सुनयना... जैसी कौन है...?
सुनयना... जैसी कौन है...?
सुनयना के लिए ऐसी बातें सुनना कोई नई बात नहीं थी।
" इस सुनयना को देख रही हो ना... पूरे घर की जिम्मेदारी संभाली है इसने और क्या मजाल जो चेहरे पर कभी कोई शिकन भी आ जाए। शिव जी की तरह सारा गरल पी जाती है और हंसती रहती है!"
गांव की औरतें सुनयना को देखकर कहती और...उसका उदाहरण देती थी।वैसे...सुनयना जबसे बड़ी हुई थी, उसने घर का काम ही संभाला था।बाबूजी के जाने के बाद अम्मा तो समय से पहले ही बुढ़ा गई थी।दोनों छोटे भाई किशना और नवीन और छोटी बहन किशोरी जिम्मेदारी निभाते निभाते उसने कब अपने पर ध्यान दिया था...?
दसवीं दसवीं तो पढ़ी थी सुकन्या कि बाबूजी का देहांत हो गया उसके बाद से कैसे भी ट्यूशन कर करके वह घर का काम चलाती रही थी। प्राइवेट से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। फिर टीचर ट्रेनिंग करके वही गांव के स्कूल में टीचर लग गई।
तब से लेकर आज तक उसकी जिम्मेदारियों से उसका उग्रास कहां हुआ था....?
दोनों छोटे भाइयों का ब्याह करा कर तो उसने अपने पैर पर कुल्हाड़ी ही मार ली थी। और दोनों छोटे भाइयों की पत्नियां कुंती और श्यामा दोनों लड़कियों ने घर में आकर तो सुनयना को ही घर से बाहर निकालने की ठान ली थी।किशोरी के बियाह तक़ वह फिर भी बर्दाश्त करती रही।
पर उसके बाद दोनों छोटे भाइयों की पत्नियों ने जब उसका जीना हराम कर दिया। यहां तक की अम्मा को भी दो जून की रोटी भी मिलनी मुश्किल हो गई तब सुनयना ने अपना मुंह खोला।
" नवीना और बिशशना! तुम दोनों अब गाँव में कहीं और घर देख लो!"
"हम क्यों जाएंगे घर से....?
हम तो इस घर के बेटे हैं। जाओगी तो तुम दिदिया। क्योंकि बेटियां ही घर से बाहर विदा होकर जाती हैं बेटा नहीं !"
ज़ब दोनों भाई बेशर्मी पर उतर आए तो अम्मा का मुंह खोलना बहुत ही जरूरी हो गया।
" काहे रे बिशना ... काहे रे नविनवां... बाबूजी के बाद घर इसी ने चलाया और आज तुम इसी को घर से निकालने की बात कर रहे हो ? "
नवीन तुनक का बोला,,
" हां तो सही तो कह रहे हैं...! बेटी ना विदा होकर जाती है कि बेटा घर छोड़कर जाता है ? तनिक बताओ अम्मा !"
इस पर अम्मा ने भी ऊंची आवाज में कह ही दिया।
" हाँ रे बिशना ! बेटी विदा होकर जाती है लेकिन ब्याह करके इज्जत के साथ जाती है। ई हमरी बेटी तो पूरा जिनगी इस घर को संभालती रही।सारा गरल शिवजी की तरह खुद पीती रही।आज मेरी सुनैना बेटी की उम्र हो गई है तो तुम लोग उसको ऐसा कह रहे हो? मैं ना सुनूंगी और ना मैं बेटी का अपमान होने दूँगी, कहे देती हूं!"
अम्मा की जोरदार और दृढ़ आवाज सुनकर दोनों बेटे और बहू चुप हो गए।
अब अम्मा ने अपना आखिरी फैसला सुनाया....
" तुम दोनों को अगर इस घर में रहना है तो अपने अपने कमरे का किराया देना होगा। नहीं तो यह घर छोड़कर जा सकते हो। मैं आज ही पंचायत के पास जाकर यह पूरा घर सुनैना के नाम कर रही हूं। इस घर और तमाम खेतों पर उसी का हक है और वही सारी संपत्ति की हकदार है। समझे....? अब अगर कोई तू चु चपड़ करेगा तो मैं उसे अभी घर से निकाल दूंगी!"
आज यूँ लग रहा था मानों अम्मा में बाबू जी की आत्मा समा गई थी। और जिस तरह से वह दहाड़ कर कह रही थी...उससे दोनों बेटे और बहू डर कर चुप हो गए थे।.और सुनयना की आंखों में लबालब आंसू भर गए थे।
सुनयना की यही तो ख्वाहिश थी कि... उसे भी सम्मान मिले। एक समय ऐसा जरूर आए जो उसके किए का उसे फल भी मिले और पूरी दुनिया जाने कि उसने कितना त्याग किया है। आज उसकी ख्वाहिश पूरी हो गई थी।
सारी जिंदगी दुःख सहती रही थी। अपमान और परेशानियों का गरल पीती रही थी आज अम्मा ने उसे सम्मान दिला कर जैसे सारा पावना चुका दिया था।
समाप्त