तमाशा देश का
तमाशा देश का
आज फिर तमाशाबीन अपने-अपने घरों की खिडकियों से झाँक रहे थे। उस संयुक्त परिवार में अक्सर कोई न कोई नाराज़ हो जाता, कभी कोई भाई कहता कि मैं केवल इसी थाली में खाना खाऊंगा, क्योंकि वह अपेक्षाकृत मज़बूत थी तो कभी कोई बहन कहती कि मैं कपड़े नहीं धोउंगी। आज उनके घर के बाहर खड़े सुरक्षा प्रहरी को लेकर लड़ाई हो रही थी।
एक भाई चिल्ला रहा था, "सुरक्षा प्रहरी ने हमारे घर में चोरी होने से बचाया है, आजकल इसको तनख्वाह मैं दे रहा हूँ तो देखो कितना अच्छा काम कर रहा है।"
दूसरा भाई भी तल्ख़ स्वर में बोला, "कितने ही सालों से मैनें इसे खिलाया-पिलाया है, और पहले भी कितनी बार चोरी होने से बचाई है, तब तुम कहाँ थे ?"
अब पहले के बच्चे आ गये, वो दूसरे से कहने लगे, "तुमने सुरक्षा प्रहरी की जब बन्दूक खरीदी तब मूल्य से भी ज़्यादा धन लिया था, भूल गए ?"
तब दूसरा फिर बोला, "और तुम तो उसके नाम पर दलाली खा रहे हो"
"और तुम्हारा खून... उसमें ही दलाली मिली है..." पहला बोला।
वहीं दीवार पर एक चश्मे वाले गंजे आदमी की तस्वीर टंगी थी, जिसकी लगभग रोज़ सभी बड़े लोग पूजा करते थे, लेकिन बात कोई नहीं मानता था। कुछ बच्चे तो गालियाँ भी देते थे, वह तस्वीर हिलने लगी और अपने साथ टंगी फांसी की तख्ती पर हँसते हुए खड़े एक आदमी की तस्वीर से कहने लगी, "इतने बुरे हालात तो तब भी नहीं थे, जब यह मकान गिरवी था।"
दूसरी तस्वीर बोली, "तब हमारे विचारों में भिन्नता थी और अब इनके दिलों में नफरत और धन की महत्वाकांक्षा।"
तमाशबीन खुश थे, आपस में लड़ने से निकम्मों की संख्या बढ़ रही थी और तमाशबीनों की दुकानों की आमदनी।
