तेरी यादों की बारिश
तेरी यादों की बारिश
वो जा रहा था और इधर पलक उसे एकटक देखे जा रही थी।
आँखें व्याकुल होकर बरसने को बेताब थीं ।
बाईस साल पहले,
दोनों ही एक दूसरे को बेहद चाहते थे लेकिन किस्मत ने धोखा दे दिया। कॉलेज खत्म होते ही दोनों अपने घरवालों को बताने वाले थे कि तभी पल्लव के बड़े भाई का लंदन में एक्ससिडेंट हो गया और उसे अचानक से वहां जाना पड़ा।
उस जमाने में आज की तरह मोबाइल फोन नहीं होते थे बस लैंडलाइन फोन होता था। पल्लव ने बहुत कोशिश की पलक से बात करने की लेकिन जब भी फोन करता उसके पिताजी फोन उठा लेते और वह कुछ बोल नहीं पाता। पलक का परिवार बहुत ही रूढ़िवादी था। उसके यहां फोन भी उसके पिताजी ही उठाते थे उनके अनुपस्थिति में घर के नौकर श्यामू काका उठाते। एग्जाम के बाद कॉलेज की छुट्टियां हो चुकी थी।
पलक और पल्लव दोनों ने ही रिजल्ट घोषित होने के बाद परिवार में बताने का निश्चय किया था। दोनों एक ही जाति से भी थे औऱ धनाढ्य परिवार से भी लेकिन दोनों परिवारों की सोच में
काफी अंतर था। पल्लव घर का छोटा बेटा था और सबसे ज्यादा लाडला भी सो उसे पता था कि उसके घरवालों की तरफ से थोड़ी नानुकुर के बाद परमिशन मिल जायेगी। इधर अचानक से लंदन जाने के बाद उसकी जिंदगी ही बदल गई। भाई एक्ससिडेंट में अपने दोनों पैर खो चुका था और व्हीलचेयर पर आ चुका था और उसकी भाभी जोकि तीन माह की प्रेग्नेंट थीं उनको भी उसे ही देखना था। उनकी प्रेग्नेंसी में भी काफी दिक्कतें थी। दो बार पहले ही अबॉर्शन हो चुका था सो डॉ ने उनको बेड रेस्ट का बोल दिया था।
पल्लव दिन रात काम करता रहता। मेड रखने की हैसियत नहीं थी क्योंकि विदेशों में मेड भी रखना इतना आसान नहीं होता ऊपर से बहुत पैसे भी खर्च होते सो पल्लव ने खुद ही सारी जिम्मेदारी उठाने की ठानी । उसका कहना था कि भाई थोड़ा सा ठीक हो जाये तो वह सबको लेकिन इंडिया वापस लौट आएगा लेकिन तबतक गुजारे के लिए काम करना जरूरी था।
इधर इंडिया में उसी समय पल्लव के पिता को दिल का दौरा पड़ा और वो भी बेड पर आ गए।
बहुत ही मुश्किलों भरी जिंदगी हो गई थी उसके परिवार की!
कहते है न कि विपत्ति आती है तो सब तरफ से आती है। वही हाल इनका हो गया था।
सात महीने के अंदर काफी कुछ बदल गया था नहीं बदला था तो पल्लव का पलक के प्रति प्यार!
दिन तो किसी तरह काट लेता लेकिन रात भारी पड़ जाती! पलक की
एक आवाज सुनने के लिए तरस गया था पल्लव ! अपने दोस्तों से पता लगाया करता लेकिन कोई भी पलक के कॉन्टेक्ट में नहीं था या थीं कारण कि कॉलेज खत्म होते ही पलक के पिताजी ने उसे उसकी दादी के पास भेज दिया था। वो इतने कड़क थे कि डर के मारे पलक की कोई लड़की दोस्त नहीं बनती थीं। प्रिंसिपल साहब भी उनके दोस्त थे।
फिर भी पलक और पल्लव कॉपी किताबें एक्सचेंज करने के बहाने चिट्ठियों द्वारा दिल की बात एक दूसरे से कह ही लेते थे।
ये पंक्तियां उनपर सटीक बैठती थीं :
इश्क़ ने कब इजाजत ली है
आशिकों से
वो तो होता है और होकर ही रहता है
जब मिलने का मन होता तो लाइब्रेरी में चले जाते औऱ आमने सामने बैठ कर किताबों में ही सर गड़ाये चुपके से आँखों आँखों में इशारों से बाते कर लेते। बहुत ही शुद्ध और पवित्र प्रेम था उनका।
खैर,
करीब तीन महीने तक उसके भाई का इलाज चला और एक और कुदरत का कहर बरपा उनपर उसके भाई को भी अचानक से दिल का दौरा पड़ा और उनको बचाया न सका।
पल्लव के तो आँसू भी सूख गए थे । अकेला लड़का किस किसको संभाले! भाई के बाद भाभी के परिवार में भी कोई नहीं था जो आ सके। वो खुद ही अनाथ थीं। किसी तरह भाई का अंतिम संस्कार करके पल्लव भाभी के साथ इंडिया आ गया ।
पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ पड़ी थी सो वह उम्र से अधिक का दिखने लगा था। माँ का भी वही हाल था और भाभी तो बस सूने आँखों से चुपचाप सबको ताकती रहती।
कुछ दिन बीतने के बाद आसपास के लोगों ने पल्लव की माँ को उसकी भाभी की दूसरी शादी करने की सलाह दी तो पल्लव ने मना किया औऱ चुपचाप पलक का पता लगाने लगा। काफी कोशिशों के बाद पता लगा कि पलक की शादी हो चुकी है और अपने पति के साथ वो भोपाल शिफ्ट हो चुकी हैं। यह जानते ही पल्लव को गहरा धक्का लगा। वो लड़खड़ा गया।
ऐसी क्या जल्दी थी पलक जो तुम मेरा इंतजार न कर सकी!
सोचने ही पल्लव की आँखों से आंसुओं की धारा बह निकली।
इधर पल्लव की माँ ने जोर डालकर उसकी शादी उसकी भाभी से करा दी। अब वो बस ज़िम्मेदारी पूरा कर रहा था। जब भी पलक की याद आती तो उसी लाइब्रेरी में चला जाता किसी बहाने से और उन पलों को याद करता रहता!
वर्तमान में,
भोपाल में वो अपने बेटे के पास आया था । वही उसके बेटे जो कि भाई की आखिरी निशानी थी उसको अपने जान से ज्यादा प्यार करता था। बेटा बड़ा हो चुका था अब और रेलवे स्टेशन मास्टर की नौकरी कर रहा था। पहली पोस्टिंग भोपाल मिली थी सो पूरे परिवार को वही बुलाया था। अब परिवार के नाम पर पल्लव और उसकी पत्नी ही बचे थे।
एक दिन शॉपिंग करने के लिए पल्लव बाजार जा रहा था तो एक फूलों की दुकान पर गजरे देखकर ठिठक गया। उसे एकदम से पलक के गजरे याद आ गए जो वह सिर्फ उसके लिए कॉलेज फंक्शन में लगाती थी क्योंकि पल्लव को गजरे बेहद पसंद थे।
उसने तो यहां तक चिट्ठियों में कहा था कि शादी के बाद एक गजरे वाली को लगा दूंगा और रोज सुबह मैं खुद अपने हाथों से तुम्हें गजरे पहनाऊँगा। पढ़कर पलक शर्मा जाती लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था!
तभी किसी औरत की आवाज से पल्लव वर्तमान में आया। सामने देखा तो दिल धक से रह गया!
जिसकी एक झलक देखने को बेकरार था इतने सालों से वो उसके सामने थी!
हाँ वो पलक ही थी ! सामने गजरे ले रही थी और बालों में उन्हीं बुजुर्ग महिला से लगवा रही थी जो गजरे बेच रही थी। जैसे ही वो मुड़ी तो सामने पल्लव पर नजर पड़ी! वो एकदम से वही खड़ी
होकर सामने देखने लगी।
कैसा नजारा था! दो बिछड़े प्रेमी इतने सालों बाद मिल रहे थे और कोई कुछ नहीं बोल पा रहा था! इधर वो बेचारी बुजुर्ग महिला अपने पैसे मांग रही थी पलक से लेकिन पलक को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। तभी एक आदमी ने पल्लव से कहा भाई साहब गाड़ी जरा साइड में लगा ले पहले फिर दीदार कर लीजिएगा!
अब तो दोनों अचानक हरकत में आये ।आसपास देखा तो कुछ लोग उन्ही को देखे जा रहे थे।
" तुम यहाँ " पलक के मुँह से बोल फूटे।
" हां "
" वहां सामने रेस्टोरेंट देख रहे हो वहां पर चलते हैं। यहां सबलोग देख रहे हैं।" पलक ने कहा।
" हम्म चलो! बदल गई हो बहुत !"
" तुम भी "
" क्या इतनी जल्दी थी शादी की जो मेरा इंतजार न कर सकी। "
" कुछ बोलने से पहले मेरी बात सुन लो पल्लव ! कहते हुए पलक
ने अपनी कहानी पल्लव को सुना दी।
" क्या ही कहती पिताजी से, कोई
नंबर तक नहीं था तुम्हारा किसी से कॉलेज में नंबर तक नहीं मांग सकती थी। कैसे कैसे दिन काटे है पल्लव तुम्हारे बिना ! क्या बताऊँ ! तुम बताओ शादी हो गई कैसी है पत्नी ,बच्चे कितने है! मेरी याद आती थी कि नहीं!"
जवाब में पल्लव फीकी हँसी हँसते हुए बोला " मेरी तो जिंदगी ही एक कहानी बन चुकी है ! क्या क्या सुनोगी पलक तुम ! " कहते हुए आँखें भर आईं थीं तो पलक ने उसके हाथों पर हल्के से अपना हाथ रख दिया। उन्होंने केबिन वाला टेबल बुक किया था तोके वो सबसे अलग बैठे थे ।
जब उसने अपनी कहानी बताई तो दोनों की ही आँखें बरस रही थीं। सच में काफी कुछ सहा था उन्होंने ज़िंदगी में !
करीब एक घंटे बाद पलक को याद आया कि उसे बेटी के कॉलेज जाना है तो उसने पल्लव को बताया।
पल्लव ने कहा " देखो पलक तुम किसी की पत्नी हो अब ,और मैं भी किसी का पति तो अब हमारा मिलना ठीक नहीं है। मैं नहीं चाहता कि कि लोग हमारे रिश्ते को गंदी नजर से देखे इसलिए न तुम्हारा नंबर लूंगा न ही दूंगा लेकिन हम दोनों एक दूसरे को ऐसे ही चाहते रहेंगे। किस्मत में होगा तो कभी न कभी एक दूसरे को देखना मुमकिन हो ही जायेगा ।वो कहता जा रहा था और पलक उसे देखे जा रही थी।
तभी बादल गरजने लगे और जोरों की बारिश शुरू हो गई मानो प्रकृति भी रो रही हो इस जुदाई पर!
वो जा रहा था और पलक उसे भीगती हुई वही खड़ी देखे जा रही थी। आज एक प्रेम का अंकुर
दोनों प्रेमियों के हृदय में वृक्ष बन चुका था!
रूहानी इश्क़ होता है जब
जिस्म की प्यास नहीं होती
हवा का रंग नहीं होता औऱ
इश्क़ की जात नहीं होती!