तेरी बहन है क्या ?

तेरी बहन है क्या ?

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‘सुन, तू मेरा भाई बनेगा ?’ कक्षा आठवीं के खाली कालांश में उसे रफकार्य की नोटबुक में आड़ी तिरछी लाइनें खींचते देख उसने उससे पूछा।

‘क्यों ?’ उसके इस अप्रत्याशित सवाल से हाथ में पकड़ रखी कलम आप ही थम गई।

‘कल रक्षाबंधन है न ! मेरा कोई भाई नहीं है।’ कहते हुए एक गहरी उदासी उसकी आंखों में उतर आई।

उसके आसपास की बेंच पर बैठे सहपाठियों से उसकी आंखें चार हुई। उनके चेहरों पर उभर आई दबी हुई हंसी लकीरों का मर्म उसने महसूस किया। कक्षा की सबसे नाजुक, खूबसूरत और मुस्कुराने पर फूलों की पंखुडियां बिखरने वाली रानी ने रौनक को अपना भाई बनने के लिए प्रपोज किया । पूरी कक्षा में एक कान से होते हुए दूसरे कान में पहुंचते हुए बात फैल गई।

उससे कोई जवाब न पाकर अपनी उदासी को पीते हुए वह उसकी तरफ देखकर चुप हो गई।

‘ऐ रौनक ! तेरी बहन है क्या ?’ तभी पीछे से एक जुमला उछला। फिर एक जोरदार सामूहिक हंसी गूंजी और फिर गणित के सर के आते ही पूरी कक्षा में श्मशानवत शान्ति भी छा गई।

‘सुन ! मैं कल सुबह ठीक नौ बजे तेरे घर आऊंगा। मेरी भी कोई बहन नहीं है। मैं तेरा भाई बनूंगा ।’ स्कूल बैग कन्धे पर लटकाकर आखरी कालांश पूरा होने पर उसके पीछे कक्षा से निकलते हुए उसने धीमे से उसके कान में कहा । उसके होंठ खिल गए और फूलों की पंखुडियां बिखर गई।

सुबह जल्दी ही हो गई। वह जाने को तैयार हुआ तो मां ने चाकलेट का एक बड़ा सा बॉक्स उसके हाथ में रख दिया।

‘बहन को सौगात दिए बिना वापस नहीं आते।’ 

उसकी आंखें एक रिश्ता पाने की खुशी से दमक उठी। साइकिल के सैकड़ों पैडल मारकर ठीक नौ बजे वह रानी के घर पहुंच गया। रानी के घर काफी लोगों की चहल पहल थी । इतने सारे लोगों को देखकर संकोच से उसके कदम ठिठक गए। फिर लोगों के चेहरे पर नजर डालते हुए आंखों में दमक और हाथों में चाकलेट का बॉक्स लिए हिम्मतकर वह घर के अन्दर पहुंच गया। 

नाजुक, खूबसूरत और मुस्कुराने पर फूलों की पंखुडियां बिखेरने वाली रानी उसे कहीं नजर नहीं आई।

‘बेटा, तू कौन ? रौनक ?’ तभी उसके पीछे से कांपती हुई एक आवाज उसके कानों में पड़ी।

‘जी दादी ! रानी ने मुझे भाई बनाया है।’ चाकलेट के बॉक्स पर उंगलियां फेरते हुए उसकी आंखें और ज्यादा दमकने लगी।

‘रानी ने कल स्कूल से आकर बताया था।’ 

‘रानी तैयार हो रही है क्या दादी ?’ जवाब सुन उसने जिज्ञासा जताई।

‘हं ... हम तैयारी कर रहे है बेटा। कल रात फिर से उसे अपेंडिक्स का दर्द उठा था। उसकी बॉडी को अस्पताल से लेकर उसके पापा और चाचा आते ही होगें।’ 

इस उम्र में इतनी समझ तो उसे आ ही चुकी थी इन्सान के नाम की जगह बॉडी शब्द का प्रयोग उसके मरने के बाद ही किया जाता है। हाथों में पकड़ रखी सौगात जमीन पर गिरकर बिखर गई।

तभी उसके कानों में फिर से एक आवाज गूंजी।

‘ऐ रौनक ! तेरी बहन है क्या ?’


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