टूटे तारों का सच
टूटे तारों का सच
नीरज बचपन से ही भाग्यवादी विचारधारा वाला व्यक्ति था।वो कर्म से ज्यादा भाग्य पर यकीन करता था।उसकी माँ ने लाख कोशिश की ।कि वो उसके खिलोने बनाकर बेचने के काम को कुशलता पूर्वक सीख ले ।जिससे भविष्य में उसे अपनी जीविका चलाने में कोई परेशानी न हो।पर उसकी रुचि इस कार्य मे बिलकुल न थी।
उसकी माँ जब उसपर इसके लिये दबाव डालती तब वो अनमने मन से बस उसकी थोड़ी बहुत मदद कर दिया करता।जीवन की वास्तविकता से अनिभिज्ञ नीरज की छोटी छोटी आंखों ने शायद कुछ बड़े ख्वाब सजा लिये थे।जिन्हें वो नसीब के बल पर ही पूरा करना चाहता था।
फिर एक दिन खिलोने बेचकर घर आते हुए,उसकी माँ की एक सड़क दुर्घटना में अनायास ही मौत हो गई।नीरज अब बिल्कुल अकेला रह गया।कुछ एक दिन में उसके घर का सारा राशन व बचत के पैसे तक खत्म हो चुके थे।आज सुबह से उसे खाने को कुछ भी नसीब नही हुआ था।और जीविका चलाने की समस्या अब उसके सामने विकराल रूप लिये खड़ी थी।फिर उसने अपनी माँ के बनाए उन खिलोनो की और देखा, जिन्हें अभी अंतिम रूप देना अभी बाकी था।उसने उन्हें बड़ी मेहनत से तैयार किया।और सर पर रखकर बेचने निकल पड़ा।उन्हें बाजार में बेचकर घर आते उसे रात हो चुकी थी।आज फिर उसने आकाश में एक टूटता तारा देखा।उसे देख वह मुस्कुराया ओर पहली बार उसने ईश्वर से मांगा,की वो उसे इतनी शक्ति प्रदान करे ।कि वो अपनी मेहनत व लगन से अपने मन की सभी कोरी कल्पनाओ में हकीकत के सुनहरे रंग भर सके।क्योकि शायद अब वो इन टूटते तारो का सच जान चुका था।
