सुनसान पुल का बूढ़ा
सुनसान पुल का बूढ़ा
मुझे और मेरे कसिन्स को भूतों की कहानियाँ सुनने में काफी दिलछस्ती थी। एक त्योहार के रात हम सब इकट्ठे हुवे थे। रात 11 के पास हो रही थी। हम सबने हमारे बड़े बैय्या से ज़िद की कि वह भूत की कहानी सुनाये और हमारे ज़िद पे आकर उसने उसी शहर में उसके दोस्तों के सात घटी एक सच्ची घटना हमें सुनाई।
हमारा गाँव कर्नाटक की उडुपी जिला के तोठ्ठम नामक गाँव है। मलपे बीच सबको पता ही है, वहाँ से उत्तर की तरफ बड़े तो हमारी तोठ्ठम बीच मिलती है। हमारे बीच मे नदी और समंदर का पानी एक जगह मिलने की जगह है जिससे हम "पोटेटलला "(तुळु भाषा) बुलाते हैं( सिर्फ बारिश के मौसम में)। उस जगह को यह नाम कैसे मिली वह अब मूल्य नहीं!में अब आप लोगों को वह कहानी सुनाने जारही हूँ जो दक्षिण तोटटम की एक सुनसान पुल में घटी सच्ची घटना है जो मेरे भाई ने मुझे सुनाई थी।
वह पुल बहुत छोटी सी थी।उसमें एक समय मे दो बड़े गाड़ियों का या एक छोटा दुजा बड़े गाड़ी का सात सात आमने सामने गुज़र जाना असंभव था। नवरात्रि के समय उससे कुछ दूर की दुर्गा मंदिर जाते वक्त अगर कोई बस आती थी तो हम रुखकर बस के जाने के बाद ही उस पुल से गुज़रते थे। इसलिए हमारे लोग उसे "पोट्टू संका" (खराब सेतू) कहकर पुकारते थे। लेकिन आज ग्राम पंचायत में काफी चर्चा होने के बाद उस सेतू को चौड़ा किया गया है। लेकिन यह घटना उस वक्त की है जब वह पुल छोटी सी थी।
एक अधपूर्णिमा की रात मेरे भाई के 3 दोस्त उत्तर तोटटम से दक्षिण तोटटम चले आ रहे थे। किसी काम के कारण देर हुई थी और वे लोग 12 के बाहर उस पुल के तरफ भड़ते दक्षिण तोटटम आ रहे थे कि उन्होंने दूर से उस पुल के एक स्थम्ब मे किसी बूढ़े को बैठे अजीब डंग से बार बार नीचे नदी में मछली की छड़ को फेकते हुवे देखा। उस पुल के पास आते ठीक से नज़र आ रहा था कि एक बूढ़ा बार बार नदी में बंसी फेक रहा था।
"यह बूढ़ा इस वक़्त क्या मछली पकड़ रहा है?" उनमे से एक ने कहा।
" हाँ यार इस वक़्त क्या मछली पकड़ना!!" दूसरे ने कहा।
" चलो देखें इस बूढ़े ने कितनी मछली पकड़ी हैं।" जब तीसरे ने यह कहा तब सबने बूढ़े के पास जाने का फ़ैसला किया।
पुल के पास पास आते ही बूढे का निरंतर नदी में मछली का चढ़ फेंकना अधपूर्णिमा की रोशनी में ठीक से दिखाई दे रहा था। मेरे भाई के तीनो दोस्त बूढे के पास गए लेकिन बूढ़ा तो फिरभी नदी में चढ़ फेंक ही रहा था।
मेरे भाई के दोस्तों ने सोचा कि पहले यह देखा जाए कि बूढे ने कितनी मछली पकड़ी है। इसलिए उन्होंने पास ही पड़ी प्लास्टिक उठाके उसके अंदर टॉर्च की रोशनी डाली। लेकिन उसमे कुछ भी नही था!!! फिर जब उन्होंने नदी में टार्च डाली तो नदी का पानी भी पूरा खाली था।
"यह बूढ़ा बिना पानी के नदी में क्या मछली पकड़ रहा है? दादाजी!? "कहके उनमे से किसी ने बूढ़े को पुकारा! लेकिन बूढ़ा तो निरंतर नदी में मछली का चढ़ फेंक उसे बार बार कींच रहा था!! इसलिए उनमे से किसी ने हंसकर बोला "ओह मछली पकड़नेवाले दादाजी ?!!!" ऐसा कहते ही उसने दादाजी की शक्ल पे टॉर्च की रोशनी डॉली......!!!!!!!!!!
" लेकिन आस्चर्य, भयानक!!!!! दादाजी की शक्ल नहीं दिखी! लेकिन हात और पूरा शरीर दिखाई दे रही थी और वे निरंतर नदी में चढ़ फेंक कर कींच रहे थे। मेरे भाई के दोस्त घबराकर ज़ोर से चिल्लाते हुवे वही पास के रिश्तेदार के घर पहुंचगए और उन्होंने सारी घटना उनहे सुनाई जिसपर उनके रिश्तेदारों ने कहा,
" यह जगह ऐसी ही है, भयानक! यहां रात को चिल्लाने की आवाज़, पायल की आवाज़ आती है। रात को न जाने कौन आकर क्या फेंक जाता है नदी में और समंदर से उठी शव इसी नदी में शायद मिल जाते हैं। "
वह रात मेरे भाई के दोस्त वहीं ठहरे लेकिन उन्होंने कहा था कि जब टॉर्च की रोशनी बूढ़े के शक्ल से उन्होंने हटाई थी फिरसे बूढे की शक्ल दिखी थी और भागते जब उन्होंने पीछे मुड़ा तब भी बूढ़ा नदी में चढ़ फेंक कींच रहा था। उनमे से एक को अगले दिन तेज़ बुखार हो गयी थी( जिन्होंने बूढ़े की शक्ल के ऊपर टॉर्च डाली थी)
इस कहानी को सुनकर हुम् पूरी रात डरकर सोये थे। आज भी जब मैं उस पुल के पास से गुजरती हूँ तब सोचती हूँ कि कैसे वह बूढ़ा पुल के स्तम्भ में बैठ मछली पकड़ रहा था लेकिन इसे सोचते ही बहुत डर लगता है !