Priyanka Verma(bulbul)

Drama Tragedy Inspirational

4.5  

Priyanka Verma(bulbul)

Drama Tragedy Inspirational

गरजने वाले बादल

गरजने वाले बादल

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शैलेन्द्र जी की तबीयत बिगड़ने के कारण उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

एक महीने वो आईसीयू में रहे। उन्होंने अपने जवानी के दिनों में लोगों की बहुत मदद की थी तो काफ़ी लोग उनकी सलामती के लिए दुआयें मांग रहे थे। उनको हार्ट अटैक आया था लेकिन अपनी इच्छाशक्ति से और लोगों के दुआओं के फलस्वरूप वो धीरे धीरे ठीक हो रहे थे।


पत्नी की कैंसर के कारण पहले ही मृत्यु हो चुकी थी तो उनकी याद में उन्होंने अपने शहर में एक कैंसर का अस्पताल बनवाया था जिसके बाद से बहुत से लोगों को उससे फायदा हुआ और अब लोगों को दूसरे शहर नहीं जाना पड़ता।

बहुत संघर्ष के दिन देखे थे उन्होंने अपने बचपन से! 


माँ तो जन्म देते ही छोड़ गई थी औऱ पिता ने दूसरी शादी की।फिर ऑस्ट्रेलिया जाकर बस गए।कुछ सालों बाद ही एक कार दुर्घटना में उनकी भी मृत्यु हो गई।

बिल्कुल अकेले हो चुके शैलेन्द्र सब चुपचाप रहते थे।

उनकी सौतेली माँ बहुत सताती थी। पिता की मृत्यु के बाद ऑस्ट्रेलिया में उनकी सौतेली मां ने उनको घर से निकाल दिया क्योंकि वो घर उसके ही नाम था!


 बारह साल की छोटी सी उम्र से ही उनको ज़िंदगी के मुश्किलों का सामना करना पड़ गया। कभी कोई काम मिल जाता तो खाने का प्रबंध हो जाता कभी वह भी नहीं मिलता तो वह चुपचाप फुटपाथ किनारे बैठ जाते, लेकिन जीने की उम्मीद नहीं छोड़ते! ऐसे ही काम चल रहा था।


एक दिन ऐसे ही उन्हें कोई काम न मिला था तो वह भूख से बेहाल होकर वो आस्ट्रेलिया के एक पार्क में बैठे हुए थे।

तभी उनकी मुलाकात वही अपनी हमउम्र जोसेफ नाम के लड़के से हुई। वह भी एक अनाथ था और वो अकेले अपना छोटा सा रेस्टोरेंट चलाता था। 

उसने शैलेंद्र जी की बहुत मदद की।उनको अपने साथ रहने को जगह दी।


इस तरह दो अनाथों को एक दूसरे का सहारा मिल गया था।शैलेन्द्र उसके रेस्टोरेंट में हिसाब किताब का काम देखते थे।वे पढ़ाई में बहुत होशियार थे। उन्होंने पढ़ाई दुबारा से शुरू की।


अब अपने मेहनत से वो पढ़ते भी थे और काम भी करते थे।हालांकि जोसेफ अब उनको काम करने के लिए मना करता था।वह कहता था कि तुम सिर्फ पढ़ाई में ध्यान दो लेकिन स्वाभिमानी शैलेंद्र जी को उसके ऊपर अपना बोझ डालना अच्छा नहीं लगा इसलिए वह काम औऱ पढ़ाई दोनों साथ में करने लगे।मेहनती तो वह थे ही। उनकी मेहनत रंग लाई।वह पैसे जोड़ते जाते ताकि इंडिया वापस लौटकर कुछ बिजनेस वगैरह शुरू कर सके।


उनकी माँ की इच्छा थी कि वह विदेश में नहीं बल्कि अपने देश में रहे सो अपनी दिवंगत माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए वह वहां पढ़ाई करते हुए पैसे जोड़ने लगे।


पच्चीस साल की उम्र तक पैसे जमा करके वो इंडिया अपने शहर आ गए।


उनकी माँ की असमय मृत्यु के बाद ऑस्ट्रेलिया में काम कर रहे पिता ने वही की लड़की से दूसरी शादी कर ली थी।

अब शैलेंद्र अपने शहर में अपनी माँ के यादों के साथ रहते थे और उन्होंने एक दुकान खरीद ली थी।


मेहनत और ईमानदारी के साथ काम करते हुए धीरे धीरे एक से दो दुकान और ऐसा करते करते वो शहर के सबसे बड़े कपड़ा व्यवसायी बन चुके थे।


एक दिन इनकी मुलाकात वही दुकान पर काम कर रही सेल्सगर्ल रोजी नाम की लड़की से हुई। दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे।मुलाकातो का सिलसिला आगे बढ़ चला और इन्होंने शादी कर ली।


कुछ समय पश्चात रोजी ने एक के बाद दो बेटों को जन्म दिया। इसके कुछ दिनों के पश्चात ही रोजी की मृत्यु कैंसर से हो गई।


फिर उन्होंने कभी दूसरी शादी नहीं की।लोग तो बहुत कहते थे लेकिन उनको अपने पुराने दिन याद आ जाते थे जो उन्होंने सौतेली माँ की वजह से देखे थे।पैसे की कमी थी नहीं सो

छोटे बच्चों की परवरिश के लिए

मेड रख दिया।

हालांकि कई बार उन्हें अकेलापन खलता था लेकिन बच्चों की खुशी के लिए सब सह लेते थे।


समय चक्र घूमा।


बच्चे बड़े हुए। उनकी मर्जी से उनकी शादी शैलेंद्र जी ने करा दी। बहुएं घर आ गईं।

सब ठीक चल रहा था लेकिन अब मसला यह आ रहा था कि दोनों बच्चे खुद से कुछ करना ही नहीं चाहते थे। उनको सब पका पकाया सामने मिल रहा था।तो बस ! दोनो उसी को देखते !


शैलेन्द्र जी भी यही सोचकर चुप थे कि सबकुछ तो उन्ही का है उनके बाद! 

अभी तक तो ऐसा ही सब चल रहा था लेकिन अचानक से उन्हें हार्ट अटैक आने के कारण काफी दिनों तक बिजनेस से दूर रहना पड़ा।


दुकानों की बिक्री कम हो गई लेकिन ऑनलाइन शॉपिंग का काम भी होता था इनका तो बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।

शैलेंद्र जी दुकानों पर कम ही जाते थे लेकिन सबकुछ अपने मैनेजर से पता करते रहते थे वो उनका पुराना मैनेजर रामलाल कम दोस्त था। वह उनके बचपन का मित्र था।इंडिया आने के बाद शैलेन्द्र जी ने उसे अपने साथ रख लिया था।

उसने बहुत दुनिया देखी थी।उम्र में भी वह इनसे छः साल बड़ा था।


शैलेन्द्र जी जब भी बच्चों के नाम सब दुकान वगैरह करने की बात करते रामलाल मना कर देता।कहता मेरे गाँव के एक आदमी ने ऐसा ही किया था लेकिन उसके बेटो ने उसको ही बाहर निकाल दिया।


तब शैलेंद्र जी हँसते हुए कहते- अरे यार! ये मेरे बच्चे हैं। ऐसा कभी नहीं करेंगे।काम नहीं करते तो क्या हुआ?तुम देखते नहीं कि बहुओं के आने के बाद भी मेरी कितनी इज्जत करते हैं!

बात तो उनकी भी सही थी उनके सामने उनके बेटे बहु बहुत ही अच्छी तरह पेश आते थे।


लेकिन किसको पता था! समयचक्र कब करवट ले।


वर्तमान समय में,


हार्ट अटैक के बाद कमजोरी से जूझ रहे शैलेन्द्र जी का आज ठीक होने के पश्चात तीन महीनों बाद अस्पताल से घर आये।


अभी अपने बंगले के बाहर खड़े थे जिसपर बड़े बड़े सुनहरे अक्षरों में " वृंदा निवास " लिखा हुआ था। वृंदा उनकी माँ का नाम था।

वह छड़ी का सहारा लेकर भरी आँखों से उसे देख रहे थे! आज साथ में उनका वही मैनेजर साथी रामलाल था। 


घर पहुंचते ही उनका राधे नौकर भागते हुए आया और बताया कि दोनों बेटे बहु सब लोग घर बन्द करके परसों की फ्लाइट से गोवा गए। 


शैलेन्द्र जी को धक्का सा लगा। इसलिए मेरे बेटे परसो डॉ से मुझे कुछ और दिन अस्पताल में रहने को बोल रहे थे। उन्होंने नींद की दवा तो ली थी लेकिन हल्की उनींदी में ये बात सुन ली थी!


राधे से उनके आने का पूछा तो उसने बताया " कहकर नहीं गए हैं बस इतना कहा है कि कोई आये तो गेस्ट रूम में ठहरा देना। अब बस गेस्टरूम का ही खुला है बस मालिक। हमें नहीं पता था कि आप आने वाले हैं।

आप कहे तो घर का ताला तोड़ दूँ।" नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है बेटे।

और तुम्हें कितनी बार समझाया है मुझे मालिक मत कहा करो। चलो अब मुझे गेस्टरूम में लेकर चलो।" शैलेंद्र जी अपने घर के हर नौकर से बड़े प्रेम से बात करते थे। उन्हें कभी नौकर न समझकर घर का सदस्य ही मानते थे जिसपर बेटे दबी जुबान से आपत्ति व्यक्त करते थे।


खैर,

 ये बात सुनकर रामलाल मैनेजर हक्का बक्का रह गया।

इस विशाल बंगले का मालिक आज अपने ही घर के गेस्टरूम में रहने जा रहा है!


शैलेंद्र जी की अनुभवी आँखों ने सब कुछ समझ लिया। खुद को संभालते हुए उन्होंने रामलाल से कहा - "अरे भाई मुझे ले चलो संकोच न करो! वो भी तो घर का हिस्सा है कोई नहीं!"

कहते हुए छड़ी के सहारे वो चले रामलाल के साथ गेस्टरूम में चले गए।पीछे से राधे कार की डिक्की से सारा सामान ड्राइवर के साथ उस रूम में ले आया और नाश्ते वगैरह की तैयारी करने के लिए किचन में चला गया।


बहुत कुछ बदल गया था। रामलाल को शैलेन्द्र जी ने बच्चों को फोन करने के लिए मना कर दिया था लेकिन रामलाल ने उनके बाथरूम जाते ही चुपके से बेटों को फोन कर दिया।

उसे बहुत आश्चर्य हुआ जब बेटों ने उसे अपने पिता के घर लौटने पर खुशी नहीं बल्कि नाराजगी जताई कि उनकी वजह से अब गोवा से जल्द वापसी करनी होगी।

तभी शैलेन्द्र जी बाथरूम से वापस आये तो रामलाल की आखिरी बातचीत सुनकर उसे डाँट लगाई और बच्चों को आराम से आने को कहा।

इतना कहकर वह चुप हो गए।


बीमारी से ज्यादा उनको अपने ही बच्चों के व्यवहार ने बहुत आहत किया था। 


करीबन दस दिनों पश्चात बेटे वापस लौट आये।ऊपरी दिखावा तो खूब किया सबने।इस दौरान रामलाल और राधे ने उन्हें एकपल भी अकेले नहीं छोड़ा।बच्चों के आने के बाद भी वह उसी कमरे में रहे।जाने अब उन्हें घर के अंदर वाले हिस्से में रहने का दिल नहीं हो रहा था।


एक बार जब वह अपने कमरे की बालकनी में टहलने निकले तो उसी समय उनके

 कानों में कुछ आवाजे पड़ी जिसे अनजाने में उन्होंने सुन लिया।


वो आवाजे उनके दोनों बेटे बहु की थी जो मिलकर उनको वृद्धाश्रम भेजने की बात कर रहे थे। सुनकर वो लड़खड़ा कर गिरने ही वाले थे कि तभी किसी के मजबूत हाथों ने उनको थाम लिया।मुड़कर देखा तो आँखों में आँसू आ गए ! वो उनका बचपन का दोस्त कम भाई जोसेफ था! 


जोसेफ ने उन्हें फोन किया था लेकिन फोन रामलाल ने उठाया था और उसने सारी स्थिति से अवगत करा दिया था।

उसे इंडिया घूमने आना ही था सो वह शैलेन्द्र जी से मिलने आ गया।


यहाँ आकर सब कुछ देख सुनकर जोसेफ बहुत गुस्से में आ गया लेकिन शैलेंद्र जी उसको रोककर गहरी सांस लेते हुए कहा -" ये गरजने वाले बादल है जोसेफ जो कभी बरसेंगे नहीं!अब हद कर दिया है इन्होंने अब मैं दिखाऊंगा इनको कि मैं आज भी वही शैलेंद्र हूँ जिसने शून्य से शुरू करके अपने आपको इस शहर का सबसे बड़ा कारोबारी बनाया है।"


फिर उन्होंने वकील को बुलाकर नई वसीयत बनवाई और उसमें सब कुछ अपने नाम फिर से दूसरी वसीयत बनवाई।


पहले वाली वसीयत में उनके बाद सबकुछ दोनों बेटों में बराबर बंट जाना था।पहले वाली वसीयत के बारे में बेटे जान चुके थे इसलिए शायद उन्हें वृद्धाश्रम भेजना चाहते थे लेकिन वह भूल गए थे कि शैलेन्द्र जी वही इंसान हैं जो हर परिस्थिति से लड़ने में सक्षम रह चुके हैं!


अब इस नई वसीयत के अनुसार उनकी सब प्रोपर्टी उस वृद्धाश्रम को दान हो जानी थी जो उन्होंने और जोसेफ ने साथ मिलकर

बनवाई थी।

उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसा ही एक छोटा सा अनाथालय बनवाया था मिलकर जहां उनके जैसे बेघर बच्चे औरते रह सकते थे।


इतना सब करके अगले दिन उन्होंने एक बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलवाई और ये सबकुछ सार्वजनिक कर दिया।

उस कांफ्रेंस में शहर के अपने जाने माने हस्तियों औऱ बिजनेस वर्ल्ड के लोगो को भी बुलाया था।


बेटो को जब अचानक से टीवी चैनल द्वारा इसका पता चला तो गुस्से में आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही शैलेन्द्र जी को उल्टा सीधा बोलने लगे।


तब प्रेस कॉन्फ्रेंस में माइक अपने हाथ में लेकर शैलेंद्र जी ने बोलना शुरू किया - " क्या गलत किया मैंने आपलोग जरा बताइये ! अपनी ही संपत्ति अपने नाम कर दुबारा कर ली जो मेरी ही अपनी खून पसीने की कमाई थी!... अपने बच्चों को मैंने कभी कुछ नहीं कहा क्योंकि ये सब लोग भी मेरी इज्जत करते थे मेरे सामने! लेकिन जब से इन लोगों की वो बाते सुनी जिसमें ये लोग मुझे वृद्धाश्रम भेजने की बात कर रहे थे ! तब से दिल बुरी तरह टूट गया मेरा!

क्या कुछ नहीं किया मैंने अपने बच्चों के लिए!और ये सब मुझे ही वृद्धाश्रम में भेजने चले थे!...... वो भी मुझे मेरी ही संपत्ति से बेदखल करके!

और जरा ये तो बता दें मुझे किस संपत्ति से! 

उस संपत्ति से जिसमें इनका कुछ नहीं लगा!.... सारी मेहनत मेरी !....


उसके बाद उन्होंने बेटों की तरफ मुखातिब होते हुए कहा-" और हाँ 

एक बात और मैं आपलोगों के समक्ष अपने बेटों से कहना चाहता हूँ कि जो 

मेरी दुकानों पर तुम लोग काम देखते हो न.. मेरे मैनेजर रामलाल से हिसाब किताब कर लेना !....अरे भई....अब इतना निर्दयी बाप भी नहीं हूं कि अपने बेटों को उनके परिश्रम का फल न दे सकूं।

तुम दोनो भाइयों को अपने काम के मुताबिक पूरा वेतन मिलेगा.... अगर आगे काम करना हो तो !... और हाँ मेरे बंगले से अपना अपना सामान ले लो और जहाँ मेरे बाकी कर्मचारियों के घर है वहाँ चाहो तो रह सकते हो या कही और भी देख सकते हो तुम्हारी मर्जी है!....

कहते हुए शैलेन्द्र जी बुरी तरह हाँफने लगे थे लेकिन फिर भी माइक थामकर बोले-

" बहुत अच्छा हुआ बच्चों जो मुझे समय रहते सब पता चल गया!इसके लिए तुम दोनो का बहुत धन्यवाद!.... भगवान तुमलोग जैसे बच्चे किसी दुश्मन को भी न दे!...."

 कहते हुए उनके माइक नीचे रखते ही लोगों ने तालियों की बौछारें करनी शुरू कर दी।

दूसरी तरफ उनके बेटे बहू हक्के बक्के होकर देख रहे थे। उन्होंने सपने में भी इसकी उम्मीद नहीं की थी!


सब जानने वालों से हाथ मिलाकर

अब शैलेन्द्र जी आकर अपनी गाड़ी में बैठ गए जहाँ उनके साथ उनका दोस्त जोसेफ और मैनेजर भी थे।वह अपने दोस्त को लेकर वृंदावन आदि जगहों पर घुमाने के लिए निकल रहे थे।आज उनकी आँखों में फिर से आँसू थे लेकिन वह खुशीमिश्रित आँसू थे!


जोसेफ ने उनका हाथ उसी तरह थाम लिया जिस तरह से उसने पहली बार आस्ट्रेलिया में पहली बार शैलेन्द्र जी से मिलने पर हाथ थामा था!

आज शैलेन्द्र जी बहुत हल्का महसूस कर रहे थे।इतने दिनों से उनके दिल पर रखा बोझ जो उतर गया था।

रामलाल को देखते हुए वह मन में उसकी बताई कहानी में खुद को रखकर सोच रहे थे।


जाते जाते उन्होंने अपने बेटों पर एक नजर डालना भी उचित नहीं समझा! 

जिन बच्चों के लिए उन्होंने अपना जीवन अकेले गुजार दिया आज उन्हीं बच्चों से उन्हें घृणा महसूस हो रही थी।


वही दूसरी तरफ दोनो बेटो को मीडिया ने चारो तरफ से घेर लिया था और सवालों की बौछारें किये जा रहे थे! ... दोनो से जवाब देते नहीं बन रहा था ! अपनी गलती का एहसासे जुर्म उन्हें कुछ बोलने नहीं दे रहा था!....


आज गरजने वाले बादल बरसने के बजाय मुँह छुपा रहे थे!



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