Preeti Agrawal

Drama

4.8  

Preeti Agrawal

Drama

ठूंठ से कोंपल तक

ठूंठ से कोंपल तक

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आज फिर सरला ने छुट्टी मार दी। रीना सुबह से उसका इंतजार कर रही थी। तीन दिनों से तो आई नहीं और अभी भी उसका कोई अता पता भी नहीं था। जहां-जहां काम करती है सब जगह फोन करके पूछ लिया, पर किसी को उसकी खबर ही नहीं थी। सरला अक्सर ऐसे ही छुट्टियां मार देती थी। महीने में 8-10 दिन गायब रहना तो उसकी आदत बन गई थी। उसका मोबाइल फोन भी बंद आ रहा था। घर में मेहमान आए हुए हैं। रीना को गुस्सा तो बहुत आया पर वह फटाफट अपने कामकाज में जुट गई। पहले से मालूम हो कि वह आज भी नहीं आने वाली है तो अपना काम निपटा लेती।

वैसे सरला बहुत हंसमुख, ईमानदार और मेहनती है। सलीके से काम करती है इसीलिए इतनी छुट्टियां लेने पर भी रीना ने उसको काम से नहीं निकाला। आजकल ईमानदार और मेहनती लोग कहां मिलते हैं और वैसे भी इसी बहाने उसकी मदद भी हो जाती है।

पर अब पानी सिर से ऊपर चला गया था। उसने अब तय कर लिया है कि सरला के आने पर अब इस बार तो उसकी छुट्टी कर ही देगी। उसे ऐसे व्यक्ति को काम पर नहीं रखना है जो वक्त पर काम ना आए। सामान्य दिनों में उतनी जरूरत नहीं पड़ती पर जब मेहमान आए हों तब तो उसका रहना जरूरी हो जाता है।

रात को मेहमानों के जाने के बाद थक कर चूर होकर वह बिस्तर पर गिर पड़ी। घर बहुत बिखरा हुआ था और झूठे बर्तनों का अंबार लगा था। पर अभी उसके कुछ भी समेटने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पता नहीं कल भी सरला आएगी कि नहीं पर अब सब सुबह ही करूंगी, सोचते-सोचते उसकी आंख लग गई।

दरवाजे पर लगातार बजती घंटी से रीना की नींद खुल गई। उसको कोफ्त हुई कौन है जो सुबह-सुबह इतनी घंटियां बजा रहा है। जैसे ही उसने दरवाजा खोला सामने सरला को देखते ही स्तब्ध रह गई।‌ उसके पूरे चेहरे पर चोट के निशान थे और सिर और हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी।

" अरे क्या हुआ तुझे? इतनी चोट कैसे लगी? एक्सीडेंट हो गया क्या? चल पहले अंदर आ"- रीना कल का अपना सारा गुस्सा भूलकर सरला को हाथ पकड़ कर अंदर ले आई।

सरला की आंखों से आंसू बहने लगे। वह फूट-फूट कर रोने लगी। यह देख कर रीना प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी- " रो मत! ले पहले पानी पी ले। बता तो सही क्या हुआ?"

सरला ने रोते-रोते अपनी आपबीती सुनाई। उसको उसके पति ने कल रात को बहुत मारा था। शराब पीकर उसका यह रोज का काम था। इसमें उसकी सास भी मदद करती थी। हर दिन तो कम मार पड़ती थी पर कल सारी हदें पार हो गई जब उसके पति ने उसके सिर पर हथोड़े से वार किया। वह तो उसकी किस्मत अच्छी थी कि बच गई।

उसकी आपबीती सुनकर रीना गुस्से से भर उठी और बोली -"चल अभी पुलिस स्टेशन। तेरे पति और सास की शिकायत दर्ज करवाते हैं। दो-चार दिन थाने की हवा खाएंगे तो अपने आप अकल आएगी।" पर सरला पुलिस स्टेशन जाने को तैयार नहीं हुई‌- "नहीं दीदी पुलिस-वुलिस के चक्कर में मुझे नहीं पड़ना है।"

"तू कब तक अपने पति और ससुराल वालों के अत्याचार सहन करती रहेगी? उनको ऐसे समझ में नहीं आएगा"- रीना बोली।

" पर दीदी मैं क्या करूं? मेरे पास कोई और रास्ता भी नहीं है।‌ मां-बाप इतने गरीब हैं कि उनके पास जा नहीं सकती और मैंने केवल पांचवी तक ही पढ़ाई की है। अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहां जाऊं? "- सरला ने बेबसी से कहा।

रीना सोच में डूब गई और फिर उसने एक निर्णय लिया- " तू चिंता मत कर! आज से मैं तुझे पढ़ाऊंगी और एक अच्छा जीवन जीने में मदद करूंगी।"

उसी दिन से रीना ने सरला को पढ़ाना शुरू कर दिया। सरला बहुत होशियार थी और मेहनती तो थी ही। लगन से उसने पढ़ना शुरू किया। रीना ने देखा कि उसमें अपनी बात कहने की अद्भुत क्षमता है। उसने सरला को अपनी रोजमर्रा की कोई एक बात लिखने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे सरला की लेखनी में सुधार होने लगा और बहुत अच्छे तरीके से अपने विचारों को व्यक्त करने लगी। लगातार पढ़ाई एवं अपने दुख, परेशानियों और विचारों को कागज पर शब्दों के रूप में व्यक्त करने से सरला हल्कापन महसूस करती थी अब उसकी जिंदगी में जीने की चाह फिर से जाग उठी थी।

आज रीना बहुत खुश थी और बेसब्री से सरला के आने का इंतजार कर रही थी। सरला के आते ही उसने उसको गले से लगाया और उसका मुंह मीठा किया। फिर उसको अपने साथ गाड़ी में बिठा कर ले चली।

" दीदी हम कहां जा रहे हैं?" सरला ने आश्चर्य से पूछा।

"बस 10 मिनट रुक जा फिर तुझे सब पता चल जाएगा-" रीना मुस्कुरा उठी।

दोनों शहर के टाउन हॉल में पहुंचे। वहां की सजावट देखकर सरला आश्चर्यचकित थी। उसने यह सब पहले केवल टीवी सीरियल और फिल्मों में ही देखा था। वह सकुचाई सी रीना के पीछे-पीछे चल पड़ी।

हाल के भीतर पहुंचते ही लोगों ने उनका तालियों से स्वागत किया। मंच के पास उसकी बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी

" दीदी यह सब क्या है?" सरला ने आश्चर्य से पूछा।

"सरला! आज तेरी मेहनत रंग लाई है। तुम्हारी किताब का विमोचन है"- रीना ने मुस्कुराते हुए कहा।

" मेरी किताब"- सरला आश्चर्य से भर उठी।

*हां सरला! तुम रोज जो एक पेज मुझे लिख कर देती थी उसी से यह किताब बनी है" रीना ने भाव विभोर होकर सरला को गले से लगा लिया।

आज रीना की तपस्या भी रंग लाई थी। बरसों पहले जैसे किसी ने उसकी जिंदगी को रोशन किया था वैसे ही आज उसने भी एक दुखी स्त्री के जीवन में खुशियों के रंग भरकर उसे समाज में सम्मान दिलाने का संतोषजनक काम किया था।


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