Priyanka Verma(bulbul)

Children Stories Inspirational Children

4.5  

Priyanka Verma(bulbul)

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जादुई जंगल और कच्चे आम की चटनी

जादुई जंगल और कच्चे आम की चटनी

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बहुत साल पहले की बात है। भारत के दक्षिणी इलाके में एक राजा हुआ करते थे। वे प्रजा से बेहद प्रेम करते थे और उनके दुख का निवारण करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। वे कई बार भेष बदलकर अपने मंत्रियों के साथ प्रदेश में प्रजा का हाल जानने निकल पड़ते थे।

एक बार ऐसे ही अपने विश्वासपात्र दो मंत्रियों के साथ भेष बदलकर प्रजा का हाल जानने निकल पड़े। मंत्रियों ने उन्हें अंगरक्षक भी साथ में चलने की सलाह दी ,परंतु राजा ने उनकी सलाह नहीं मानी। उनका कहना था साधारण वेशभूषा में ही मैं प्रजा को अधिक निकटता से जान पाऊंगा। ऐसा कह कर राजा अपने मंत्रियों के साथ घोड़े पर सवार होकर राज्य के पूर्वी दिशा में निकल पड़े। यह इलाका जंगलों से घिरा था। 

उस जंगल को जादुई जंगल के नाम से जाना जाता था। ऐसा नहीं था कि उसमें कोई जादू था बल्कि उसे जादुई इसलिए कहा जाता था क्योंकि वह अंदर से इतना घना था कि बाहर निकलने का रास्ता जल्दी नहीं मिल पाता था इंसान वहां जाकर खो जाते थे इसलिए उसका नाम जादुई जंगल रखा गया था। हालांकि वहां उस पार कुछ आदिवासी भी रहते थे जिनका नगर में आना-जाना बहुत कम होता था। 

राजा ने उन्हें नगर में बसाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह लोग नगर में बसने को तैयार नहीं थे। उनका मानना था कि उनके पूर्वज जहां रहते थे वही वह लोग भी रहेंगे। हालांकि उनकी तादाद ज्यादा नहीं थी मुश्किल से बीस से पच्चीस घर होंगे। उनका जीवन शिकार और जंगल के फल फूलों पर आधारित था मगर फिर भी राजा ने उनके लिए अपने दरवाजे हमेशा खुले रखे थे।

घूमने के क्रम में राजा रास्ता भटक चुके थे। घूमते घूमते उनके घोड़े भी थक गए थे।जंगल में चलते हुए उन्हें कई घण्टे हो चुके थे लेकिन निकलने का कोई रास्ता कोई नजर नहीं आ रहा था। अब क्या करें! राजा के पास एक नक्शा था वह भी कहीं गिर गया था।

राजा के एक मंत्री विदुर बड़ा चतुर था। सब कुछ जोरों की प्यास भी लगाई थी लेकिन जल का कहीं ठिकाना नहीं दिख रहा था। सहसा विदुर को कुछ पत्तों पर कीचड़ के निशान नजर आए। उसने कहा-" महाराज यही आसपास जल मिल जाएगा। वह देखिए उन पत्तों पर कीचड़ के निशान और वहां मिट्टी भी गीली लग रही है।" उसका साथ बिल्कुल सही था। 

थोड़ी दूर आगे जाने पर ही एक छोटा तालाब था।वहीं पर स्वयं को एवं घोड़ों को भी पानी पिलाकर और आगे के रास्ते में के लिए सोचने लगे।शाम घिर आई थी और जंगल में रहना खतरे से खाली नहीं था।

थकान और भूख से सब बेहाल हो चुके थे हालांकि पानी पीकर थोड़ी जान में जान आई थी। 

तभी एक तीर तेजी से राजा के समीप एक पेड़ में आकर धंस गया। राजा और मंत्री और ने तुरंत अपनी अपनी तलवारें निकाल ली और सामने देखने लगे। अचानक से बहुत से तीर उनकी तरफ आने लगे। 

उन्हें एकदम से कुछ आदिवासियों ने घेर लिया और पकड़ कर अपने मुखिया के पास ले गए। जैसे ही वह सबको लेकर अपने मुखिया के पास ले गया वैसे ही मुखिया ने राजा को पकड़ कर लाने वाले आदिवासी को एक थप्पड़ लगा दिया और कहा-" मूर्ख तूने हमारे राजा को ही पकड़ लिया है! " इतना कह कर उसने स्वयं राजा और उनके साथ दोनों मंत्रियों के बंधन खोल दिए।

राजा ने कहा-" इनकी गलती नहीं है।यहां केवल तुम ही मुझे पहचानते हो इसीलिए गलतफहमी हो गई।"

" परंतु राजन आप इस घने जंगल में क्या कर रहे थे?"

" वह हम रास्ता भटक गए थे। राज्य भ्रमण पर निकले थे।"

" कोई बात नहीं आज आप हमारे अतिथि है। हमें सेवा सत्कार का मौका दें। सुबह हम आपको राजमहल तक सकुशल छोड़ आएंगे। अभी इस समय जाना उचित नहीं है।" आदिवासियों के मुखिया ने हाथ जोड़कर राजा से निवेदन किया जैसे राजा ने सहर्ष स्वीकार किया।

मुखिया राजा और दोनों मंत्रियों को अपने घर ले गया जो घास फूस की झोपड़ी सी बनी हुई थी लेकिन वह बाकी सब झोपड़ियों से थोड़ी ऊंची जगह पर बनी थी।

थोड़ी देर बाद उस आदिवासी की मां ने राजा और दोनों मंत्रियों को फल काटकर एक बड़े पत्ते में रखकर दे दिए और साथ ही कच्चे आम की चटनी दी जो राजा को उस समय किसी अमृत से कम नहीं लग रही थी।

राजा और वह दोनों मंत्री भी शाकाहारी थे यह बात उन्होंने पहले ही बता दी थी इसलिए मुखिया की मां ने उन्हें यह भोजन परोसा था क्योंकि वह लोग हमेशा मांसाहार पर निर्भर थे और शाकाहार में उनके पास फलों के सिवाय और कुछ नहीं होता था।

खाकर राजा और मंत्री वहीं पर सो गए। थके हारे तो थे ही जल्द ही नींद के आगोश में चले गए।अगले दिन सुबह सुबह मुखिया ने अपने आदमियों के साथ राजा को राजमहल तक सकुशल छुड़वा दिया।

राजा ने भी उनका आभार प्रकट करते हुए उन्हें कई तरह के उपहार देकर विदा किये।

राजा को अपने राजमहल में अक्सर खाते हुए उस आदिवासी मुखिया की मां की कच्चे आम की चटनी याद आ जाती थी।

 एक बार उन्होंने इसका जिक्र राजमाता से किया तो उन्होंने झटपट बना कर दिया लेकिन राजा को उसमें वो स्वाद नहीं आया। राजमाता को लगा उनके बनाने में ही कोई कमी रह गई है। उन्होंने अपने बेहतरीन रसोई से कहकर चटनी बनवाई लेकिन फिर वही हाल! राजा को उसमें फिर स्वाद नहीं आया।

आखिरकार राजमाता ने राजा के साथ मुखिया के घर जाने का फैसला किया और कहा " मैं तुम्हारे साथ वहां जाना चाहती हूं, ताकि मैं भी उस कच्चे आम की चटनी की विधि सीख सकूं जो तुम्हें बहुत पसंद है।" 

राजा अपनी मां के साथ एक बार फिर उस मुखिया के घर पहुंचे।आने की खबर पहले ही पहुंचा दी गई थी तो पहले ही कुछ आदिवासी उस जंगल के बाहर ही उन्हें मिल गए और अपने साथ मुखिया के घर तक ससम्मान लेकर गए।

लेकिन वहां पहुँचते हुए उन्हें फिर से शाम हो गई। क्योंकि रास्ता पथरीला भी था और बारिश के कारण फिसलन थी।

फिर से उन्हें वही फल व चटनी परोसा गया। राजमाता को चटनी का स्वाद बिल्कुल अपने बनाए गए चटनी की तरह ही लगा लेकिन राजा को वह चटनी बिल्कुल पहले वाले चटनी की तरह लगी जिसका स्वाद ढूंढते हुए वह यहाँ तक आये थे।

जब राजमाता ने इसकी विधि मुखिया की माँ से पूछी तो सबकुछ बिल्कुल वैसा ही था जैसा वह बनाती थी लेकिन राजा को यहां की चटनी का स्वाद अलग क्यूँ लगा! यह बात राजमाता की समझ में ना आई लेकिन मुखिया की माँ समझ गईं और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा-" चटनी में कोई अलग स्वाद नहीं है बल्कि राजा को यह चटनी स्वादिष्ट इसलिए लगी क्योंकि जब राजा यहां आए थे, उस समय इन्हें जोरों की भूख लगी थी। जंगल में भटकने के कारण यह थकान से चूर हो चुके थे ,इसलिए उन्हें इस चटनी में बेहद स्वाद आया और आज भी जब वह यहां आए तो आते आते ही थकान से इन्हें तेज भूख लग गई थी, इसीलिए आज भी इन्हें चटनी बिल्कुल वैसी ही लगी। जबकि सच यह है कि इस वैसी ही चटनी है जो आपके राजमहल में बनती है।"

मुखिया की माँ की बात सुनकर राजा और राजमाता दोनों को कच्चे आम की चटनी के अलग स्वाद का कारण समझ में आ गया।

कहानी का सार यह है कि जब भी हम अत्याधिक परिश्रम से थके होते हैं तो हमें कोई भी भोजन का स्वाद अद्वितीय लगता है। बिलकुल वैसे ही जैसे राजा को राजमहल में वहीं कच्चे आम की चटनी में कोई स्वाद नहीं आता था लेकिन जब वह जंगल पार कर लंबी दूरी से थके हारे उस आदिवासी के घर पहुंचते थे तो वहां की साधारण सी कच्चे आम की वहीं चटनी उन्हें अद्वितीय स्वाद का आभास कराती थी !


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