सुहाग की चुड़ियां
सुहाग की चुड़ियां
सोनिका को बहुत देर से आज सासू मां के फोन का इंतजार था।वह सोच रही थी। मम्मी जी हर त्योहार के लिए श्रृंगार में चूड़ी तो देती ही है। उसने सोचा ' चूड़ियां चलो बाद में ले लूंगी।'थोड़ी देर बाद चूड़ी वाले की आवाज आती है ,चूड़ी ले लो ••••कंगन ले लो••••
वह अपने आप को रोक नहीं पाती है, बालकनी से ही चुड़ी वाले को आवाज देती हुई कहती-' भैया रुकना हम आ रहे हैं •••••'
इतने मैं वह देखती है कि ठेले में तो कटावदार चूड़ियां है, क्यों न मैं मम्मीजी के लिए ले लूं। मम्मी जी को कटावदार कांच की चूड़ी बहुत पसंद है।वह अपनी देवरानी के लिए जड़ाउदार कंगन खरीदती है। और अपने लिए लाख के कंगन और चुड़ी मैचिंग की साड़ी के हिसाब से खरीद लेती है।उसे पता है मम्मी जी सुहाग का सामान दिये बिना नहीं रहती। तब पर भी वह खरीद लेती है।
सोनिका को फिर याद आने लगता है कि ससुराल में मेहंदी लगे हाथ में खनकती चूड़ी की आवाज मेरी सासुमा को कितनी अच्छी लगती थी। काश वो दिन फिर वापस आ जाए!
वह अब त्योहार में ही ससुराल जाती।उसे अपने घर में अलग से कुछ भी करने का मन नहीं होता था।
जब देवर की शादी हुई तो देवरानी सासुमा के कान भरने लगी जिससे उसे वो घर छोड़ना पड़ा।
क्योंकि उसके पति देवर से कम कमाते थे। इसलिए सासुमा ने उसे अलग रहने कहा था।खैर••••सोनिका ससुराल भी तभी जाती जब सासुमा का फोन आता। नई - नई देवरानी को ज्यादा रीति- रिवाज पूजा- पाठ का ज्यादा पता नहीं था। इसलिए वह सासुमां से कह फोन कराती है।
सोनिका आज भी इंतजार कर रही थी कि तभी मम्मी जी फोन आ जाता है। सासुमा कहती - सोनिका कल गनगौर का त्योहार है। रोशनी को ज्यादा पूजा पाठ के बारे में पता नहीं है कैसे वो करेगी••••!
बहू तुम ऐसा करो रात में ही आ जाओ सब मिलकर गनगौर की पूजा करेंगे।
वह साधारण रूप से जो उसके पास श्रृंगार का सामान था। वह लेकर चली गई।अब तीज का व्रत करना था। उसने नयी साड़ी नहीं ली।जो उसके पास थी ।वही साड़ी पहनी और श्रृंगार कर लिया।
और देवरानी ने कोरी साड़ी के साथ कोरी चूड़ियां हाथ में पहनी ।तब दोनों में छोटी बहू ज्यादा ही सुन्दर लग रही थी। क्योंकि उसके पास सारा साज सामान नया आया था।अब पूजा का समय हो गया ,सब मोहल्ले वाली औरतें इकट्ठी होने लगी। पूजा भी विधि विधान से हुई। तभी मोहल्ले की एक औरत ने कहा -"अरे भाभी आपने पिछले साल वाली ही साड़ी पहनी है, नयी नहीं ली क्या ?"
तब सोनिका ने कहा -" बहन जी भगवान कुछ नहीं कहते कि नया ही पहनो ,केवल श्रृंगार में चूड़ी ही कोरी होनी चाहिए। उससे भी चल जाता है।और मेरी साड़ी भी धुली नहीं है इसलिए ये भी कोरी ही हुई न••••।"
इतना सुनते ही सास सकपका गई, मैंने बहू को नयी साड़ी नहीं दी। वह भी सोनिका की हां में हां मिलाते हुए कहने लगी - "अरे ओ बहुरिया हर बार नयी साड़ी ही खरीदी जाए ये कहां लिखा है ? इसलिए वही पहनो जो है •••सोनिका के मन में संतोष था।वह सासुमा से कोई अपेक्षा भी नहीं कर रही थी।खैर•••उसने सास की बात हामी भरते हुए कहा - "केवल श्रृंगार में चूड़ी बिंदी ही कोरी ही होना चाहिए।न कि पूरा श्रृंगार का सामान ••••।"
सबकी बोलती बंद हो गई।इस तरह पूजा पाठ खत्म होते ही वह अपने किराए के घर में जाने लगी।तभी सासुमा ने कहा- " बहू तुम्हारे आने से त्योहार में रौनक आ जाती है। और वे कहती हैं बहू लो तुम्हारे लिए शगुन की चूड़ी ली है ,ये भी चूड़ी पहन लो। मेरी यही इच्छा है कि दूर रहते हुए तुम देवरानी जेठानी में बस प्रेम बना रहे। इसलिए मैंने तुझे अलग रहने दिया। इतने में सोनिका भी देवरानी को जड़ाऊदार कंगन दे देती है, सासुमा को कटावदार कांच की चूड़ी देकर उनके पैर छू लेती है। तब सासुमा भी सदा सुहागन होने का आशीर्वाद देती है। इतने में देवरानी भी सासुमा का आशीर्वाद लेती है। इस तरह देवरानी जेठानी दोनों को सासुमा आशीर्वाद में चूड़ी पहना देती है। और उन्हें गले से लगा लेती है।
दोस्तों -चूड़ी एक श्रृंगार ही नहीं बल्कि त्योहार में पहने जाना एक आभूषण है जो रिश्तों को खनकाता है । और आपस में प्यार भी बढ़ाने का एक एहसास कराता है,यह दूर होते रिश्तों में मिठास भर देता है। हर स्त्री की चाह होती है कि परिवार में प्रेम बना रहे। और चाहे दूर ही क्यों न रहना पड़े।
