तस्वीर वाली लड़की
तस्वीर वाली लड़की
शहरयार अपने घर में सबसे बड़े बेटे हैं और अपनी अम्माँ के बहुत लाड का बेटे है। अभी ग्रेजुएशन के बाद घर के हालात थोडे़ ठीक नहीं थे तो एम. ए. प्राइवेट से करते हुए गोल्ड मेडल लिस्ट हुए।
शहरयार को प्रोफेसर का आफर आया लेकिन उसका लक्ष्य था पब्लिक कमिशन सर्विसेज की तैयारी। अब मसला था सरकारी दफ्तर में क्लर्क की पोस्ट छोड़ते हैं घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, सरकारी नौकरी करते हूए ही एम. पी.एस.सी. में सलेक्ट हुए।
शहरयार ने पी.एस. सी. के मेन एग्ज़ाम, फिर इंटरव्यू सब पास किए और आडिटर की पोस्ट पर उनका सलेक्ट हुए।
अपनी अम्मा को बहुत प्यार करते हैं। कुछ दिनों में ही घर में अच्छे हालात हो गए। शहरयार के अच्छे घरों से रिशते आने लगे, उसके अब्बू के बड़ेभाई और बहनों ने अपनी बेटियों की शादी के लिए दबाव डालने लगे की शहरयार से हमारी बेटी ले लो।
शहरयार के सीनियर की शादी हुई उसमें शरीक़ नहीं हो पाया नई नौकरी थी ,बाहर पोस्टिंग थी छुट्टी का मसला था। जब वो घर आया छुट्टी में तो आरिफ़ अपने सीनियर के घर मिलने गया। शहरयार की ख़ाला का देवर भी था। आरिफ़ और उसकी वाइफ ने एल्बम दिखाया।
शहरयार की एक तस्वीर पर निगाह अटक गई वो सारी तस्वीरें देखने के बाद अपने दोस्त से इजाज़त लेकर वो तस्वीर निकाल लेता है, एक ग्रुप तस्वीर में एक लड़की बहुत सी लड़कियों के बीच अपना दुप्पटा संभाल रही है और इस ही बीच तस्वीर खींच जाती है।
बस शहरयार उन सब घर वालों पूछता है "आरिफ़ दोस्त कह देता है मैं तो दुल्हा बना घोड़ी पर था पीछे फोटोग्राफर किस की तस्वीर ले रहा है मुझे क्या❓ मालूम।
अब शहरयार कई लोगों से जिन्होंने शादी में शिरकत की थी सबसे यही सवाल आपकी रिश्तेदार है क्या❓ बहुत मना करते हैं। शहरयार की छुट्टियां ख़त्म हो जाती है फिर कई महीनों बाद अपने घर आता है, ख़ाला से मालूमात करता है आपने पता किया कौन है वो ? उन्हीं दिनों ख़ाला की ननद आई होती है उनको भी, शहरयार तस्वीर दिखा कर पूछता है इस बीच में लड़की खड़ी है पहचानती हैं आप ?
वो कहती है ये तो मेरी छोटी ननद है, अभी ग्रेजुएशन कर रही है। घर सात भाईयों में सबसे छोटी है। तुम क्यों तलाश कर रहे है। शहरयार की ख़ाला और दोस्त की वाइफ छेड़ती है भई ये दीवाना हुआ जा रहा है , जबसे ये तस्वीर देखी है हर कोई से तो पूछताछ कर ली है इन "जनाब" ने ख़ाला (मौसी) ने कहा मेरी तो जान ही खा गया ये लड़का।
शहरयार अब कुछ दिनों बाद *ख़ाला और ख़ालू*से आकर कहता है आप दोनों अम्मी से बात करें मैं इस लड़की से शादी करना चाहता हूँ।
अब ये मसला आप हल करें वरन् मैं कहीं ओर शादी नहीं करूँगा, ख़ाला बड़ी पशोपेश में इधर उनका लाडला "शहरयार" और ननद की सुसराल का मामला, क्या❓ मालूम वो करना चाहें, न चाहें।
वैसे शहरयार की सर्विस अच्छी थी ख़ाला ने ननद की सास से अपने भांजी का रिश्ता दिया के हमारी बड़ी बहन चाहती हैं *फरिहा*से उनके बेटे की शादी करना आप बताएं फरिहा की अम्माँ ने कहा मैं अपने सब घर के मेंबर्स से मशवरा कर के आपको जवाब दूंगी।
फरिहा को कुछ भी ख़बर न थी शहरयार के घर की लेडिज़ ने आरिफ़ की शादी में देख लिया था "फरिहा" को।
मगर शहरयार के अब्बू ये नहीं पसंद कर रहे थे, उनका दबाव था मेरे रिशतेदार में करों, घर में बड़ा टेन्शन था अम्मी अपने लाडले की पसंद पर इतफ़क़ रखतीं थीं के नहीं शहरयार को जहाँ पंसद है वहीं करेंगे। आख़िर शहरयार और अम्मी की जीत हुई।
इधर फरिहा अपनी लास्ट ईयर के एग्ज़ाम की तैयारी कर रही थी उसको कानों-कान ख़बर नहीं थी कि कहीं उसके रिश्ते की बात फाइनल हो रही है, उन्हीं दिनों बड़ेभाई का शहर से बार-बार आना-जाना लगा हुआ था। फरिहा को लगा अगले महीने *मंझले भाई*की शादी की तारीख़ फिक्स हुई है।
फरिहा मंझले भाई की शादी में मसरूफ़ हो गई, सारे रिश्तेदार इकट्ठा हुए भाभी के भाई-भाभी भी आए हुए थे उन्होंने अम्माँ और भाईयों से सलाह-मशवरा कर के अगर आप लोग चाहें तो *फरिहा और शहरयार* मंगनी की रस्म कर देतें है, आपके मंझले भाई के वलिमे भी हो जाएगा और फरिहा की मंगनी भी, आप कहे तो उन लोगों को बुला लेते हैं।
आनन-फानन में शहरयार और उनके घर वाले दूसरे दिन वलिमे में आ गए घर में कानाफूसी चल रही थी , फरिहा की कज़िन को सब ख़बर थी।
शाम को भाभी ने फरिहा को एक भारी सूट दिया, कहा वलिमे में ये पहन लो, फरिहा ने कहा नहीं भाभी मैं अपना सूट पहन लूंगी। भाभी ने समझाया आज तुम्हारी मंगनी है। लड़कें वाले आ गए हैं।
फरिहा सुन्न हो गई परेशान सी अपनी अम्माँ के पास गई पूछा अम्माँ भाभी ये जो कह रही हैं सच है क्या❓
मैं अभी इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहती अभी मेरी पढ़ाई तो पूरी हुई नहीं, अम्माँ ने बस दो टूक सा जवाब दिया बड़ेभाई और हमनें जो फैसला किया है बहुत सोच-समझ कर लिया है। ,शादी तो करनी हे ना तुम्हारी ...!
फरिहा बड़ों के फैसले के आगे ख़ामोश हो गई। शाम को शहरयार के घर की लेडिज़ ने मंगनी की रस्में की पुराने ज़माने में लड़का -लड़की को नहीं दिखाया जाता था। आदमियों में भाईयों ने रस्म अदा कर दी जो भी लड़के को देना था।
सब घर के लोग आपस में ख़ुब हंसी मजाक चल रहा था, मगर फरिहा गुमसुम सी ख़ामोश थी उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।,
शहरयार भाभी के रिश्तेदार भी थे, भाभी से शहरयार ने एक बार फरिहा से मिलवा देने की ज़िद की, भाभी ने कहा हमारे सुसराल वाले पुराने ख़्यालों के है। मगर शहरयार कहाँ मानने वाले थे। बार-बार रिक्वेस्ट की तो भाभी ने अपने हसबैंड से बात की शहरयार *फरिहा से मिलना चाहता है अब क्या करें❓
भाई ने कहा कोई बुराई नहीं है। हमारे सरकारी क्वाटर पर में अम्माँ से इजाज़त लेकर फरिहा को यहाँ ले आऊंगा तुम शहरयार को बोल देना कब प्रोग्राम है उसका आने का बता दे।
कुछ ही दिन बाद शहरयार हाज़िर थे, भाभी के घर। भाई अम्माँ के पास आए और कहा अम्माँ फरिहा को उसकी भाभी की तबियत ख़राब है दो-एक दिन के लिए भेज दें गांव से ज़्यादा दूर नहीं था, भाई बाइक पर लेकर आ गए, बाहर से ही छोड़ कर आफिस चले गए।
फरिहा घर में अंदर आई तो भाई के घर में एक नए इंसान को देख कर थोड़ा सा सकपकाई पता नहीं कौन है भाभी ने जैसे ही **शहरयार **कहा फरिहा घबरा गई 'अरे' ये तो वो ही लड़का है जिससे मंगनी हुई है वो झट से भाभी के पीछे छुपा गई।
अब फरिहा की हालत देखने लायक थी, वो शर्म से लाल हुई जा रही थी और शहरयार था कि एक टक्कर टकटकी बांध कर देखें जा रहे थे।
थोड़ी देर बाद फरिहा अंदर कमरे में छुप गई, वहाँ भी शहरयार आ गए। बात करने की कोशिश करने लगे,
मैंने कहाँ -कहाँ नहीं तलाशा ,हम भी बड़े ज़िद्दी थे ढ़ूंढ़ कर ही माने। हमारा प्यार ऐसा ही है। मैं तस्वीर अपने ख़्याबाें, ख़्यालों में बहुत बात कर ली मैं तुम्हें हक़ीक़त में देखना चाहता था। मेरी ख्वाबों की मलिका कैसी होगी... मुझे छेड़ते हुए "हूँ.".. तुम तो भेंगी हो
फरिहा ने तो न बोलने की क़सम खा रखी थी कोई जवाब नहीं दे रही थी। शहरयार ने भाभी-भाई हम सब के साथ खाना खाया ख़ुब बातें की बीच-बीच में फरिहा को भी सताया। क्या❓ बाजी आपकी ननद गुंगी है क्या बात ही नहीं करती है।
शहरयार जितना बातुनी था, फरिहा उतनी ही ख़ामोश तबियत थीं। शाम को भाभी से इजाज़त लेकर थोड़ी देर घुमने ले जाने की कहने लगे , फरिहा जाने को तैयार नहीं थी, शहरयार कहने लगे खा नहीं जाऊंगा। भाभी ने अकेले में समझाया चली जाओ, तुम्हारी शादी होने वाली है, उससे सिर्फ तुम्हे जानना चाहता है और बातचीत करना चाहता है।
फरिहा घूमने गई तो, शहरयार ने अपने और अपने घर के बारें में और अपनी अम्मी को कितना ज़्यादा चाहते हैं। पूरे घर को साथ लेकर चलना चाहते हैं अपना " हमसफ़र "तुम्हें चुना है। सिर्फ एक तस्वीर को लेकर में दीवाना हो गया था, तस्वीर के बारे में नहीं पूछोंगी हमें क्या❓
पसंद आई बस.....! तुम्हारी सादगी
फरिहा जैसे-तैसे हां -हूँ में ही जवाब दे रही थी। आख़िर में शहरयार और फरिहा घर लोटने लगे ,शहरयार ने फरिहा से हर हफ्ते लेटर लिखने का वादा लिया क्योंकि अगर नहीं लिखा तो " अपने राम"का लव लेटर तुम्हारे नाम से तुम्हारे अम्माँ के घर पहुँच जाएगा, तुम तो जानती हो तुम्हारी एक तस्वीर को लेकर हमने तुम्हें ढ़ूढ़ निकाला। तो लेटर क्या❓ हम ख़ुद तुमसे मिलने आ जाएंगे।
शहरयार अपने शहर लोट गए, मगर फरिहा को बहुत सी बातें सोचने पर मजबूर कर गए, आख़िर में फरिहा भी शहरयार कायल हो गई
फरिहा भी एक बार मिल लेने से रिलेक्स हो गई और शहरयार के प्यार में खोने लगी। उसकी लाइफ के वो "दो दिन" फरिहा की लाइफ बदल गई। वो शहरयार की साफगोई और प्यार का सच्चाई देखकर फरिहा इम्प्रैस हुई।
कुछ दिनों बाद फरिहा के गाँव वाले घर के पते पर लेटर आया , डाकिये से लेटर लिया, फरिहा से बड़ेभाई ने खोला अम्माँ ने पूछा किसका है ये ख़त भाई ने कहा शहरयार का है। लेटर भाई और अम्माँ के नाम था, फरिहा की तो जान ही मुंह को आ गई कहीं मेरे लिए न हो अम्माँ तो मार ही डालेंगी। सब घर वालो की खैर-ख़ेरियत पूछी थी। फरिहा की जान में जान आई।
कुछ दिनों बाद शहरयार की ख़ाला आई तो उनके साथ लेटर भेज दिया फरिहा के नाम उसमें लिखा था हमारा एक लेटर तुम्हारे घर पहूँचा तो साधे से हमारे लिए लेटर भेज दिया, देखो बस तुम्हारे ख़त का ही सहारा है अगर तुमने ख़त नहीं लिखने सोचा भी न तो मैं सीधा तुम्हारे घर मिलने आ जाऊंगा, फिर तुम अपनी "हिटलर अम्मा" को ख़ुद जवाब देना।
शहरयार की यही अदा बेबाकपन पसंद आया, फरिहा बहुत ख़ुश हो गई प्यार भरा लेटर पा कर।
शहरयार ने लिखा था तुम्हारी तस्वीर को देख कर हम फंस गए मामला जमा नहीं !
बोलती हो तो ऐसा लगता है, सुनिए एक शेर अर्ज़ है
"सब्हों की नम ओस सी, नाज़ुक इतनी की ओंस की बूंदों से भी झुक जाए, जैसे यमुना किनारे साहिल से मिले
शहरयार और फरिहा की ये कहानी सच्ची घटना है।
अब भी उनकी शादी को 40इयर हो गए हैं।