तुझे सब है पता
तुझे सब है पता
आज मीनल को स्कूल से घर जाने की बड़ी जल्दी थी। आज शाम को मम्मी जो आनेवाली थी।
सात दिन हो गए थे मम्मी को नानी के पास गए हुए। अगर मीनल की परीक्षाएं ना चल रही होतीं तो वो ज़रूर जाती। वो जैसे ही घर पहुँची। पापा ने बताया, मम्मी की ट्रेन एक घंटा लेट है। उन्होंने आज आधे दिन की छुट्टी ले रखी थी ताकि मम्मी को लेने स्टेशन जाए। खाना खाकर कपड़े बदलकर मीनल ने चाय बनाई। दादी और पापा को दी। फिर अपने और छोटे भाई मनीष के लिए चॉकलेट दूध लेकर पीने लगी। उसके बाद घर को थोड़ा व्यवस्थित कर ही रही थी कि पापा उसे पूछने आए कि, क्या वो और मनीष पुष्पा यानी अपनी मम्मी को लेने स्टेशन चलेगी। पर जब बच्चों ने मना किया तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा, "आप जाइये पापा, मैं घर पर मम्मी के लिए एक सरप्राइज तैयार कर रही हूँ। "अच्छा.... क्या" कहा ना सरप्राइज है" मनीष ने कहा। फिर दोनों बच्चे हँसने लगे। पापा मम्मी को लेने चले गए तो दोनों भाई बहने मिलकर पनीर के पकौड़े बनाए जो उनकी मम्मी पुष्पा को बेहद पसंद था। मनीष ने उनका कमरा ठीक करने में दीदी की मदद की। दसवीं कक्षा में पढ़नेवाली मीनल और पाँचवी कक्षा का मनीष बहुत ही सधे तरीके से सब काम कर रहे थे। थोड़ी देर में बच्चों की मम्मी और गृहस्वामिनी घर आ गई। तो पहले खुद बाथरूम जाकर नहा धोकर आई। फिर बच्चों को गले लगाया। मीनल तो अपनी मम्मी को छोड़ना ही नहीं चाहती थी। "अरे, बच्चों! कहाँ है तुम्हारा सरप्राइज़? जो तुमलोग अपनी मम्मी को देनेवाले थे। "पापा के कहने पर दोनों बच्चे छोटे से टेबल को सुंदर झालर लगे कवर से ढककर लाए तो सबको उत्सुकता हुई कि अंदर क्या है। फिर मनीष मम्मी की पसंदीदा अदरक इलायची वाली चाय जब एक खूबसूरत सी टीकोजी से ढककर लाया तो सबको जानने की इच्छा हुई कि ये उस सुंदर सा टेबल क्लॉथ और चाय ढकने वाली टीकोजी भला आई कहाँ से?फिर पकौड़े , बर्गर प्लेट में सजकर जब सामने आए तो पापा को अपनी उत्सुकता दबाना मुश्किल हो गया। यूँ ही हँसकर बोले.... "कितने पैसे खर्च डाले?" "जी एक भी नहीं। "दोनों बच्चे एक साथ बोले। फिर जब टेबल क्लॉथ हटाया तो एक सुंदर सा केक था और एक प्यारे से कार्ड पर लिखा था। "वेलकम होम" आज गिरीश और पुष्पा और दोनों बच्चे और उनकी प्यारी सी दादी सब बहुत खुश थे। दोनों पति पत्नी मुस्कुराकर एक दूसरे को देख रहे थे कि कैसे उनके समझदार बच्चों ने इस अवसर को एकदम खास बना दिया था। पापा ने आश्चर्य से पूछा, ये सब तुम दोनों ने कैसे किया। और सिर्फ मैगी और चाय बनाने वाली मीनल इतना कुछ कैसे और कब बनाना सीख गई। मनीष इतना बढ़िया केक बना लाया। कैसे ? कब सीखा? पुष्पा उनकी सारी उत्सुकता समझ रही थी। अब उसने बताया कि पिछले दिनों जब उसे पता चला कि उसे माँ से मिलने मायके जाना है तो से वो रोज़ थोड़ा थोड़ा करके दोनों बच्चों को घर का काम, खाना बनाना, कमरा व्यवस्थित करना, घर की सफाई, कपड़े धोना आदि सिखाती जाती। "वैसे खाना बनाने में सलाद वगैरह काटने में, प्लेट लगाने में मनीष तो बहुत दिनों से मदद करता है और मीनल लगभग रोज़ ही फुल्के बनाने में मेरी मदद करती रही है। "
" क्यूँकि मैं जानती हूँ, बच्चों को बिल्कुल आत्मनिर्भर बनाना चाहिए ताकि वक़्त आने पर वो दूसरों पर निर्भर ना रहें। " पुष्पा ने गिरीश की उत्सुकता शांत करते हुए कहा।
वैसे भी बच्चे की परवरिश पुष्पा ने ऐसी की थी कि उन्हें शुरू से अपना काम खुद करने की आदत थी। इसमें बच्चों की दादी का भी बहुत सहयोग था। वो भी बच्चों को लाड़ प्यार के साथ कई शिक्षाप्रद कहानियां भी सुनाती रहती थी जिससे बच्चे खेल खेल में कई ज़रूरी बातें भी सीख जाते और उन्हें वह सब अनावश्यक भाषण जैसा भी नहीं लगता। बहरहाल इतना सब कुछ एक साथ देखकर जहाँ पुष्पा का मन बच्चों के प्रेम से आहलादित हो उठा था। वहीं बच्चों के पापा गिरीश के आश्चर्य की तो कोई सीमा ही नहीं थी। वो भी बिना बोले ना रह सके कि,"ओहो , इनकी ट्रेनिंग बहुत दिनों से चल रही थी। तभी इस बार जब तुम मायके गई तो ऑफिस से आकर मुझे खाना नहीं बनाना पड़ा। मुझे लगता खाना माँ ने बनाया है। फिर मैं इतना थक जाताथा कि इस ओर ध्यान ही नहीं जाता था। और इन बच्चों ने मुझे कभी पता ही नहीं लगने दिया। "गिरीश का आश्चर्य बढ़ता ही जा रहा था। थोड़ी देर बाद पुष्पा मीनल को बहुत सुंदर सा ईयर रिंग दिया जो अजमेर से लाई थी और मनीष के लिए उसके फेवरेट क्रिकेटर की फोटो वाली टी। शर्ट। तो वो खुश होकर माँ के गले लिपट गया। दोनों बच्चों ने पूछा,"आप एकदम हमारी पसंद की चीज कैसे ले आई। "माँ सब जानती है" पुष्पा ने कहा तो दादी बोली और दादी भी जानती है। तो सब जोर से ठहाका लगाकर हँस पड़े। फिर पुष्पा ने मीनल से पूछा ये टेबल क्लोथ कहाँ से आया। तो मीनल ने बताया कि उसने पुष्पा के पुराने दुपट्टे और अपनी छोटी हो गई स्कर्ट से मिलाकर बनाया और मनीष ने अपने पुराने टोपी को अंदर कपड़े की लाइनिंग और ऊपर लेस चिपकाकर ये टीकोजी बनाया है तो पुष्पा को अपने बच्चों की कारीगरी और अपनी परवरिश पर नाज़ हो आया। "वाह, तुम दोनों ने घर को वैसे ही व्यवस्थित रखा है जैसा मुझे पसंद है। कैसे?" "क्यूँकि हम भी आपके ही बच्चे हैं। हम भी सब जानते हैँ "दोनों बच्चों ने पुष्पा के ही अंदाज़ में जवाब दिया। सिमित आय और असीमित स्नेह से रचा बसा ये घर एक माँ की समझदारी और किफायत से एकदम सुचारु रूप से चल रहा था। इस बात पर पुष्पा की सास हमेशा अपनी बहू की तारीफ करती थी कि कम आमदनी में इतने व्यवस्थित तरीके से घर चलाना तो कोई उनकी बहू पुष्पा से सीखे। और पुष्पा भी अपने दोनों बच्चों को रोज़ के कामbके साथ बात बात में, खेल खेल में, अपना ख्याल रखना और आत्मनिर्भर बनना सीखा रही थी। वो जानती थी। । आज उसके प्यार के साये तले रहनेवाले बच्चों को कल घर से बाहर जाना पड़ेगा। खुले आसमान की उड़ान के लिए तैयारी बचपन से ही तो करनी पड़ेगी। और उसने वही किया भी। तभी आज उसके बच्चे पढ़ाई में भी होशियार थे और अपना सारा काम भी खुद कर लेते थे। परवरिश ऐसी ही होनी चाहिए जो कि हमें आत्मनिर्भर बनाए और सबकी इज़्ज़त करना भी सिखाए। कैसी भी परिस्थिति हो ज़िन्दगी में उसका सामना हिम्मत से करे। वैधानिक शिक्षा के साथ ज़िन्दगी की पढ़ाई भी ज़रूर पढ़ाई जानी चाहिए जो पुष्पा जैसी माँएं अपने बच्चों को समय समय पर पढ़ाती रहती हैं जो उन्हें आगे चलकर जीवन में सफल बनाती है। वैसे भी एक माँ तो सब जानती है। है ना। और अपने बच्चों की परवरिश एक माँ बेहतर जानती है।
(समाप्त)
