Rashmi R Kotian

Horror

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Rashmi R Kotian

Horror

भूतों की सच्ची कहानियाँ

भूतों की सच्ची कहानियाँ

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" " मामा क्या आपको भूतो पे विश्वास है।" मैंने पूछा था।

" बिल्कुल विश्वास है।" उन्होंने काफी पीते हुवे बोला था।

" तो आपकी ज़िंदगी मे जो भी हॉरर एक्सपीरियंस हुईं हैं उसे बताईये मामा" मैंने उत्सुक से कहा था।

" चिन्नू बेटा! मैं पहले इन भूत वूत सभी में कोई यकीन नहीं करता था। लेकिन जब उनके होने का अनुभव मुझे हुवा तबसे मैं उनपे यकीन करने लगा" ऐसे कहते ही वह अपनी ज़िन्दगी में घटी हारर अनुभवों के बारे में मुझे बताने लगे। मैं गौरसे उन्हें सुनने लगी।

" बात उस वक़्त की है जब मैं टेलर हुवा करता था। मुम्बई के कार में हमारी घर थी ना !? उससे कुछ ही दूर एक बड़ा शोरूम्स था जहाँ में टेलर था। उस शोरूम में अमिताभ बच्चन, आमिर खान आदि बॉलीवुड के एक्टर्स कपड़े लेने और मूवीज़ के लिए कॉस्ट्यूम लेने आते थे। मैंने आमिर खान के लिए काफी जैकेट सिले थे। मेरे अन्य सहउद्योगियों ने अमिताभ बच्चन के कॉस्ट्यूम्स सिले थे।

उस शोरूम के अंडर ग्राउंड में टेलरिंग सेन्टर था जहाँ हम सब कपड़े सिलते थे।कभी कभी मैं देर तक वहाँ मुझे आयी हुई ऑर्डर्स को पूरा करते बैठ जाता था।

 एक दिन बहुत ऑर्डर्स बाकी रह गए थे। मैं और मेरा एक दोस्त विट्टल दोनों देर रात तक वही सिलते रहे। जब हमारा काम खत्म हुआ तो बहुत देर हो चुकी थी। तो हमने सोचा कि वही टहर जायें। हमारे सात वहाँ के साफ सफाई करनेवाला बिस्नु भी था। मैं वहीं सोफे पे सोगया और मेरा दोस्त विट्टल ज़मीन पर एक कपड़ा ओड़के सो गया। इस्त्री के मेज के नीचे बिस्नु लाइट आफ करके सो गया।

   लेकिन रात के ठीक 1 बजे बिस्नु ज़ोर ज़ोर से चीकने लगा। " भूत !! भूत!! " कहते हुवे वह चिल्ला रहा था। आवाज़ सुनके जब विट्टल ने लाइट आन की तब बिस्नु डरके मारे पसीने से पूरा भीग गया था।पूरा दिन काम करके थका हुआ था जब सो गया तो बिस्नु चिल्लाने लगा। मेरी सुख निद्रा में भांग किया उसने इससे बहुत गुस्सा होकर उससे बहुत कुछ बक गया।

" किदर है रे भूत। भूत भूत चिल्लारहा है। अच्छा खासा थक्के सोया था। जगाया तूने। किदर है भूत? सामने आए मेरे मारके भगा दूंगा। भूत वूत कुछ नहीं होता। साला भूत से डरता है...." गुस्से में उससे और भूत को बहुत कुछ कह गया। लेकिन फिर भी बिस्नु बोल रहा था कि कोई उसका गर्दन ज़ोर से दबा रहा था। फिर मेरे बहुत कहने पर उससे हिम्मत आयी और वह फिर इस्त्री मेज के नीचे सो गया। उसके बातों से विट्टल को गबराहट हुई लेकिन फिरभी वह हिम्मत से सो गया।मैंने लाइट ऑफ की और सोफे पे लेट गया। तबी मुझे हुई वह भयानक अहसास जो पहले कभी नही हुई!!!

 अचानक से कोई मेरे ऊपर बैठ गया और जोरजोर से मेरा गला दबाने लगा। पूरा शरीर भारी!! कोई मेरे ऊपर बैठा है और गर्दन दबा रहा है!! लेकिन मैं चिल्लाने की कोशिश करूं लेकिन बोल नहीं पा रहा। बहुत डर गया था। वह अनदेखी ताकत लगातार मेरे गले को दबा रही थी। मुझे याद आया कैसे मैं भूत को बहुत कुछ कह गया। मैंने मुश्किल से उसे बोला" माफ करदे भाई , वह बच्चा डरा हुआ था , उससे हिम्मत देने के लिए तुझे बहुत कुछ कह गया! छोड़ दे मुझे माफ़ करदे "। मैं हात जोड़कर रोते हुवे उसे कहता रहा और हल्के से उस अनदेखी ताकत ने मेरे शरीर से अपने को हतालिया और फिरसे शरीर हल्का होगया।

मुझे बहुत हैरानी हुई कि मेरे कहने पर वह अदृश्य शक्ति चली गयी। फिर मैं भगवान का मंत्र जाप्ते चुप चाप सो गया। अगले दिन मैंने अपने दोस्त विट्टल को यह घटना बताई। वह डर गया था।

 उस शोरूम के मालिक के पिता ने उस शोरूम को बनवाया था। फिर जब उस शोरूम की बडी तरक्की हुई और बॉलीवुड के लोगों को कास्ट्यूम सेल करनेवाली शोरूम कहलाई तब उनकी तरक्की न सहते हुए उन्हें उनके द्वेषियों ने गुंडा लोगों को भेज कर उनका कत्ल करवाया। जब वे ज़िंदा थे तब शोरूम के हर सदस्य में प्रामाणिकता, निष्ठा और मेहनत की अपेक्षा करते थे। कोई उद्योगी अगर कोई अप्रामाणिक काम, धोखेबाज़ी आदि करता था तो उससे दंड देते थे।

 फिर कुछ दिनों में बिस्नु उस शोरूम में चोरी करते हुए पकड़ा गया था और तब तक जो भी चोरी होती थी वह सभी उसीने किया उसने मान ली थी। इसलिए उस रात को उस आत्मा ने बिस्नु को परेशान की थी!!!

  एक दिन उसी शोरूम में मालिक की बहन लक्ष्मी बड़े आत्मीय भाव से अकेले शोरूम के एक कमरे में बात कर रही थी। " डैडी , डैडी कहते हुए बात कर रही थी। उसे देख हमने मालिक को बुलाया। वे आये और बोलने लगे,

" ए लक्ष्मी किस्से बात कर रही है अकेली?" हैरानी से पूछने लगे।

 " भाई ! वह डैडी!!" कहते ही वह उधर देखके अचानक हैरान हुई और " डैडी डैडी " पुकारने लगी।

" डैडी नहीं रहें लक्ष्मी" मालिक रोते हुवे उसे बोलने लगें। तब अचानक उसे अकल आयी कि उसके पिता गुज़र चुके थे। वह बेहोश होकर गिर पड़ी। उठाने पर बोलने लगीं कि सचमे उसके पिता उसके सामने बैठ बात कर रहे थे। हमारी तरफ मुड़कर पीछे मुड़ते वक़्त गायब हो गए।" उसने रोते हुवे मालिक से कहा। वहाँ के सभी यकीन करते थे कि शोरूम मालिक की आत्मा वहाँ घूमती है।

रात होते ही वहाँ कुत्ते अजीब तरीके से शोरूम के सामने चक्कर काटते थे। मालिक का एक पमोलियन कुत्ता और सड़क के कुछ कुत्ते अपने पूंछ हिलाते हुए इधर से उधर ,उधर से इधर ऊपर हवा में देखते चलते थे जैसे किसीको देखकर उसके सात सात चल रहें हों। बिल्कुल वैसे ही! यह दृश्य ने हमे चौकाया था। भूत होते हैं इस बात पर यकीन आ गयी थी।

  दूसरी घटना तब घटी जब मैं बेंगलूर में ड्राइवर की नौकरी करने लगा। ड्राइवर बनते ही मैने वहाँ के स्पेंसर रोड में , कोल्स पार्क के पास की " ड्यूक्स मेन्शन " नामके होटल में तीसरे मंज़िल में 4 बेडरूम वाली एक रूम को किराए पर ली थी। वहाँ ड्राइवर बनकर कुछ दिनों पर ही एक अपघात से पैर फ्रैक्चर होकर फिर अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर में बेड रेस्ट में था। मैं नाश्ता ,खाना रूम में मंगाकर खाता था। वाशरूम जाना हो तो ही उठता था। बहुत मुश्किल होती थी। पैरों में बहुत दर्द था। इसलिए दर्द के मारे ज़्यादातर समय हाल में पड़ा रहता था। एक रात वहाँ अजीब सी घटना घटी!!!

देर रात में हाल के फर्श पर बेडशीट डाले लेटा हुवा था।भले ही आंख बंद थी लेकिन नींद नहीं आयी थी। पैर भी ज़ोर से दर्द कर रहा था। उस हाल से अट्टाच होकर एक बेडरूम था। वह रात उस बैडरूम का दरवाजा धीरे से आवाज़ करती हुई खुली। फिर वहाँ से किसी की कदमों की आवाज़ें आने लगीं। वह कदम चलते चलते मेरे पास से गुज़रगयीं। ठीक से महसूस हुआ कि कोई मेरे पास से चलता गया।

   मुझे आश्चर्य ,डर दोनों हुवा। मैंने मैन डोर ठीक से बंद की थी। कौन अंदर घुसा?! बैडरूम से कौन आ सकता है। वहाँ की किडकी से तो कोई इंसान घुस नहीं सकता तो यह कौन है?! बहुत डर लगा!! लेकिन उठने की हालत नहीं थी। सही होता तो देखता कौन है। मजबूरी में वहीं पड़ा रहा और बंद आंखों से सब सुनता गया। वह कदम मेरे पास से गुज़र कर रसोई की तरफ गए और रसोई का दरवाजा आवाज़ करते हुए खुली। फिर रसोई में बर्तनों के आवाज़!! फिर जैसे किसी ने नल को ऑन किया हो!! नल से पानी बहने की आवाज़। मुझे बहुत डर लगा!!! मगर रसोई में कोई आम इंसान काम करते वक़्त जैसे आवाज़ आती है वैसे ही आवाज़ें आ रही थी। फिर अचानक आवाज़ें बंद होगयी और रसोई के दरवाजे के फिरसे खुलने की आवाज़ आयी और फिर कोई कदम वहाँ से चलते चलते मेरे पास से गुज़र गए। फिर उस बेडरूम के दरवाजा की आवाज़ आयी जैसे किसीने दरवाज़ा अंदर खींच दी हो ! फिर सब कुछ स्तब्ध!!

सुबह उठते ही बहुत मेहनत करके रसोई के अंदर गया और सारी चीजों देखी। लेकिन सब कुछ अपने जगह पर थे, वैसे के वैसे ही थे। मुझे बहुत हैरानी हुई।

  लेकिन दूसरी रात भी फिरसे वही अनुभव हुआ। फिरसे उस बेडरूम के दरवाजे की आवाज़, किसी कदमों का चलते आना , मेरे यहाँ से गुज़र जाना और रसोई की तरफ जाना, फिर रसोई की दरवाज़े की आवाज़ और फिर बर्तनों की आवाज़, नल की आवाज़। फिर कुछ क्षण बाद फिरसे रसोई की दरवाजे की आवाज़, वहाँ से फिर उन कदमों का मेरे पास से गुजरना और फिर उस बैडरूम के दरवाजे की आहट।फिर स्तब्ध! यह हर रात होती थी।कभी कभी एक दो दिन नहीं होती थी। फिर कभी कभी एक हफ्ते भी नहीं रहती थी लेकिन किसीना किसी दिन फिरसे घटती थी। लेकिन उस आत्मा ने मुझे कोई परेशानी नही दी। बस अपने आप रसोई में आती जाती रहती थी।

लेकिन एक बार मुम्बई से मेरे कुछ दोस्त बेंगलूर घूमने आए थे।उन्हें मैंने अपनी ही गाड़ी में सुबह बेंगलूर के बहुत से जगहों में घुमाया था और रात को ठहरने अपने रूम लेके आया था। उस रात हम सभी हाल में पीके फिर वही सो गए। लेकिन मेरा एक दोस्त उस आत्मा के रास्ते के बीच सो गया। मैंने उसे वहाँ हर रात होती हुई घटनाओं को समझाया और उसे कहा कि वह वहाँ न सोये लेकिन उसने मेरी बात न मानी। कहने लगा वह वहीं सोयेगा और देखेगा कौनसी भूत आएगी। वह पीके नशे में था। बहुत कहने पर भी वहाँ से नही उठा। वहीं सो गया। फिर हम सब उस तरफ सो गए।

रात को 2 के करीब ज़ोर से चिल्लाने लगा। हमारे उठाने पर काँपता हुवा अपने पीठ और सिर पकड़कर चिल्लाने लगा " दर्द हो रहा है. किसीने मुझे उठाके फेंक दी। दर्द हो रहा है। मुझे घर जाना है। मुझे अभी जाना है भेज दो मुझे।" चिल्लाता रहा। हमने उसे समझा भुजाकर सुलाया लेकिन वह सोया नहीं। घर जाने की ही रट लगा बैठा था। सुबह देखे तोह उसे तेज़ बुखार हो गयी थी। हम सब उसे डॉक्टर के पास लेगये , दवा खरीदी लेकिन फिरभी वह बार बार घर जाने की ज़िद करता ही रहा। वह लोग बेंगलुरु कुछ दिन घुमके ठहरने आये थे लेकिन इस घटना के दोहरान मुझे एयर टिकट बनाकर उसे मुमबई भेजना ही पड़ा। मेरे बाकी दोस्त भी मेरे रूम में ठहरने से घबराए लेकिन मैंने उन्हें समझाया कि उस आत्मा ने उसे सिर्फ इसलिए परेशान की क्योंकि वह उसके रास्ते मे सो गया। उसने मुझे कुछ परेशानी न दी न ही उन लोगों को देगी। वह लोग हिम्मत से कुछ दिन वहाँ ठहरे। उनके जाने के बाद वह आत्मा फिरसे रात को रसोई में आती जाती रही और मैं अकेले बहुत दिनों तक उस कमरे में ठहरा।

दूसरी घटना है जब में बेंगलूर के किसी दूसरे कमरे में रहता था तब की। उस बिल्डिंग में जाते रास्ते में एक ब्रिज था जहाँ कहा जाता था कि बहुत लोगों ने आत्महत्या कर ली थी और वहाँ आत्माओं का संचार था। मैं वहाँ से हमेशा चलते हुवे अपने बिल्डिंग में जाता था। भूत प्रेत भयानक अनुभव तो नहीं होती थी लेकिन जब चिकन , मटन और मछली घर लाता तो वह अच्छी ही नहीं होती थी। खराब हो जाती थी। इसलिए मैंने उस मकान वालों से जाके झगड़ा किया था कि वे लोग मुझे खराब माँस मछली देते थे।लेकिन वहाँ के सारे कस्टमर्स बोलने लगे कि वहाँ अच्छी मांस मछली मिलती थी।

मुझे लगा शायद वह दुकानदार मुझे ही खराब माँस मछली दे रहा है। इसलिए उससे जागड़ा की थी। फिर उसने पूछा था कि मैं कहाँ रहता था। मैंने अपने बिल्डिंग का नाम बताया तो पूछने लगा, " क्या आप ब्रिज से चलते माँस मछली घर ले जाते हैं?

" हाँ!"

" सर वहाँ से जानेवाले बहुत से कस्टमर्स हमे यही कम्पलेन कर रहें हैं। ब्रिज में भूत माँस पर नज़र डालके उसे खराब करते हैं सर!!"

  उसके बातें सुन मुझे और गुस्सा आया और मैने किसी दूसरी दुकान से माँस मछली खरीदनी शुरू कर दी। लेकिन वहाँ से लेने के बावजूद भी जब वह खराब होने लगा तब मैंने बिल्डिंग के अन्य सदस्यों से इस बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि उनकी माँस मछली भी वैसे ही खराब होती थी जब वे उस ब्रिज से चलते हुवे उसे लेके आते थे। उन्होंने मुझे कहा कि मैं माँस लेके उस ब्रिज से चलके न आऊं। गाड़ी से ले आऊं। मैंने वैसे ही किया तब से माँस मछली ठीक रहने लगी , खराब नहीं हुई। इस घटना ने मुझे काफी चौका दी थी!!

" और तुम्हें पता है चिन्नू कुछ जगहों पे लोग जब रात को मांस मछली का व्यंजन लेके चलते जाते है तब वे उसके ऊपर दो मिर्ची रखते हैं। उनका मानना है कि इससे भूतों की नज़र माँस व्यंजन पर नही पड़ती।

  "तो फिर इन भूतों को माँस मछली पसंद होती है!!" मैंने आश्चर्य से कहा था!

  " लेकिन तुम्हें एक और बात पता है इन भूतों के बारे में?!" उन्होंने पूछा था।

" क्या मामा?"

" भूतों में अलग अलग प्रकार के भूत होतें हैं उनमें मल खाने की एक प्रकार का भूत भी है"

" छी!!" मुझे यह बात सुनके अजीब लगा।

" हाँ चिन्नू , क्या तुमने रेलवे स्टेशनों के शौचालय में हातों के निशान देखें हैं? उन्होंने पूछा।

   यह सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई और मैंने उनसे कहा कि बहुत से रेलवे स्टेशन के शौचालय में , सार्वजनिक शौचालय में मैंने वैसे निशान देखे थे और खासकर हल्के लाल और मिट्टी की रंग में देखे थे। उन्होंने जो बात आगे कही उससे मेरा पूरा शरीर काँप उठा था!!

उन्होंने कहा था " चिन्नू वह एक अलग प्रकार का पिशाच है जो मल खाता है। वह रात को ऐसे शौचालय में आकर मल खाकर फिर उस शौचालय के दीवार पे अपना हात साफ करके जाता है।"

जब मैंने इस बात पर यकीन नहीं की तब उन्होंने मुझे बहुत सी जगहों में लोगों ने जिनके शरीर को आत्माओं ने कब्ज़ा की थी उन्होंने मल मूत्र सेवन किया है जिसके बारे में मैं जानकारी हासिल कर सकती हूँ ऐसा कहा था।

 फिर वह और भी अनुभव बोलते गए.......।

दूसरी बात उसी वक्त की है जब हम कार में रहते थे। गर्मी का मौसम था। हम रात को टेरेस पे या अपने रूम के बाहर सोते थे। हमारे रूमके बायें तरफ सीढ़िया ऊपर जाती थी , कुछ सीढ़ियों के बाद एक बड़ा स्पेस था उसके बाद फिर सीढ़ियाँ ऊपर गुजरातियों के घर के तरफ जाती थी। उस बड़े स्पेस में तुम्हारे अरविंद मामा सोते थे।

  एक रात उसे ऐसा लगा जैसे उसके कान के पास कोई आवाज़ मंडरा रही हो। उसे लगा मच्छर है और उसने हवा में अपने हात एक बार फैलाकर फिरसे सो गया। लेकिन फिर उसे लगा जैसे कोई उसके कानों में मुँह से हवा फूंक रहा था। वह झट से उठा और उसने इधर उधर देखा तो एक भूड़ा बहुत ही विचित्र ढंग से बहुत ही धीरे से सीढ़िया चढ़ते हुवे गुजरातियों के घर के तरफ चल रहा था।

 तुम्हारे अरविंद मामा ने ताली बजाकर उसे आवाज़ दी " ए कौन है तू? किदर जा रहा है? " यह सोचते हुए कि वह शायद कोई चोर था। लेकिन उसके आवाज़ देते ही वह आकृति बड़ी होती गयी और उसने अपना सर पीछे मोडली !!! अरविंद डरके मारे घबराकर घर भागके आया और अगले दिन उसे तेज़ बुखार हो गया था। हमारे पूछने पर उसने यह सभी बातें बतायीं लेकिन हमें सिनिमिय लगीं लेकिन उसने माँ बवूजी की कसम खाके बताई की उस आत्मा ने बिल्कुल वैसे ही अपना सिर हिलाया था जैसे हारर फिल्मों में होता है। शायद हारर फिल्मों में ऐसे दृश्य को चित्रित कराने के पीछे भी असली घटनायें  कारण हो सकती हैं। क्यों?

" हाँ शायद" मैंने कहा था।

" फिर पता चला कि वहाँ एक बूड़ा माली काम करता था जो हमेशा वही उस स्पेस में सोता था और एक सुबह वही सोया हुआ मृत पाया गया था यानीकि वह बूढ़े की आत्मा जो अरविंद ने बताई थी वह उसीकी थी। इसके बाद हमने वहाँ पूजा करवाई।

दूसरा अनुभव है जो तुम्हारे राजेश मामा को हुवा था वह। कार के रूम में शौचालय बाहर हुवा करती थी और हमारी दादी के लिए उस शौचालय में जाना मुश्किल होता था। वह शौचालय जाना हो तो तेज़ तेज़ कदम बढ़ाने की कोशिश करते जातीं थी और एक बार ऐसे तेज़ चलते गिर गईं थी जिससे राजेश ने देखा था।

एक दिन राजेश हमारे बिल्डिंग के नीचे के ग्राउंड में रस्सी से बनी काट के ऊपर सोया हुआ था। और हम सब घर के अंदर थे कि अचानक राजेश की आवाज़ सुनाई दी।

" दादी गिर जाएंगी। कोई पकड़ो। दादी गिर जाएंगी। पकड़ो उन्हें" कहके वह चिल्ला रहा था और माँ उसके पास गई और उसकी पीठ टप टपाकर बोली,

" राजेश! यह क्या बोल रहा है तू! दादी के गुज़रे हुवे एक महीना हो चुका हैं"

यह बात सुनकर वह फिर शौचालय के तरफ हैरानी से देखकर फिर ज़ोर से डर के मारे चिल्लाने लगा। उससे भी तेज बुखार हो गयी थी। उसने कहा कि सचमे उसने दादी को शौचालय के तरफ तेज़ चलते हुवे देखा और वह गिरनेवाली थीं। लेकिन उसने पकड़ना चाहा तो वह काट से उठ नहीं पाया और हमारे आने के बाद उस तरफ मुड़ा तो दादी गायब हो गयी थी। राजेश को उस पल याद न आया कि दादी के गुज़रे एक महीना हो चुका था। आत्माएं मृत्यु के पश्चात काफी समय तक अपनी जगह अपने घर मे रहते हैं और अपनी रोज़ के काम में जुटे रहते हैं।

" एक और घटना हुई तुम्हारी मासी के घर में, विरार में।

" उसी घर में जहाँ हम छुट्टी में गए थे? " मैंने डरते हुवे पूछा था।

" हाँ उसी घर में!!"

"क्या!! वहाँ भूत था!!" मुझे बहुत डर लगा।

" उस घर में तुम्हारे मासी मासाजी को कोई तरक्की नहीं थी। तुम्हारे भैया को भी बार बार बीमारी होती थी। तुम्हारे मासाजी और मासी के बीच जांगड़े होते थे। आत्माएं घर में रहने वाले लोगों के बीच जांगड़े पैदा करते हैं।

 " एक रात उस ए सी वाले बैडरूम में सोए हुवे तुम्हारे मासी मासाजी को किटकी के पास किसी की धीरे से विसल बजाने की आवाज़ आयीं। पहले तुम्हारे मासी को लगा कि शायद उसका वहम है लेकिन फिर तुम्हारे मासाजी ने जब उससे कहा कि विसल की आवाज़ सुनाई दे रही थी तब उसे विश्वास हुवा कि विसल की आवाज़ सुनाई दे रही थी।वे दोनों किटकी के पास गए और उन्होंने दरवाज़ा खोला!!! लेकिन दूर दूर तक कोई नहीं दिखा।उन्हें हैरानी हुई और फिर वे लोग किटकी बंद कर के सो गए।

लेकिन फिर उस घर में रात को और अजीब अजीब चीजें होने लगीं। रात को वहाँ कितकियों का अपने आप पट पटाना, और ऐसा लगना जैसे उनके कम्बल को जैसे कोई धीरे से नीचे से कींच रहा हो। और कभी कभी उन्हें पैरों के पास ठंडी सी एहसास होती थी जैसे कोई ठंडी हात उसे चूराही हो। और उस कमरे में किसी के आने जाने का आभास भी हर रात होती थी। फिरभी दूसरे घर न मिलने की मजबूरी में वही सहते हुवे रह गए।

  लेकिन एक रात जब तुम्हारी मासी सो रही थी तब उन्हें अचानक कोई उनके गर्दन के दायें तरफ धीरे से मुँह से काटने लगा लेकिन जब तुम्हारी मासी ने चिल्लाना चाहा तब वह बोल नहीं पाई लेकिन उससे ठीक से महसूस हो रहा था कि कोई उसके गर्दन को मुँह से लगातार काट रहा था। फिर उसने डरके मारे "ओह साई बाबा" कहके चिल्लाया। तब उस भूत ने उन्हें छोड़ दिया।लेकिन जब तुम्हारे मासाजी ने मासी की आवाज़ सुनते ही लाइट आन की तब तुम्हारी मासी को हैरानी हुवी क्योंकि तुम्हारे मासाजी और भाई दोनों ही उससे काफी दूर में सोए हुवे थे और तुम्हारी मासी चौक गयी जब उसने अपने गर्दनपर हात डाली तब वह गीला था!!!

इससे तुम्हारे मासाजी और मासी बहुत घबरागये और उन्होंने राजेश से दूसरा मकान ढूंढने को कहा। मुम्बई में मकान ढूंढना बहुत मुश्किल है और यह मकान में अन्य जगहों की तरह पानी की कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन फिरभी वे लोग इन भूतों के कारण वह मकान छोड़ना चाहते थे।

 उस घर में आखिर क्या है इसे जानने केलिए मैं, तुम्हारे राजेश मामा और गीता मामी वहाँ गए और ठहरने का फैसला किया। रात को हम सब वहाँ घटती घटनाओं के बारे में सुनकर डर से एक दूसरे के करीब हाल में ही सो गए लेकिन तुम्हारे राजेश मामा वहीं उस ए सी कमरे में जाके सो गया। उसने पीने के लिए गर्म पानी एक गिलास में भरकर ,उसके ऊपर एक प्लास्टिक क्लोजर रखकर उसे वही काट के पास छोटे मेज़ पे रखा। रात को उसे वह सभी अनुभव हुआ जैसे तुम्हारे मासाजी और मासी को हुवा। किटकियाँ पट पटा रहीं थीं। हल्के से कोई कम्बल खींच रहा था। किसी का अंदर बाहर जाने का आभास!! लेकिन राजेश आंखें बंद कर चुपचाप सो गया। लेकिन जब वह सुबह उठा तो पानी का गिलास खाली था और उसके ऊपर रखी प्लास्टिक क्लोज़र को वैसे ही गिलास के ऊपर रखा था। राजेश ने इस बारे में हम सबसे पूछा तो हम सब चौक गए। हुममेसे कोई अंदर नही गया न कि वह पानी पीया। हम सभीने सौगन्ध खाके बोला। आज भी हम पानी की गिलास खाली होने की उस अजीब घटना की बारेमे चर्चा करते हैं कि आखिर वह पानी कहाँ गयी। उसे किसने पीया था।भूत ने!!? क्या हुआ था उस रात को उस गिलास के सात। यह राज़ ही रह गया।

उसके बाद उन्होंने विरार में ही दूसरा मकान ले ली और अब वे वहाँ रहते हैं। इसलिए तुम्हारे मासाजी और मासी यहाँ आये तो बाहर की लाइट आन करके सोते हैं। उन्हें अंधेरे से इतना डर लगता है। मेरी ज़िंदगी में बस इतने ही भूतों के विषय मे सुना है और अनुभव किया है चिन्नू " कहते ही वे तब ही आये भैया के साथ बाहर चले गए और मैं चिंता में पड़ गयी थी कि रात कोे नीन्द आयेगी या नहीं !


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