आप दोनों ने क्या किया है?

आप दोनों ने क्या किया है?

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"रोहन...रोहन...? ऑफिस जाते समय अपने पापा की दवाई की पर्ची लेते हुए जाना"।

"क्यों मां? इस बार की दवाइयां पापा लेकर नहीं आए हैं क्या? और मां ये सब काम न आप पापा से ही कराया करो। ये सब काम में पड़कर मैं अपना समय नहीं बर्बाद करना चाहता| ऐसे भी पापा दिनभर बैठकर टीवी देखते रहते हैं। उससे अच्छा घर का कुछ काम ही कर लेते"।

"बेटा पापा के घुटनों का दर्द आज-कल बढ़ गया है, जिससे उन्हें चलने फिरने में तकलीफ हो रही है। आजकल वो घर में दो कदम चल नहीं पाते दवाईयां लेने सीढ़ियों से नीचे कैसे उतरेंगे?"

रोज की तरह रोहन आज भी पैर पटकता हुआ गुस्से में ऑफिस के लिए निकल गया। उसकी मां सरला और उसके पापा अशोक वहीं बैठे उसे जाते हुए देख रहे थे। उसके जाने के बाद सरला अपने पति की तरफ देखने लगी| नज़रें मिलते ही दोनों की आंखें आंसूओं से डबडबा जाती हैं|

ये लगभग रोज की बात थी। जब भी मां रोहन से घर खर्च के लिए पैसे मांगती या कोई काम करने को कहती वो ऐसे ही गुस्सा करता। आए दिन बेटे के मुंह से ऐसी बातें सुन दोनों बहुत दुखी हो जाते थे। बेटे की बात सुनकर अशोक जी अपने आप को बेबस और लाचार समझते। लाचारी वश अशोक जी ने पत्नी की तरफ देखा और पूछा "सरला हमारा बेटा दवाई लाने के नाम पर इतना गुस्सा करता है क्या वो जीवन भर बूढ़े मां-बाप को अपनी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाएगा??

साल भर पहले तक अशोक जी एक केमिकल फैक्ट्री में सुपरवाइजर का काम करते थे। उनके दो बच्चे हैं , बड़ी बेटी कनक की शादी हो गई है और बेटा रोहन ग्राफिक डिजाइन का कोर्स कर एक कम्पनी में काम कर रहा है। अशोक जी ने दिन रात मेहनत कर के दोनों बच्चों को पाला था।बेटी जब शादी लायक़ हुई तो बेटी की शादी के नाम पर और बेटे की पढ़ाई के लिए उन्होंने फैक्ट्री के मालिक से कर्ज लिया था। बेटी की शादी के बाद उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था। आधे पैसे ब्याज के नाम पर कट रहे थे और आधे पैसों से किसी तरह घर चल रहा था। घर परिवार की चिंता ने अशोक जी को दिल का मरीज बना दिया था और उसी समय घुटनों के दर्द ने भी उन्हें इस कदर जकड़ा की वो चलने फिरने में भी असमर्थ हो गए ।फैक्ट्री में जाकर काम करना उनके लिए बहुत कठिन हो गया था। उम्र तो ज्यादा नहीं थी पर मानसिक तनाव ने अशोक जी को दिल और शरीर दोनों से कमजोर कर दिया था।

एक दिन पत्नी सरला ने कहा बेटे की अब नौकरी लग गई है इसलिए आप काम पर जाना बंद कर दो । फैक्ट्री मालिक से लिया हुआ कर्ज अब हमारा बेटा चुका देगा। पत्नी की बात मानकर अशोक जी ने नौकरी छोड़ दी थी । बेटे की जब नौकरी लगी तो उन्हें लगा बेटा कमाने लगा है तो मां बाप के दुःख कम हो जाएंगे। लेकिन नौकरी लगते ही रोहन के रंग ढंग ही बदलने लगे। नौकरी लगने के बाद घर की जिम्मेदारी रोहन के कंधों पर थी,पर रोहन अपनी जिम्मेदारियों को बोझ समझकर उठा रहा था।जिस इंसान से पिता के दवाईयों के खर्चे नहीं निकल रहे थे वो इंसान पूरा जीवन कैसे अपने माता-पिता की जिम्मेदारी उठाता। बेटे की पढ़ाई के समय अशोक जी ने फैक्ट्री से जो कर्ज लिया था वो कर्ज बीमारी के कारण अशोक जी चुका नहीं पाए थे। इसलिए बेटे की जब नौकरी लगी तो मां ने रोहन से पिता के कर्ज के बारे में बताया। कर्ज की बात सुनकर रोहन चिल्लाने लगा.... "जब पापा कर्ज नहीं चुका सकते थे तो क्या जरूरत थी उन्हें कर्ज लेने की। मेरी पढ़ाई के नाम पर पापा ने दीदी की शादी के लिए कर्ज लिया था और अब जब वो खुद कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो उस कर्ज को मेरी पढ़ाई के नाम कर दिया।! 

आप दोनों ने मेरे लिए किया ही क्या है?? और मैं अपना पूरा जीवन आप दोनों की तरह घुट घुट कर नहीं जी सकता । मेरे भी सपने हैं कुछ अरमान हैं जो मैंने अपने लिए देखे हैं और उन सपनों को मैं कर्ज की बलि पर नहीं चढा सकता। जब मेरा समय बदलने वाला है तो आप दोनों चाहते हैं कि उस कर्ज के आग में मैं अपना जीवन बर्बाद कर लूं।"ये बोलकर रोहन कमरे में सोने चला गया।


सरला जी जब कमरे में आई तो पति को चिंता में देख उनसे कहा आप चिंता मत करिए । आपने जो कर्ज लिया था वो आप ही चुकाएंगे.... मेरे पास जो मेरी शादी के गहने हैं जो बेटी की शादी में आपने बेचने नहीं दिए थे उस गहने को बेचकर हम उस कर्ज से मुक्त हो जाएंगे। 

हां सरला....तुम्हारे गहने बेचकर उस कर्ज से तो हम मुक्त हो जाएंगे पर अपने आने वाले बुढ़ापे का हम क्या करेंगे!! हमारा बेटा हमें जिम्मेदारी नहीं अपना बोझ समझता है और बोझ को तो कोई कभी भी उतार कर फेंक सकता है। अशोक जी ने दुःखी मन से कहा। ऐसा कुछ नहीं होगा रोहन के पापा...हमने अपनी जवानी जरूर अपने बच्चों के लिए जिए पर अपना बुढ़ापा हम अपने लिए जिएंगे। मैं कल ही रोहन से कह देती हूं कि वो हमारी चिंता न करें , हम अपना कर्ज भी चुका लेंगे और अपना बुढ़ापा भी अच्छे से गुजार लेंगे।

"मगर सरला ऐसा क्या सोचा है तुमने?" आश्चर्यचकित होकर अशोक जी पत्नी की तरफ देखते हैं।

"अरे अभी आप सो जाइए, कल बताती हूं"

अगली सुबह जब रोहन ऑफिस जाने लगा तो सरला जी ने उसे न नाश्ता दिया और न ही लंच दिया। रोहन ने नाश्ते और लंच के लिए पूछा तो सरला जी ने कहा "बेटा मैं और तुम्हारे पापा अब बूढ़े हो गए हैं, पापा से चला नहीं जाता और मुझसे भी अब ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रहा जाता। बेटा ऐसा करो तुम आज से बाहर ही खाना खा लेना। मेरा और तुम्हारे पापा का क्या है, हम तो कुछ भी खाकर पेट भर लेंगे।

हां बेटा एक और बात कहनी थी। तुम जिस कमरे में रह रहे हो वो खाली कर देना और अपना सामान मेरे कमरे में रख देना और बाहर टीवी वाले कमरे में सो जाना क्योंकि तुम्हारा कमरा किराए पर लगाना है। हम नहीं चाहते कि हमारे कारण तुम्हें कोई तकलीफ़ हो| अब से तुम हमारी दवाइयों की चिंता भी मत करना। उस कमरे के किराए से जो आएगा हम उसी में अपना गुज़ारा कर लेंगे।" मां की बात सुनकर रोहन को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मां ऐसा कह सकती है।

"ये क्या बोल रही हो मां, आप पागल तो नहीं हो गई हैं? मैं आपका बेटा हूं और कोई अपने बेटे के साथ ऐसा करता है क्या?" "क्यों नहीं कर सकता बेटा? जब बेटा अपने माता-पिता को अपनी जिम्मेदारी नहीं बोझ समझ सकता है, उनके की गई परवरिश पर सवाल कर सकता है कि आप दोनों ने हमारे लिए किया ही क्या है? जब हमने तुम्हारे लिए कभी कुछ नहीं किया तो अब क्यों करें? तुम अपने जीवन में खुश रहो और हम अपने जीवन में खुश रहेंगे।"



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