टेबल लैंप
टेबल लैंप
त्योहारों का सीजन है। मौसम भी बदल गया है। गर्मी उमस और चिपचपाहट के मौसम के बाद जैसे चारों तरफ खूबसूरती फ़ैल गई है। मोबाइल, टीवी और अखबार भी रंग बिरंगे सेल ऑफर इस फेस्टिवल सीजन में बार बार दिखा रहे हैं। मेरे मोबाइल पर भी अमेजन, फ्लिपकार्ट और स्नैप डील जैसी कई शॉपिंग साइट्स के नए ऑफर का मेसेज रोज आ रहा है। इन शॉपिंग साइट्स को खोल कर देखता हूँ तो जी करता है ट्रक भर के सामान खरीदूँ पर बजट आड़े आ जाता है। वैसे तो कोई ख़ास चीज खरीदने वाली नहीं होती पर सुंदरता और सलीके से सजाई चीजे मन में खरीदने की चाहत पैदा कर देती हैं।
मुझे एक खूबसूरत टेबल लैंप खरीदना है। इसकी कई तस्वीरें मेरे दिमाग में है। इनमे से कुछ तस्वीरें बचपन की और बहुत सारी अपने अब तक के जीवन में देखे उन टेबल लैम्प्स की जो मुझे पढाई करते वक्त अपने दोस्तों के घरों में दिखी या फिर कुछ लेखकों पर बनी फिल्मों में देखी गई। पता नहीं क्यों मैं हमेशा उस कमरे को सबसे ज्यादा पसंद क्यों करता हूँ जिसमे सर्दियों का दृश्य हो। मतलब उसमे एक कोने में आग की वो चिमनी हो जिसे कमरा गर्म करने के लिए बनाया जाता है। सुंदर कालीन से ढका कमरे का फर्श, उस पर सजा एक आरामदायक गद्देदार सोफा। जिसके दोनों कोनों में रंग बिरंगे फूलो से सजे गुलदान हो। दीवारों पर सुंदर पेंटिंग्स और किताबों से भरी सुंदर अल्मारिया जो दीवारों से सटी हों। उसमे एक आराम कुर्सी जिसके आगे पड़े टेबल पर टेबल लैंप के जादुई प्रकाश में चमकता चाय का कप और एक खुली किताब का दृश्य मेरे मन में हमेशा किसी प्रेमिका की तरह बसा रहता है।
इसलिए मैं बार बार सुंदर किताबों, कार्पेट, टेबल लैंप,घडी, कुर्सियों, पेंटिंग्स और घर को सजाने वाली चीजे सेलेक्ट कर ऐड टू कार्ट मतलब अपने खरीद बक्से में सेव कर लेता हूँ। ये काम एक आभासी सुख देता है जैसे, जैसे मैंंने इन वस्तुओं को लगभग खरीद ही लिया हो। मैं उन्हें अपनी दीवारों, कमरे के कोनों, अपने मेज पर करीने से सजाये हुए या अपने हाथ में पकडे अनेक सुंदर कल्पनाएं रचते हुए शिद्द्त से उन्हें साकार करता हूँ। जब भी समय मिलता है अपनी सेलेक्ट की हुई वस्तुओं के बारे में ग्राहकों की प्रतिक्रियाएं और उनकी कीमतों का तुलनात्मक अध्धयन करता हुआ उनके बारे में एक राय बनता हूँ।
कई बार किसी चीज को खरीदने के लिए मैंं लगभग तैयार होता हूँ पर ग्राहकों की प्रतिक्रिया मुझे ऐसा करने से रोक देती है।
कई बार ये होता है की ग्राहको की राय भी बँटी होती है।
कई के लिए वो खरीदी हुई वस्तु बिलकुल घटिया और कई के लिए बहुत कमाल साबित होती है। तब मेरा मन बहुत दुष्चक्र में फंस जाता है और मैं अपनी खरीददारी कुछ समय के लिए टाल देता हूँ। जैसे हमारे कई विद्वान् कहते है कि जल्दबाजी में फैसला नहीं करना चाहिए, तो मैंं उनके कहे मुताबिक अपनी राय को एक ड्राफ्ट की तरह संभाल कर रख लेता हूँ ताकि उस पर कुछ देर बाद फिर से विचार कर सकूं।
शायद समय का अंतराल आकर्षण के जादू को कई बार तोड़ता है, क्षीण कर देता है। इससे हमारी राय बदल जाती है, हम उसके जादुई तिलिस्म से बाहर आ जाते है, और कई बार ऐसा नहीं भी होता।
तो ये लगभग उहापोह का मामला भी हो जाता है कभी कभार। पर हर बार की तरह इस बार मुझे जूनून चढ़ा था नया टेबल लैंप लेने का। और वो भी लेखक स्टाइल में। जो किताबों या आपके सोफे के एक किनारे लम्बाई लिए होता है जिसके शिखर पर एक बल्ब लगा होता है और उस शिखर पर किसी ब्रिटिश प्रेमिका के सर पर लिया टोप जैसे इसकी रौशनी को उसके सुंदर चेहरे की तरह प्रकाश फैलाता लगता है ।
पुराना वाला स्टाइल तो अब पुराना ही कहलायेगा पुराना मतलब जो किसी वृद्ध बुढ़िया की तरह ऐसे झुका हुआ होता है जैसे उसकी पीठ में कूबड़ निकला हो। ऐसा टेबल लैंप बचपन में मैंंने रेडियों ठीक करने वाले की दूकान में देखा था जिसकी रौशनी में वो रेडियो की भीतरी तारों में टाँके लगते वक्त करता था। उसमे बल्ब भी पीली रौशनी छोड़ने वाला प्राचीन किस्म का बल्ब था। हाँ मुझे याद है कि चाचा जी भी ऐसे ही एक टेबल लैंप को गर्मियों में घर की छत पर रात के समय पढ़ने लिखने के वक्त लगा कर बैठा करते थे। नीचे शोर होता और वो एक लम्बी तार जो नीचे के प्लग से ऊपर तक जा सकती थी, से टेबल लैंप का तार जोड़ देते और छत के अँधेरे में ये एक प्रकाश पुंज की तरह जल उठता। सिर्फ सामने रखी किताब कॉपी इसकी रौशनी में नहा जाती और चाचा अपनी बी ए की अंग्रेजी ग्रामर को उसमे पढ़ते या ट्रांस्लेशन करते। कई बार वे इस किताब में एक और किताब रख कर पढ़ते थे, शायद वे मनोहर कहानियां रही होगी उनकी देखा देखि मुझे भी टेबल लैंप की रौशनी में पढ़ने का शौंक चर्राया। मैं ज्यादातर अपनी कॉमिक्स उनके पास बैठकर पढता था।ये अलग बात है कि पिता जी के छत पर आते ही किताब अंग्रेजी या विज्ञान विषय की हो जाती।
फिर यूँ हुआ कि दसवीं कक्षा आ गई। पड़ोसियों का लड़का बारहवीं की परीक्षा दे चूका था और एम् बी बी एस के टेस्ट की तयारी कर रहा था शायद। जिस खिड़की में वो बैठकर पढ़ने लगा वो गली की तरफ थी। उसके मेज पर टेबल लैम्प जैसे दिन रात जगता था। उसने खेलना कूदना बंद कर दिया था, उसके मन बाप उसे दुसरे लड़कों के खेलने बुलाने आने पर ये कहकर भेज देते थे कि वो अब बहुत कठिन परीक्षा की तैयारी कर रहा है और उसे दिन में लगभग दस बारह घंटे पढाई करनी होती है, इसलिए वो नहीं आ सकता। इसलिए उसे अब खेलने के लिए मत बुलाया करों। वो घर से बाहर निकलता तो सिर्फ कोचिंग जाने के लिए या कोई किताब कॉपी फोटो स्टेट करवाने के लिए। उसकी इस पढाई का प्रभाव पूरे मुहल्ले पर पड़ा या नहीं पर मेरे पिता जी पर बहुत पड़ा। पिता जी अक्सर मुझे कहते, "तुझे पता है परसो रात मैं जब बारह बजे जगराते से लौट रहा था, उस समय भी पड़ोसियों के कमरे की खिड़की से मैंंने देखा कि अँधेरे में टेबल लैंप जल रहा है और उनका लड़का पढ़ने में लगा है। सुबह चार बजे सैर को निकलते वक्त भी मैंंने उसे पढ़ते देखा था।...ऐसे ही तो मेहनत होती है, तब जाके कही डाक्टरी में दाखिला होता है। ..बेटे तेरी भी दसवीं की परीक्षा है, तू भी मेहनत कर। रात को काम से काम ग्यारह बजे तक पढ़ और सुबह चार बजे उठ जाय कर। मैं सैर ओर जाते समय तुझे जगा दिया करूंगा। अगर कहे तो पड़ोसियों के लड़के जैसा एक अलार्म ला देता हूँ, मेरे कमरे तक आवाज आती है सुबह चार बजे।"
मुझे पिता जी सुबह सुबह जगाकर जाते।बड़ी मुश्किल से अपनी प्यारी नींद को त्यागकर जाग तो जाता पर उसकी खुमारी से न उबर पाता। मैं किताब आगे रखकर सोया रहता। पिता जी लौटकर देखते तो खूब गलियां पड़ती और सुनने को मिलता फिर वही पड़ोसी के लड़के का जलता हुआ टेबल लैम्प और उसकी मेहनत का प्रवचन।
फिर उन्होंने एक दिन कमरे में बनी पड़छत्ती से ढूंढकर पुराना टेबल लैंप निकल लिया। उसे झाड़ पोंछकर उसमें नया बल्ब फिट कर दिया। मेरे लिए मेज कुर्सी पर बैठकर पढ़ने का पक्का नियम बना दिया गया। पिता जी सुबह उठते तो मुझे भी उठाकर हाथ मुंह धोकर पहले चाय पीने को कहते और फिर जूते पहन कर मेज कुर्सी पर बैठ कर पढ़ने के बाद ही सैर को जाते। अब मेरे मेज पर वही वृद्ध टेबल लैंप जलता और मैं मन मारकर पढ़ता। मुझे लगा जैसे मेरा टेबल लैंप के प्रति प्यार उन्ही दिनों बढ़ा।
कालेज यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में भी टेबल लैंप बहुत लोक प्रिय था। न केवल पढ़ने के लिए बल्कि रात को खिड़की से गुड नाईट करने के लिए। लड़को के हॉस्टल की एक तरफ लड़कियों का हॉस्टल था और खिड़कियां बिलकुल आमने सामने।
सबकी अपनी अपनी सेटिंग थी। लाइट जाने पर टोर्च और होने पर टेबल लैंप को जलाने बुझाने का क्रम उनके ख़ास सन्देश पहुंचा देता। यूनिवर्सिटी में सामान्य और इलीट किस्म के टेबल लैंप देखने को मिले। अब ये लोहे या स्टील के ही नहीं बल्कि प्लास्टिक, लकड़ी और सुंदर रंगों के डिजाइन में मिलने लगे। मुझे मेरे साथ वाले कमरे में रहने वाले मित्र का टेबल लैंप बड़ा अच्छा लगता था। वो एक बड़े पुलिस अधिकारी का बेटा था। उसके पास चैरी कलर का चमचमाता टेबल लैंप था। उसकी रौशनी भी बड़ी दूधिया थी, इम्पोर्टड था शायद ये टेबल लैंप। उसके प्रकाश में खुली हुई किताब ऐसे लगती जैसे किसी शायर की प्रेमिका अलसायी हुई चित पड़ी हो। मैंं अक्सर उसके कमरे में जाता तो उसकी रौशनी को देखकर जैसे कोई सुकून सा मिलता।
सिडनी शेल्डन का उपन्यास 'स्ट्रेंजर इन द मिरर ' इसके रौशनी में बैठकर पढ़ा और सुना था हम दोनों ने।
मुझे लगता है जब हम टेबल लैंप की रौशनी में पढ़ते है तो हम एक विशेष वर्ग से जुड़ जाते हैं और हमारे अपने मन में एक विशेष तस्वीर अपने लिए बन जाती है। जैसे ब्रांडेड कपडे पहनने से आदमी स्वयं को कई बात बाकी भीड़ से अलग महसूस करता है ऐसा ही टेबल लैंप की रौशनी में पढ़कर या बैठकर महसूस होता था मुझे। वैसे रौशनी के लिए तो कमरे में बल्ब और ट्यूब लाइट भी होती है पर जो मजा कमरे में अँधेरा करके टेबल लैंप जला कर बैठने में है वो मुझे किसी क्लासिक अंग्रेजी फिल्म का अनुभव देता है।
खैर नौकरी की दौड़ धुप और जिंदगी के पारिवारिक मामलों में उलझते हुए टेबल लैंप जैसी प्रिय वस्तु कब सभी जरूरतों से गायब हो गई पता ही नहीं चला। पढ़ना लिखना कभी कभार चलता ही रहा, कभी बैड पर आधे तिरछे बैठे या कुर्सी पर जमे हुए गर्मी सर्दी की धूप छाँव में,
पर शायद एक समृति किसी अवचेतन में टेबल लैंप को लेकर हमेशा दबी रही। अब बेटे को पढ़ने लिखने के लिए कुर्सी टेबल पर बैठते देखा तो एकाएक वही स्मृति दोबारा जाग गयी हो जैसे। और मैंं दोबारा टेबल लैंप खरीदने की तलाशा में जुट गया ,बेटे के लिए टेबल लैंप खरीदने से ज्यादा शायद मैंं अपने लिए, अपने किसी सपने को दोबारा जीने के लिए ऐसा करने जा रहा था शायद।
और यकीन मानिये शहर की एक ख़ास दूकान में, जहाँ बड़े सुंदर और कमाल के होम डेकोरेशन का सामान मिलता है, के भीतर जाकर जब मैंंने टेबल लैंप के बारे में पुछा तो दुकानदार मुझे सुंदरता के उस कोने में ले गया जहाँ टेबल लैंप सुंदर तस्वीरों के आगे फूल की तरह चमक रहे थे, जैसे उन्हें मेरे आने का बड़ी देर से इन्तजार था।