सुकून
सुकून
"क्या मोहन तुम भी न बिना कुछ लिए उसकी ऐसे ही मदद कर दी, हर बार ऐसे ही करते हो।" एक वृक्ष के नीचे सुस्ता रहे दो मित्र आपस में बात कर रहे हैं।
"इससे मुझे सुकून मिलता है।" "लेकिन सुकून से घर तो नहीं चलता न।"
"मेरा अच्छा सोचने के लिए तुम जैसे अच्छे मित्र हैं न रोहन, मुझे चिंता किस बात की, फिर हर काम को कीमत के तराजू पर तो तोला नहीं जाता न।" "बातों में जीतना कोई तुमसे सीखे मोहन।" बातों ही बातों में कब समय बीत गया पता ही नहीं चला, जब दोनों मित्र उठने को हुए तो मोहन ने कहा- "रोहन अभी हमारा किसी के साथ हिसाब बाकी है, हमने ले तो लिया लेकिन दिया कहां?" कैसा हिसाब? क्या लिया? क्या देना बाकी है? ऐसे पहेली न बुझाओ मोहन, साफ-साफ कहो।" "हम आधा घंटा पेड़ के नीचे सुस्ताए रोहन, पेड़ ने हमें छाया दी, लेकिन हमने छाया की पेड़ को कीमत कहां अदा की।"
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