तनख्वाह
तनख्वाह
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मां ! चलो तैयार हो जाओ, मुझे आपके लिए नई साड़ी खरीदनी है। अतुल ने अपनी मां शारदा जी से कहा...
नई साड़ी की क्या जरूरत है, मेरे पास पहले से ही बहुत सारी साड़ियां पड़ी हुई है।
मां वो सब साड़ियां तो पुरानी हो गई हैं, मुझे आपके लिए नई नई साड़ियां खरीदनी है ।अब आपका बेटा इतना काबिल तो हो ही गया है । मां मैं अब आपको किसी की उतरन नहीं पहनने दूंगा।
बेटा ! शारदा की आंखें करूणा से छलछला गई।
शारदा तैयार होकर बेटे के साथ साड़ी की दुकान पर पहुंची। मां बेटा दोनों साड़ी दिखाने वाले के सामने बैठ गए। सामने साड़ी दिखाने वाले आदमी बूढ़ा था, वो बहुत धीरे धीरे साड़ियां दिखा रहा था।
साड़ी देखते देखते शारदा की नजर उस बूढ़े पर रूक गई। शारदा सकपका गई और झट से उठ कर खड़ी हो गई।
क्या हुआ मां ? अतुल ने पूछा
कुछ नहीं ! तबियत ठीक नहीं लग रही हैं, मुझे घर जाना है।
पर मां..… साड़ी.. अतुल ने कहा
बाद में ले लूंगी।
घर आकर शारदा अपने कमरे में आंखें बंद कर लेट गई और अपने अतीत को याद करने लगी....
मां ! मैं स्कूल जा रहा हूं।अतुल बोलता हुआ घर से निकल गया।
ठीक है बेटा जा, संभल कर जाना। आते जाते कोई कुछ खाने पीने को दें तो मत लेना। हां मां ठीक है...
शारदा भी उसके जाने के बाद अपने काम पर चली गई। शारदा जो घरों में खाना बनाने का काम करती थी। शारदा पढ़ी लिखी नही थी, पर उसे खाना बनाना बहुत अच्छे से आता था। उसकी मां बचपन से ही उसे अपने साथ काम पर लेकर जाती थी। शारदा अपनी मां के काम में हाथ बंटाती फिर रसोई में बैठकर मेम साहब को खाना बनाते हुए देखती।
केवल देखने से ही शारदा को मसालों की इतनी समझ हो गई कि वो भी अपने घर जाकर खाना बनाने की कोशिश करती। उसी तरह देखते देखते शारदा बहुत कुछ बनाना सिख गई थी।
शारदा अब बड़ी हो गई थी तो मां बाप ने अपना बोझ कम करने के लिए 17 की उम्र में उसकी शादी एक शराबी से कर दी।
शादी के कुछ दिन बाद ही शारदा गर्भवती हो गई और अतुल का जन्म हुआ। अतुल के जन्म के बाद शारदा का शराबी पति किसी और के साथ रहने लगा और उसने शारदा को छोड़ दिया।
पति के चले जाने के बाद शारदा अपना और अपने बच्चे का पेट पालने के लिए झाड़ू-पोछा का काम करने लगी। फिर धीरे-धीरे उसने एक दो घरों में खाना बनाने लगी। उसके हाथ का बनाया हुआ खाना लोगों को पसंद आने लगा । उसके बाद शारदा ने झाड़ू-पोछा छोड़ खाना बनाने का काम करने लगी ।
उसे इस काम के लिए अच्छे पैसे मिलते थे। शारदा ने बेटे का दाखिला अच्छे स्कूल में करा दिया। वो बेटे को पढ़ा लिखा कर उसके पैरों पर खड़ा करना चाहती थी।। शारदा बेटे को बहुत प्यार करती, उसकी हर जरूरतों को पूरा करती
अतुल बड़ा हो गया था । वो अपनी मां की मेहनत कै समझता था। मां को दिन रात काम करता देख उसके अंदर भी कुछ करने के जज्बे ने घर कर लिया था।
मां की कोशिश और अतुल की मेहनत रंग लाई । अतुल ने बैंक की परीक्षा पास कर ली थी, बस एक साक्षात्कार बाकी था। अतुल को उम्मीद थी कि ये नौकरी उसे जरूर मिलेगी।
अतुल की उम्मीद सही साबित हुई और सरकारी बैंक में उसकी नौकरी लग गई। मां, बेटे की खुशी का ठिकाना नहीं था ।
आज अतुल की पहली तनख्वाह आई थी, जिससे वो अपनी मां के लिए नई साड़ी खरीदना चाहता था। आज साड़ी की दुकान पर जिस आदमी को शारदा ने देखा वो कोई और नहीं उसका पति था, जो वर्षों पहले उसे और उसके बेटे को छोड़ कर चला गया था। उसे इतने सालों बाद अचानक देख शारदा घबरा गई थी और इसलिए वापस आ गई।
तभी मां ! मां ! ढूंढता हुआ अतुल मां के पास आया । उसकी आवाज़ सुनकर शारदा उठ कर बैठ गई।
क्या हुआ मां ? तबियत तो ठीक है।
हां बेटा !
तो अचानक आप क्यों आ गई।
कुछ नहीं बेटा! बस ऐसे ही....
मां तुम कुछ छिपा रही हो।
नहीं बेटा..
मां बताओ न
बेटा वो साड़ी की दुकान में हमें जो साड़ी दिखा रहे थे वो तुम्हारे पिता जी थे ।
मां ... ये क्या कह रही हो!
हां बेटा सच कह रही हूं।
अतुल चुपचाप वहां से चला गया। अगले दिन अतुल फिर मां को लेकर उसी साड़ी की दुकान में गया और वापस उसी बूढ़े के सामने बैठ गया। आज वो बूढ़ा भी सामने बैठी शारदा को देख परेशान लग रहा था। अतुल ने मां के लिए एक साड़ी पसंद की और पैक कराई।
अतुल ने मां से कुछ कहा और वहां से उठकर चला गया। तब तक शारदा वहीं बैठी रही। सामने बैठा बूढ़ा उससे नजरें चुरा रहा था। थोड़ी देर बाद जब अतुल आया तो उसके हाथ मेरे एक पैकेट था
उस पैकेट को उसने उस बूढ़े आदमी के हाथ में दिया और कहा - आप शायद हमें पहचान नहीं रहे होंगे लेकिन मां ने आपको पहचान लिया क्योंकि मां ने कभी आपको भूला ही नहीं था।
मैं अतुल हूं, आपका बेटा!
ये मेरी मां है शारदा...
उस आदमी की नजरें झुकी हुई थी। अतुल ने फिर कहा... मुझे बैंक में नौकरी मिली है । कल ही मुझे मेरी "पहली तनख्वाह" मिली है। अपनी पहली तनख्वाह से मैं अपनी मां के लिए साड़ी खरीदना चाहता था।
ये लीजिए ! इसमें आपके लिए नए कपड़े हैं, जरूर पहनिएगा। आपने तो मेरे जन्म के बाद पिता और पति होने के कोई भी कर्तव्य नहीं निभाए । लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता। "आज अपनी पहली तनख्वाह से मैंने मां के लिए साड़ी खरीदी और आपके लिए भी नए कपड़े लिए।
उस समय दुकान में ज्यादा भीड़ तो नहीं थी, लेकिन जितने लोग भी मौजूद थे वे सब उनकी बातें सुन रहे थे
बूढ़े आदमी को कपड़े का पैकेट हाथ में देकर, अतुल अपनी मां को लेकर वहां से चला गया। बूढ़ा आदमी उन दोनों को जाता हुआ देख रहा था । उसे शायद अपने किए पर पछतावा हो रहा था ,जै उसने वर्षों पहले किया था।
लेकिन अब कोई फायदा नहीं था क्योंकि कहते हैं ना
"पीछे पछताए होए क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत"