तीसरा महीना
तीसरा महीना
लाली का जी आज कुछ भारी लग रहा है, शायद वह काम पर न जा सकेगी लेकिन नही गई तो पूरे दिन की मजदूरी मारी जागेगी; वैसे करेगी भी क्या इस टीन टप्पर में रामू के जाने के बाद हिम्मत कर के चली ही जाएगी। यही सब सोचते लाली का दिल और दिमाग गाँव पहुंच गया।
काश वह बाढ़ न आई होती गांव में, तो वह दोनो कभी मजदूरी की तलाश में शहर न आते। वहाँ खेत मे ही काम कर के दोनों आराम से रहते थे, परिवार के बाकी लोग भी गांव में ही रहते थे। शादी भी दो साल पहले वही हो गई रामू से कोई बहुत इच्छाएं नही थी। जिनके पास थोड़ी सी जमीन थी तो उसमे लगे रहते। बाकी उसके घर के सब लोग तो दूसरे के खेतों में ही काम करते थे। लाली कभी-कभी शुक्ला चच्चा के घर मे भी काम करती गेहूं साफ करने या कोई भी अनाज की छाँट पछोर का, उसी गांव में बड़ी हुए तो चाची-ताई के संबोधन के साथ काम करते हुए पता ही नही चलता कब समय बीत गया। शाम को जाते समय कभी दूध कभी छाछ मिल जाती तो वह बोनस की तरह लगता ।
आठवीं पास थी लाली इस लिहाज से पढ़ी तो कम थी लेकिन कढ़ी बहुत थी। हिंदी के मुहावरे व कहावतें का बात बात में प्रयोग करती रहती और घर की महिलाएं खूब हंसी मजाक करती रहती दिन कब निकल जाता पता ही नही चलता।
आज दोनो का काम तीसरी मंजिल पर ईंटे ले जाने का है, सर के ऊपर कपड़े को गोल कर के रखा पहले लाली रामू के सर पे सात ईंटे रख देती फिर रामू अपनी ईंटो को एक हाथ से पकड़े हुए लाली के सर पे पांच ईंटे रखता और दोनो तीसरी मंजिल तक ले जा रहे थे, चार फेरे तो कर लिए पर अब लाली से खड़ा ही नही हुआ जा रहा पूरा बदन पसीने से भीग गया उल्टी भी होने वाली है वह बाहर भागी एक बढ़ी सी उल्टी हो गई खाया कुछ था नही पता नही इतना क्या निकला।
"ललिया तू अब वापस जा हम सेठ से कहि देईब तू आधा दिन का काम करी के गए गई "...रामू बोला।
लाली वापस चली गई, उसका जो घर है उसमें भी चैन नही मिल रहा, गली के मोड़ पर एक डाक्टरनी की दुकान है ( उसके जैसे सब जाते है दावा लेने वह बीस-तीस रुपये में दे देती है) लाली उनके पास दवा लेने गई।
"तुम को तीसरा महीना पूरा होने को है और कमजोरी भी बहुत है तुमको अब ईट उठाने का काम नही करना है।" -डॉक्टर ने लाली को हिदायत दी।
शाम को घर आने पर लाली ने रामू को सब बताया कि डाक्टरनी ने क्या कहा।
"ठीक है कुछ दिन काम पर मत चलो।" -रामू बोला।
काम पर नही गई तो कैसे चलेगा आज तो पूरे साठ रुपये दावा में लग गए है, लाली परेशान हो गई उसने सोचा कैसे भी कर के एक या दो दिन में काम पे लौटना ही बेहतर होगा।
अगले ही दिन लाली आस पास के मकानों में गई काम तलाशने, कई जगह न सुन ने के बाद आखिर एक घर मे काम मिल ही गया.. कल से आने का वादा कर के लाली खुशी से वापस आ गई।
रामू के आते की बोली- "मुझे भी काम मिल गया कोई मेहनत भी नही पैसा भी अच्छा मिलेगा।"
लाली बोले जा रही थी- "चौबीस नंबर बंगले में जो अन्टी रहती उनकी बिटिया को दिन चढ़ गए है कह रही थी तीसरा महीना लगने को है तो तुम दिन भर यहाँ रहना इसका ध्यान रखना।"
"तू कैसे करेगी तेरी भी तो हालात ठीक नही।" -रामू ने चिंता जताई।
"तुम मेरी चिंता मत करो उस काम मे मेहनत कम है मैं अपना ध्यान रख लूँगी।" -लाली संजीदगी से बोली।
"अब हम दोनों को काम करके एक और एक ग्यारह बन जाना पड़ेगा हमें अपने आने वाले बच्चे के लिए।" -लाली मुस्कुरा के शर्माते हुए बोली।
