Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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ये तेरा दर्द - ये मेरा दर्द

ये तेरा दर्द - ये मेरा दर्द

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"कौन ?" वह शायद हवा की सरसराहट थी, लेकिन उसे कुछ शब्द से सुनाई दे रहे थे।

उसने आसपास देखा। दूर प्रार्थना स्थल के अंदर जाते हुए कुछ लोगों के अलावा उसे कोई और दिखाई नहीं दिया।

"उफ्फ! धोखेबाजों की दुनिया में अब तो ये हवा भी! ईश्वर, तेरी बनाई सृष्टि से दुःख और धोखे के सिवा कुछ और मिल भी सकता है क्या? मेरे दुःख-दर्द तू ले क्यों नहीं लेता?"

कितने ही दिनों से वह ऐसे ही शब्द बड़बड़ा रहा था। यों तो वह शरीर से स्वस्थ था, लेकिन जीवन में मिले दुःखों ने उसे अंदर तक तोड़ दिया था।

हवा में सरसराहट फिर गूंजी जैसे कोई कह रहा हो, "तेरी सारी ससससस.... ससससस...."

स्वर की आवृत्ति इतनी गहरी थी कि वह घबरा गया। उसके आसपास तो कोई था नहीं।

उसी समय उसे स्वयं में एक ऊर्जा सी महसूस भी होने लगी। उसकी आँखें भी बंद होने लगी और अब उसे स्पष्ट सुनाई देने लगा। वह गहरा अनजाना स्वर कह रहा था, "तेरी सारी तकलीफें खत्म हो जाएंगी। तू सिर्फ किसी भी एक जीव का कैसा भी दर्द ले ले। "

वह प्रसन्न हो उठा। उसने सामने देखा, वहां ज़ख्मों से भरे शरीर वाला एक आवारा कुत्ता खड़ा था। उसने सोचा, " देखते हैं इस आवाज़ से सच्चाई है कि नहीं, वैसे भी किसी इंसान से बेहतर है, इसी कुत्ते का दर्द ले लूँ।" 

यह सोचकर वह बोला "इस कुत्ते का दर्द मुझे मिल जाए।"

और आश्चर्य! देखते ही देखते सामने खड़े कुत्ते का चेहरा खिल उठा। लेकिन उसके उलट वह भयंकर दर्द से भर उठा। उसके लिए वह दर्द असहनीय था। वह ईश्वर से कहने लगा, "अरे! मुझे इस दर्द से मुक्ति दो, कुत्ते ने पता नहीं कहाँ-कहाँ मुंह मारा है। किसी और के कर्मों का दर्द मैं क्यों लूँ ?"

"और तू चाहता है कि तेरे सारे दुःख-दर्द में ले लूँ ! क्यों !" उसके कानों में स्पष्ट सरसराहट फिर गुंजायमान हो उठी।


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