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Horror Action Classics

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द किंग ऑफ द घोस्ट भाग-1

द किंग ऑफ द घोस्ट भाग-1

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आज से 15 सौ वर्ष पूर्व,,हिमालय के उत्तरी क्षेत्र मेंपहाड़ी क्षेत्रों की तरफ एक राज्य हुआ करता था। जिसे हिमालयन साम्राज्य, के नाम से जाना जाता था। उस साम्राज्य के राजा थे, महाराज चंद्रसेन जी,,उन्मुक्त विचारों वाले प्रजा के सहयोगी थे। हिमालय के चारों तरफ उनका साम्राज्य फैला हुआ था।

कोई भी राजा या आक्रमणकारी इस राज्य पर आक्रमण करने से पहले सौ बार सोचता था,क्योंकि इस राज्य पर आक्रमण करने का अर्थ था,अपनी मृत्यु को निमंत्रण देना अभी तक ऐसा कोई भी युद्धा नहीं हुआ थाजो इस साम्राज्य को जीत सके। और इसका मूल कारण था, उनका सेनापति चांडाल ।पूरे राज्य में कोई भी चांडाल के इतना हिम्मतवाला, ताकतवरतलवारबाजतीरबाज योद्धा नहीं था, यह योद्धा कलयुग का कण ,अर्जुन ,,दुर्योधन और भीम की ताकत को अपने अंदर समाहित किया हुआ था।

पूरा राज्य तो क्या ?पूरे देश में किसी में, इतनी हिम्मत नहीं थी,, जो चांडाल को युद्ध के लिए ललकार सकें।

युद्ध के समय चांडाल बिल्कुल भी जानवर बन जाता । वह शत्रुओं को गाजर मूली की तरह काटता और जोर-जोर से ठहाके लगाकर हंसता ।उसकी ठहाको को सुनकर शत्रु का दिल बैठ जाताउसकी ठहाको को सुनकर शत्रु डर कर भागने लगते, ऐसा ही था एक योद्धा चांडाल। राजा का प्रमुख सेनापति ।

आज तक जब भी कोई इस राज्य पर आक्रमण किया तो राजा को युद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी क्योंकि राजा से पहले सेनापति चांडाल खुद उस युद्ध में जाता और शत्रुओं की संख्या चाहे जितनी भी हो,,शत्रु चाहे जितना भी ताकतवर हो, मगर वह चांडाल के हिम्मत को डरा नहीं पाता और एक सिरे से चांडाल अपने शत्रुओं को काटना शुरु करता और उनके रक्त से नहाते हुए,,ठहाका लगाते हुए, आगे बढ़ता जाता, उसकी खौफनाक युद्ध कला को देखकर किसी राजा,किसी सेनापतिकिसी मंत्री या किसी व्यक्ति में इतनी हिम्मत नहीं थी जो उससे युद्ध लड़ सकें

एक रोज हिमालयन साम्राज्य का बड़ा सा महल और उस महल की राज दरबार में राजा के सिंहासन पर महाराज चंद्रसेन, गहरी चिंतन मुद्रा में बैठे हुए थे। और सामने उनके सारे दरबारी और मंत्री भी गहन चिंता में डूबे हुए थे।

तभी महाराज ने दरबान को आवाज लगाई

दरबान जाओ और जाकर सेनापति चांडाल को तुरंत सभा में बुला लाओ कहना राजा ने तुरंत ही उन्हें बुलाया है।

जी महाराज कहते हुए दरबान सेनापति के कमरे की तरफ बढ़ा।

वहां पहुंचकर दरबान,,

सेनापति चांडाल को मेरा अभिवादन स्वीकार हो सेनापति चांडाल की जय हो।

कहो दरबान क्या समाचार लाए हो ? मदिरापान करते हुए चांडाल बोला।

सेनापति आपको जल्द से जल्द महाराज ने दरबार में बुलाया है।

ठीक है दरबान, महाराज से कहो हम आते हैं,, क्ह कर उसने मदिरा का गिलास खाली किया और उठ कर दरबार की तरफ चल पड़ा।

दरबार पहुंचकर,,

महाराज की जय हो,महाराज को मेरा अभिवादन स्वीकार हो,,कहते हुए ऊंचा कद, हष्ट,पुष्ट शरीर,,सिर पर बड़े बड़े बाल, चेहरे पर बाई ओर लंबे कटे का निशान ऐसा लग रहा था। जैसे किसी तलवार या शस्त्र से उसके चेहरे को काटा गया हो,, सावला चेहरा,

चांडाल बोला।

ऐसी क्या ? आवश्यकता आन पड़ी महाराज जो मेरे आराम करने के समय में आपने मुझे यहां बुला लिया।

ऐसी ही आवश्यकता आन पड़ी है सेनापति,,और मैं जानता हूं की इस समस्या का समाधान तुम्हारे सिवा कोई और नहीं कर सकता चंद्रसेन बोले।

क्या समस्या ?? महाराज एक बार कह कर तो देखिए।

सेनापति,,

पता चला है ,,सर्वांग देश का राजा हम पर आक्रमण करने की तैयारियां कर रहा है,और इसके लिए वह हिमालय के काफी करीब अपनी पूरी सेना के साथ आ चुका है, और कभी भी वह हमारे देश पर हमला कर सकता है,और इस मुसीबत की घड़ी में तुम्हारे सिवा और कौन ??साम्राज्य को बचा सकता है इसीलिए मैंने तुम्हें यहां बुलवाया है।

महाराज आपने खामो खा ही मेरे आराम में दखल डाला, उसे आक्रमण करने तो देते फिर मैं देख लेता चांडाल बोला।

सेनापति हम उसके आक्रमण का इंतजार नहीं कर सकते इसीलिए हमने तुम्हें बुलाया है,आज कई समय के बाद किसी राजा में इतनी हिम्मत हुई है कि वह हिमालयन साम्राज्य पर आक्रमण करने का विचार किया है। मैं चाहता हूं कि तुम उसे बता दो, कि उसने अपनी मृत्यु को निमंत्रण दिया है ।उसकी और उसकी सेना की वह दुर्दशा करो कि फिर पूरे विश्व का कोई भी राजा हिमालयन साम्राज्य पर आक्रमण करने से पहले 100 बार विचार करें।

और ऐसा तुम ही कर सकते हो और यदि तुमने ऐसा कर दिया तो सेनापति और ऐसो ,,आराम के साथ हम तुम्हें निश्चिंत आराम करने का पूरा मौका देंगे या फिर तुम्हारी इच्छा अनुसार जो तुम कहोगे वह तुम्हें देंगे मगर उनके ह्रदय को इतना डरा दो, कपा दोकि उनके कदम भी लड़खड़ा ने लगे,हिमालयन साम्राज्य में घुसने से पहले, पूरे जोश के साथ चंद्रसेनी कह रहे थे।

बिल्कुल ऐसा ही होगा महाराज आप चिंता ना करें, मेरे होते हुए किसी में इतनी हिम्मत नहीं जो हिमालयन साम्राज्य पर नजर डाल सकेइसे पाना तो दूरइसे देखने का भी अधिकार मैं शत्रुओं को नहीं देता, उनकी आंखों तक को

मैं निकाल लूंगा आप बिल्कुल भी चिंता ना करें।

सेनापति यदि ऐसा होता है ,,तो हम तुम्हें मुह मांगा वरदान देंगे यह मेरा वादा है।

ठीक है महाराज तो आप वरदान देने को तैयार रहिए।

मैं अभी युद्ध को समाप्त कर,जीत का उद्घोष करवाता हूं।

कहते हुए सेनापति चांडाल ने अपनी सेना तैयार की और घोड़ों पर सवार होकर निकल पड़ा हिमालय के दूसरे क्षेत्र में सर्वांग देश के राजा से युद्ध करने।

कुछ समय चलने के बाद सेनापति चांडाल अपनी सेना के साथ वहां पहुंचा और उसने सर्वांग देश के राजा की विशाल सेना को देखा और फिर जोर से ठहाके लगाने लगा हा हा हा हा हा हा हा,,

यह सेना और यह राजा हमारा शिकार करेगा हा हा हा हा हा शिकारी खुद शिकार बनेगा वह जोर से चिल्लाया।

उसकी आवाज सुनकर सर्वांग देश का राजा भी उसे ललकारा और, बोला क्या हुआ ?तुम्हारा राजा डर गया!! क्या औरतों के पीछे जाकर छुप गया ?? जो युद्ध करने के लिए खुद ना आकर तुम्हें भेज दिया, बहुत चालाक है, तुम्हारा राजा अपनी जिंदगी बचाने के लिए तुम्हें बलि का बकरा बना दिया बोलते हुए वह हंसा।

बकरा कौन है ? और बलि किसकी चढ़ेगी ?

आज तुझे पता चल जाएगा,हिमालयन साम्राज्य पर आक्रमण करने से पहले,तुम्हें सेनापति चांडाल के बारे में पता कर लेना चाहिए था, पहले मुझे तो हरा फिर मेरे राजा से युद्ध करने की सूचना और मेरा वादा है कि मैं तुझे वह मौका भी नहीं दूंगा कहते हुए वह एक बार फिर से जोर जोर से ठहाके लगाने लगा हा हा हा हा हा।

और इसी के साथ युद्ध की घोषणा हो चुकी थीऔर दोनों के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गयादोनों सेना एक दूसरे पर टूट पड़ी, और सेनापति चांडाल अपने घोड़े पर सवार,,दोनों हाथों से तलवार को भाजते हुएलगाम को मुंह में पकड़े हुए,, खींचते हुए, तेज गति से भीड़ को चीरते हुएशत्रुओं के सर को धड़ से अलग करते हुए, खून की नदियां बहाते हुए, बढ़ता जा रहा था,, और रह-रहकर वह जोर-जोर से ठहाके लगाने लगता हा हा हा हा हा हा

वह लगातार आगे की ओर बढ़ता जा रहा थाऔर शत्रु सेना पर लगातार वार करता जा रहा था,किसी के गले काटता तो,, किसी के पेटो में तलवार मारता,और उनकी खून की धारा से नहाते हुए, वह लगातार ठहाके लगाते हुए, आगे की ओर बढ़ता जा रहा था।

उसकी आवाज पूरे,, युद्ध मैदान में गूंजने लगतीउसकी आवाज में,,और उसके द्वारा गिराए जा रही लाशों को देखकरउसके हिम्मत और हौसला को देखकर सर्वांग राज्य कि सेना,,अब धीरे-धीरे परास्त होती जा रही थी। वहां जमीन पर लगातार लाशों के ढेर बढ़ते जा रहे थे,, और जमीन खून से लाल हुए जा रही थी, खून बहते हुए पास की नदी में गिरती और नदी का पानी भी खून के साथ मिलकर लाल हुआ जा रहा था,भेड़ बकरियों की तरह सेनापति चांडाल सर्वांग राज्य की सेना को काट रहा था।

उसकी हिम्मत के आगे, हौसलों के आगेऔर ताकत के आगे,शत्रुओं की एक न चली,आधे से अधिक सत्रू मारे, काटे जा चुके थे, बचे खुचे शत्रु ,,अब मृत्यु से भयभीत होकर भाग रहे थे, सर्वांग देश का राजा, यह सब देख कर अब भयभीत और चिंतित होता जा रहा था,, तभी अपने घोड़े को तेजी से दौड़आते हुए सेनापति चांडाल राजा के समीप पहुंचा और जोर से ठहाके लगाते हुएबोला क्यों राजा ?अब क्या कहोगे ? तुम्हें तो मेरे राजा से युद्ध करना था, मगर तुम तो उसके सेनापति को भी ना हरा सके,चले थे मेरे राज्य को जीतने, मगर आज अपनी जिंदगी को हार कर, मृत्यु को पाने का दिन है, कहते हुए सेनापति चांडाल ने तलवार चलायाऔर एक झटके में ही उसका सिर धड़ से अलग कर दियाधर छटपटाते हुए जमीन पर गिर पड़ा, और सिर एक तरफ गिर पड़ा। ,, फिर सेनापति चांडाल ने, अपनी एक सेना को आदेश दिया, कि राजा का सिर उठा लो तोहफा हैमेरे राजा का, जो उसे देना है, और फिर जोर से अपनी जीत पर ठहाके लगाने लगा हा हा हा हा हा हा

और कोई है, जो मुझ से युद्ध करना चाहता है तो आ जाओ, आ जाओ,मेरी तलवार की प्यास अभी नहीं बूंदी है,,हा हा हा हा हा हा।

सेना के जवान ने उस सिर को उठा लिया और फिर सेनापति से बोला महाराज आप से युद्ध करने की क्षमता और ताकत भला किस में है ?!!आप हमारे आदर्श हो, पल भर में ही आपने इस भयंकर युद्ध को समाप्त कर दिया ! फिर चारों तरफ से आवाज आई,,सेनापति चांडाल की जय हो, सेनापति चांडाल की जय हो।

यह सब सुनकर सेनापति चांडाल के मुख पर मुस्कुराहट आई। चेहरा खून से लाल हो चुका था,कपड़ों से शत्रुओं के खून लगातार टपक रहे थे,,वह अपनी पूरी सेना को लेकर वापस अपने हिमालयन साम्राज्य की ओर लौटा।

दरबार पूरी तरह से लगा हुआ था,राजा चिंतित स्वर में अपने सिंहासन पर विराजमान थेऔर दरबारी मंत्री आपस में कुछ कुछ बातें किए जा रहे थे, तभी अपने घोड़े के साथ सर्वांग देश के राजा का सिर लिए चांडालदरबार में पहुंचा, उसके चेहरे और कपड़ों से लगातार खून टपक रहे थे।

सेनापति ने सर्वांग राज्य के राजा का सिरराजा की तरफ फेंका,, और बोला,लीजिए महाराज आपका तोहफा, आपके शत्रु का सिर जो मैं काट लाया हूं।

यह देख कर राजा बहुत खुश हुआ,सभी दरबारी भी खुशी से तालियां बजाने लगे और सेनापति चांडाल की जय हो, महाराज चंद्रसेन की जय हो,,का नारा लगाने लगे

चंद्रसेन भी अब खड़े हो गए और उन्होंने सेनापति से कहा मुझे गर्व है सेनापति तुम पर,,तुम इस राज्य के असली सेनापति हो,, असली रक्षक हो, मैं जानता हूं कि तुम्हारे रहते, इस राज्य का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता, बोलो तुम्हें क्या चाहिए ?? तुम्हें जो चाहिए मुझसे मांग लो,, तुम्हारी जीत का वही इनाम होगा।

सेनापति चंद्रसेन मुस्कुराया और मुस्कुराते हुए उसने,अपने हाथ को ऊपर की ओर उठाया,,और अपनी उंगलियों से चंद्रसेन के दाहिनी तरफ इशारा किया।

चंद्रसेन की दाहिनी तरफ,रजवाड़े वस्त्र पहने 20 साल की,, चेहरे पर चमक और लाली युक्त,,बड़ी बड़ी आंखें, नशीली आंखें,,आंखों में काजल,,सुंदर काया सुंदर शरीर,, अप्सरा सी लग रही लड़की राजकुमारी मोहिनी थी।

सेनापति के उंगली का इशारा देखकर,सभी की नजर उस और घूमी और जब सभी ने देखा कि सेनापति की नजर राजकुमारी पर है,तो एक साथ पूरा दरबार खामोश हो गया,,स्तब्ध हो गया।

तभी राजकुमारी ने भी सेनापति चांडाल को देखा, खून से लथपथचेहरे पर कटे का निशान, बड़ा ही कुरूप और विकराल दिख रहा था,,

उसे देख कर राजकुमारी डरी घबराई और घबराते हुए बोली नहीं महाराज मुझे इस दानव के साथ नहीं जाना है,,कहते हुए वह दौड़कर अपने कमरे की तरफ भागी।

सेनापति के इशारे को देखकर राजा चंद्रसेन भी बहुत क्रोधित हुए,

उन्होंने चिल्लाते हुए कहा सेनापति तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम्हारी नजर मेरी बेटी राजकुमारी पर है, यह कभी नहीं हो सकता। वह कोई पैसा नहीं जो मैं तुम्हें दे दूं।

महाराज आपने वादा किया था, कि मैं आपके शत्रु को पराजित कर दूंगा,,तो आप मुझे मुंह मांगा वर देंगे, और अब आप मुकर रहे हैं।

मैंने वरदान देने को कहा था, वरदान में तुम सोने, चांदी जेवरात,, कुछ भी मांग सकते थे,,मगर राजकुमारी नहीं यह तुम्हारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

सोने चांदी ही क्यों ? वरदान में मैं तो आपका पूरा साम्राज्य मांग सकता था, मगर मैंने तो सिर्फ आपकी बेटी राजकुमारी को मांगा,,इसमें गलत ही क्या है ? और यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर कैसे हो सकता है ? ?

गुस्से से सेनापति चांडाल बोला।

हां तुम्हारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है,,क्योंकि राजकुमारी को ब्याहने का अधिकार सिर्फ एक राजा को होता हैकिसी सेनापति को नहीं समझाते हुए चंद्रसेन बोले।

माना महाराज की राजकुमारी को ब्याहने का हक, किसी राजा का ही होता है,सेनापति का नहीं,, मगर आपको अभी भी लगता है क्या ?? कि मैं सेनापति हूं, मैं तो खुद में एक राजा हूंक्योंकि राजा वही हो सकता है, जो एक सफल योद्धा हो, जो युद्ध को विजई कला में बदल दें,,और मैं वही हूं,इसलिए मैं भी तो राजा ही हूं।

अपनी औकात मत भूलो सेनापति, युद्ध सेना लड़ती है। मगर विजय का सेहरा सेनापति पर बंधता है,राज्यों को सेना और सेनापति जीतती है मगर राज्य राजा को प्राप्त होता हैइसलिए तुम सिर्फ और सिर्फ एक सेनापति हो और कुछ भी नहीं, इसलिए राजकुमारी का ख्याल अपने मन से निकाल दो, और दोबारा ऐसी गुस्ताखी न करना वरना तुम अच्छी तरह से जानते हो कि गुस्ताखी की सजा मौत है मौत और कुछ भी नहीं।

सेनापति चांडाल एक बार फिर जोर जोर से ठहाके लगाने लगा हा हा हा हा हा,,

और फिर बोला तो ठीक है महाराज यदि आपको लगता है। राजकुमारी को ब्याहने का हक सिर्फ एक राजा को है।

तो मैं अभी इसी वक्त आपको युद्ध के लिए लालकारता हूं।

कि आने वाले 24 घंटे के अंदर,या तो आप या पूरा राज्य और राजकुमारी को लेकर मेरे पास आकर,आत्मसमर्पण कर दें, या फिर 25वे घंटे में मेरे साथ युद्ध के लिए तैयार हो जाएं कहते हुए,एक बार फिर से जोर जोर से ठहाके लगाने लगा हा हा हा हा,,कहते हुए वह अपने घोड़े को लिए दरबार से बाहर की ओर जाने लगा,

मगर उसकी आवाज अब एक चिंता, एक परेशानी एक, ललकार बंन कर उस दरबार में गूंजने लगी हा हा हा हा हा हा।

सेनापति चांडाल जा चुका थामगर राजा और सभी दरबारी बहुत चिंतित थे, अब क्या होगा ? जा लगातार अपने मंत्रियों से इसका हल पूछ रहे थे।

अब आप ही लोग इस समस्या का समाधान निकालिए। सेनापति को समझाइए, बताइएमगर इस समाधान का हल निकालिए चिंतित भाव में राजा बोले।

महाराज आप अच्छी तरह से जानते हैं कि, सेनापति चांडाल को समझाना अपनी मृत्यु को निमंत्रण देने के बराबर है, क्योंकि वह अपने सिवा और अपनी जिद्द के सिवा किसी की बात न सुनता ना समझता है,,और जब वह किसी चीज में आ जाता है, तो वह हार भी नहीं मानता चिंता स्वर में मंत्री राजनाथ बोले।

तो क्या करें हार मान ले,या उससे युद्ध लड़े आखिर क्या करें ??हम और हमें क्या करना चाहिए ? आप लोग इतने बुद्धिमान बुद्धिमान मंत्री मेरे दरबार में हैं!!!! फिर भी आप इसका हल नहीं निकाल सकते !!!!कुछ तो हल निकालिए इस समस्या का, समाधान कुछ तो होगा ! क्योंकि हम भी जानते हैं कि, हम उसे युद्ध में पराजित नहीं कर सकते।

परंतु छल युद्ध में तो कर सकते हैं महाराज,,उठते हुए एक और मंत्री बोला।

छल युद्ध मतलब क्या कहना चाह रहे हैं ??आप चंद्रसेन ने आश्चर्य से पूछा।

मतलब साफ है महाराज धोखे से छल से उसे हमेशा हमेशा के लिए मार दिया जाए।

मगर यह होगा कैसे राजा ने आश्चर्य से पूछा। ??

महाराज हर योद्धा, हर वीर, हर व्यक्ति, की कोई न कोई कमजोरी जरूर होती है समझाते हुए मंत्री बोला।

मगर इसकी क्या कमजोरी है ?उत्सुकता से चंद्रसेन बोले।

महाराज इसकी कमजोरी है मदिरा और सुंदर नारी। मंत्री बोला।

मदिरा और सुंदर नारी मगर उससे क्या होगा ??राजा चंद्रसेन बोले।

आप चिंता छोड़िए महाराज और आदेश तो दीजिए इस कार्य को हम पूरा कर देते हैं। जब अपना ही कुत्ता काटने को दौरे तो उसे गोली मार ही देनी चाहिए ।इसी में सबका भला है समझाते हुए मंत्री राजनाथ बोले।

तो ठीक है मंत्री आपको जैसा ठीक लगे कीजिए, मगर याद रहे कोई चूक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हमारी एक भी चूक उसे पुनर्जीवन दे देगी,और उसका पुनर्जीवन,, पूरे साम्राज्य को, हिमालयन साम्राज्य को मिट्टी में मिला देगा समझाते हुए चंद्रसेन बोले और उठ कर जाने लगे।

आप बिल्कुल भी चिंता ना करें महाराज आप निश्चिंत रहें उसके 25 घंटे होने से पहले ही उसका काम तमाम हो जाएगा।

सेनापति चंद्रसेन अपने शयनकक्ष में लगातार मदिरा पीते जा रहा था। और ठहाके लगाता जा रहा था।

तभी मंत्री राजनाथ हाथों में में मदिरा का मटका लिए, और साथ में एक सुंदर सी लड़की को लिए कमरे में प्रवेश कीया  ,फिर उन्होंने बोला,, सेनापति चांडाल की जय हो।

सेनापति ने अपनी नजरें उठाई और राजनाथ को देखते हुए बोला क्या बात है ?मंत्री क्यों आए हो यहां ??क्या तुम्हारे राजा ने हार मान ली ??कोई संदेशा लाए हो या राजकुमारी को ही लेकर आए हो हा हा हा।

मुस्कुराते हुए राजनाथ ने कहा,

सेनापति आप बिल्कुल भी चिंता ना करेंहमेशा से आपकी ही जीत हुई है, और इस घड़ी में भी आप ही की जीत होगी।

महाराज ने तो आपके आराम के लिए मदिरा की मटकी और इस अप्सरा को भेजा है,देखिए एक नजर देखिए कितनी खूबसूरत है, यह कहते हुए राजनाथ ने मटका को वही सामने रख दिया और उस लड़की को सेनापति के बगल में बैठ जाने का इशारा किया।

सेनापति ने उस लड़की के गाल को छूते हुए बोला,,बहुत सुंदर,अति सुंदर कम से कम राजा ने मेरे लिए इतना तो सोचा, मगर सिर्फ 24 घंटा राजा से कह दीजिएगा,,कि मेरा मन तो राजकुमारी को पाने का ही हैजब तक वह मुझे नहीं मिल जाती,, तब तक मैं इससे काम तो चला लूंगा लेकिन मुझे वही चाहिए सिर्फ वही।

आप बिल्कुल भी चिंता ना करें सेनापति, जो आपकी इच्छा है।वह जरूर पूरी होगी। तब तक आप इस मदिरा और नारी के साथ मजे कीजिएमैं चलता हूं कहते हुए, वह कमरे से बाहर निकल गए और कमरे का दरवाजा सटा दिया।

लंबे लंबे बाललालिमा युक्त गाल, माथे पर गजरा, आंखों में काजलछरहरा बदन और कातिल निगाहें सेनापति चांडाल लगातार उसे देखता जा रहा था,, और बार-बार उसके गालों को सहला था, बालों को सहला था, और कहता कब तक ?आखिर कब ?तक मेरी नजरों से बची रहोगी राजकुमारी,आज नहीं तो कलतुम्हें तो मेरा ही होना है,मेरा ही होना है,कहते हुए वो लगातार मदिरापान किए जा रहा था ।

फिर धीरे-धीरे उसका नशा चढ़ने लगा वह उस लड़की को बिस्तर पर लेटा दिया और उसके शरीर को सहलाने लगा। सहलाते-सहलाते, धीरे धीरे उसकी आंखें बंद होने लगीवह राजकुमारी राजकुमारी बोलते हुए लड़खड़ा कर बिस्तर पर एक तरफ गिर पड़ा

दूसरे दिन दरबार सजी हुई थीराजा और उसके सभी दरबारी दरबार में बैठे हुए थे। और लगातार मुस्कुराए जा रहे थे,सभी के चेहरे पर एक अजब सी खुशी दौड़ रही थी।

तभी सेनापति चांडाल की आंखें खुली,एक बार जो उसकी आंखें खुली, सो खुली की खुली ही रह गई,,

वह चिल्लाया धोखा धोखा,मेरे साथ धोखा किया है। तुम लोगों ने,सेनापति चांडाल के हाथ और पांव बड़े-बड़े जंजीरों में बांधे जा चुके थे। ‌। और वही सामने के खंभे से उन जंजीरों को बांध दिया गया था। काफी मोटे और बड़े जंजीर थे,, सेनापति चांडाल अपनी पूरी ताकत लगा कर उन जंजीरों को तोड़ देना चाहता था ।मगर जंजीर की मजबूती उसके इन ताकतों से कहीं ज्यादा थी,वह लगातार प्रयास करता था रहा था। ,, मगर जंजीर टूटतानहीं उल्टे उसके हाथ पांव से खून बहने लगे, वह लगातार चिल्ला रहा था,, चंद्रसेन, राजनाथ तुमने धोखा किया है मेरे साथ। इस धोखा की कीमत सिर्फ और सिर्फ मृत्यु है,मैं तुम में से किसी को जिंदा नहीं छोडूंगा,,कहते हुए वह जोर-जोर से जंजीरों को खींचता और पांव को जमीन पर पटकता।

उसकी स्थिति देखकर सभी दरबारी ,,राजा ,,राजकुमारी सभी मुस्कुरा रहे थे। और उन सभी के चेहरों की मुस्कुराहट सेनापति चांडाल को बहुत अधिक क्रोधित कर रही थी।

और क्रोध की अग्नि में जलते हुए वह लागातार जंजीरों को खींचता और उन्हें तोड़ देने की कोशिश करता।

मगर हर बार की तरह, हर कोशिशें नाकाम हो जाती,,

वह जोर जोर से चिल्लाता।

सभी हंस रहे थेतभी चंद्रसेन ने कहा क्यों ? सेनापति राजकुमारी से विवाह करना है!!! मैंने कहा था ना तुम्हारी औकात नहीं कि तुम राजकुमारी से विवाह करो!!!!

तुम एक सेनापति हो और सेनापति ही रहोगे और तुमने खुद को राजा बनने का ख्वाब देख लिया। तुम्हारी पहली गलती कि तुमने राजकुमारी से विवाह करने का सोचायदि तुम माफी मांग लेते तो मैं तुम्हें माफ भी कर देता,मगर तुमने दूसरी गलती की कि तुमने खुद को राजा के तौर पर सोच लिया।

यदि फिर भी तुम हाथ जोड़कर मुझसे माफी मांगते तो शायद मैं तुम्हें माफ कर देता मगर उससे भी बड़ी गलती कि तुमने मुझे युद्ध के लिए ललकार लिया और युद्ध की ललकारआहट के साथ ही तुम मेरे शत्रु हो गए,,तुमने मुझे 24 घंटा दिया था, मगर सिर्फ 12 घंटे में ही, मैंने तुम्हारा हाल एक चूहे की तरह बना दिया अब नहीं हंसोगे। हा हा हा हा

तुमने धोखा किया है, चंद्रसेन धोखे से तुमनेमुझे यहां कैद कर रखा है,, क्योंकि तुममे इतनी हिम्मत नहीं कि,,मुझसे युद्ध कर सको,तो तुमने यह छल कपट वाला रुख अपनाया है। मगर तुम चाहे कुछ भी कर लो,, मैं सिर्फ और सिर्फ राजकुमारी से ही ब्याह करूंगा, वह एक बार फिर जोर से हंसा हा हा हा हा हा और अपनी जंजीरों को खींचने का प्रयास करने लगा।

राजकुमारी से विवाह करने का स्वप्न ना देखो सेनापति,, क्योंकि ब्याह करने के लिए जिंदा रहना जरूरी है, और आज तो तुम्हारा जीवन का अंतिम दिन है।

आज तुम मारे जाओगे तो, विवाह क्या करोगे ? इसलिए तैयार हो जाओ और अंतिम समय में भी अपनी गलतियों के लिए अपनी राजा से माफी मांग लो ताकि तुम्हारी मौत आसान हो जाए।

तुमने धोखा किया, चंद्रसेन और तुम सोचते हो कि तुम मुझे मार दोगे, मैं सिर्फ और सिर्फ राजकुमारी से ही ब्याह करूंगा, यह मेरा जिद है, या मेरा प्रण है

हो सकता हैआज तुम मुझे मार दो, मैं मर भी जाऊं,,

तो इससे सीर्फ,, मेरा शरीर मरेगा, मगर मेरी आत्मा राजकुमारी से प्यार करेगी, मेरा और राजकुमारी का मिलन जरूर होगा, वह चाहे इस जन्म में होअगले जन्म में हो,, या किसी भी जन्म में हो, मगर जरूर होगाजरूर होगा,, याद रखना चंद्रसेन,,और मुझे यदि एक मौका मिल गया ना तो पल भर में ही मैं तेरा सर धड़ से अलग करके इन दरबारियों को इनके धोखे की सजा देकर,भड़ी दरबार में राजकुमारी से विवाह करके दिखाऊंगा,,तुमने मेरे शरीर को बांधा है, मगर मेरे हौसलों को पस्त नहीं किया,

गरजते हुए सेनापति चांडाल बोला ......नामर्द कहीं के।

यह बात सुनकर चंद्रसेन बहुत क्रोधित हुआ और जोश में उठते हुए वह तलवार लिए, सेनापति की तरफ बढ़ा और देखते ही देखते उसने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया!! उसकी दोनों हाथ काट डाले,दोनों पांव काट डालें,

देखते ही देखते सेनापति का पूरा शरीर झटपटआने लगा। तड़पने लगा और खून की धारा पूरे दरबार में चारों तरफ बहने लगी, देखते ही देखते झटपटआते हुए,

सेनापति का शरीर धीरे धीरे शांत हो गया ,,

और सेनापति मारा गया।

अब राजा और सभी दरबारियों के चैन में चैन आई,, उनके अंदर जो सेनापति चांडाल का डर पल रहा थावह खत्म हो चुका था,सभी खुश थे, एक विद्रोही का आज अंत हो गया था,, और विद्रोही की ऐसी सजा देखकर, दूसरा कोई भी इस राज्य में विद्रोह करने की नहीं सोचेगा,

राजा चंद्रसेन मुस्कुरा रहा था,खुश हो रहा था,

अपनी इस छल नीति से किए छल युद्ध की विजय गाथा पर।

सभी दरबारी राजा चंद्रसेन की जय जयकार लगा रहे थे।

फिर राजा ने आदेश दिया,

सेनापति के शरीर के सभी अंगो को तहखाने में फेंकना दिया जाए, ताकि कीड़े मकोड़े उसके शरीर को नोच नोच कर खा जाएं,

राजा के कहे अनुसार राजा के दरबारियों ने सेनापति के अंगों को बटोर कर तहखाने में फेंक दिया और तह खाना बंद कर दिया गया।

इस घटना को गुजरे 5 महीने बीत चुके थे,, राज्य में सभी खुश थे, प्रसन्न थे, और सेनापति चांडाल को भुला चुके थे।

आज राज्य में खुशियां कई गुना बढ़ने वाली थी,

क्योंकि राजा ने अपनी राजकुमारी का विवाह कुंतल देश के राजकुमार से तय कर दिया था,, आज ही विवाह होना था।

महल के बीच बने आंगन क्षेत्र मेंविवाह की सारी तैयारियां चल रही थी। मंडप बनाई गई थी। जो फूलों से पूरी तरह सजी हुई थी। लोगों के बैठने का अच्छा से अच्छा इंतजाम किया गया था, सभी मेहमान पहले से ही आकर बैठे थे। दूर-दूर देश के राजा, महाराजाओं को इस विवाह में शामिल होने का निमंत्रण दिया जा चुका था,,कुछ लोग आ चुके थे। और कुछ आने वाले थे,

कुछ समय के बाद कुंतल देश का राजकुमार अपनी बारात लेकर चंद्रसेन के राज्य में पहुंचागाने, बजाने,, खुशियां सभी चल रही थी, विवाह की तैयारियां बड़े ही जोरों शोरों पर चल रही थी, मेहमानों का आदर सत्कार करने के बाद।

राजकुमार और राजकुमारी को मंडप में बुलाया गया, पंडित जी भी आ चुके थेउन्होंने भी अपना स्थान ग्रहण किया और सामने राजकुमार राजकुमारी बैठे हुए थे,

विवाह मंत्र प्रारंभ हो चुका था, पंडित जी लगातार मंत्र पढ़ते जा रहे थे,फिर उन्होंने राजकुमार और राजकुमारी को खड़ा होने का इशारा किया और फिर उन दोनों का गठबंधन करने लगे,दोनों खड़े हो गए, अग्नि के फेरे लेने थे, इसलिए पंडित जी ने मंत्र पढ़ते हुए मंडप में अग्नि जलाई। अग्नि जली और देखते ही देखते थोड़ी देर में ही उस आग की लपटें जोर जोर से ऊपर की ओर बढ़ने लगी, देखते ही देखते आग की लपटें बड़ी होने लगी, आग फैलने लगा। आग से राजकुमार और राजकुमारी के गठबंधन वाले कपड़े भी जल गए, जिससे मंडप में हाहाकार मचने लगा,,

तुरंत उनके कपड़ों को उतारा गया, आग को बुझाने का प्रयास किया जाने लगातभी आवाज उत्तर दिशा से एक आवाज आनी शुरू हुई, हुम,, हुम, हुम,

और फिर तेज हवाओं का झोंका बहने लगा, पूरा मंडप उन हवाओं के कारण हिलने लगा,,फिर अचानक वहां जल रही।, मसाले बुझने लगी, एक-एक करके मसाले बुझने लगी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था,

यह सब क्या हो रहा है ?राजा चंद्रसेन, उनके मंत्रीदरबारी सभी चिंतित थे,कि अचानक यह सब क्या होने लगा ?यह कैसा अपशगुन हो गया कि राजकुमार और राजकुमारी के गठबंधन वाले वस्त्र जल गए।

मंत्री ने उन्हें समझायाकुछ नहीं महाराज एक संजोग मात्र है,जल्द ही सब ठीक हो जाएगा, कहते हुए, एक बार फिर मंडप को सजाया जाने लगाहवाएं रुक चुकी थी। काले बादल आकाश में छाने लगे थे, सभी दरबारी मंडप सजाने में व्यस्त थे, तभी मंडप के पास एक कटा हुआ हाथ गिरा पड़ा मिला,,

एक दरबारी चिलाया, महाराज यह देखिए यह किसी का कटा हुआ हाथ यंहा गिरा पड़ा है, सभी दौर कर उस तरफ आए, मगर देखा वहां कुछ भी नहीं था।

चंद्रसेन ने उसे बहुत डांटा और मन लगाकर काम करने को ,,बोले दरबारी समझ नहीं पा रहा थाकि क्या हुआ?

तभी अचानक दूसरी तरफ एक कटा हुआ पैर मिला

दरबारी फिर चिलाया,, महाराज यह देखिए कटा हुआ पैर सभी दौड़कर फिर आए मगर वह गायब हो चुका था। चंद्रसेन इस बार पहले से ज्यादा क्रोधित होकर उस दरबारी को डांटने लगे, और वही बैठ गएएक बार फिर तेज हवाएं चलने लगी देखते ही देखते एक के बाद एक सभी मशाल बुझ गए।

बादलों ने गर्जना शुरू कर दिया, पूरा विवाह स्थल अंधकार मय हो चुका था, सभी इधर-उधर दौड़ रहे थेकोई मशाल जलाने का प्रयास कर रहा थाकोई मंडप सजाने का। अचानक जोर से बिजली चमकी और चंद्र सेन की नजर सामने की तरफ पड़ी, वह चिल्लाया सभी ने देखा सिर्फ दो पांव,, बिना गला और शरीर के धम, धम, की आवाज करते हुए आगे की ओर बढ़ रहा था,सभी घबराए, डर रहे थे।‌ यह क्या है ? और क्या हो रहा है ??

तभी फिर जोर से एक बार भी बीजली चमकीराजा ने देखा एक कटा हुआ हाथ, मंडप को उजार रहा है,,

राजा और दरबारी सभी डरने लगे, सभी की धड़कन तेज होने लगी थी,,सभी घबरा रहे थे, कोई इधर भाग रहा था,, तो कोई उधर भाग रहा था,,थोड़ी देर के बाद फिर बिजली चमकी और सब कुछ गायब हो चुका था।

फिर धीरे-धीरे सभी मशाल जलाए गएरोशनी प्राप्त हो चुकी थी, हवाओं ने भी बहना छोड़ दिया था,

सभी ने सोचा कि यह हमारा वहम है,

इसलिए राजा ने सबको समझाया और फिर से मंडप की तैयारियां की गई।

एक बार फिर मंडप को पूरी तरह से सजा दिया गया, पंडित जी आए अपने स्थान पर बैठकर मंत्रों को पढ़ने लगे।

राजकुमार और राजकुमारी विवाह के फेरे लेने को एक बार फिर तैयार हुए।

पंडित ने आग जलाई, गठबंधन किया और फिर मंत्र पढ़ने लगाराजकुमार और राजकुमारी अग्नि का फेरा लेने के लिए आगे की ओर बढ़े,,तभी अचानक एक बार फिर हवाओं का झोंका प्रारंभ हुआ,जोर-जोर से बादल गरजने लगे,, और किसी के चलने की आवाज दूर कहीं से आने लगी, सभी उस आवाज की तरफ देख ही रहे थे

कि अचानक पंडित के पेट को चीरते हुए, दो हाथ बाहर निकले,, पंडित जोर से चिल्लाया, बचाओ बचाओ,देखते ही देखते,वह दोनों हाथ उसकी छातियों को चीरने लगे, राजा और दरबारी सभी डर कर खामोश हो गए,, सभी की धड़कन ए तेज होने लगी, सांस फूलने लगी,, लोग इधर-उधर भागने लगे,,चारों तरफ हाहाकार मचने लगा,, भागो भागो,, बचाओ बचाओ लोग चिल्लाने लगे, देखते ही देखते उस दो हाथ ने, उस पंडित के सिरको पूरी तरह से मरोड़ कर धड़ से उखाड़ दिया। और दूर कहीं फेंक दियायह सब देख कर राजकुमारी भी चिल्लाने लगी, डर सेवक कांपने लगी।

यह सब देख कर राजा चंद्रसेन और राजनाथ दोनों डर से कांपने लगे, दोनों के चेहरे लाल होने लगे, पैर कंप कंपाने  लगे,धड़कन ए लगातार तेज होती जा रही थी। सांसो का फूलना ,,बढ़ना लगातार जारी था।

पसीने माथे और शरीर पर से साफ झलक रहे थे,

तभी एक हाथ उड़कर राजनाथ के गले को पकड़ लिया। और फिर दूसरे  हाथ ने भी राजनाथ के गले को अच्छे से जकड़ लिया।

राजनाथ अपने दोनों हाथों से अपने गले को पकड़े ,, छुड़ाने के लिए पूरा प्रयास करने लगा।

चिल्लाने लगा, माफ कर दो, गलती हो गईकौन हो तुम? कौन हो तुम ?

मगर वह सुनता कहा था ? वह तो लगातार राजनाथ के गले को मरोड़ रहा था, देखते ही देखते उन दोनों हाथ ने राजनाथ को वही पटक दिया,, फिर एक अचानक एक कटा पैर धक धक करता हुआ, आगे की ओर बढ़ाफिर उसके पीछे एक दूसरा कटा पैर धक धक करते हुए आगे

बढ़ायह सब देख कर हाहाकार मच चुका था।

सभी अपनी जान बचाने को इधर उधर भाग रहे थे।

दौड़ रहे थेकितनों की तो देखकर ही हार्ट फेल हो गया। और वही भगवान को प्यारे हो गए,,

दोनों पांव चलते-चलते आगे की ओर बढ़े और राजनाथ जमीन पर गिरा अपने गले को छुड़ाने का लगातार प्रयास किए जा रहा था,, चलते चलते अचानक दोनों पांव के ऊपर एक कटा हुआ शरीर आकर जुड़ गयासबकी आंखें फटी की फटी लग रही थी,, सभी वहां से भाग जाना चाहते थे, मगर भागने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे,,इतना डरावना और खौफनाक मंजर बन चुका था, चारों तरफ खून ही खून, लाशें ही लाशें दिखाई पड़ रही थी।

दोनों हाथ ने राजनाथ के दोनों हाथ उखाड़ दिए,

फिर उसे कुर्सी पर बैठा कर, उसके गले को जोर-जोर से चारों दिशाओं में मरोड़ना शुरू कर दिया, मरोड़ते मरोड़ते अचानक राजनाथ के गले की नशे सारी फट गई,,

खून लगातार बहने लगा,, राजनाथ दर्द से कराह रहा था। चिल्ला रहा था, उसके धर तड़प रहे थे,, और उसकी सांसे धीरे धीरे खत्म हो रही थी, देखते ही देखते राजनाथ मर चुका था।

अभी किसी को कुछ समझ में आता उससे पहले ही बिना सिर और बिना हाथ के एक शरीर खून से लथपथ जमीन पर पैरों को पटकते हुए आगे की ओर बढ़ रहा था,

वहां मौजूद सभी लोगों की धड़कनें तेज हो चुकी थी,

सांसे लगातार फूलती जा रही थीसभी के शरीर से पसीने बहते जा रहे थे, लोग इधर-उधर भागने का प्रयास कर रहे थे।

चारों तरफ हाहाकार मच चुका था, वह दो हाथ,

जो मिलता उसके ही गर्दन को मरोड़ कर उखाड़ कर फेंक देता, देखते ही देखते सारा मंडप भयानक हो चुका था। डरावना हो चुका था, उस विवाह के मंडप में चारों तरफ खून ही खून नजर आ रहा था,और बिना सर के धर छटपटा रहे थे, तड़प रहे थे,बचे हुए लोग भागने का प्रयास कर रहे थे,और भाग कर अपनी जान बचाने का, मगर आज शायद जिंदगी कहीं नहीं थी। चारों तरफ तो बस मौत का सन्नाटा छा जाना था। वह बीना हाथों का शरीर जमीन पर पैरों को पटकते हुए आगे बढ़ रहा था

राजकुमार और राजकुमारी दोनों वहां से भाग जाना चाहते थे। मगर दोनों हाथों ने राजकुमार के पैर को पकड़ लिया। और उसे नीचे की तरफ गिरा दिया,, देखते ही देखते उन दोनों हाथों ने राजकुमार के एक हाथ को उखाड़ कर आग में डाल दिया, फिर उसने दूसरे हाथ को भी उखाड़ कर आग में डाल दिया, राजकुमार के दोनों कंधों से लगातार खून बहता जा रहा था,, और राजकुमार दर्द से कराहता,, चिल्लाता जा रहा था।

राजकुमारी भी जोर जोर से रोने लगी थी। फिर उस एक कटे हाथ ने एक तलवार उठाया, और एक झटके से ही राजकुमार के सर को धड़ से अलग कर दिया।

फिर दूसरे हाथ में राजकुमार के सिर को लिए सामने खड़ा हो गया,

और बिना सिर वाला शरीर वही जाकर राजकुमार की कुर्सी पर बैठ गया।

उसके गले के पास से काफी खून बह रहा था,,तभी उड़ते हुए अचानक में,,एक काला विकराल, बड़ी-बड़ी लाल-लाल आंखें,, सिर के अंदर की नसें साफ-साफ दिख रही थी, फिर अचानक उस पर बाल आ गएलाल-लाल आंखें खुलकरतन गई,,चेहरे की बाई ओर एक लंबे कटे का निशान, बड़े ही डरावने लग रहे थे ।देखने वाले की सांसें कांप जाती,,फिर अचानक उसके मुंह खुले और उस बिना धर वाले सिर ने जोर जोर से ठहाके लगाना शुरु कर दीया, हा हा हा हा हा हा हा,,

सभी समझ चुके थे ,,कि यह कोई और नहीं बल्कि सेनापति चांडाल ही है, जो अब भूत बन चुका हैप्रेत बन चुका है,, पिशाच बन चुका है। ,

कटे सिर ने जोर जोर से ठहाका हा हा हा हा हा हा हा

लगाते हुए बोला चंद्रसेन।

तभी राजा चंद्रसेन सामने की कुर्सी की तरफ गीड़े ,,पड़े ,,उठते संभलते हुए खड़े हुए।

उस बिना धरवाले सिर ने कहना शुरू किया,

चंद्रसेन मैंने तुझसे कहा था, तुझे 24 घंटे भी दिए थे,

कि तू राजकुमारी और यह राज्य का सिंहासन, मुझे दे दे,, मेरा राज्य अभिषेक करा दे

मगर तूने मुझे धोखा दिया,छल किया,,मेरे साथ,

तूने अपना वादा पूरा नहीं किया, मगर,मैं जो वादा अपने आप से कर लेता हूं,,वह मैं किसी भी कीमत पर निभाता हूं

चाहे उसके लिए जान देनी पड़े,,या चाहे जान लेनी पड़े, हा हा हा हा हा हा जोर का ठहाका लगाते हुए, उसकी आंवाज की गूंज से वहां सब कुछ हिलने लगता,

मसाले लहलहा ने लगती, बचे खुचे दरबारी और साथ में राजा डर जाते हैं, पूरा माहौल डरावना और विकराल दिखाई पड़ता।

वह फिर बोला,, तेरे धोखे की सजा मौत है

मगर फिर भी,, मैं तुझे एक बार फिर 24 घंटे का समय देता हूं।

अभी से भी तू अपने गुनाहों की माफी मांग ले,,

राजकुमारी और राज्य मुझे सौंप दे, मेरा राज्याभिषेक करा दे।

वरना तेरा वंश, तेरा नाम,, मैं आज ही खत्म कर दूंगा। हा हा हा हा हा हा हा जोर से ठहाका मारते हुए बोला,

और इस बार तो तुम मेरे साथ धोखा भी नहीं कर सकते।

छल भी नहीं कर सकते,,हा हा हा हा हा,

24 घंटे,सिर्फ 24 घंटे याद रखना कहते हुए

वह कटा हुआ सिर घुमा, राजकुमारी के चेहरे के सामने जाकर रुका, उसे ठहाके मारते हुए हा हा हा हा हा हा हा हंसा और बोला 24 घंटे सिर्फ 24 घंटे हा हा हा हा हा,

यह सब देखकर और सुनकर सभी डर से कांप रहे थे।

सभी की धड़कने तेज हो रही थी सांसे फूल रही थी।वह जगह पूरी तरह से डरावना विकराल, ,,

ठहाके लगाते हुए वह कटे पैर,उसके ऊपर, वह कटा हुआ शरीर, दोनों हाथ, और अंत में उसका सिर,, सभी आपस में जुड़ गए, और वह ठहाके मारते हुए हंसते हुए बोलता चला गया, 24 घंटे, सिर्फ 24 घंटे,

हा हा हा हा हा हा हा

सभी खामोशी से डरते हुए लागातार उसे देखे जा रहे थे। चारों तरफ लाशों का ढेर, और लगातार बहता हुआ खून,

बिल्कुल सन्नाटा, अंधकार और रह-रहकर दूर से सियारों की आवाज आंउ,आंउ,आंउ।

क्रमशः


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