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Vidya Sharma

Drama

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Vidya Sharma

Drama

तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी

तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी

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गरिमा बार-बार बालकनी के चक्कर काट रही थी और हर बार उसकी नजर सामने वाली सड़क पर दूर तलक चली जाती पर कुछ निराश होती और मन ही मन जाने क्या बुदबुदाती। मोबाइल भी बीच-बीच में चेक कर रही थी।

अब उसकी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी उसका गोरा रंग गुस्से में लाल हुआ जा रहा था और टेंशन के मारे बुरा हाल था।

और हो भी क्यों ना आज उसके दोस्त और प्यार रवि का नेट का रिजल्ट जो आना है। उसके लिए वह पिछले 2 सालों से, इस दुनिया से, अपनी फैमिली से ,और गरिमा से, खुद को दूर कर रखा था। जबकि गरिमा उसकी लाइफ लाइन थी।

आज गरिमा बहुत डर रही थी क्योंकि उसे साफ कहा था कि अगर वो इस बार पास नहीं हो पाया तो सब कुछ खत्म कर दूंगा।

उसे डर था कि वह सफल ना हो पाया तो कहीं कुछ गलत कदम नाम ना उठा ले।

वह रवि को बहुत पसंद करती थी।

( रवि के घर का दृश्य )

रवि के घर पर लोगों का आना जाना शुरू हो गया था, फोन पर भी कुछ लोग अपनी संवेदना दिखा कर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे।

मां ने भगवान के ऊपर अपने इमोशनल शब्दों के प्रहार शुरू कर दिए थे।

हे भगवान ! क्या कमी रह गई थी मेरी पूजा में ?? रोज देसी घी का दिया जलाया तेरे आगे ,भोग प्रसाद में कमी नहीं आने देती है और तूने यह दिन दिखाया है। आज से तेरा मुंह भी नहीं देखूंगी

और इसी के साथ भगवान जी का निवाला छिन गया अब पता नहीं कब मिलेगा ? बेचारे भगवान भी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए चुपचाप रहे, हमेशा की तरह।

पिताजी दांत पीसते पीसते कमरे के चक्कर लगाते और फिर चार पैरों वाली कुर्सी पर आकर बैठ जाते हैं और जैसे उन्हें कुछ याद आ जाता है 20000 लाला जी को देने हैं, वह ना मानेगा पर अब तो पैसा भी गया और इज्जत भी।

लोग क्या कहेंगे ? कल दफ्तर क्या मुंह लेकर जाऊंगा?

वह मिश्रा तो कब से मौका ढूंढ रहा था मेरी मिट्टी पलीद करने की और लाड साहब ने उसे मौका दे दिया।

घर से निकलते सब पूछेंगे बेटा बन गया डॉक्टर ? अरे मैं तो शर्म के मारे मर जाऊंगा। उनका स्वर तेज होता जा रहा था और जिसे वह सुनाना चाह रहे थे ,वह सुन भी रहा था उनका बेटा रवि

लाख कोशिशों के बावजूद मेडिकल की परीक्षा पास नहीं कर पाया और स्वयं को किसी अपराधी की तरह अपने कमरे में कैद कर लिया था।

मां बाप ने औकात से बढ़कर खर्च किया ,उधार लिए, परीक्षा के दिनों में तो उसके साथ राजकुमारो सरीखा व्यवहार करते थे।

रवि के पिता एक मध्यवर्गीय परिवार के थे और बेटे को डॉक्टर बनाना चाहते थे वजह यह कि उनके ऑफिस के ही मिश्रा जी ने कहा था कि डॉक्टरी पढ़ाना आप के बस की बात नहीं।

बस फिर क्या बेटे को डॉक्टर बनाने का फरमान सुना डाला जबकि रवि सी ए के सपने देख रहा था।

यह सभी नाटकीय घटनाक्रम होते - होते काफी वक्त बीत गया था पर कमरे से रवि की कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी। अब उनका दिल किसी अनहोनी से घबराने लगा। रवि की मां भी पीछे से चिल्लाई बेटे की जान लोगे क्या?

तभी पड़ोस की उनकी सखिया भी आ गए जो कि रवि की मेहनत का लेखा-जोखा लगा रही थी और शंका भरे शब्दों की झड़ी लगा रही थी।

अरे कहीं फांसी को नहीं लगा ली आजकल के बच्चे तो पूछो मत।

लेकिन उन्हें पता भी नहीं था कि कमरे के उस पार रवि भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था। उसका मन निराशा से भर चुका था अपने माता पिता की बातें सुनकर वह लगभग टूट सा गया उसे ऐसा लगने लगा अब उसका जीना व्यर्थ है। वह अच्छा बेटा नहीं है ,क्योंकि वह अपने माता पिता के सपनों को पूरा नहीं कर सका और उन्हें कभी खुशी नहीं दे पाएगा। वह अपनी सिसकियो को दांत भींच कर, अपने अंदर ही दफन कर रहा था। वह सोचने लगा कि किस मुंह से अपने मां बाप के पास जाएगा।

  वह अपने कमरे मे रखी हर एक चीज को ,जी भर के देख लेना चाहता था। तभी उसने टेबल की दराज खोली और गरिमा की तस्वीर निकाली जो उसने सब छुपा कर रखी थी वह उसे सीने से लग कर रो पड़ा। कितना कुछ छूटने वाला था उसे गरिमा से यह भी तो बताना था कि वह उसे कितना प्यार करता है पर अब ऐसा नहीं हो पाएगा क्योंकि वह एक नाकाम इंसान है पर मोबाइल पर एक नंबर से कॉल लगातार आ रही थी जिसे वो लगातार अनदेखा कर रहा था।

और वह काल थी गरिमा की। वही गरिमा जो उसके सभी अच्छे बुरे पलों की साथी थी जिसे देख कर उसे खुद के होने का एहसास होता था।

बार बार उसकी कॉल देख कर उसने सोचा आखिरी बार उससे बात कर लू पर उसे कुछ नहीं बताऊंगा।

जैसे ही उसने कॉल उठाया उधर से आवाज है रवि मुझसे आखिरी बार मिलना चाहते हो तो तुरंत मेरे घर आ जाओ मैं आखिरी बार मरने से पहले तुमसे मिलना चाहती हूं।

रवि हैरान-परेशान अरे पर हुआ क्या ऐसे क्यों कह रही हो ?

(गरिमा ) रवि कुछ मत पूछो मेरी आखिरी ख्वाहिश समझ लो और आ जाओ वरना मेरी आत्मा कभी चैन नहीं मिलेगा। 

थोड़ी देर पहले रवि के दिमाग में जो भी चल रहा था, उसके कमरे के बाहर जो बातें हो रही थी , वह सब भूलकर रवि दरवाजा खोलकर बाहर निकला।

मां- पिताजी कुछ बोलते- समझते इससे पहले वह तेज कदमों से गरिमा के घर की ओर चल दिया।और सीधा गरिमा के कमरे की ओर चला गया, उसने हड़बड़ाहट में हॉल में बैठे गरिमा के मम्मी पापा को भी नहीं देखा।

जैसे वह पहुंचा उसने देखा कि वह बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ी है और पास ही एक खाली शीशी पड़ी थी।

देखते ह रवि की चीख निकल पड़ी। कुछ देर के लिए उसे लगा कि उसकी धड़कन ने धड़कना बंद कर दिया। उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था वह लड़खड़ाते  कदमों से गरिमा के पास तक गया और बोला क्यों गरिमा क्यूं ? ऐसा क्यों किया तुमने ? एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा।

तुम्हें पता है ना मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं। अगर कोई प्रॉब्लम थी तुम मुझे बताती हम मिलकर उसे सॉल्व कर लेते। मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगा।

तभी गरिमा की आवाज आई   अच्छा !!!  तो तुम्हें नहीं पता था कि तुम्हें कुछ हुआ तो मैं मर जाऊंगी ? क्या तुम अपनी तकलीफ मेरे साथ नहीं शेयर कर सकते ?

बस इतना ही समझा मुझे , बस इतना ही प्यार करते थे ?

गरिमा को यूं जीता जागता देख रवि खुशी के मारे पागल हो गया और उसे गले लगा कर बोला आई लव यू गरिमा मुझे माफ कर दो, मुझे सब समझ आ गया।

आई प्रॉमिस अब कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा

(गरिमा) सोचना भी मत ! करना तो बहुत दूर की बात है ऐसा मारूंगी के पकोड़े वाली नाक टूट जाएगी और फिर कोई डॉक्टर उसे जोड़ भी नहीं पाएगा। यह कहकर दोनों हंसने लगते है तभी रवि को ध्यान आया कि गरिमा के मम्मी पापा कहा है, कोई आया क्यों नहीं अब तक ?

गरिमा ने उसे बताया कि उसने ही इस नाटक में उन सब को शामिल कर रखा था।

रवि बोला वाह पूरी फैमिली ही ड्रामेबाज है क्या ?

गरिमा बोली क्या बोला ? 

  रवि -- कुछ नहीं कुछ नहीं और फिर दोनों मुस्कुरा दिए। इतने में गरिमा के मम्मी पापा और रवि की मम्मी पापा वहां पहुंच गये उन्हें देख रवि से ने उनसे माफी मांगी

"नही बेटा माफी तो हमें मांगनी चाहिए बिना तुम्हारी इच्छा जाने बिना तुम्हारे सपनों की कद्र के लिए तुम पर आकांक्षाओं का बोझ लाद दिया "

तब रवि ने कहा नहीं पापा ऐसा मत कहिए।

रवि के पिता ने कहा आज हम समझ गए कि बच्चों को बड़ा बनाने की सोच गलत नहीं है, गलत है अपनी सोच उन पर थोपना गलत है मुश्किलों में उनका हाथ थामने की बजाय झूठी शान के लिए उन्हें अकेला छोड़ देना।

उन्होंने गरिमा को गले से लगा लिया और उसकी बुद्धि और हिम्मत की तारीफ की।

रवि के साथ अब उसका पूरा परिवार था। उसने सीए की तैयारी शुरू कर दी और कड़ी मेहनत के बाद उसे उसमें सफलता भी मिली। जो लोग पहले ताने देते थे ,वही अब तारीफ करते नहीं थक रहे थे। रवि और गरिमा की शादी हो गई ,मीठी नोक झोंक और समझदारी के साथ उनकी जिंदगी खुशियों के रास्ते पर चल पड़ी।


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