कि अचानक दादा दादी कहां चले गए। लेकिन न तो उनके माता पिता के पास कोई जवाब था न ही उनके चाचा चाची के पास। दोनों बुजुर्गों की अनुपस्थिति ने उनके तीनों बेटों को यह बतला दिया था कि बुजुर्ग की अहमियत घर में क्या होती है। सिर्फ छत से कोई घर नहीं पूरा होता जबतक की उसकी चारदीवारी उसके साथ न हो, घर बनने से पहले चारदीवारी की बहुत अहमियत होती है क्योंकि उसी के माथे पर छत का आलम्ब टीका होता है, आंधी तूफान रोकने का काम भी चारदीवारी ही करती है। रामस्वरूप जी रोज अखबार में अपनी और पत्नी की गुमशुदा की तस्वीर देखते जिसे उनके बेटों ने दिया था लेकिन वापस घर कैसे लौट जाते जब मन के भाव ही उन्हें ढूंढने नहीं आ रहे थे।
स्कूल की प्रतियोगिता में खेल के शिक्षक भी रोहन और रौशनी के अंदर हुए हास को देख आश्चर्यचकित थे और सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह था कि खेल के समय हमेशा उनके दादा दादी उन्हें स्कूल में लेकर आते थे और खेल के शिक्षक से खेल में विजई होने को लेकर जिरह करते थे, वे गायब थे। सही कहते है लोग दुनियां भावनाओं पर ही तो टिकी है, और आज दोनो बच्चों की भावनाएं खेल के प्रति मर चुकी थी।
दौड़ के ट्रैक पर रोहन अनमना सा खड़ा था, रौशनी का नंबर अभी नहीं आया था इसलिए वह उसके पास, बाउंड्री लाइन के पास खड़ी थी, दुखी वह भी थी। वह भी खेल में पार्टिसिपेट कर रही थी। बच्चों के साथ उनके माता पिता और चाचा चाची भी आए हुए थे। सब दूर खड़े उन्हीं दोनों बच्चों को देख रहे थे। सबके सब उदास और निराश लग रहे थे। ठीक ही तो है, जिस घर में नैनीहाल ही खुश न हो उस घर की उर्जा में कहां खुशी मिलेगी।
अलर्ट की सिटी बजी गई, सब बच्चे तैयार हो गए। रोहन भी सतर्क हुआ लेकिन वह जोश जो जितने के लिए जरूरी होता है, नही ला पाया! जब दौड़ने के लिए घंटी बजी तभी रोशन के कान में रौशनी के चीखने की आवाज सुनाई दी ‘दादा जी! दादी जी!’ उसने पलट के देखा दादा जी खड़े होकर हुंकार रहे थे, ‘कॉम ऑन रोहन! फास्ट! और तेज दौड़ो!’ रोशन ने जैसे ही दादा दादी को देखा उसके तो पर ही निकल आए! एक अजीब सी ऊर्जा उससे आकार लिपटी! वह दौड़कर दादा दादी को गले लगाना चाहता था लेकिन पहले दौड़ खत्म करके! वह ‘तेज और तेज रोशन!’ की आवाज को हारने नही दे सकता था। वह बहुत तेज दौड़ा! सबको पीछे छोड़ते हुए! उसने आखिरी सीमा को सबसे पहले छुआ और इसी वेग से वापस लौटते हुए दादा दादी से आकर लिपट गया। रोशन, रौशनी रो रहे थे, दादा दादी रो रहे थे! तब तक उनके माता पिता भी दादा दादी के पास आ गए थे वे भी रो रहे थे! यह जीत की खुशी से ज्यादा भावनाओं के मिलन की खुशी थी। एक होने की खुशी थी!
जब रोशन और रौशनी को जीत का इनाम देने के लिए बुलाया गया तो मंच पर उन्होंने पहले दादा दादी को बुलाया अपना इनाम उन्हें समर्पित किया। यह इनाम काफी उम्दा और गौरवशाली था क्योंकि यह मिठाई में रस घोल रहा था, प्रेम में भावनाएं लौट आईं थी, संयुक्तता में एकता लौट आई थी।