टंट्या भील
टंट्या भील
टंट्या भील का जन्म मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले की प्रधाना तहसील के ग्राम बड़दा में सन 1840 में हुआ था। उनका असली नाम टंड्रा अथवा तांतिया भील था। आदिवासी घरों में उन्हें देवता माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है। वह 1878 और 1889 के बीच भारत में सक्रिय एक जननायक (आदिवासी नायक) थे।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों द्वारा किये गए दमन के प्रतिरोध में उन्होंने जीवन के ऐसे तरीके को अपनाया कि वह अंग्रेजों को लूट कर उस धन को गरीब आदिवासियों में बांट देते थे। इसीलिए अंग्रेजों ने ही उनका नाम इंडियन रोबिनहुड रखा था। उनके इस गुण के कारण लोग उन्हें टंट्या मामा कहते थे।टंट्या को पहली बार 1874 के आसपास गिरफ्तार किया गया था।एक साल की सजा काटने के बाद उनके जुर्म को चोरी और अपहरण के गंभीर अपराधों में बदलकर पकड़ा गया। सन 1878 में उन्हें हाजी नसरुल्ला खान यूसुफजई ने गिरफ्तार किंतु मात्र तीन दिनों बाद वे खंडवा जेल से भाग गए और शेष जीवन एक विद्रोही के रूप में जिया।
कहते हैं कि अंग्रेजों के दो हज़ार सैनिकों की आँखों में धूल झोंक कर आँखों से ओझल हो जाते थे।वे लाखों आदिवासियों का झगड़ा ग्राम सभा में सुलझा देते थे। वैसे तो सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से उनका सीधा कोई लेना-देना नहीं था पर उन्होंने आदिवासियों को संगठित कर हजारों आदिवासियों के मन में संघर्ष की ज्योति जलाई।
निमाड़ अंचल में पले- बढ़े टंटया भील की कद काठी सामान्य थी फिर भी वे अंग्रेजों से लोहा लेने में सवाया थे। उनकी चुस्ती फुर्ती देख कर तात्या टोपे ने उन्हें गुरिल्ला युद्ध करना सिखाया था।
इंदौर की सेना के एक अधिकारी ने टंट्या को क्षमा करने का वादा किया था, लेकिन घात लगाकर उन्हें जबलपुर ले जाया गया, जहाँ उन पर मुकदमा चलाया गया और 4 दिसंबर 1889 को उसे फांसी दे दी गई। उनके शव को इंदौर के पाताल पानी के पास फेंक दिया गया। आज भी उस स्थान पर ट्रेन की गति उन्हें नमन करने ,श्रद्धांजलि देने के लिए धीमी हो जाती है।
मध्यप्रदेश के मुकेश चौकसे ने उनके जीवन पर एक फ़िल्म बनाई थी। दुर्भाग्यवश अपने ही देश में उनके बारे में अधिक जानकारी न मिलने पर उन्हें अंग्रेजों की लाइब्रेरी से जानकारी मंगवानी पड़ी।
टंटया भील का मंदिर खंडवा जिले की पंधाना तहसील के ग्राम बड़ौदा अहीर में स्थिति है। इस जगह पर टंटया भील का एक बड़ा स्मारक बना है।टंटया भील का एक मंदिर भीकनगांव तहसील के ग्राम गढ़ी कोटड़ा मे स्थित है और पीर बाबा की मजार भी बनी हुई है। टंटया भील के वंशज आज भी ग्राम बड़ौदा अहीर में निवास करते है।
