तीसरा प्रतिशोध शहरी घुमक्कड़

तीसरा प्रतिशोध शहरी घुमक्कड़

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"अम्मा मुझे कुछ देशी लडकिया चाहिए, इन बंगाली और पहाड़ी लड़कियों से हम लोगो की नस्ल खराब हो रही है।" महिपाल ने ६० साल की प्रभा को घूर कर कहा। 

"लल्ला देशी लडकिया सस्ती नहीं मिलती है, एक का १० लाख दो तो मैं कोशिश करू।" प्रभा ने लापरवाही के साथ कहा। 

"अम्मा इतना पैसा कोई न देगा।"

"तो बंगाली और पहाड़ी लड़कियों से काम चलाते रहो।"

"एक पार्टी है जो देशी कमसिन लड़की के लिए १० लाख खर्च करने को तैयार है। कोई लड़की है ?

"तू बिलकुल निकम्मा है महिपाल, पिछले हफ्ते अजय वो लड़की बस पाँच लाख में ले गया और तू अब नयी पार्टी ले कर आया है।"

"अम्मा कोई राईस है बस मौज मस्ती के लिए लड़की ढूंढ़ रहा है।"

"तुझे कहाँ मिला ?"

"लीला के अड्डे पर मिला था, लेकिन वहाँ तो सब खाई खेली है वो उसे अच्छी नहीं लगी, मैंने उसे पटा रखा है; अगर वो पिछले हफ्ते वाली मिल जाये तो दोनों अच्छा कमा लेंगे।"

"कोई लफड़ा तो नहीं है ? कोई पुलिस वाला तो नहीं ?

"अम्मा सारी पुलिस अपनी जेब में है, ये तो मुझे कोई घुमक्कड़ लगता है जो मौज करने यहाँ आया है। अजय भाई से बात करके देखो ना, बस एक रात के लिए ही तो वो लड़की चाहिए।"

"ना बाबा ना, वो गुस्सैल आदमी है। वो लड़की तो अब तक इंडिया से बाहर चली गयी होगी। बेकार में मुझे चार गाली सुना देगा। 

"अम्मा पाँच उसे दे देंगे पॉँच हम दोनों के।"

"पहले कुछ एडवांस लेके आ, फिर मैं बात करू।"

"पाँच लाख एड्वांस लाया हू, देख।" उसने बुढ़िया को नोटों की झलक दिखाते हुए कहा। 

"पक्का कोई लफ़ङा नहीं है ?"

"शहरी घुमक्कड़ है अम्मा, अय्यास है, पैसा उसके पास है। कर न अजय भाई से बात।"

बुढ़िया उसे घूरती रही, फिर थोड़ा दूर जाकर फ़ोन पर किसी से बात की।"

"वो तैयार है, लेकिन दस लाख खुद लेगा।"

"तो हमें क्या बचेगा ?"

"जो १० दे सकता है, वो १५ भी दे सकता है, बात कर।"

अम्मा का लड़किया बेचने का धंधा जोरो से चल रहा था। ज्यादातर लड़किया जिन्हे वो नार्थ ईस्ट और बंगाल से खरीद कर लाती है, को वह आस पास के शहरों में बेच देती है, जिन्हे खरीददार अपने लड़को से शादी करने के लिए खरीद लेते है। आखिरकार उनके प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या के बाद शादी के लिए लड़किया बची ही कहा है। इसी का फायदा अम्मा जैसे और भी गैंग उठा रहे थे और मालामाल हो रहे थे। कभी- कभार उनके हाथ कोई उत्तर भारतीय लड़की भी लग जाती थी जिसे वो अपहरण कर या दूसरे तरीको से फांस कर ले आते थे। उत्तरी भारतीय लड़कियों के दाम बहुत अच्छे मिलते थे। पिछले हफ्ते उसने बाहरी दिल्ली की लड़की धोखे से फांस ली थी और उसे अजय नाम के दलाल को पांच लाख में बेच दिया था।

अँधेरी रात

वो लंबा चौड़ा था, चेहरे पर पैसे का रोब था, लेकिन अय्यास नहीं लगता था। 

"क्या नाम है तेरा ?" अजय बोला। 

"बताना जरूरी नहीं है, मैंने पैसा लड़की के लिए दिया है तुम्हारी बकवास सुनने के लिए नहीं। 

"बहुत अकड़ है पैसे की तुझे, ये बेवकूफ अम्मा और महिपाल तेरे झांसे में आते होंगे मैं नहीं, बोल कौन है तू ?"

"रोब देता है, कान खोलकर सुन, लड़की ला या पैसा वापिस कर।

"मारो साले को, दिमाग सही करो इसका।" अजय अपने लोगो से बोला। 

उसके चार आदमी उस पर टूट पड़े। लेकिन वो नीचे गिरा और अपनी जेब से एक की चैन निकाल ली और उसके बटन को दबाता चला गया।

वो की चैन वास्तव में एक चीनी डार्ट गन थे और उसमे पोटेशियम साइनाइड से बुझे डार्ट थे जो अजय, प्रभा, महिपाल और उनके साथियो के शरीरो में घुसते चले गए। तीव्र जहर उनके शरीरो में घुसते ही वो गिरकर मरने लगे। 

चार दिन बाद

अजय और उसके गैंग का हत्यारा प्रेम नगर पुलिस चौकी इंचार्ज के सामने बैठा था और चौकी इंचार्ज उससे कह रहा था की-

"देख भाई तेरी बेटी को ढूंढते हुए एक हफ्ता हो गया लेकिन उसका पता नहीं लगा, तेरे कहने के अनुसार हमने अजय और उसके ठिकानो को भी चेक किया है लेकिन तेरी बेटी यहाँ आयी ही नहीं।" चौकी इंचार्ज ने उसे समझाते हुए कहा। 

"लेकिन सर मैंने खुद तहकीकात की है, लोग कहते है की मेरी बेटी के हुलिए की लड़की प्रभा ने अजय के पास पहुचाई है।" वो बोला। 

"हो सकता है तेरी बात सही हो, लेकिन चार दिन पहले किसी सर फिरे ने अजय, प्रभा, महिपाल और उनके सारे गैंग को मार दिया है, अब तो जाँच करना और मुश्किल है।"

"सही कहते है सर उनको तो उनके पापों की सजा मिल गयी, लेकिन मेरी बेटी अभी नहीं मिली है। जब तक मै उसे ढूंढ नहीं लूंगा चैन से नहीं बैठूंगा।" उसने कहा और वो चौकी से निकल गया। 

"पागल है, अगर इसकी लड़की अजय के हत्थे चढ़ी है तो ऐसे नरक में पंहुच गयी होगी जहाँ से वो जीते जी नहीं निकल सकेगी।" चौकी इंचार्ज अपने आप से बोला।


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