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4.5  

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सुहागरात

सुहागरात

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 "" सुहागरात""एक नशीली रात मदहोश कर देने वाली रात,,,,, यह शब्द सुनते ही दिलो-दिमाग पर एक अजब सी खुशी की लहर दौड़ पड़ती है।।। यह ओ शब्द है जिसे सोचते ही मन उत्तेजना से परिपूर्ण होजाता है।।


दिल दिमाग एक अलग सा निश्चिंत स्वतंत्र महसूस करने लगता है ।।यह वह शब्द है जो पुरुष को पुरुष होने का एवं महिला को महिला होने का आभास कराता है सुहागरात एक ऐसी रात जिसका कोई सवेरा नहीं चाहता सुहागरात जिसे रातों की रानी कह सकते हैं ।।एक ऐसी रात जो अपने में ढेर सारा प्रेम प्यार नशा उत्तेजना और जन्नत की सैर कराने वाला रात सुहागरात एक ऐसी रात है जो पूरे जीवन में एक ही बार मिलता है अब ए और बात है कि कोई एक से ज्यादा विवाह करें तो उसके सुहागरात भी एक से ज्यादा हो सकते हैं।। मगर मेरे लिए तो यह मेरा पहला ही सुहागरात था नशीली रात मदहोश कर देने वाली रात अपने आगोश में ले लेने वाली रात जन्नत की सैर कराने वाली रात सुहागरात ।


आज मेरी भी सुहागरात थी।। मेरा नाम अविनाश था l मैं केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स में जम्मू कश्मीर में कार्यरत था l 2 महीने पहले ही मेरा विवाह अंजलि से पक्का हुआ थाl

 मां पापा और भैया भाभी ने लड़की पसंद किया था लड़की की तस्वीर मैंने भी देखी थी निहायत थी काफी खूबसूरत थी अंजलि इसलिए मैंने भी देखते ही हां कह दिया था आज मेरा विवाह संपन्न हुआ और आज मेरी और अंजली की सुहागरात थी ll

मेरे दोस्त मेरी भाभी सभी मुझसे लगातार हंसी मजाक किए जा रहे थे मुझे कमरे की ओर उन्होंने धकेला और फिर उन्होंने पीछे से आवाज लगाया मेरे दोस्त आज तेरी सुहागरात है सुहागरात इसलिए पहले सुहागरात मनाना फिर भाभी से जान पहचान करना कहते हैं उन्होंने मुझे कमरे में धकेला।। जी हां मैं थोड़ा शर्मीला शालीनता युक्त और सिद्धांत रिक्त विचारधारा का नौजवान थाll

 मेरा सोचना था की विवाह सिर्फ दो जिस्म का नहीं दो आत्माओं का मिलन होता है और जिन्हें हम जानते नहीं पहचानते नहीं उनसे हमारे जिस्म का मिलन तो हो सकता है मगर आत्माओं का मिलन कैसे होगा इसलिए मेरा सोचना था एक दूसरे को समझ कर पहचान कर जानकर ही ऐसे संबंध आगे बढ़ाई जाए तो यह विश्वास से भरा हुआ खुशी सुख एवं संतुष्टि प्रदान करने वाला रिश्ता हो सकता है मेरे इन्हीं विचारों के कारण मेरे दोस्तों ने मुझसे ऐसा कहा मैं भी कमरे में प्रवेश किया !!

मध्यम से प्रकाश पूरे कमरे मैं अपनी आभा प्रकट कर रही थी यह माध्यम से प्रकाश पूरे कमरे को सुंदरता प्रदान कर रही थी और कमरे में स्थित फूल जो पूरे कमरे को सुगंधित एवं उत्तेजक कर रही थी


मैं अंदर आया और दरवाजा बंद किया फिर मैं आगे बढ़कर पलंग पर बिस्तर पर अंजलि के ठीक बगल में बैठ गया और फिर अंजलि से बात करने लगा मैंने अंजलि से कहा तब अंजलि कैसा लग रहा है तुम्हेंमेरे और अंजलि के बीच ज्यादा बातें पहले कभी नहीं हुई थी हम लोग दोनों एक दूसरे से अनभिज्ञ और अनजान ही थेमगर अंजलि अभी कुछ ना बोली वह चुपचाप खामोश बैठी रही।

मैं फिर थोड़ी देर रुका और अपने हाथों से उसका घुंघट धीरे-धीरे उठाने लगा।। धीरे-धीरे हुस्न से पर्दा उ ठता गया।। चांद पर से बादल हटता गया ,,और चांद की झलक दिखने लगी।। वाकई में अंजली बहुत खूबसूरत थी।। मध्यम प्रकाश उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे।।

 निहायत ही नशीली दिख रही थी।। मैं उसके गालों को छुआ और उससे बातें करने लगा।। कुछ इधर की, कुछ उधर की ,,,कुछ घर की तो कुछ अपने काम की बातें,,, करते करते हम एक दूसरे को पकड़े वही लेट गए ,,, और धीरे धीरे अंजलि भी अब खुलकर मुझसे बातें करने लगी थी ।।।कुछ वह कहती,,, कुछ मैं कहता हम फिर खूब हंसते फिर बातें करने लगते ऐसे ही करते करते ना जाने कब कमबख्त रात गुजर गई पता ही नहीं चला।।


सुबह भाभी ने दरवाजा खटकाया तो नींद खुली देखा सामने घड़ी पर सुबह के 8:00 बज रहे हैं।।।।

भाभी ने हंसते हुए मजाक वाले लहजे में आवाज दिया क्या बहुरिया रात खत्म हो गई ??अब तो बाहर आ जाओ ,,,फिर रात आएगी तो देवर जी के पास चले जाना कहते हुए भाभी किचन की तरफ बढ़ी अंजली जल्दी जल्दी उठी और बाहर की ओर निकलने लगी।।

मैं चादर खींचकर वही सो गया।।

बाद में मैं भी उठा और तैयार होकर घर से बाहर की ओर निकला,, दोस्त लोग बार-बार फोन कर रहे थे।।।


उनसे मिला उन्होंने अपना मजाक करना शुरू कर दिया।। यार बताओ ना रात में क्या-क्या हुआ था ??


मैं हंस कर टाल देता अरे छोड़ो ना जब तेरी होगी तो देख लेना।। ऐसे करते करते ,,घूमते फिरते वह दिन भी निकल गया।।

रात हुई फिर एक बार मैं और अंजलि कमरे में आपस में हंसी मजाक करने ल गे ,,,,, ढेर सारी बातें करने लगे,,,, बातें करते करते ,,,मैं उसके बालों को सहलाता ,,,उसके होठों को चुमता,,, गालों को चुमता ,,,तो कभी उसके कानों पर दांत काटता,,,,, वह भी शर्माती और कभी मुझे एक ओर धकेलती ,,,,तो कभी अपनी ओर खींचती,,, रात भर खेलते खेलते ऐसे ही कमबख्त फिर एक बार सारी रात गुजर गई।। पता ही नहीं चला ।।।।और आज फिर मेरी सुहागरात अधूरी ही रह गई पूरी ना हो सकी।।।।।

भाभी ने फिर आवाज लगाई बहूरिया ,!!जागो तुम्हारे बाबू जी आए हैं ,,,तुम्हें ले जाने !!विदाई कराने कहकर वह आगे की ओर बढ़ी।।

अंजलि ने भी मुझे जगाया और बोली ,,अजी उठिए। पापा आए हैं ।।।आज मेरी विदाई कराने।। सो आप भी चलिए पापा से मिल लीजिए।।

मैं भी जल्दी जल्दी उठा और तैयार होकर बाहर की ओर निकला।। कुछ समय के बाद अंजलि मुझे बाय-बाय करते गाड़ी में बैठ गई।। मैंने भी उससे बाय-बाय का इशारा किया।। फिर उसके करीब जाकर उसके माथे को चूमा और उसे विदा किया।। विदा होकर वह अपने घर को चली गई और 1 दिन के बाद मैं भी अपने पोस्टिंग पर निकल पड़ा।।

अंजली अपने घर पहुंची सामान घर में रखा और कमरे में मुंह फुला कर बैठ गई ।।


उसकी भाभी आई और बड़े ही मजाक वाले मूड में उसके गालों को खींचते हुए बोली क्या हुआ?? बहुत थक गई हो।। दामाद जी ने दो रातों में सोने भी नहीं दिया।। कि उनके बिना रहा भी नहीं जा रहा ।।


पूरे घर को छोड़कर अकेली कमरे में बैठ गई।।मगर अंजलि मुंह फुलाए कुछ ना बोली।।

भाभी मामला समझ नहीं पा रही थी वाह अंजलि के मुंह को पकड़े हुए ,,,,,उससे बोली क्या हुआ देवरानी जी क्या बात है?? आते ही आप इतनी नाराज क्यों हो गई।।???

अंजलि गुस्से से  बोली क्या?? "भाभी मम्मी पापा ने शादी से पहले लड़के के बारे में जानकारी नहीं ली थी क्या।।???"

"क्यों ऐसा क्या हो गया आश्चर्य से भाभी बोली।।???"

"भाभी लड़का तो नामर्द है!!! मर्द है ही नहीं !!" अंजलि बोली।।

"नामर्द क्या बोल रही हो?? ऐसा भला कैसे हो सकता है?? यह तुम क्या कह रही हो?? " आश्चर्य से भाभी बोलिए।।

फिर अंजलि ने अपनी भाभी को अपनी सुहाग रात का सारा किस्सा कह सुनाया,, कि कैसे दो रात अविनाश अपनी सच्चाई छुपाने के लिए बातें बना कर और चुम्मा चाटी करते हुए गुजार दिया था।।। यह सब बातें सुनकर भाभी अपनी सास की ओर दौड़ी।।

यह बात आग की तरह पूरे घर में फैलने लगी थी ।।भाभी दौड़कर अपनी सास को बताइ यानी अंजलि की मां को।। अंजली की मां गुस्सा होते हुए ।।अंजलि के पिता से सारी बात कह सुनाई।।

यह सब सुनकर अंजलि के पिता बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने आनन-फानन में अविनाश के पिता को फोन लगा दिआ फोन की घंटी बजी ट्रेन ट्रेन ट्रेन ट्रेनsssssss

अविनाश के पिता ने फोन का रिसीवर उठाया और बोले "हेलो बोलिए समधी जी।।"

गुस्सा से भरते हुए अंजली के पिता बोले "समधी जी मत कहिए मुझे ।।।आप लोगों ने मेरे साथ धोखा किया है।। चीट किया है मुझे ,,,,,,,,इतने जोर शोर से पूरे समाज के सामने मैंने डंके की चोट पर अपनी बेटी का विवाह आपके बेटे से किया।।।"


आपको तो मैं भला मानूंस समझता था।।। मगर आप लोगों ने मुझे धोखा दिया मुझे ।।मैं छोडूंगा नहीं किसी को।।

अरे समधी जी बात तो बताइए ,,,आखिर हुआ क्या?? आखिर इतने गुस्से में आप क्यों है ??और क्या चीट हमने किया आपसे ???आपने जो कहा,,, जैसे कहा वैसे ही तो शादी हुई!!! फिर इसमें चीट और धोखा शब्द कहां से आ गए?? गुस्से से भरते हुए अविनाश के पिता बोले।

चीट जी हां जीत क्योंकि आपका बेटा नामर्द है !!और आपने एक बार भी मुझे नहीं बताया ।।गुस्से से अंजलि के पिता बोले।।

नामर्द और मेरा बेटा ए कैसी पागलों वाली बात कर रहे हैं आप।। पागल हो गए हैं क्या?? कि सुबह-सुबह ज्यादा पी ली है !!मेरा बेटा नामर्दहै और मुझे इतने सालों में पता भी नहीं चला यह भला कैसे हो सकता है।। गलत बात मत कीजिए समधी जी।।

गलत बात तो आप बोल रहे हैं।। समधी जी ,,,क्योंकि आपने धोखा दिया है ।।आपका बेटा नामर्द था और आपने झूठ बोलकर उसे मेरी बेटी के पल्ले बांध दिआ ए आपने ठीक नहीं किया।। धोखा किया मेरे साथ इसका बदला तो मैं जरूर लूंगा गुस्सा में कहते हो उन्होंने फोन का रिसीवर रखा।।

अब गुस्सा से भरते हुए अविनाश के पिता ने अविनाश की माता को आवाज लगाया अजी सुनती हो अविनाश की मम्मी थोड़ा जल्दी इधर आना।।

हाथों में बर्तन लिए दौड़ते हुए अविनाश की मम्मी आई हां जी कहिए काहे सुबह-सुबह इतने गुस्से में है।।???

अरे गुस्से में क्यों ना हो?? अंजलि के पिता बोल रहे हैं कि हमारा बेटा नामर्द है।। यह मैं क्या सुन रहा हूं।।

क्या बकवास कर रहे हैं ।।आप हमरा लड़का नामर्द है।। कौन कह रहा है?? यह सब सरासर झूठ है गुस्से से भर्ती हुई बोली।।

अंजलि के पिता बोल रहे हैं और कौन बोल रही है।।??

अंजलि के पिता को यह झूठी बात किसने कही ,,,आश्चर्य से अविनाश की मम्मी बोली।।

कौन बोली,, अंजलि बोली होगी ,,लड़का मर्द है कि नामर्द है!! उसकी पत्नी से बेहतर और कौन बताएगा कुछ तो ऐसी बात रही होगी ना जिस वजह से अंजलि ने अपने पिता से ऐसा कहा कि अविनाश नामर्द है जरा पता तो करो कि आखिर माजरा है क्या।।???

सोचते हुए अविनाश की मम्मी किचन की ओर प्रवेश की फिर अविनाश की भाभी से अविनाश की मम्मी ने सारी बात कह सुनाई।।


अविनाश की भाभी भी यह सब सुनकर आश्चर्य चकित थी।। मगर फिर भी वह अविनाश की मम्मी को समझाते हुए बोली आप चिंता ना करें मांजी,,

मैं अविनाश से बात करके देखती हूं !! कह कर वह टेलीफोन की तरफ बढ़ी,,, फिर उसने अविनाश को टेलीफोन लगाया।। फोन की घंटी बजी ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंगsssssssssss

उधर अविनाश के यूनिट के किसी फौजी ने फोन उठाया ।।

"हां कहिए ,,,कौन बोल रहे हैं ?" आवाज।आई।।

"जी मैं अविनाश की भाभी बोल रही हूं जरा अविनाश से बात करनी है।।”

"ओके थोड़ा इंतजार कीजिए हम तुरंत अविनाश को बुलाते हैं!!" कहते हुए वह व्यक्ति अविनाश को बुलाने चला गया।।

थोड़ी देर बाद अविनाश आया ।।उसने फोन का रिसीवर उठाया और बोला हां भाभी प्रणाम बोलिए कैसे याद किया।।??

"देवर जी यह सब हम क्या सुन रहे हैं ?" भाभी बोली।।

"क्या सुन रहे हैं ??मतलब भाभी मैं कुछ समझा नहीं" अविनाश बोला।।

फिर भाभी ने सारा किस्सा कह सुनाया कि सभी लोग तुम्हें नामर्द कह रहे हैं।।

यह सब सुनकर अविनाश बड़ा क्रोधित हुआ और गुस्से से भरते हुए बोला सच भाभी शराफत का तो जमाना ही नहीं रहा!! आप तो मेरा नेचर ,,स्वभाव जानती थी!!

मैंने अपने स्वभाव के अनुसार ही कार्य किया था।।


मगर लगता है कि अब मुझे अपना स्वभाव को बदलना ही होगा।।

खैर कोई बात नहीं भाभी ,,,मम्मी पापा से कहिए कुछ दिन रुके उसके बाद फिर जैसी सबकी मर्जी कहते हुए उसने फोन रखा और कुछ दिनों की छुट्टी के लिए उसने अर्जी डाल दी।।

अविनाश को छुट्टी मिल गई।। अविनाश अपने घर पहुंचा।। घर पर अविनाश के मम्मी पापा सभी नाराजगी से भरते हुए उससे दूर दूर ही थे।। अविनाश अपनी भाभी के पास पहुंचा और बोला भाभी आप लोग चिंता मत कीजिए ,,,मैं आज ही अपने ससुराल जा रहा हूं 2 दिन में वहां से वापस आऊंगा

 ,,,उसके बाद मम्मी पापा को बोलिए गा जैसा उन लोगों ठीक लगे वैसा करेंगे,,, मै भी उनका औलाद हूं,, बेटा हूं।। मैं उनकी इज्जत डूबने नहीं दूंगा और रही बात मेरी तो मैं अभी अपने ससुराल वालों को बताता हूं ।।कि मैं मर्द हूं या नामर्द हूं कहते हुए अविनाश अपने ससुराल की ओर निकल पड़ा।।

कुछ समय की यात्रा करने के पश्चात अविनाश अपने ससुराल पहुंचा अपने ससुराल के दरवाजे पर खड़ा कॉल बेल की घंटी बजाई ट्रिंग ट्रिंगs s s s s s s

अंदर की तरफ से आवाज आई,,, हा कौन ??रुको मैं आती हूं ,,कहते हुए अंजली के भाभी ने दरवाजा खोला,, देखा सामने अविनाश खड़ा था ......

एक सूटकेस लिए!! मगर दरवाजे खोल करवह कुछ बोली नहीं,,, सिर्फ हाथों से उसे अंदर आने का इशारा किया और खुद भी अंदर की ओर बढ़ गई।।


आगे चलकर उसने अविनाश को एक कमरे की तरफ इशारा किया ।।और उस कमरे में जाने को कहा अविनाश भी अपना सामान लिए उस कमरे में पहुंच गया सामान को रखकर वह वही पलंग पर चुपचाप बैठा रहा।।


मगर कोई उससे बातें करने वाला ,,,उसे पूछने वाला वहां कोई न था ।।शायद किसी को कोई परवाह ही नहीं थी ।।


कि उसके घर का दामाद पहली बार उसके घर में आया है।। अविनाश भी चुपचाप पलंग पर बैठा रहा ।।


समय से खाना आया अविनाश थोड़ा बहुत खाया और बैठा रहा ।।एक दो बार अंजलि आई पानी दी ।।।।और चली गई।।फिर धीरे धीरे शाम हो गई ,,,शाम से रात हुई ,,रात का खाना लिए,,, अंजली की भाभी अविनाश के पास आई और बोली,, खाना रखा है ,,टेबल पर खा लीजिएगा ।। कह कर वह आगे की ओर बढ़ी।।

तभी अभिनाश अपनी जगह से उठा और बोला भाभी मैं खाने नहीं आया हूं ,,बस चाहता हूं कि आज की रात अंजलि को मेरे कमरे में भेज दीजिएगा ।। आज की रात ओ मेरे साथ रहेगी ।।और कल के बाद आप लोगों को जैसा ठीक लगेगा।। आप लोग कीजिएगा कह कर अविनाश ने गिलास उठाया पानी पी और अपने बिस्तर पर चला गया।।

थोड़ी देर बाद अंजलि मुस्कुराते हुए कमरे में प्रवेश की और मुख्य द्वार को बंद किया,,

,,, फिर बिस्तर पर अविनाश के बगल में बैठ गई।।

अविनाश ने एक नजर उसे ऊपर से नीचे देखा,,, ज्यादा कुछ बोला नहीं ,,,और उसे पकड़कर अपनी बाहों में जकड़ कर,,, बिस्तर पर सुला दिया,,, फिर धीरे-धीरे उसके सारे कपड़े उतारने लगा,,,, और अपने भी शरीर से धीरे-धीरे बाड़ी बाड़ी कपड़ों को उतरता चला गया,,,,, फिर उसने अपने होठों को अंजलि के होठों पर रखकर रसपान करना प्रारंभ कर दिया।। धीरे धीरे उनका प्रेम आगे की ओर बढ़ने लगा,,, धीरे धीरे सीमाएं टूटने लगी और अविनाश अंजलि के ऊपर संबंध,,, संभोग का प्रहार करने लगा ,,,,,धीरे धीरे अविनाश की गति बढ़ने लगी ,,,,,और अंजली की आवाज ,,,अंजलि लगातार आ ह वूह आ ह चिल्लाए जा रही थी।।और अविनाश भी अपनी गति को निरंतर बढ़ाए जा रहा था।।


वह लगातार अंजलि पर भारी पड़ रहा था ।।धीरे-धीरे रात गुजर रही थी।। और उस रात के नशे में अविनाश मदहोश हुए ,,,अंजलि पर लगातार अपनी गति बढ़ाए जा रहा था।। ऐसी ही रात गुजरती चली गई,, रात भर अंजलि आहे भर्ती चली गई ,,,चिल्लाती चली गई ,,,रात भर में तीन बार अविनाश ने अंजलि को पूरी तरह से निचोड़ दिया ,,,अंजलि को एहसास करा दिया कि सचमुच मर्द क्या होता है???


सुबह के 5:00 बज चुके थे।।। अपनी अंतिम लीला समाप्त कर अविनाश,,,,,,,, अंजलि को बोला समझ में आ गया मर्द किसे कहते हैं ??

और कभी भी किसी मर्द की शालीनता को देखकर उसकी मर्दानगी पर शक नहीं करना ।।।मर्द मर्द होता है ।।।


अगर अभी भी तुम्हें मेरी मर्दानगी पर शक हो ,,तो अब घर आ जाना ,,,मैं भी फुर्सत से छुट्टियां लेकर ही आया हूं ।।।सच कहते थे मेरे दोस्त सुहागरात में पहले सुहागरात मनाना।।। फिर जान पहचान करना लेकिन मैं ही मूर्ख था।। जो अपनी शालीनता और सिद्धांतों के आगे बंधा खड़ा था।।। मगर अब नहीं कहते हुए अविनाश उठा और बाथरूम की ओर चला ।।।।।।।

सुबह हो चुकी थी ,,,अंजली बहुत खुश थी ,,,और उसे यकीन भी हो गया था ,,,की उसका  विवाह नामर्द से नहीं ,,,,किसी पक्के मर्द से हुआ था ।।।।।


वह बहुत खुश थी,,, बहुत ,,,,खुश ,,,,,,

वह दौड़ते हुए सबसे पहले अपनी भाभी के पास पहुंची और खुश होते हुए भाभी से रात का पूरा किस्सा कह सुनाया और बोली नहीं भाभी ,,,,,,नहीं मैं गलत थी ,,,,,वह तो सचमुच पक्के मर्द हैं,,,,

भाभी के चेहरे पर भी मुस्कुराहट दौड़ गई !!!वह दौड़ते हुए अपनी सासू मां के पास पहुंची और फिर उसने उन्हें अंजली की सारी बातें बताइ और बोली

माजी हमारे दामाद जी,,,, नामर्द नहीं बल्कि पक्के मर्द है।।

क्या कहा सच खुश होते हुए?? अंजली की मां बोली ,,,और वह दौड़कर अंजलि के पिता के पास पहुंची फिर उसने

अंजलि के पिता से सारा किस्सा कह सुनाया और बोली आप तो खा म खा ही दामाद जी पर शक कर रहे थे ।।

अरे दमाद जी तो हमारे पक्के मर्द हैं।।

क्या कहा ???

सच अब अंजलि के पिता के चेहरे पर भी खुशी का ठिकाना ना था।। वह बहुत खुश थे ।।और फिर बोले हमसे गलती हुई हमने अविनाश के पिता को बुरा भला कह दिया।।


हमें तुरंत ही उनसे माफी मांगना चाहिए ।।। कहकर वह फोन लगाने आगे की ओर बढ़े।।

पूरा घर खुश था ,,,जिस दमाद का आने पर ,,कोई उसे पूछ नहीं रहा था,, कोई सेवा नहीं हो रहा था,,,, जिसकी किसी को परवाह नहीं थी ।।। अब उसी दमाद का कद्र कई गुना बढ़ गया था।। सभी के चेहरे पर खुशियां लौट रही थी ।।


अविनाश भी सुबह-सुबह ही ब्रश करके स्नान कर चुका था।। और अब अपने घर जाने की तैयारियां कर रहा था।। तभी अंजली की भाभी हाथों में खाने की थाली लिए ,,,

थाली में गरमा गरम पूरियां ,,दी प्रकार की सब्जी,, आचार,, मिठाइयां आदि सजाकर अविनाश के पास पहुंची। और खुश होते हुए प्यार भरे लहजे में बोली

" अरे दामाद जी सुबह-सुबह कहां जाने की तैयारी कर रहे हैं।।??"

"अपने घर भाभी जी और कहां ??अपने कपड़ों को बैग में भरते हुए अविनाश बोला।।

अरे ठीक है दामाद जी,,, घर तो जाना ही है !!"

"पहले कुछ खा तो लीजिए कहते हुए अंजली की भाभी ने थाली अविनाश की तरफ बढ़ा दिया।।

अविनाश थाली को एक तरफ करते हुए बोला ,,

भाभी ए खाना मुझे नहीं,,,, मेरे इस सिपाही को खिलाइए,,, अविनाश अपने पेंट की चैन की तरफ इशारा करते हुए बोला।।


क्योंकि रात भर गोलियां इसी ने चलाई थी।।।

वरना मुझे कौन पूछ रहा था ??

जब तक गोली नहीं चली थी।।।

किसी को मेरी परवाह नहीं थी।। जब रात भर इसने गोलियां चलाई और दुश्मन को धारा साई किया।।


तब जाकर आपको हमारी परवाह हुई।।।।। हमारी याद आई।। इसलिए मुझे इस खाने की कोई आवश्यकता नहीं हैं।।। खाने की जरूरत तो मेरे सिपाही को है ,,,कहते हुए अविनाश ने अपना बैग उठाया और आगे की ओर बढ़ा और फिर मुड़कर बोला

तो ठीक है भाभी चलता हूं। अपने घर अब तो आप लोगों को यकीन हो गया होगा ,,,,,कि "मैं मर्द हूं और अगर अब भी कोई शंका हो तो,,,, पहले मुझे बताना,,,, मेरे "घर वालों को नहीं,, क्योंकि गोली तो मुझे ही चलानी है।। ठीक है । अब मैं जा रहा हूं।।।

जब इच्छा हो अंजलि को भेज दीजिएगा,,, कहते हुए,, अविनाश एक झटके से घर से बाहर की ओर निकला और अपने घर जाने के लिए बढ़ा।।

अविनाश रास्ते भर सोचते जा रहा था।। सच मेरे दोस्त कहते थे।। इस जमाने में,,, आज के समय में,, शालीनता,, सिद्धांत,, आचरण,,, इनका कोई मोल नहीं है।। दिल की भावनाओं को कोई समझना ही नहीं चाहता ।।।।सभी को बस अपनी अपनी जरूरतों की पड़ी है ,,,,


"""धर्य ""नाम की तो कोई चीज नहीं आज के लोगों में।। बस सभी को अपनी अपनी जरूरतों की पड़ी है ।।।


चलो अच्छी बात है।। कहते हैं ना हर घटना दुर्घटना ,,,,,,,,,,, कुछ ना कुछ सीख इंसान को जरूर दे जाती है ।।और आज मैंने भी सीख लिया।।सोचते हुए वह अपने घर की ओर बढ़ा।।



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