तुम दूर नज़र आये बड़ी दूर नज़रआये

तुम दूर नज़र आये बड़ी दूर नज़रआये

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सान्या और साहिल स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी उनकी दादी शांति देवी (जो दो दिन पहले ही गाँव से शहर में अपने बेटे सिद्दार्थ के घर रहने आयी थी) बड़े प्यार से दोनों बच्चों से बोली आज " मैं तुम्हें गाड़ी में बिठाने चलती हूँ।" साहिल तो के.जी. में था यह सुन कर खुश हुआ पर सान्या ने मुंह बनाते हुए कहा "आप तो रहने ही दो दादी, अगर हम अपनी गाड़ी से जाते तब तो ठीक था पर स्कूल वालों ने  कार पूल सिस्टम कंपल्सरी कर दिया है, तो गाड़ी में पहले से ही बच्चे बैठे होंगे, अगर मेरी फ्रेंड्स पूछेंगी की "ये कौन है", तो मैं क्या बोलूंगी? फिर उसने धीरे से कहा "आप को तो मुझे मैड कहने में भी शर्म आएगी, क़्यूंकि हमारे घर की मैड्स भी आप से ज़्यादा अच्छे से रहती हैं।" सिद्धार्थ ने यह सब सुन लिया था। वह सान्या को डांटता उससे पहले ही उनकी बहु शैली सान्या की बात पर कुटीलता से मुस्कुराते हुए बोली "जल्दी जाओ बच्चों गाड़ी का हॉर्न बज रहा है, दोनों बच्चे जल्दी से बाहर भागे। शान्ति देवी को सान्या की बात ठीक से समझ नहीं आयी थी इसलिए वह अपने पूजा-पाठ में लग गयी। जब वह पूजा कर के उठी तो शैली से बोली "आज नाश्ता मैं बनाती हूँ। गरम-गरम आलू के पराँठे और लस्सी।

शैली ने कहा "मम्मी जी यह आप का गाँव नहीं है। यहाँ कोई इतना भारी नाश्ता नहीं करता। आप को जो खाना हो बता देना रसोईया सब बना देगा।" सिद्धार्थ से अपनी माँ की बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं हुई। माँ को पकड़ कर सोफे पर बैठाता हुआ बोला "माँ कोई और खाये या न खाये आप के हाथ का नाश्ता, मैं तो ज़रूर खाऊँगा और दिन में मेरे लिए दाल-चावल बनाना और अपने हाथ से खिलाना, साल भर में आप मुश्किल से 5-7 दिन को तो आती हो, आपके हाथ का खाना खाने को तरस गया हूँ। डॉक्टर ने थोड़ा बहुत परहेज़ बता रखा है, वो तो पूरे साल ही करना है। अभी 2-4 दिन तो आपके हाथ के खाने का मज़ा ले लूँ।

शैली को यह सब सुन कर इतना गुस्सा आया की मैज़ पर रखा हुआ फूलदान उसने ज़ोर से ज़मीन पर दे मारा और बोली "ज़िन्दगी भर माँ के पल्लू से ही बंधे रहना, गंवार कहीं के। डैडी ठीक ही कहते हैं "शादी के इतने साल बाद भी हमारे स्टैंडर्ड का नहीं बन पाया, और पैर पटकती हुई अपने कमरे के दरवाज़े पर जा कर खड़ी हो गयी ताकि दोनों माँ-बेटे की बातें सुन सके, तभी सिद्धार्थ अपनी माँ की गोदी में सिर रख कर रोने लगा शांति देवी ने धीरे से उसके सिर पर हाथ रख कर पूछा "क्या हुआ बेटा, इतना बड़ा हो गया है। दो-दो बच्चों का बाप बन गया है, फिर ऐसे कैसे छोटे बच्चे की तरह रो रहा है।"

सिद्धार्थ ने बैठते हुए पूछा "क्यूँ माँ, बड़े होने का यह मतलब होता है कि अपनी माँ के गोद में सिर रख कर रो भी नहीं सकते।" जिस माँ ने छोटे से इतना बड़ा किया आज उससे मिलने के लिए बीवी से आज्ञा लेनी पड़ती है। अपनी मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू को याद करना, खुले खेतों-खलियानों में घूमने के लिए जी मचलना क्या गंवार होने की निशानी है? तुम्हारे हाथ से आज भी दाल-चावल खाने को जीभ लपलपाना क्या माँ के पल्लू से बंधे रहने की निशानी है ? क्यों शैली हमेशा मुझे आप से दूर करना चाहती है। माँ, बच्चों को तो कभी उसने दादा-दादी का प्यार क्या होता है, उसका एहसास ही नहीं होने दिया। बच्चे सिर्फ नानू -नानू करते रहते हैं। शादी से लेकर अब तक उसने हमेशा मेरी और मेरे परिवार की गरीबी का मज़ाक बनाया है।

आज चाहे मैंने उसके पापा का पूरा बिज़नेस संभाल रखा है, पर शैली और उसके मम्मी- पापा की नज़रों में, आज भी मेरी कोई इज़्ज़त नहीं है| किसी भी समय ताना मार देती है कि "तुम क्या जानो अमीरों के तौर-तरीके।" क्या मैंने उससे जबरदस्ती शादी की थी, नहीं न। कॉलेज के दिनों में उसे ही मैं इतना पसंद आ गया था की उसके पिता जी आपके और पिताजी के पास हमारे विवाह का प्रस्ताव लाये थे, इस शर्त पर की शादी के बाद मुझे घर जंवाई बनना पड़ेगा। "मैंने आप से कितना मना किया था की मैं आप लोगों को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा" पर जब शैली आप से बार-बार मिन्नतें करती रही, तो आप भी उसकी खातिर अपने इकलौते बेटे को अपने से दूर शहर भेजने को तैयार हो गयी। आपको शैली की नज़रों में मेरे लिए प्यार दिखता था,पर मुझे तो शादी से लेकर अब तक सिर्फ यही महसूस हुआ है कि वो एक अमीर बाप की बेटी की ज़िद्द थी। मैंने उसकी ख़ुशी के लिए अपनी सारी इच्छाएं दबा दी। पिताजी गाँव में इतने बीमार हैं, उन्हें तक देखने नहीं जा पाता।

आप से मिलने का इतना मन कर रहा था, इसलिए 5-7 दिन को आप को ही बुला लिया। तब भी इसे चैन नहीं है। जब देखो आपकी बेइज़्ज़ती करती रहती है। सान्या भी इसके क़दमों पर चल रही है।


अब, मैं इस दिखावे की ज़िन्दगी से तंग आ गया हूँ। थक चूका हूँ मैं, रोज़-रोज़ पार्टियों में जा-जा कर। अपने बच्चों तक से मिलने का टाइम नहीं मिल पाता। इसको मुबारक हो यह दिखावटी ज़िन्दगी। मैं अब आपके साथ गाँव चलूँगा और वहीं जाकर रहूँगा। शैली के पापा ने सिद्धार्थ की यह बात सुन ली उन्होंने शैली को समझाने की बजाये सिद्धार्थ को ही डांटते हुए कहा "बहुत अच्छी बात है, जाओ न यहाँ से अपनी माँ को लेकर कौन रोक रहा है।" सिद्धार्थ को भी गुस्सा आ गया उसने कहा "मुबारक हो आपको, आपका यह सोने का पिंजरा जिसमें आपको इंसान नहीं चाहियें आपको अपने हाथों से नचाने वाली कठपुतलियाँ चाहिये।" तभी शैली ने आकर सिद्धार्थ के मुंह पर चांटा मारा और चिल्ला कर बोली "कैसे बोल रहे हो मेरे पापा से।"

सिद्धार्थ ने कहा "तुम दिन रात मेरी माँ का अपमान करो तो कुछ नहीं, मैंने ज़रा सा तुम्हारे पापा को बोल दिया, तो तुमसे सहन नहीं हुआ| मैं भी अब अपना और अपनी माँ का और अपमान नहीं करवा सकता।

शांति देवी ने सिद्धार्थ को समझाने की बहुत कोशिश की की ऐसे अपनी गृहस्थी नहीं तोड़ते पर वह जल्दी से जाकर अपना और अपनी माँ का सामान ले आया और उनका हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकल गया। साल भर ऐसे ही निकल गया। सिद्धार्थ को अपने बच्चों की याद आती थी, तो वो उन्हें फोन मिलाता था पर शैली बच्चों से उसकी बात नहीं होने देती थी। एक दिन दोपहर के समय शैली रोती हुई सिद्धार्थ के पास आई और बोली सान्या दो दिन से घर नहीं आयी है। पुलिस में भी कंप्लेंट लिखवा दी है, पर उसका कुछ पता नहीं चल रहा। पापा को हार्ट-अटैक आया था इसलिए उनकी बाय-पास सर्जरी हुई है।

हमारे अकाउंटेंट ने उनसे धोखे से दस्तखत करवा कर बिज़नेस का बहुत बड़ा शेयर अपने नाम में करवा लिया है। मम्मी और मैं अकेले परेशान हो गए हैं, कुछ समझ नहीं आ रहा। रिश्तेदारों और दोस्तों में से कोई मदद करने को तैयार नहीं है, इसलिए तुम्हारे पास आयी हूँ, प्लीज़ घर चलो।" शांति देवी ने सिद्धार्थ से जल्दी जाने को कहा तो उसने कहा "अब मैं एक ही शर्त पर जाऊँगा की शहर में, मैं अपने माँ-बाऊजी के संग अपना अलग मकान लेकर रहूँगा। शैली को तो इस समय कुछ समझ ही नहीं आ रहा था इसलिए बोली "मुझे तुम्हारी सब शर्ते मंज़ूर हैं"। सिद्धार्थ ने घर वापिस जाते ही सान्या के सभी दोस्तों से पूछ-ताछ शुरू कर दी, जिससे उसे पता चला की सान्या घर में बिना बताये, अपने दोस्तों के साथ घूमने चली गयी थी क्यूंकि उसे अब किसी का डर तो था ही नहीं।

माँ को अपनी पार्टियों से फुर्सत नहीं थी और नाना-नानी ने ज़रूरत से ज़्यादा लाड-प्यार दे कर उसे बिगाड़ दिया था। सिद्धार्थ ने अकाउंटेंट को भी जाल-साज़ी के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया। शैली को अपनी गलती का एहसास हो चूका था उसके माता-पिता ने भी सिद्धार्थ से माफ़ी मांगी। कुछ दिन बाद सिद्धार्थ अपने माता-पिता को भी शहर ले आया। अब शैली सिद्धार्थ और उसके माता-पिता की बहुत इज़्ज़त करने लगी थी।


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