स्वदेशी वार्मिंग

स्वदेशी वार्मिंग

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शहर के अन्य कई स्थानों की तरह उस मोहल्ले में भी आज होलिका दहन किया जा रहा था, उसी मोहल्ले का एक व्यक्ति अपने बेटे के साथ वहां आया हुआ था और उसके बेटे ने एक बड़ा सा थैला उठा रखा था। जब होली की लपटें ऊपर उठने लगीं तो उसने अपने बेटे से वह थैला लिया, और वहां खड़े सभी व्यक्तियों से संबोधित होते हुए कहा, "इस थैले में विदेश में बनी वस्तुएं हैं, मैंने इनका प्रयोग आज से बंद कर दिया है, और अब इस उम्मीद के साथ इन्हें होली की पवित्र आग में जला रहा हूँ कि हमारे मोहल्ले में आज से स्वदेशी वस्तुओं का ही अधिक से अधिक प्रयोग होगा।"

यह कह कर उसने थैले में से एक-एक करके वस्तुएं निकालनी आरम्भ कीं और उन्हें होली की दहकती लपटों में फैंकने लगा। कुछ वस्तुएं फैंकने के बाद, उसके हाथ में एक पुस्तक आई, वह चौंका क्योंकि उस पुस्तक को उसने थैले में नहीं रखा था, उसके बेटे ने उसे आश्चर्यचकित देख कर कहा, "किताबें मैनें रखी है, मेरी पिछली कक्षा की हैं और अंग्रेजी में लिखी हुई हैं, इसलिए वो भी ले आया।"

उसने बेटे को लगभग डांटते हुए कहा, "इन्हें अपने पास ही रखो, किसी ज़रूरतमंद को दे देना। जानते हो कागज़ बनाने के लिए कितने पेड़ कटते हैं, जिससे पर्यावरण को हानि पहुँचती है और इन्हीं से ग्लोबल वार्मिंग फ़ैल रही है... "

उसकी यह बात सुनते ही प्रह्लाद रुपी लकड़ी कराह उठी, उसे स्वयं की जड़ का धरती से बिछुड़ना याद आ गया और उसमें से दो आंसू बह कर धरती पर जा गिरे, लेकिन गर्म धरती ने आंसू गिरते ही उन्हें सोख लिया।

और वह व्यक्ति थैले की बाकी वस्तुओं का दहन करने में मग्न था।


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