सुबह का भुला

सुबह का भुला

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वह नौवीं कक्षा की छात्रा थी। आए दिन शिक्षक उसकी शिकायतें लेकर आते। शिकायतें ऐसी की वह स्कूल से निकाल दी जानी चाहिए। वह स्कूल के माहौल को और बाकी विद्यार्थियों को बिगाड़ रही थी।

 दूसरे दिन प्रार्थना सभा के दौरान मेरी निगाह एक छात्रा पर पड़ी। जहां बाकी छात्राओं ने दो चोटियां बना रखी थीं, इसने लगभग तीन इंच ऊंचा बन बना रखा था, बाल कहीं काले, कहीं गोल्डन किए हुए थे। बालों की कुछ लटें चेहरे पर उड़ रही थीं। यूनिफॉर्म की स्कर्ट घुटनों से बहुत ऊपर थी, शर्ट भी बहुत चुस्त थी। वह साधारण चेहरे मोहरे की , सांवली , लंबी सी लड़की थी । प्रार्थना के बाद मैने एक शिक्षिका से उस चेहरे मोहरे का हवाला देते हुए पूछा, वह कौन है, किस कक्षा की छात्रा है?

मेरी बात सुनकर वह शिक्षिका विजयी मुद्रा में बोली, "मैडम, आपने भी उसे इतने बच्चों में अलग से नोटिस कर लिया! यही तो है जिसकी वजह से लड़कियां और लड़के बिगड़ रहे हैं। "

"क्या नाम है इसका ?""जी उपासना", मेम यह वही है जिसने पिछले वर्ष अपने ही अपहरण का नाटक किया था, बेचारा टीचर पॉक्सो एक्ट में जेल भेज दिया गया था।"

" किस क्लास में है ? "मैने पूछा

 9 वीं में। "

"ठीक है, इसे मेरे ऑफिस में भेज दीजिए। "

कुछ ही देर में वह

मेरे सामने, मेरे ऑफिस में थी।

मैंने उसको बताया कि स्कूल में सभी बच्चों के लिए एक से नियम होते हैं। उसे भी बाकी विद्यार्थियों की तरह स्कूल के यूनिफॉर्म कोड का पालन करना चाहिए, पढ़ाई में मन लगाना चाहिए।

 वह बेपरवाह सी मेरे ऑफिस में लगे हुए शील्डस और अन्य सामानों की ओर , और सीसीटीवी स्क्रीन को देखने में व्यस्त थी। उसने शायद ही मेरी बात सुनी थी।

इस पर अपनी आवाज ऊंची करते हुए मैंने कहा , " मुझे शिक्षकों से तुम्हारी बहुत शिकायतें मिल रही हैं। अच्छा हो , तुम मुझे कोई अवसर ना दो, वरना मुझे तुम्हारे माता-पिता को बुलाकर उनसे बात करनी होगी। " इतना कह कर मैंने उसे वापस क्लास में भेज दिया।

उसके जाने के कुछ समय बाद मैं राउंड पर निकली, क्या देखती हूं - वॉटर कूलर की ओट में किसी सीनियर लड़के के साथ बातें कर रही है। मैने दोनो को क्लास में भेज दिया।

उसके बाद तो मै जब राउंड पर निकलूं , वह मुझे कहीं न कहीं दिख जाती। मैने उसके शिक्षकों को बुलाया, "आप उसे बाहर जाने दें, वहां तक तो ठीक है, किन्तु, कितना समय वह बाहर रहती है, क्या आप नहीं देखते ?"

शिक्षकों ने एक दूसरे की तरफ देखा , फिर एक ने साहस बटोर कर कहा, "मैडम, वह पूछती नहीं, बताती है कि उसे बाहर जाना है, और बस..."

यहां यह सब क्या चल रहा है !आप शिक्षक हैं, इतनी लाचारी, एक बच्चे के आगे !" कहने को तो मैने कह दिया, किन्तु मैं सोच रही थी बच्चे क्यों भटक जाते हैं, अभिभावक कहां चूक जाते हैं! विकर्षक और शिक्षा संस्थान भी अपनी जवाबदारी से क्यों बचते हैं !

बच्चे तो कच्ची मिट्टी के समान होते हैं, उन्हें हम जैसा रूप देना चाहें , दे सकते हैं। यह दोष खाद, पानी अर्थात देखभाल में लापरवाही का होता है , कि वे गलत रास्ता चुन लेते हैं।

मुझे अभिभावक को बुलाना नहीं पड़ा, स्कूल की छुट्टी के बाद मैं घर के लिए निकल रही थी कि चपरासी ने सूचना दी, "मेम, कोई पैरेंट्स आपसे मिलना चाहते हैं। "मैं पुनः बैठ गई कहा, भेजो।

देखती हूं तीन लोग हैं। "जी, कहिए, किस मामले में मिलना चाहते थे?"मैने अपने सामने पड़ी कुर्सियों की ओर हाथ करते हुए पूछा।

वे बड़ी बेबाकी से कुर्सियों पर पसर गए। अपना परिचय देते हुए एक ने कहा, "मैं उपासना का पिता हूं, आपके स्कूल में 9 वीं कक्षा में पढ़ती है। ये मेरे छोटे भाई हैं, और ये हैं मेरे मित्र और शुभचिंतक। "

छोटा भाई कहकर जिनका परिचय कराया था उन्होंने जीन्स को थोड़ा ऊपर खींचा , इरादा रिवॉल्वर दिखाने का था।

मैने कहा, "कहिए क्या समस्या है ?"

"समस्या ही समस्या है , सुना था आप बहुत अनुशासनप्रिय है, इसीलिए अपनी लड़की को इतनी दूर आपके स्कूल में डाला था। मगर उसमें तो कोई बदलाव नहीं आया है। पहले की तरह ही किसी

को कुछ गिनती नहीं है। "

मैने विनम्रता से कहा, "मेरा काम स्कूल में बच्चों को अनुशासित रखना है। घर में वह क्या करती है , यह तो आपको देखना है। "

"उसे शिक्षा ऐसी दीजिए मैडम, कि वह जहां रहे मर्यादा में रहे। "

मैंने पूछा, "उसका यहां दाखिला आपने इसी साल करवाया है न? उनके हां कहने पर मैने कहा, जिन संस्कारों की इतनी गहरी नींव है, उसे हिलाने में समय तो लगेगा।" 

छोटे भाई का हाथ रिवॉल्वर को सहलाने लगा। उन्होंने कहा, "कल पड़ोसियों ने बताया कि आपके एक टीचर की मोटर साइकिल पर सवार होकर रात 8 बजे के करीब तालाब की तरफ जा रही थी। उस टीचर को समझा दीजिए वरना, यहां आसपास सब जानते हैं हम कौन हैं !"

मैने कहा, " मुझे आश्चर्य है , आप शायद ऐसे पहले अभिभावक हैं जो बेटी से कुछ नहीं पूछते। स्कूल के बाद कोई क्या करता है, वह उनका निजी मामला है। क्या आपने अपनी बेटी से भी कुछ पूछा ?"

अब बिखरने की बारी उनकी थी, गला भर आया, अभी तक की कुर्सी पर बैठने की मुद्रा में परिवर्तन आया, कंधे झुका कर कहने लगे, "अपना ही सिक्का खोटा है, अब तक शहर के जितने भी स्कूलों में इसे डाला है, वहां के एक न एक अध्यापक की नौकरी इसकी वजह से गई है। बेटी अपनी है, गला भी नहीं घोंट सकता, कुछ कहने पर धमकी देती है कि वीडियो बनाएगी, रोते, रोते कहेगी, मेरे मां- पिता से मुझे बचा लें और उस वीडियो को वायरल कर देगी। "

मुझे काटो तो खून नहीं वे बोलते जा रहे थे, "जिस विषय में फेल हो जाती है , उस टीचर को ब्लैकमेल करने की कोशिश करती है। एक बार तो अपने अपहरण का दोष भी मढ़ दिया था। टीचर को जेल हो गई थी। "

मैने उन्हें समझाने की कोशिश करते हुए कहा , "हमें निराश नहीं होना चाहिए। समझाने - बुझाने से बच्चे सही राह पर आ सकते हैं। बच्चों के साथ बहुत धैर्य रखना होता है। मार-पीट अथवा डांट - फटकार से बात बिगड़ जाती है। आप बेटी का विश्वास जीतने का प्रयास करें। मैं अपना कर्तव्य करूंगी , आप अपना करें। "मैं चलने को तत्पर हो गई।

दूसरे दिन टीचर ने एप्लिकेशन सामने रखी। "मेम, उपासना की है, कन्फेशन लेकर था जिसमें अपनी गलतियों की माफी मांगी थी और भविष्य में न दोहराने का वादा था।

हर समस्या का समाधान होता है, जरूरत होती है धैर्य की, बच्चे को विश्वास में लेने की। सुबह का भुला शाम को घर लौट आए तो उसे भुला नहीं कहते हैं।


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