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Anil Makariya

Inspirational

3.1  

Anil Makariya

Inspirational

टूटी चप्पल

टूटी चप्पल

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"पता नहीं ये सामने वाला सेठ हफ्ते में 3-4 बार अपनी चप्पल कैसे तोड़ आता है?"

मोची बुदबुदाया नजर सामने की बड़ी किराना दुकान पर बैठे मोटे सेठ पर थी।

हर बार जब उस मोची के पास कोई काम ना होता तो उस सेठ का नौकर सेठ की टूटी चप्पल बनाने को दे जाता।

मोची अपनी पूरी लगन से वो चप्पल सी देता की अब तो 2-3 महीने नहीं टूटने वाली।

सेठ का नौकर आता और बिना मोलभाव किये पैसे देकर उस मोची से चप्पल ले जाता।

पर 2-3 दिन बाद फिर वही चप्पल टूटी हुई उस मोची के पास पहुंच जाती।

आज फिर सुबह हुई, फिर सूरज निकला।

सेठ का नौकर दुकान की झाड़ू लगा रहा था।

और सेठ...

अपनी चप्पल तोड़ने में लगा था,पूरी मशश्कत के बाद जब चप्पल न टूटी तो उसने नौकर को आवाज़ लगाई,

"अरे रामधन... इसका कुछ कर, ये मंगू भी पता नहीं कौन से धागे से चप्पल सिता है ,टूटती ही नहीं"

रामधन आज सारी गांठे खोल लेना चाहता था "सेठ जी मुझे तो आपका ये हर बार का नाटक समझ में नहीं आता ।

खुद ही चप्पल तोड़ते हो फिर खुद ही जुड़वाने के लिए उस मंगू के पास भेज देते हो "

सेठ को चप्पल तोड़ने में सफलता मिल चुकी थी।

उसने टूटी चप्पल रामधन को थमाई और रहस्य की परतें खोली "देख रामधन जिस दिन मंगू के पास कोई ग्राहक नहीं आता उस दिन ही मैं अपनी चप्पल तोड़ता हूँ, क्योंकि मुझे पता है मंगू ग़रीब है पर स्वाभिमानी है मेरे इस नाटक से अगर उसका स्वाभिमान और मेरी मदद दोनों शर्मिंदा होने से बच जाते है तो क्या बुरा है? "

आसमान साफ था पर रामधन की आँखों के बादल बरसने को बेक़रार थे।


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