Priyanka Verma(bulbul)

Children Stories Comedy Drama

4.3  

Priyanka Verma(bulbul)

Children Stories Comedy Drama

क्रिसमस और मेरे सांताक्लॉज

क्रिसमस और मेरे सांताक्लॉज

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जब मैं छोटी थी तो क्रिसमस पर सांता क्लॉज के बारे में जब माँ और चाचू से पूछती तो वो बताते

 "सांता क्लॉज सब बच्चों के लिए गिफ्ट लाते हैं।"


फिर मैं पूछती " फिर वो सामने क्यूँ नहीं आकर देते ?"

" वो इसलिए कि वो नहीं चाहते कि उनको कोई देखे ।" चाचू समझाते हुए कहते।

" अच्छा! फिर तो दादू और पापा मेरे सांता क्लॉज हुए न ! "


" वो कैसे?" सब एक स्वर में पूछते।


फिर मैं एक्सप्लेन करती " जब मैं रात को सो जाती हूं तो दादाजी और पापा ही सबसे लेट आते हैं और मेरे लिए गिफ्ट और चॉकलेट भी लाते हैं तो हुये न ये दोनों मेरे सांता क्लॉज!"

ऐसे जवाब सुनकर सबका सर चकरा जाता! 

मेरे नन्हे से दिमाग में सबसे पहले यही सोचा था क्योंकि मेरे दादाजी अक्सर काम के सिलसिले में लेट नाइट घर आते थे । सरकारी इंजीनियर होने के कारण दूर साइट पर से आते आते देर हो जाती थी। 


 उस समय मैं सो चुकी होती थी तो वो कुछ न कुछ छोटा मोटा ही सही गिफ्ट जरूर लाते थे।

अगले दिन सुबह सुबह मेरे जागते ही कानो में उनका स्वर सुनाई देता -" बुलबुल जगी की नहीं!"

सुनते ही मैं कूद कर उनके पास भागती और उनके पैर छूते ही आशिर्वाद के साथ अपना गिफ्ट पाती!


मुझे बचपन से पेंटिंग का शौक था तो वो मेरे लिए स्केच पेन लाया करते थे और पापा तो कम ही घर आ पाते थे । 


उस समय उनकी रात नौ बजे की ट्रेन हुआ करती थी लेकिन अक्सर लेट होने के कारण कई बार 10 बजे तक पहुंचाती थी फिर स्टेशन से घर आते आते 11 बज जाते थे।

मैं सो जाती थी क्योंकि हमें उस समय जल्दी सोने औऱ सुबह जल्दी उठने की आदत थी। 

पापा जब भी आते मेरे लिए खिलौने और मिठाइयों का डब्बा जरूर लाते। खिलौने ना भी हो तो मेरे लिए डेयरी मिल्क ,पेड़े और जलेबी जरूर लाते थे।

वरना मैं तो कोहराम मचा देती।

 एक बार नहीं ला पाए थे तो मैंने रो रोकर पूरा घर सर पर उठा लिया था।

उसके बाद तो दादी ने बोल दिया था " तुम कुछ लाओ या मत लाओ इसके लिए पेड़े जरूर लाना!" आज उन बातों को याद कर खुद पर हँसी आ जाती हैं।


क्रिसमस पर मैं सब बच्चों के साथ चर्च भी जाती औऱ वहा कैंडिल जलाती । बहुत भीड़ होती थी उस दिन चर्च में। प्रभु यीशु के जन्मदिन पर वहां 

 सुंदर सजावट की जाती थी।

छोटे छोटे घर ,उनमें माता मरियम और भगवान यीशु मसीह के जन्म को दर्शाया जाता था जो बहुत सुंदर दिखता था।


उसके बाद फिर चाचू के क्रिश्चन दोस्तों के घर हम सब केक खाने जाते। 


मेरे सवालों से मां और घर में बाकी सब परेशान हो जाते थे क्योंकि एक के बाद एक सवाल मेरे चलते रहते थे।

माँ तो कई बुरी तरह झिड़क देती थी ।तब चाचू ही झेलते मुझे, क्योंकि उस समय हमारा संयुक्त परिवार था और मां के ऊपर बहुत सारी जिम्मेदारियों का बोझ ,ऊपर से तबीयत ठीक न रहने के कारण वो परेशान भी रहती लेकिन उसमें भी काफी सारे काम कर लेती थी।

सर्दियों में तो सब काम करके ऊन सलाई लेकर छत पर बैठ जाती चाची और दादी के साथ ।


फिर बुनाई के साथ साथ बीच में ब्रेक लेकर साग सब्जी चुनने लग जाती ।

मेरा काम था सबके लिए चाय बनाने का, जिसमें मैं पूरी एक्सपेरिमेंट करते रहती।

 कभी तेजपत्ता डालती तो कभी लौंग इलाइची कूट कर ,कई बार बड़ी इलायची भी डाल देती जिससे स्वाद बदल जाता था और मेरे हाथ की चाय पीकर सबसे चेहरे का रंग भी। 


चचेरे भाई बहन तो इतने चालाक थे कि ये पता लगते ही किचन में मैं घुसी हूँ ,पहले ही चाय या कुछ खाने से मना कर देते!

फिर मां की गुस्से वाली नजरें पड़ते ही मैं मासूम बच्ची की तरह दादी की गोद में चिपक जाती।


 दादी बड़े प्यार से कहती अभी तो बुलबुल बच्ची है ,बस थोड़ी खुराफ़ाती हैं बड़ी होकर संभल जाएगी।

 वही से खुराफ़ाती बुलबुल का टैग मिला।

घर में कही कुछ गड़बड़ी हो तो बुलबुल को ही बलि का बकरा बना दिया जाता

... वैसे उनमें से आधे में तो मेरा हाथ होता ही

और मेरी माँ बुनाई में इतनी एक्सपर्ट थीं कि

राह चलते लोगों के स्वेटर के डिजाइन एक बार देख कर ही बना कर छोड़ती थी।

मुझे आज भी याद है मेरे पड़ोस में किराए पर रहने एक परिवार आया था। उनका बेटा मेरी उम्र का था ।उसकी दादी गांव से बड़े अच्छे अच्छे डिजाइन के स्वेटर बुनकर उसके लिए भेजा करती थीं ।


उसने एक बार लाल रंग का स्वेटर पहना था जिसपर हरे रंग से क्रिसमस ट्री बना हुआ था और एक तरफ सांता क्लॉज वाली लाल रंग और दूसरी तरफ सफेद रंग के बॉर्डर वाली टोपी का डिजाइन भी बना था नीचे उसका नाम लिखा हुआ था जो उस समय बड़ा यूनिक सा था । मुझे वो बहुत पसंद आया था।


एक दिन किसी बात पर उसने कहा कि ये वाला डिजाइन कोई नहीं बना सकता ये बस मेरी दादी को आता है।

वो बहुत घमंड से ऐंठ ऐंठ कर मुझे दिखाता फिरता।

मैं चिढ़ सी जाती।

मैंने भी जोश में कह दिया " ये तो मेरी मम्मी बना लेंगी देख लेना।"

उसने कहा " नहीं बना पाएंगी।" 

बस लगी शर्त पांच रुपये वाले जेम्स और पांच डेयरी मिल्क की !

मैंने भी बिना सोचे समझे चैलेंज ले तो आई लेकिन अब मम्मी से बोलने में डर लग रहा था क्योंकि मम्मी से जबरदस्त डाँट पड़ने के आसार थे।

सो चाचू और बुआ को बताया।उन दोनों ने ही मम्मी से बात की और मम्मी ने पहले तो डांटा फिर कहा कि बना देंगी।

उसके बारह दिन बाद क्रिसमस था और मेरा मन था कि क्रिसमस के दिन उसको पहन कर दिखाऊँ।


मम्मी ने उसी दिन ऊन मंगवाया और दोनों तरफ के पार्ट एक साथ शुरू कर दिया। बॉर्डर तो बन गया दो ही दिनों में लेकिन समस्या थी कि क्रिसमस ट्री और सांता क्लॉज वाले रेड टोपी की डिजाइन बनाने की, क्योंकि वो स्वेटर तो बनाने के लिए देने वाला था नहीं!

ऊपर से बदमाश इतना कि वो स्वेटर पहन कर मेरे साथ नहीं खेलता, कहता जब क्रिसमस पर तुम पहनोगी तब मैं भी तुम्हारे साथ उसी दिन पहनूंगा।

लेकिन दिन में कभी कभी वो अपनी छत पर वही स्वेटर पहने हुए दिख जाता। उसका घर मेरे घर के एक घर के बाद था।

मम्मी ने दूर से ही स्वेटर को अच्छी तरह देखा औऱ मुझसे एक बड़ी साइज के पेपर पर क्रिसमस ट्री और सांता क्लॉज वाली टोपी बनाकर रंग कर दिखाने को कहा।

मैंने खुशी खुशी दोनों चीजे एक घंटे के अंदर तैयार करके उनको दे दी।


तब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मम्मी क्यूँ बनवा रही हैं लेकिन रात को जब मम्मी ने कोशिश करके क्रिसमस ट्री बना दिया तब मुझे समझ आया।

ग्यारह दिनों के अंदर ही मम्मी ने पता नहीं कैसे स्वेटर तैयार कर लिया था।

बाद में बुआ ने बताया कि मां ने रात को जागकर बुनाई की है तब जाकर स्वेटर तैयार हुआ है।

लेकिन मुझे फिर भी कुछ कमी दिखाई दे रही थी क्योंकि जल्दबाजी में नाम लिखना रह गया था जिसका भी उपाय मम्मी ने निकाल लिया। 

स्वेटर के ऊपर से ही उन्होंने रंगबिरंगी कढ़ाई के धागों से मेरा नाम लिख दिया जो वाकई बहुत ही खूबसूरत दिख रहा था।

फिर उन्होंने उन्ही रंग बिरंगी धागों से क्रिसमस ट्री के ऊपर डेकोरेशन भी कर दिया।अब तो मेरा स्वेटर वाकई में कमाल लग रहा था।

अब सोचती हूँ कि कितना परेशान किया है मैंने सबको

खैर,

देखते देखते क्रिसमस का दिन भी आ गया।

उधर वो बड़े शान से अपनी स्वेटर पहन कर निकला और इधर मैं भी निकली दिखाने। उस समय उसकी दादी भी गांव से आई हुई थीं।उन्होंने मुझे देखा तो बुलाकर पूछा, मैंने बता दिया कि मम्मी ने बनाया है। तब उन्होंने उसकी मां से पूछा कि ये स्वेटर मेरी माँ को दिया था क्या ? 

उसकी मां ने मना कर दिया।उनको बड़ा अचरज हुआ और मिलने के बहाने मेरे घर आई।  

तब उनको सारी बातों का पता चल गया। 

हम दोनों बच्चे तो बड़ी सफाई से शर्त की बात छुपा गए थे क्योंकि जबरदस्त कुटाई होती।

लेकिन पता न कैसे भनक लग गई घर में, और दोनों को खूब डाँट पड़ी।

बाद में पता चला कि ये बात उसकी छोटी बहन ने सुन ली थी जब हम खेलते हुए जोश में शर्त लगा रहे थे और उसी ने विभीषण बनकर हमारी लंका में आग लगाई थी।


जो भी हो उस दिन हमारी क्रिसमस पार्टी खूब धमाल मनी थी। कितने ही साल बीत गए इस बात को लेकिन आज भी हर क्रिसमस पर ये चीजें याद आ ही जाती है और हां आज भी मैं अपने दादाजी और पापा को ही अपना सांता क्लॉज मानती हूं।

आज दादाजी इस दुनिया में नहीं है और शादी के बाद पापा से कम मिल पाती हूँ लेकिन जब भी जाती हूं पापा मेरे लिए कही से भी पेड़े, जलेबी या कुछ भी जो मुझे पसंद है वो लाकर रहते हैं।

सच में माता पिता ही ईश्वर के भेजे हुए सांता क्लॉज होते हैं जो हमारी हर संभव इच्छा पूरी करते हैं।



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