Prabodh Govil

Action

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टापुओं पर पिकनिक- 72

टापुओं पर पिकनिक- 72

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रात को दो बजे जब गाड़ी को गैरेज में रख कर आगोश घर में घुसा तो ये देख कर ठिठका कि उसके कमरे की लाइट जली हुई है।

उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी रात गए तक क्या मम्मी अभी तक जाग रही हैं? और अगर जाग भी रही हैं तो वो आगोश के कमरे में क्या कर रही हैं?

यही सब सोचता हुआ आगोश ऊपर आया तो कमरे से टीवी चलने की आवाज़ भी आ रही थी।

कमाल है, इस समय?

लेकिन जैसे ही आगोश ने दबे पांव अपने कमरे में घुस कर कदम रखा, वह ख़ुशी से उछल पड़ा।

उसके कमरे में, उसकी अनुपस्थिति में, उसके बिस्तर पर आराम से पैर पसार कर आर्यन बैठा टीवी देखते हुए उसका इंतजार कर रहा था।

- तू कब आया? कहकर आगोश आर्यन से लिपट गया।

- आया तो शाम को ही था पर यहां आकर पता चला कि तुम लोग तो मधुरिमा की शादी के रिसेप्शन में दावत उड़ा रहे हो... आर्यन ने कहा।

- अरे यार, तूने एक फ़ोन तो किया होता? और मधुरिमा के रिसेप्शन में तो तुझे भी आना ही चाहिए था, यहां किसी को पता ही नहीं था तेरे आने का। नहीं तो हम लोग क्या तुझे अकेले घर में बैठा छोड़ देते ? इस रिसेप्शन का तो ख़ास मेहमान होता तू। आगोश ने कुछ मुस्कुराते हुए जैसे उसकी फिरकी भी ली।

- मैं वहां आकर क्या करता? जब ख़ुद मधुरिमा और उसका पति ही यहां नहीं थे। मुझे दोपहर को ही सब कुछ पता लगा, तुम लोगों ने तो कुछ भी बताया नहीं। आर्यन कुछ सुस्त से स्वर में बोला।

- तुझे बताया किसने? और तू आया कब?

- कहा न, आज ही दोपहर की फ्लाइट से आया। आते ही सो गया। फ़िर फ़ोन से मनन से बात हुई थी मेरी। वो भी बाई चांस! उसने तो मेरे मम्मी- पापा को मधुरिमा के रिसेप्शन का निमंत्रण देने के लिए ही फ़ोन किया था पर मम्मी ने उसे सरप्राइज़ देते हुए उससे मेरी भी बात करा दी। आर्यन ने बताया।

- अरे यार, ये मनन भी... उसने तुझे नहीं कहा आने को? साले ने हमें भी नहीं बताया। आगोश ने मनन पर क्रोध निकालते हुए कहा।

- नहीं यार, उसकी कोई ग़लती नहीं, मैंने ही उसे मना कर दिया था और कह भी दिया था कि किसी को बताना मत। मेरे मम्मी- पापा भी वहां नहीं गए मेरी वज़ह से ही। फ़िर अभी बारह बजे के आसपास मैं यहां आया। मैं यही सोच कर आया था कि अब तो तू आ गया होगा।

- घंटे भर तक तो आंटी यहीं मेरे पास बैठी रही थीं, फ़िर उन्हें नींद आने लगी थी तो मैंने ही उन्हें जाकर सोने के लिए कह दिया। मैं तेरा इंतजार करने लगा। मुझे मालूम था कि तू आयेगा तो सही चाहे कितनी ही देर हो जाए। आर्यन ने कहा।

- ओह, तो वो नीचे तेरी गाड़ी खड़ी है? मैंने आते समय देखी तो थी, पर ये सोच कर ध्यान नहीं दिया कि डैडी के किसी काम से कोई आया होगा। इस बार तू आया भी तो कई महीनों के बाद है। आगोश ने कहा और दोस्त के साथ बैठ कर बातें करने के लिए जाकर झटपट कपड़े बदलने लगा।

कपड़े उतार कर उसे अलमारी की ओर लपकते देख कर आर्यन बोला- रहने दे, रहने दे, आंटी मुझे कॉफ़ी पिला गई हैं। और तू भी तो पार्टी से ही आ रहा है। ठंड रख। बैठ जा आराम से। आर्यन ने उसे शराब की बोतल निकालते देख कर कहा।

- यार महीनों बाद तो तू आया है, आज तो मैं रुक नहीं सकता... कहता हुआ आगोश फ्रिज में बर्फ़ टटोलने लगा।

आर्यन कुछ अधलेटा सा हो गया।

आगोश के इंतजार में वो आगोश की वार्डरोब से टीशर्ट और शॉर्ट्स निकाल कर पहले ही पहन चुका था। उसने टीवी ऑफ़ किया और बिस्तर पर बैठ गया।

कई महीनों के बाद मिले थे दोनों जिगरी दोस्त। इस बीच यहां भारी उथल- पुथल हुई थी। क्या- क्या घट गया था। ढेरों बातें थीं दोनों के पास, पूछने और बताने के लिए।

लेकिन शुरुआत हुई दांतों से सुनहरे ढक्कन को खोलने से ...

केवल गिलासों से ही नहीं, दोनों ने सीने से सीना टकरा कर चीयर्स किया और एक - एक घूंट के साथ- साथ इस बीच घटी बातें बुलबुलों की तरह एक दूसरे के हलक में जाने लगीं।

गहरी गाढ़ी रात ने न जाने कितनी देर बाद उनकी पलकों को सहला कर बंद किया।

अगली सुबह सूरज के सातों घोड़े एक - एक करके आसमान में अपने- अपने रथ खींचते हुए चले आए मगर दोनों मित्रों की न तंद्रा टूटी न निद्रा।

हर आधे घंटे बाद मम्मी आगोश के कमरे में आकर झांक जाती थीं और फ़िर उन लोगों को अब तक जगा हुआ न पाकर अकेले ही अपने लिए बेडटी बनवा लेतीं। सुबह से तीन बार चाय पी चुकी थीं।

रसोई में युद्ध स्तर पर नाश्ते की तैयारी चल रही थी पर दोनों योद्धा किसी जंग में हार कर पस्त पड़े सैनिकों की भांति बिस्तर पर पड़े थे।

सच में इस बार तो बहुत ही दिनों के बाद आया था आर्यन। और आगोश भी तो अब घर में कितना टिकता था? उसकी मम्मी के लिए तो जैसे वक्त को बांध कर रखने के ये ही अवसर होते थे। बाक़ी के दिनों में तो वक्त ही उन्हें नचाता था।

शाम होते ही दोनों शहर की चहल- पहल से दूर लॉन्ग ड्राइव पर निकल गए।

आर्यन अब बड़ा और पॉपुलर स्टार बन चुका था इसलिए उसके साथ सार्वजनिक जगहों पर पहचान लिए जाने की संभावना रहती थी। बातों में खलल न पड़े ये सोच कर दोनों सुदूर वीरानों में निकल जाते।

आगोश ने भी अपनी कंपनी, व्यवसाय और योजनाओं के बारे में आर्यन को विस्तार से बताया।

आर्यन आंखें फाड़े चुपचाप सब सुनता रहा जब आगोश ने उसे मनोरमा की शादी और जापान में उसका घर बस जाने के बारे में बताया।

कार एक जगह सड़क के किनारे खड़ी करके दोनों अब पैदल ही घूमते हुए बातें कर रहे थे। आगोश कभी - कभी जब जापान के अपने दौरे के बारे में आर्यन को कुछ बताने लगता तो आर्यन चलते- चलते उसका हाथ पकड़ लेता था।

आगोश ने जैसे ही तनिष्मा का नाम लिया आर्यन झटके से उससे हाथ छुड़ा कर सड़क के दूसरे किनारे पर जाकर मुंह फेर कर खड़ा हो गया।

आगोश बोलता - बोलता रुक गया। उसने खड़े होकर कुछ प्रतीक्षा की।

आगोश ने सोचा कि शायद आर्यन सड़क के दूसरी ओर कुछ दूर जाकर पेशाब करने के इरादे से खड़ा हो गया है।

पर जब कुछ देर हो गई और आर्यन वापस न लौट कर उसी तरह पीठ फेरे खड़ा रहा तो आगोश का ध्यान गया।

- ए, क्या हुआ?

आर्यन कुछ नहीं बोला, पर उसी तरह खड़ा रहा।

अब आगोश का माथा ठनका। वह कुछ लंबे - लंबे डग भरता हुआ आर्यन के नज़दीक पहुंचा।

आगोश हैरान रह गया। आर्यन वहां खड़ा - खड़ा रो रहा था।

केवल आंसू ही नहीं बह रहे थे बल्कि आर्यन हिचकियों से लगातार ज़ोर से रोए जा रहा था।

आगोश ने उसका हाथ पकड़ कर खींचा और उसे अपने से सटा लिया।

आगोश को अहसास हुआ कि उसने बिना किसी भूमिका के नासमझी में आर्यन के सामने तनिष्मा का जो जिक्र कर दिया था उसी से आर्यन विचलित हो उठा।

अब मंथर गति से लौटते हुए दोनों वापस पलट कर कार के पास आ रहे थे।

आगोश ने आर्यन से कहा- मेरे ऑफिस का अभी तक फॉर्मल उदघाटन नहीं हुआ है, वो तो तुझे ही करना है। बता अब तुझे कब समय मिलेगा, तुझे जापान लेकर चलना है।

आर्यन की आंखों में चमक आ गई।

आर्यन को चुप देख कर आगोश फ़िर बोल पड़ा- तू डेट देगा तभी फ्लाइट की बुकिंग कराऊंगा।

कार में बैठते - बैठते आर्यन बोला- क्या दिखाएगा मुझे जापान में ले जाकर?

आगोश चुप हो गया।



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