सत्संग का महत्व
सत्संग का महत्व
शिष्य ने गुरु से कहा- "महाराज !मैं नित्य सत्संग में आता हूँ किंतु कुछ लाभ ना हुआ। मैं तो सुनता था कि सत्संग में जाने से परमात्मा का दर्शन हो जाता है और स्वर्ग का सुख घर में ही मिलने लगता है किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ ।अब आप ही बताइए कि सत्संग में आने से क्या लाभ ?" गुरु ने कहा- "शिष्य तू एक काम कर। तुमको तुम्हारे प्रश्न का उत्तर अपने आप मिल जाएगा ।"इतना कहकर गुरु ने शिष्य को एक टोकरी दी और कहा कि पास ही बहती हुई नदी से इसमें पानी भर ला। शिष्य टोकरी लेकर नदी तट पर गया और उसमें पानी भरने का प्रयास करने लगा। जब तक टोकरी जल में रहती भरी दिखाई देती ज्यों ही वह उसे ऊपर उठाता वह जल में से खाली हो जाती ।दस -बीस बार ऐसा करने पर भी जब वह उसमें पानी ना ठहर पाया ,तो वह गुरु के पास आया और बोला -"महाराज !क्या कभी टोकरी में पानी आ सकता है ।"गुरु ने धैर्य बँधाया और कहा -"देख बेटा! धीरज रख और प्रयास करते रहो, कभी ना कभी ऐसा करते रहने से कुछ ना कुछ अवश्य मिलेगा ।" शिष्य को विश्वास हुआ और वह 7 दिन तक प्रयास करता रहा ।आठवें दिन खिन्न होकर गुरु से बोला -"गुरु महाराज आपकी आज्ञा अनुसार मैं 7 दिन तक प्रयास करता रहा किंतु टोकरी में जल ठहरता ही नहीं है, फिर कैसे ले आऊँ।" गुरु ने कहा-" माना की टोकरी में जल नहीं ठहरता है ,इसलिए तू जल ना ले आ सका किंतु नित्य अनेकों बार डूबने के कारण क्या टोकरी में कुछ परिवर्तन हुआ है?" शिष्य ने उत्तर दिया -"महाराज !वह टोकरी पहले मैली दिखाई देती थी किंतु अब साफ हो गई है और इसका कड़ापन भी कम हो गया है ।"गुरु ने कहा -"तो इतना अंतर क्या कुछ कम है। टोकरी में पानी आया सही किंतु टोकरी साफ हो गई है, इसका कड़ापन दूर हो गया है।इसके ताने-बाने पानी में विभिन्न कर सघन हो गए हैं।" जब यह ताने-बाने एक दूसरे से सट जायेंगे तब इसमें पानी भी ठहर जाएगा।"
हमारा मन भी ठीक टोकरी की तरह है ,जिसमें माया का कूड़ा -कचरा तो ठहर जाता है किंतु मानो जैसे भक्ति नहीं ठहर पाती है। सत्संग धारा में मन डुबकियाँ लगाता रहे तो अवश्य ही निर्मल हो जाएगा और एकाग्रता आने पर "भक्ति" रूपी जल भी उसमें स्थायित्व पा सकेगा।