तेरे जैसा यार कहां
तेरे जैसा यार कहां
मैं कभी भुला नहीं सकती, हां सखी वर्षा को। उसको ऑफिस में काम करते हुए एक साल भी नहीं हुआ, वह मेरे दिल के इतने करीब हो गई, एक दिन भी नहीं मिलती उससे तो खालीपन महसूस होता। अचानक ही मन सोचता जिंदगी एक सराय, इस सराय में कौन कहां कैसे मिल जाए और कहे बाबुूमोशाय, साथ रहने को हम आए।
इसी बीच मेरे विवाह की घड़ियां नजदीक आ गई, वर्षा ने उपहार-स्वरूप हाथों में "मेहंदी रचा' शादी के पूर्व की महत्वपूर्ण रस्म निभाई, जिसे यादकर प्रेरित मन गा उठता है, "तेरे जैसा यार कहाँ।"